धारा 406 IPC | IPC 406 In Hindi | आपराधिक न्यासभंग के लिए दंड

आज के डिजीटल युग में विधिक मामले अधिकाधिक प्रासंगिक होते जा रहे हैं, और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न धाराओं को समझना महत्वपूर्ण है. ऐसी ही एक धारा IPC 406, है जो “आपराधिक न्यासभंग के लिए दंड” से संबंधित है. इस लेख में हम IPC की धारा 406 की जटिलताओं पर विचार करेंगे और … Read more

कपट का अर्थ, परिभाषा एवं आवश्यक तत्व

कपट का अर्थ कपट का मतलब होता है “किसी के इरादे में छल या धोखा देना”. इसका अर्थ होता है कि “कोई व्यक्ति या पक्ष किसी अन्य व्यक्ति या पक्ष के साथ किसी समझौते या अनुबंध के तहत छल करता है”. कपट के मामले में, यह साबित करना महत्वपूर्ण हो सकता है कि किसी व्यक्ति … Read more

घोषणात्मक डिक्री क्या है? | घोषणात्मक डिक्री का अर्थ, आवश्यक शर्त एवं प्रभाव

घोषणात्मक डिक्री का अर्थ घोषणात्मक डिक्री एक ऐसी डिक्री है जिसके अन्तर्गत न तो प्रतिकर ही देय होता है और न ही उनके निष्पादन की आवश्यकता ही होती है. यह एक ऐसी डिक्री है जो मात्र अधिकारों या हैसियत की घोषणा करती है इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं. इस प्रकार घोषणात्मक डिक्री (Declarative Decree) व्यक्ति … Read more

वसीयत या इच्छापत्र क्या है? | वसीयत कौन कर सकता है? | दान एवं वसीयत के बीच अन्तर

वसीयत वसीयत (बिल) का अर्थ वसीयतकर्ता का अपनी सम्पत्ति के सम्बन्ध में अपने अभिप्राय का कानूनी प्राख्यापन (Declaration) है, जिसे वह अपनी मृत्यु के पश्चात् लागू किये जाने की इच्छा रखता है. वसीयत, जिसे वसीय या वारिस की ओर से छोड़ा जाने वाला संपत्ति या धन होता है, जिसमें व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम पर … Read more

हिन्दू विधि के तहत दान क्या है? | वैध दान की क्या आवश्यकतायें हैं?

दान क्या है? ‘दान’ सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम धारा 122 में परिभाषित है. इसके अनुसार, दान किसी वर्तमान जंगम या स्थावर सम्पत्ति का वह अन्तरण है, जो एक व्यक्ति द्वारा, जो दाता कहलाता है, दूसरे व्यक्ति को, जो आदात कहलाता है, स्वेच्छया और प्रतिफल के बिना किया गया हो, और आदाता द्वारा या की ओर से … Read more

विभाजन/बंटवारा क्या है तथा किसके कहने पर हो सकता है? | आंशिक बंटवारा क्या है?

विभाजन/बंटवारा का तात्पर्य विधि के अनुसार, बंटवारे के दो अर्थ हैं पहला सम्पूर्ण सम्पत्ति पर होने वाले अधिकार को विभिन्न सदस्यों के मध्य प्रत्येक के हिस्से में निश्चित करना. दूसरा, उससे उत्पन्न होने वाले वैधानिक परिणामों में संयुक्त स्थिति को समाप्त करना. मिताक्षरा विधि के अन्तर्गत बंटवारे की परिभाषा ‘संयुक्त परिवार की सम्पत्ति में सहभागीदार … Read more

स्त्रीधन क्या है? स्त्रीधन के अन्तर्गत कौन-कौन सी सम्पत्ति आती है?

स्त्रीधन का तात्पर्य ‘स्त्रीधन’ दो शब्दों से मिलकर बना है; स्त्री और धन. अतएव इसका शाब्दिक अर्थ है ‘स्त्री की सम्पत्ति’. किन्तु यदि हम विभिन्न मूल टीकाओं पर दृष्टिपात करें तो हमें विदित हो कि स्त्रीधन शाब्दिक रूप से प्रयोग नहीं किया गया है अपितु क्रियात्मक रूप से किया गया है. जैसा कि राजम्मा बनाम … Read more

निपटारा करार एवं माध्यस्थम् करार में क्या अन्तर है?

निपटारा करार एवं माध्यस्थम् करार दो पक्षों के मतभेदों या झगड़ों को जो सिविल चरित्र के हो, को सुलझाने के लिए माध्यस्थम् एवं सुलह प्रक्रिया का विस्तार किया जा रहा है जो कि न्यायालयों के ऊपर लम्बित मामलों की अधिक संख्या को देखते हुए समीचीन प्रतीत होता है और आवश्यक भी है- जब दो पक्षों … Read more

मध्यस्थता एवं सुलह क्या है? दोनों में क्या अंतर है?

माध्यस्थम्/मध्यस्थता तथा सुलह अधिनियम, 1996 पारित होने के कारण एवं मुख्य उद्देश्य क्या हैं? माध्यस्थम्/मध्यस्थता क्या है? | सुलह क्या है? | माध्यस्थम्/मध्यस्थता एवं सुलह में अंतर माध्यस्थम्/मध्यस्थता अधिनियम, 1996 पारित होने के कारण माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम, 1996 पारित होने के मुख्य उद्देश्य माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम, 1996 पारित होने के मुख्य उद्देश्य भी … Read more

सीपीसी के तहत द्वितीय अपील क्या है? | किन आधारों पर द्वितीय अपील की जा सकती है?

द्वितीय अपील सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) ने प्रथम अपील को विस्तृत रूप दिया है. वहीं द्वितीय अपील के बारे में संहिता में सीमित प्रावधानों को उपबन्धित किया गया है जिसका एकमात्र उद्देश्य मुकदमेबाजी का अन्त करना है. द्वितीय अपील के आधार CPC की धारा 100 में निम्नलिखित उन आधारों का उल्लेख किया गया है जिनके … Read more