मुस्लिम विधि में तलाक क्या होता है? | मुस्लिम तलाक के प्रकार और नियम

मुस्लिम विधि में तलाक क्या होता है? | मुस्लिम तलाक के प्रकार और नियम

मुस्लिम विधि में तलाक

‘तलाक’ शब्द अरबी भाषा के ‘तलाका’ धातु से उद्भूत हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘किसी बन्धन या गांठ को खोल देना अथवा निर्मुक्त करना’ मुस्लिम विधि में तलाक का मतलब पति द्वारा वैवाहिक संविदा का निराकरण है. कानून में इससे तात्पर्य है ‘निकाह के बन्धनों को हटा देना’ अर्थात् वैवाहिक सम्बन्धों की समाप्ति. मोहम्मद साहब ने कहा है “खुदा ने जितनी भी वस्तुओं की स्वीकृति दी है उनमें सबसे घृणित कोई वस्तु है तो वह है तलाक.”

मुस्लिम विधि में मान्य तलाक कितने प्रकार के होते हैं? मुस्लिम विधि के अनुसार, वयस्क तथा स्वस्थ मष्तिष्क वाला पति जब चाहे अपनी इच्छानुसार बिना कारण बताये भी पत्नी को तलाक दे सकता है. शिया कानून के अनुसार, तलाक के मान्य होने के लिये स्वतंत्र सहमति आवश्यक है किन्तु सुन्नी कानून में यह आवश्यक नहीं है.

तलाक मौखिक होना

सुन्नी विधि के अनुसार, पति बिना किसी तलाकनामा या विलेख के मौखिक तलाक दे सकता है. किसी विशेष प्रकार के शब्दों की भी आवश्यकता नहीं होती है. यदि शब्द प्रत्यक्ष तथा अच्छी तरह समझने योग्य है, तब आशय के प्रमाण को आवश्यकता नहीं होती है. इसके विपरीत यदि शब्द संदिग्ध हैं तब आशय का प्रमाण लिया जाना अनिवार्य है.

उदाहरण के लिये, “मैं तुझे तलाक देता हूँ” या “मैं अपनी पत्नी को हमेशा के लिये तलाक देता हूँ.” इन स्पष्ट शब्दों से पति की स्वेच्छा प्रकट होती है. इन परिस्थितियों में आशय को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है. इसके विपरीत यदि पति यह कहे कि “तुम मेरी (चचेरी बहन हो, या मेरे चाचा की पुत्री हो, तुम जाओ” अथवा “मैं तुमसे सभी सम्बन्ध तोड़ता हूँ और तुम्हारे साथ अब कोई सम्बन्ध नहीं रखूंगा” तो इन शब्दों में संदिग्धता का आभास होता है और इन परिस्थितियों में आशय का प्रमाण देना अनिवार्य है.

हनफी विधि को छोड़कर मुस्लिम विधि के अन्य स्कूलों के अनुसार तलाक पति की स्वेच्छा से दिया जाना चाहिये. अतः शफी, मलिकी, हनबली तथा शिया विधि के अन्तर्गत यदि तलाक देने में पति की स्वतन्त्र सहमति नहीं है तो तलाक शून्य है और विवाह विच्छेद नहीं हो पाता है.

शमीम आरा बनाम स्टेट आफ यूपी J.T. 2002 (7) SC 320 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह अवलोकन किया है कि तलाक मौखिक होना चाहिए. लिखित तलाक मान्य नहीं है. इस बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह संप्रेषण किया है कि पवित्र ग्रंथ कुरान के अनुसार तलाक की विधि यह है कि तलाक किसी समुचित कारण पर दिया जाना चाहिए और इससे पहले पति पत्नी द्वारा दो विवाचक नियुक्त हों और वे सुलह के सभी प्रयास कर ले और जब ये प्रयास असफल हो जायें तब तलाक प्रभावी होना चाहिए.

कौसर B.K. मुल्ला बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र, (AIR 2007 (N.O.C. बाम्बे) के वाद में भी बाम्बे उच्च न्यायालय ने शमीम आरा में दिये गये उच्चतम न्यायालय के मत का अनुकरण किया है.

पत्नी की अनुपस्थिति में तलाक

यह आवश्यक नहीं है कि तलाक पत्नी की उपस्थिति में या उसको सम्बोधित करके घोषित किया जाय. पत्नी की अनुपस्थिति तलाक को निष्प्रभावित नहीं करती है. उसका नाम अवश्य तलाक में आना चाहिये. पत्नी की अनुपस्थिति में दिया गया तलाक उसको उचित समय के भीतर उसके नाम से सूचित किया जाना चाहिये और सूचित होने तक उसके निर्वाह वृत्ति के अधिकार जारी रहेंगे. अतः जहां पर केवल तलाक के शब्दों का ही उच्चारण हुआ है, वहां उसे अमान्य माना गया है.

दबाव, नशे तथा मजाक में किया गया तलाक

सुन्नी विधि में दबाव, नशे या मजाक में दिया गया तलाक मान्य होता है परन्तु शमीम आरा बनाम स्टेट आफ यूपी J.T. 2002 (7) SC 320, के बाद में दिये गये उच्चतम न्यायालय के निर्णय को देखते हुये अब ऐसा प्रतीत होता है कि दबाव, नशे या मजाक में दिया गया तलाक वर्तमान समय में मान्य नहीं है. शिया विधि में स्वेच्छा से दिया गया तलाक मान्य होता है तथा दबाव, नशे या मजाक से दिया गया तलाक अमान्य होता है.

शिया कानून में तलाक

शिया विधि के अनुसार, कुछ विशिष्ट सूत्रों का प्रयोग आवश्यक है. इस मत के अनुसार, अरबी भाषा में तलाक घोषित किया जाना चाहिये. दिलशाद मासूद बनाम गुलाम मुस्तफा, AIR 1986 जम्मू एवं कश्मीर 80) में जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय ने यह अवलोकन किया है कि शिया विधि के अन्तर्गत तलाक का उच्चारण केवल अरबी भाषा में और एक विशेष प्रारूप में होना चाहिये.

परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि पति स्वयं अरबी भाषा की जानकारी रखता हो. वह किसी ऐसे प्रतिनिधि की सेवायें अपनी तरफ से तलाक का उच्चारण करने के लिये ले सकता है जिसे अरवी भाषा की जानकारी हो.

यदि अरबी भाषा का जानकार कोई व्यक्ति उपलब्ध नहीं है तभी किसी अन्य भाषा में तलाक घोषित किया जा सकता है. शिया विधि के अन्तर्गत तलाक का उच्चारण सामान्यतया मौखिक रूप से दो सक्षम पुरुष गवाहों के समक्ष होना चाहिये. परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि तलाक की घोषणा इमाम के समक्ष की जाये. यदि पति मौखिक घोषणा करने में शरीर से असमर्थ हो तो लिखित तलाक मान्य है.

मुस्लिम तलाक के प्रकार

मुस्लिम तलाक दो तरह से हो सकता है-

  1. तलाक-उल-सुन्नत (विखंडनीय तलाक), और
  2. तलाक-उल-विद्दत (अविखंडनीय तलाक).

1. तलाक-उल-सुन्नत

यह तलाक का परम्परागत ढंग है जो मोहम्मद साहब द्वारा अनुमोदित है तथा मुस्लिम विधि की सभी शाखाओं के अनुसार मान्य है, यह दो रूपों में होता है-

  1. तलाक अहसन, और
  2. तलाक हसन.

1. तलाक अहसन

पैगम्बर मुहम्मद के सुन्ना पर आधारित होने के कारण तलाक-उल-सुन्नत की मान्यता इस्लाम द्वारा अनुमोदित तलाक के रूप में है. तलाक अहसन में पति पत्नी को तलाक देने की केवल एक बार घोषणा करता है और यह घोषणा ऐसे समय पर की जाती है जब उसकी पत्नी रजस्वला न हो, अर्थात् (पवित्रता) की अवस्था में हो.

तलाक की घोषणा के बाद उस पत्नी के साथ समागम वर्जित माना जाता है. यदि पति चाहे तो इद्दत की अवधि समाप्त होने से पहले तलाक की घोषणा को वापस ले सकता है. इद्दत काल के दौरान स्पष्ट घोषणा द्वारा या पति द्वारा पत्नी के साथ पुनः समागम करके तलाक रद्द किया जा सकता है.

तलाक अहसन के लिये निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं-

  1. तलाक की केवल एक घोषणा पति द्वारा हो.
  2. यदि विवाह समागम द्वारा पूर्ण हो चुका हो तो घोषणा तुहर या पवित्रता की अवधि में हो जबकि समागम पर कोई बन्धन न हो.
  3. इस घोषणा के पश्चात् पवित्रता की अवधि में पति को समागम नहीं करना चाहिये.
  4. यदि विवाह में सहवास नहीं हुआ हो तो ऐसी दशा में तलाक की घोषणा रजस्वला की अवस्था में भी की जा सकती है.
  5. यदि स्त्री रजस्वला न होती हो तो घोषणा समागम के पश्चात् भी की जा सकती है.

जब तक इद्दत काल समाप्त न हो, तलाक पूर्ण या प्रभावी नहीं होता है. इद्दत काल में पारस्परिक उत्तराधिकार प्राप्त करने का पक्षकारों का अधिकार बना रहता है, और तलाक पूर्ण हो जाने पर यदि पक्षकार चाहें तो वे एक दूसरे से पुनः विवाह कर सकते हैं.

2. तलाक हसन

तलाक हसन विवाह-विच्छेद का सबसे अच्छा तरीका तो नहीं है फिर भी उचित तरीका माना जाता है क्योंकि इसमें भी पति-पत्नी के बीच समझौता हो जाने के लिये पर्याप्त समय रहता है. तलाक हसन की रीति निम्नलिखित है-

तलाक हसन के लिये निम्नलिखित प्रमुख अपेक्षायें हैं-

  1. तलाक की घोषणा लगातार तीन तुहरों में होनी चाहिये.
  2. यदि स्त्री रजस्वला हो तो तीन घोषणायें तीन क्रमिक तुहर अथवा शुद्धता काल में हों.
  3. यदि स्त्री अरजस्वला हो तो तीनों घोषणायें लगातार तीस तीस दिन के बाद होनी चाहिये.
  4. इन तीनों समयावधियों (तुहर) के बीच पति-पत्नी का समागम नहीं होना चाहिये.

2. तलाक-उल-बिद्दत

शायरा बानो बनाम भारत संघ, AIR 017 SC 4609 के पूर्व की स्थिति तलाक-उल-बिद्दत को तलाक-उल-बेन भी कहा जाता है. तलाक-उल-बिद्दत तलाक की अस्वीकृत कोटि का तलाक माना जाता था. इस प्रकार के तलाक में पति अपनी पत्नी के रजस्वला न रहने के समय (इस समय को तुहर भी कहते हैं) तीन बार तलाक की घोषणा करता था अर्थात् वह कहता था, “मैं तुझे तलाक देता हूँ, मैं तुझे तलाक देता हूँ, मैं तुझे तलाक देता हूँ.”

यद्यपि इस तरह से तलाक देना पाप था तो भी कानून की दृष्टि से ऐसा तलाक मान्य माना जाता था. इधना अशारी विधि के अनुसार इस प्रकार का तलाक अस्वीकृत है तथा हनफी कानून के अनुसार ऐसा तलाक पाप होते हुये भी गैर कानूनी नहीं माना जाता था. यह तलाक दो तरह से हो सकता था-

केवल एक ही शुद्धता काल (तुहर) के समय में चाहे एक वाक्य से अथवा अलग-अलग वाक्यों में तलाक की घोषणा हो सकती थी.

उदाहरण के लिए, “मैं तुम्हें तीन बार तलाक देता हूँ” या “मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ” कहना “तलाक-उल-बिद्दत” के रूप में मान्य था.

केवल एक ही घोषणा द्वारा जो तलाक की भावना को दृढ़ रूप में प्रदर्शित करे, तलाक-उल-बिद्दत का यह आवश्यक तत्व नहीं था कि उसे तीन बार दोहराया जाय वरन् आवश्यक यह रहता था कि तलाक की अविखण्डनीयता वाक्यों से प्रकट हो, जैसे मैंने तुम्हें तलाक-उल- वैन से तलाक दे दिया है.” यहां “वैन” शब्द का प्रयोग यह आशय प्रकट करता है कि तलाक अविखंडनीय है.

हैदाया के आधार पर पटना उच्च न्यायालय ने शेख फजलुर बनाम मुसम्मात आयेशा, AIR 1929 पटना 81, के बाद में कहा कि तलाक-उल-बिद्दत का तलाक पत्नी के मासिक धर्म की अवधि में भी दिया जा सकता था.

शायरा बानो बनाम भारत संघ, AIR 2017 SC 4609 के बाद की स्थिति

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने 32 के बहुमत से तीन तलाक (तलाक-उल- बिद्दत/तलाक-ए-बिद्दत/ तिहरा तलाक ) को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार दिया. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तत्काल तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है. यह प्रथा बिना कोई मौका दिये विवाह को समाप्त कर देती है. अत: तलाक-ए-बिद्दत या तिहरा तलाक असंवैधानिक और गैरकानूनी है.

संसद ने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 पारित कर दिया है जो 19 सितम्बर, 2018 से प्रभाव में आ गया है. इस अधिनियम की धारा 4 के अन्तर्गत तलाक-ए-बिद्दत (तत्काल तीन तलाक) को दण्डनीय अपराध माना गया है. तत्काल तीन तलाक देने वाले पति को अधिकतम 3 साल तक का कारावास और जुर्माना हो सकता है.

धारा 7 के तहत, मजिस्ट्रेट को पीड़िता का पक्ष सुनने के बाद सुलह कराने और जमानत देने का अधिकार दिया गया है. पीड़िता, उसके रक्त सम्बन्धी और विवाह से बने उसके सम्बन्धी ही पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं. पति-पत्नी के बीच ‘यदि किसी प्रकार का आपसी समझौता होता है तो पीड़िता अपने पति के विरुद्ध दायर किया गया मामला वापस ले सकती है.

धारा 5 के अनुसार, एक बार में तीन तलाक की पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट के द्वारा निर्धारित किये गये मुआवजे की हक़दार होगी. वहीं धारा 6 में अदालत का निर्णय होने तक संतान मां के संरक्षण में रहेगी.

शमीम आरा बनाम यूपी राज्य, J.T. 2002 (7) SC 320 के बाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि तलाक को प्रभावी होने के लिये उसका अभिकथन होना आवश्यक है. उच्चतम न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया है कि पवित्र ग्रन्थ कुरान में तलाक की यह विधि है कि तलाक युक्तिसंगत कारण पर दिया जाना चाहिये और इससे पहले पति-पत्नी द्वारा दो विवाचक नियुक्त किये जाएँ और वे सुलह के सारे प्रयास कर लें और जब ये प्रयास असफल हो जायें तभी तलाक दिया जाना चाहिये.

इस निर्णय का कर्नाटक उच्च न्यायालय के द्वारा मोहम्मद इब्राहिम बनाम मेहरुन्निसा बेगम, AIR 2004 कर्नाटक 26 में अनुसरण किया गया है.

तलाक कब रद्द न किया जा सकने योग्य हो जाता है

  1. तलाक अहसन में इद्दत की अवधि की समाप्ति के बाद.
  2. तलाक हसन में तीसरी घोषणा के बाद.
  3. तलाक-उल-बिद्दत में ज्यों ही इसकी घोषणा हो.

सुन्नी तथा शिया कानूनों की तलाक के बीच अंतर

सुन्नी कानून में तलाक शिया विधि की अपेक्षा आसान होता है. शिया कानून यह नहीं चाहता कि पुरुष इतनी स्वतन्त्रता और आसानी से तलाक की घोषणा कर सके. दोनों में निम्नलिखित भिन्नतायें हैं-

सुत्री कानून के अनुसार, तलाक लिखित भी दिया जा सकता है और मौखिक रूप से भी, परन्तु शिया मत लिखित तलाक को मान्यता नहीं देता है जब तक पति मौखिक रूप से तलाक घोषित करने में असमर्थ न हो.

शमीम आरा बनाम स्टेट आफ यूपी J.T. 2002 (7) SC 320 में सर्वोच्च न्यायालय ने अवधारित किया है कि तलाक की घोषणा होना आवश्यक है. लिखित तलाक मान्य नहीं है. अतः इस समय सुन्नी विधि के अन्तर्गत भी लिखित रूप से तलाक नहीं दिया जा सकता है.

  1. सुन्नी कानून में तलाक की घोषणा के समय साक्षियों की उपस्थिति आवश्यक नहीं है, परन्तु शिया कानून में तलाक की घोषणा के समय दो साक्षियों की उपस्थिति अनिवार्य है.
  2. सुनी विधि में आशय की कोई महत्ता नहीं है. नशा, दबाव या मजाक में दिया गया तलाक भी मान्य है, परन्तु शिया विधि में ऐसा तलाक अमान्य है.
  3. सुत्री कानून में तलाक-उल-बिद्दत भी वैध है जिसमें एक ही समय में या एक ही वाक्य में तीन बार तलाक दिया जाता है, किन्तु शिया विधि में केवल अहसान या हसन रूप में ही तलाक दिया जा सकता है |

Leave a Comment