वसीयत या इच्छापत्र क्या है? | वसीयत कौन कर सकता है? | दान एवं वसीयत के बीच अन्तर

वसीयत या इच्छापत्र क्या है? | वसीयत कौन कर सकता है? | दान एवं वसीयत के बीच अन्तर

वसीयत

वसीयत (बिल) का अर्थ वसीयतकर्ता का अपनी सम्पत्ति के सम्बन्ध में अपने अभिप्राय का कानूनी प्राख्यापन (Declaration) है, जिसे वह अपनी मृत्यु के पश्चात् लागू किये जाने की इच्छा रखता है.

वसीयत, जिसे वसीय या वारिस की ओर से छोड़ा जाने वाला संपत्ति या धन होता है, जिसमें व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम पर जाने वाला आदिकार दर्ज होता है, जो उसके मृत्यु के बाद किसी अन्य व्यक्ति या संगठन को लाभ पहुंचाने के लिए होता है. वसीयत को किसी की आखिरी इच्छाओं और विशेष निर्देशों के अनुसार अंजाम देने का माध्यम भी माना जाता है. वसीयत एक कानूनी दस्तावेज होती है और यह व्यक्ति की संपत्ति का वितरण उसकी मृत्यु के बाद करने में मदद करती है.

वसीयत या इच्छापत्र (Will) किसी बसी (Testator) को अपनी सम्पत्ति सम्बन्धी इरादे की विधिक घोषणा है जिसे वह अपने मरने के बाद कार्यान्वित कराना चाहता है.

वसीयत की विशेषताएं

वसीयत की दो विशेषतायें हैं-

  1. वसीयत वसीयतकर्त्ता की मृत्यु के बाद ही प्रभावी होती है, जब तक वह जीवित होता है तब तक वह स्वयं स्वत्वधारी होता है तथा वह चाहे जिसे उस सम्पत्ति को अन्तरित कर सकता है. वह वसीयत को अपने जीवित रहते समय किसी भी क्षण रद्द कर सकता है या बदल सकता है.
  2. यह सम्पत्ति सम्बन्धी विधिक घोषणा है अतः घोषणा का विधिक होत आवश्यक है. अर्थात् घोषणा विधिक रीति से स्वस्थचित वाले व्यक्ति द्वारा होनी चाहिए.

वसीयत कौन कर सकता है?

कोई भी हिन्दू जो स्वस्थ चित्त वाला है और वयस्क हो चुका है, वह अपनी सम्पत्ति इच्छापत्र द्वारा किसी को दे सकता है. इसको देने की सीमा व अन्य उपबन्ध इस अध्याय में दिये गये हैं. वह व्यक्ति जिसने भारतीय वयस्कता अधिनियम के अधीन वयस्कता नहीं प्राप्त किया है एक वैध इच्छापत्र नहीं लिख सकता. एक सहदायिक संयुक्त परिवार की सम्पत्ति को अथवा उसके किसी अंश को इच्छापत्र द्वारा निवर्तित अब हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 30 के अन्तर्गत कर सकता है.

कौन-सी सम्पत्ति इच्छापत्र द्वारा दी जा सकती है?

कोई भी हिन्दू जिस सम्पत्ति को अपने जीवन काल में दान द्वारा नहीं दे सकता है, उसे वह इच्छा पत्र द्वारा भी नहीं दे सकता है.

मिताक्षरा विधि के अन्तर्गत कोई भी सहदायिकी अपनी सम्पत्ति या संयुक्त परिवार की सम्पत्ति दान द्वारा नहीं दे सकता है. अन्य सहदायिकों के सहमत होने पर भी वह नहीं दे सकता. किन्तु अब वह अपने अविभाजित हिस्से की वसीयत कर सकता है.

दायभाग पद्धति के अनुसार, कोई भी सहदायिकी संयुक्त परिवार में अपना पूर्ण हिस्सा और पिता अपना पूर्ण हिस्सा इच्छापत्र द्वारा दे सकता है.

दायभाग पद्धति के अनुसार, कोई भी सहदायिकी संयुक्त परिवार में अपना पूर्ण हिस्सा और पिता अपना पूर्ण हिस्सा इच्छा-पत्र द्वारा दे सकता है.

दायभाग पद्धति के अनुसार, कोई भी सहदायिकी संयुक्त परिवार की समस्त सम्पत्ति इच्छा पत्र द्वारा दे सकता है. किन्तु मृत्यु के समय यदि वह एकमात्र सहदायिकी नहीं होता, तो इच्छा पत्र द्वारा दे सकता है.

कोई हिन्दू अपनी पृथक् या स्वार्जित सम्पत्ति किसी भी प्रकार से दे सकता है. वह अपने पुत्रों को देने के बजाय किसी अन्य जन को स्वार्जित सम्पत्ति पूर्ण रूप से दे सकता है. किन्तु इच्छा पत्र में यह स्पष्ट रूप से लिख दिया जाना चाहिए कि पुत्रगण न पायेंगे. वह केवल अवसीयती सम्पत्ति पायेंगे.

विजय सिंह बनाम इन्द्रा सिंह, AIR 2012 राजस्थान 164 के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि पत्नी द्वारा सम्पति में के अपने हिस्से की वसीयत की जा सकती है. वह अपने दत्तक पुत्र की सम्पत्ति की वसीयत नहीं कर सकती.

अजात बालक को उत्तरदान

पूर्व हिन्दू विधि के अनुसार, वसीयतकर्त्ता की मृत्यु के समय यदि बालक का जन्म नहीं हुआ होता था तो वह वसीयत अवैध समझी जाती थी. किन्तु यदि बच्चा माँ के गर्भ में होता था या पति की मृत्यु के बाद पत्नी दत्तक ग्रहण कर लेती थी तो विधि के द्वारा वसीयत वसीयतकर्त्ता की मृत्यु के समय वह बालक अस्तित्व में माना जाता था. किन्तु यह नियम पूर्ण वर्णित तीन अधिनियमों के बनने में परिवर्तित हो गया है. ये अधिनियम उपहार एवं इच्छा पत्र दोनों पर लागू होते. हैं. ये अधिनियम हैं-

किन्तु जहां पर अधिनियम लागू नहीं है वहां पर अब भी अजात बालक के पक्ष में किया गया उपहार या वसीयत अवैध है. सामान्यतः हिन्दू विधि के अन्तर्गत अजात बालक के पक्ष में वसीयत नहीं लिखी जा सकती |

दान एवं वसीयत के बीच अन्तर

  1. ‘दान’ सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम धारा 123 के अनुसार, रजिस्ट्रीकृत एवं दो व्यक्तियों द्वारा साक्षीकृत भी होना चाहिए, जबकि वसीयत में रजिस्ट्रेशन हो भी सकता है और नहीं भी किन्तु साक्षी होना आवश्यक नहीं है.
  2. दान वर्तमान सम्पत्ति का होता है, जबकि वसीयत भविष्य में प्राप्त होने वाली सम्पत्ति का भी हो सकता है.
  3. दान की विषय वस्तु जंगम एवं स्थावर सम्पत्ति दोनों होती है, जबकि वसीयत केवल स्थावर सम्पत्ति की ही हो सकती है.
  4. दान के अन्तर्गत किसी सम्पत्ति का दान केवल एक बार हो सकता है, जबकि वसीयत में एक ही सम्पत्ति का कई बार वसीयत हो सकता है.
  5. दान तत्काल प्रभाव में आ जाता है, जबकि वसीयत वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात् प्रभाव में आती है.
  6. दान विद्यमान सम्पति का किया जाता है, जबकि वसीयत वसीयतकर्ता की मृत्यु के समय विद्यमान सम्पत्ति का किया जा सकता है,
  7. दान सामान्यतः अविखण्डनीय होता है, जबकि वसीयत को वसीयकर्ता द्वारा अपने जीवनकाल में कभी भी विखण्डित किया जा सकता है |

Leave a Comment