घोषणात्मक डिक्री क्या है? | घोषणात्मक डिक्री का अर्थ, आवश्यक शर्त एवं प्रभाव

घोषणात्मक डिक्री क्या है? | घोषणात्मक डिक्री का अर्थ, आवश्यक शर्त एवं प्रभाव

घोषणात्मक डिक्री का अर्थ

घोषणात्मक डिक्री एक ऐसी डिक्री है जिसके अन्तर्गत न तो प्रतिकर ही देय होता है और न ही उनके निष्पादन की आवश्यकता ही होती है. यह एक ऐसी डिक्री है जो मात्र अधिकारों या हैसियत की घोषणा करती है इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं. इस प्रकार घोषणात्मक डिक्री (Declarative Decree) व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करने एवं उन्हें यथास्थान रखने का कार्य करती है.

इस प्रकार जब कोई व्यक्ति किसी सम्पत्ति के सम्बन्ध में कोई अधिकार या वैध हैसियत रखने का अधिकारी है तथा कोई अन्य व्यक्ति उसके इस अधिकार या वैध हैसियत से इन्कार करता है तो वह अधिकारी व्यक्ति न्यायालय में इस उद्देश्य के लिए वाद दायर कर सकता है कि न्यायालय इस प्रभाव की एक घोषणा जारी करे कि वास्तव में वादी विवादग्रस्त सम्पत्ति का अधिकारी है या उस पर वैध हैसियत बनाये रखने का अधिकारी है. न्यायालय द्वारा जारी की जाने वाली इस उद्देश्य की घोषणा घोषणात्मक डिक्री के द्वारा केवल पहले जो अधिकार वादी में निहित थे, उन्हों की पुनः वादी के पक्ष में घोषणा की जानी है. इस डिक्री से न तो वादी को कोई नये अधिकार ही प्राप्त होते हैं और न ही प्रतिवादी से कोई भुगतान अथवा पालन की ही माँग की जाती है |

कौन वाद ला सकता है?

निम्नलिखित व्यक्ति घोषणात्मक डिक्री के लिए बाद ला सकते हैं-

  1. वह व्यक्ति जो विधिक हैसियत रखता हो. या
  2. वह व्यक्ति जो कि सम्पत्ति में अधिकार रखता हो.

इस प्रकार यह वाद निम्नलिखित व्यक्तियों के विरुद्ध लाया जा सकता है-

  1. जो किसी की विधिक हैसियत या संपत्ति के अधिकार से इन्कार करता है, या
  2. वह व्यक्ति जो ऐसा इन्कार करने की अभिरुचि रखता हो |

घोषणात्मक डिक्री की आवश्यक शर्तें

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम,1963 की धारा 34 के अधीन पारित की जाने वाली घोषणात्मक डिक्री के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है-

  1. वाद दायर करने के लिए वादी किसी सम्पत्ति के अधिकार को या किसी वैध हैसियत को रखने का अधिकारी व्यक्ति होना चाहिये. अधिकार या वैध हैसियत जिसके सम्बन्ध में वादी दावा कर रहा है वाद दायर करने के दिन अस्तित्व में होनी चाहिए. भविष्य में अस्तित्व में आने वाले अधिकार या वैध हैसियत के सम्बन्ध में घोषणात्मक डिक्री प्राप्त नहीं की जा सकती.
  2. प्रतिवादी द्वारा वादी के इस सम्पत्ति के अधिकार या वैध हैसियत रखने के अधिकार का इन्कार किया जाना चाहिए. इस सम्बन्ध में प्रतिवादी द्वारा वर्तमान में इन्कार किया जाना चाहिए. यदि वादी को केवल यह आशंका है कि प्रतिवादी भविष्य में कभी उसके इस सम्पत्ति के अधिकार या वैध हैसियत को मानने से इन्कार करेगा तो इस अवस्था में वादी धारा 34 के अन्तर्गत घोषणात्मक डिक्री प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होगा.
  3. धारा 34 के अन्तर्गत दायर किये गये वाद में वादी द्वारा केवल इसी आशय की घोषणा की माँग की गयी होनी चाहिए कि वह किसी सम्पत्ति के अधिकार को या वैध हैसियत को रखने का अधिकारी है. यह सम्पत्ति का अधिकार या हैसियत विधिक प्रकृति की होनी आवश्यक है.
    • उदाहरण के लिए, ‘क’ का किसी जमीन पर वैध आधिपत्य है. गाँव के व्यक्ति उस भूमि से होकर अपने मार्ग के अधिकार की माँग करते हैं. ‘अ’ सक्षम न्यायालय के समक्ष धारा 34 के अन्तर्गत इस आशय की घोषणा जारी करवाने के लिए दावा दायर कर सकता है कि गाँव के व्यक्ति उस जमीन पर आने-जाने का अधिकार नहीं रखते.
  4. वादी दावा दायर करने के दिन इस घोषणा के साथ-साथ सम्पत्ति के अधिकार या वैध हैसियत के सम्बन्ध में घोषणा से आगे और अन्य अनुतोष (Consequential Relief) माँगने के योग्य नहीं होना चाहिये.

धारा 34 की आवश्यक शर्तें पूरी हो जाने के बाद भी वादी के हक में घोषणा जारी करने का अधिकार न्यायालय का विवेकाधिकार है. परन्तु न्यायालय से यह अपेक्षा की जाती है कि वह उसका प्रयोग युक्ति युक्त ढंग से करे |

घोषणात्मक डिक्री का प्रभाव

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 35 के अनुसार, इस अध्याय के अधीन की गई घोषणा केवल वाद के पक्षकारों और क्रमानुसार उसके अधिकारों के अनुसार दावा करने वाले व्यक्तियों के लिए ही बाध्यकारी होगी और जहाँ कि पक्षकारों में से कोई पक्षकार न्यासधारी है, वहाँ यह उन व्यक्तियों के लिए ही बाध्यकारी होंगी जिसके कि यदि घोषणा की तारीख को उनका अस्तित्व होता तो ऐसे पक्षकार न्यासधारी होते |

Leave a Comment