Table of Contents
- 1 आज्ञप्ति (डिक्री) की परिभाषा
- 2 डिक्री के आवश्यक तत्व
- 3 1. न्याय निर्णय
- 4 2. न्याय निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति
- 5 3. औपचारिक अभिव्यक्ति किसी बाद में हो
- 6 4. विवादग्रस्त सभी या किन्हीं विषय-वस्तु के सम्बन्ध में अधिकारों का निर्धारण
- 7 5. निश्चायक निर्धारण
- 8 डिक्री के उदाहरण
- 9 निम्नलिखित डिक्री हैं?
- 10 निम्नलिखित डिक्री नहीं हैं?
- 11 कोई डिक्री कब अन्तिम बन जाती है?
- 12 डिक्री के प्रकार?
- 13 1. प्रारम्भिक डिक्री
- 14 किन मामलों में प्रारम्भिक डिक्री अनिवार्य है?
- 15 2. अन्तिम डिक्री
- 16 प्रारम्भिक तथा अन्तिम डिक्री के बीच अन्तर?
आज्ञप्ति (डिक्री) की परिभाषा
इसे सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (The Code Of Civil Procedure, 1908) की धारा 2 (2) में दी गई परिभाषा के अनुसार, आज्ञप्ति से ऐसे न्यायनिर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति अभिप्रेत है जो कि वाद में के सब या किन्हीं विवादास्पद विषयों के सम्बन्ध में पक्षकारों के अधिकारों को वहाँ तक, निश्चायक रूप से अवधारित करता है जहाँ तक कि उसे अभिव्यक्त करने वाले न्यायालय का सम्बन्ध है, और वह प्रारम्भिक या अन्तिम हो सकेगी. इसके अन्तर्गत वादपत्र (Plaint) की अस्वीकृति (Rejection) और धारा 144 के अन्तर्गत किसी प्रश्न का अवधारण (Determination) भी समझा जायेगा, किन्तु इसके अन्तर्गत-
ऐसा कोई न्याय निर्णय (Adjudication) नहीं होगा जिसकी अपील आदेश की अपील की तरह होती है, या
चूक (Default) के लिये खारिज करने का कोई आदेश नहीं होगा |
यह भी जानें : एकपक्षीय डिक्री एवं एकपक्षीय आदेश से क्या अभिप्राय है?
डिक्री के आवश्यक तत्व
1. न्याय निर्णय
डिक्री के लिये यह आवश्यक है कि वह न्याय निर्णय हो अर्थात विषय के बारे में न्यायिक निष्कर्ष हो. ऐसे व्यक्ति द्वारा पारित किया गया आदेश जो न्यायालय नहीं है, न्याय निर्णय (Adjudication) नहीं हो सकता है.
दीपचन्द्र बनाम लैण्ड एक्यूजीशन ऑफिसर (AIR 1994 SC 1901) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि डिक्री के लिए न्याय निर्णय (Adjudication) का होना अति आवश्यक है.
2. न्याय निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति
डिक्री के लिए न्याय निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति आवश्यक है. अर्थात दावा के अनुतोषों की स्वीकृति या अस्वीकृति अवश्य होनी चाहिए. यदि डिक्री के प्रारूप को स्वीकार नहीं किया गया है तो वह डिक्री नहीं है.
3. औपचारिक अभिव्यक्ति किसी बाद में हो
डिक्री वाद का तार्किक निष्कर्ष है. वह अपने साथ मुकदमेबाजी का अन्तिम फल वहन करती है. इसीलिए प्रत्येक डिक्री के लिए आवश्यक है कि जिस न्याय निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति की गई है वह किसी वाद (Suit) से सम्बन्धित होनी चाहिए.
4. विवादग्रस्त सभी या किन्हीं विषय-वस्तु के सम्बन्ध में अधिकारों का निर्धारण
डिक्री के लिए आवश्यक है कि न्याय निर्णय वाद के किसी विवादग्रस्त विषय पर दिया गया हो या उसके द्वारा बाद के पक्षकारों के द्वारा अधिकारों का निर्धारण किया गया हो.
यह भी जानें : निर्देश एवं पुनरीक्षण क्या है? दोनों में क्या अंतर है?
5. निश्चायक निर्धारण
डिक्री के लिए आवश्यक है कि न्याय निर्णयन का निश्चायक होना आवश्यक है अर्थात न्यायालय का निर्णय पूर्ण तथा अन्तिम होना चाहिए.
डिक्री के उदाहरण
निम्नलिखित डिक्री हैं?
निम्नलिखित को डिक्री माना गया है-
- वादावसान (Abatement) का आदेश,
- वाद हेतु (Cause of action) के कारण वाद को खारिज करने का आदेश,
- समझौते के आधार पर दिया गया न्याय- निर्णयन,
- धारा 92 के तहत किसी योजना को अभिनिर्धारित करने का आदेश।
निम्नलिखित डिक्री नहीं हैं?
निम्नलिखित को डिक्री नहीं माना गया है-
- अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश,
- उत्तराधिकार प्रमाणपत्र,
- निष्पादन (Execution) की कार्यवाही में पारित आदेश आदि।
माध्यस्थम पंचाट (Arbitral award) डिक्री नहीं है. इसे निष्पादन के प्रयोजनार्थ डिक्री तुल्य माना गया है |
कोई डिक्री कब अन्तिम बन जाती है?
निम्नलिखित दशाओं में कोई डिक्री अन्तिम बन जाती है-
- जब वह किसी मामले में किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पारित की गई हो और वह उस मामले का पूर्ण रूप से और अन्तिम रूप से निपटारा कर देती है.
- जब उसके विरुद्ध कोई अपील दायर न की गई हो और अपील की मियाद समाप्त हो गई हो.
- जब वह उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित की गई आज्ञप्ति हो |
डिक्री के प्रकार?
कोई डिक्री निम्नलिखित दो प्रकार की होती है-
1. प्रारम्भिक डिक्री
जब कोई न्याय निर्णयन बाद में के विवादास्पद विषयों में किसी या किन्हीं के सम्बन्ध में पक्षकारों के अधिकारों का विनिश्चय करता है, किन्तु वाद का पूर्णरूपेण निपटारा नहीं करता वहाँ वह एक प्रारम्भिक आज्ञप्ति (Preliminary decree) कही जायेगी.
यह भी जानें : पुनर्विलोकन क्या है? | पुनर्विलोकन के आधार एवं प्रक्रिया
प्रारम्भिक डिक्री उन मामलों में पारित की जाती है जिनमें कि न्यायालय को प्रथमतः पक्षकारों के अधिकारों पर न्याय निर्णय करना होता है और उसके बाद उसे अपने हाथों को तब तक कुछ समय के लिए रोकना पड़ता है जब तक कि वह इस स्थिति में नहीं हो जाता कि वह बाद में अन्तिम डिक्री पारित करे.
उदाहरण, ‘अ’, ‘ब’ के विरुद्ध मध्यवर्ती लाभों के लिये वाद (Suit) लाता है. न्यायालय मध्यवर्ती लाभों की जांच हेतु निर्देश जारी करता है. यह प्रारम्भिक डिक्री है. जब जाँच पूरी हो जायेगी तो न्यायालय अन्तिम डिक्री पारित कर सकता है.
किन मामलों में प्रारम्भिक डिक्री अनिवार्य है?
- कब्जा, किराया या मध्यवर्ती लाभों के लिए वाद,
- प्रशासनिक वाद,
- अग्रक्रयाधिकार (Pre-emption) के लिए वाद,
- भागीदारी की समाप्ति के लिए वाद,
- मालिक तथा अभिकर्त्ता के बीच हिसाब के लिए वाद,
- विभाजन तथा पृथक् कब्जे के लिए वाद।
2. अन्तिम डिक्री
जहाँ न्याय निर्णय वाद को पूर्ण रूप से निर्णीत कर देता है वहाँ वह अन्तिम डिक्री होती है, साथ ही कोई डिक्री अन्तिम (Final decree) हो जाती है जब वह सक्षम न्यायालय द्वारा पारित की गई हो तथा उसके विरुद्ध अपील प्रस्तुत न की गई हो.
उदाहरण, ‘अ’, ‘ब’ के विरुद्ध भूमि के कब्जे को पुनः पाने के लिए वाद लाता है. न्यायालय द्वारा बाद में ‘अ’, के पक्ष में डिक्री पारित की जाती है. यह अन्तिम डिक्री कहलाती है |
प्रारम्भिक तथा अन्तिम डिक्री के बीच अन्तर?
- प्रारम्भिक डिक्री में पक्षकारों के अधिकारों तथा दायित्वों का विनिश्चय तो हो जाता है, लेकिन कुछ कार्यवाही शेष रह जाती है, जबकि अन्तिम डिक्री में कोई कार्यवाही शेष नहीं रहती है.
- प्रारम्भिक डिक्री अन्तिम डिक्री पर निर्भर नहीं होती है, जबकि अन्तिम डिक्री प्रारम्भिक डिक्री पर निर्भर रहती है |