दीवानी प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायालय कब अस्थायी व्यादेश दे सकता है?

दीवानी प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायालय कब अस्थायी व्यादेश दे सकता है?

अस्थायी व्यादेश (निषेधाज्ञा)

अस्थायी निषेधाज्ञा क्या है? व्यादेश एक ऐसा विशिष्ट आदेश है जो न्यायालय द्वारा ऐसे किसी दोषपूर्ण कार्य को, जो प्रारम्भ किया जा चुका है, जारी रखने से प्रतिवारित करने अथवा ऐसे कार्य को प्रारम्भ करने की धमकी को रोकने के लिए दिया जाता है.

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 नियम 1 एवं 2 में अस्थायी निषेधाज्ञा सम्बन्धी प्रावधानों को उल्लेखित किया गया है.

अस्थायी व्यादेश (Temporary Injunction) एक ऐसा आदेश है जो न्यायालय द्वारा वाद के किसी भी प्रक्रम पर वादग्रस्त सम्पत्ति को बाद के अन्तिम निर्णय तक अथवा न्यायालय के अग्रिम आदेश तक यथास्थिति (Status Quo) में बनाये रखने के लिये प्रदान किया जाता है.

इसका मुख्य उद्देश्य बाद के लम्बित रहने के दौरान वादग्रस्त सम्पत्ति का संरक्षण (Preservation) करना है. आदेश 39 (1) एवं (2) के अन्तर्गत अस्थायी व्यादेश अथवा निषेधाज्ञा के आधार [Grounds For Temporary Injunction Under Order 39 Rule (1) & (2)] न्यायालय निम्नलिखित शर्तों के पूर्ण होने पर अस्थायी निषेधाज्ञा जारी करेगा-

  1. यह कि प्रतिवादी द्वारा किया जाने वाला कार्य स्पष्ट रूप से वादी के अधिकारों का उल्लंघन है,
  2. यह कि यदि प्रतिवादी को उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों से न रोका गया तो इससे वादी को गम्भीर एवं अपूरणीय क्षति होगी,
  3. यह कि वादी को उपचार प्रदान करने के लिए अस्थायी व्यादेश के अतिरिक्त अन्य कोई उपचार प्राप्त नहीं है,
  4. यह कि सुविधा का सन्तुलन व्यादेश जारी करने के पक्ष में है,
  5. यह कि वादी व्यादेश की माँग करने में विलम्ब का दोषी नहीं है |

सिद्धान्त (Principle)

अस्थायी व्यादेश को जारी करने का आदेश देना न्यायालय का विवेकाधिकार है अतः यह युक्तियुक्त तथा न्यायसंगत सिद्धान्तों के आधारों पर पारित होना चाहिये. न्यायालय को अस्थायी व्यादेश का आदेश देते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये-

1. प्रथम दृष्ट्या मामला

अस्थायी व्यादेश का आदेश देते समय यह सर्वप्रथम देखा जाना चाहिये कि आवेदक के पक्ष में मामला प्रथम दृष्टि (Prima Faice Case) से बनता है या नहीं. यदि न्यायालय को आवेदक सन्तुष्ट नहीं कर पाता है कि मामला उसके पक्ष में है तो न्यायालय ऐसा आदेश नहीं देगा.

2. अपूरणीय क्षति

अस्थायी व्यादेश (Irreparable Injury) का आदेश जारी करने का दूसरा नियम यह है कि ऐसा आदेश पारित करते समय न्यायालय को यह लगना चाहिए कि यदि अनावेदक को नहीं रोका गया तो आवेदक को अपार या गम्भीर क्षति होगी जिसकी पूर्ति नहीं की जा सकेगी.

3. सुविधा का सन्तुलन

अस्थायी व्यादेश के आदेश को जारी करने के लिए तीसरा नियम यह है कि न्यायालय को यह देखना चाहिये कि सुविधा का सन्तुलन व्यादेश के पक्ष में हो. अर्थात आवेदक के पक्ष में व्यादेश जारी नहीं किया गया तो उसे ऐसी असुविधा होगी जो कि अनावेदक के पक्ष में जारी करने से अधिक होगी.

उषा बेन बनाम भाग्य लक्ष्मी चित्र मन्दिर (AIR 1978 गुजरात 13) के वाद में फिल्म ‘जय सन्तोषी माँ’ के प्रदर्शन के विरुद्ध इस आधार पर बाद संस्थित किया गया कि यह हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाती है तथा अपदूषण कारित करने वाली है- लेकिन वस्तुत: इसे ऐसा नहीं पाया गया और यह धारण किया गया कि सुविधा सन्तुलन इसके प्रदर्शन के पक्ष में है, अतः अस्थायी व्यादेश जारी नहीं किया जा सकता है.

सिविल प्रक्रिया संहिता में 1999 के संशोधन द्वारा यह जोड़ा गया है कि किसी कार्य को प्रतिबन्धित करने अथवा किसी नुकसान, क्षति, अन्तरण, विक्रय सम्पत्ति के व्ययन, हटाये जाने, बेकब्जा किये जाने आदि को रोकने के लिए व्यादेश जारी करते समय न्यायालय वादी को प्रतिभूति (Security) पेश करने का निदेश दे सकेगा. (आदेश 39 नियम 1 का उपनियम 2)

अस्थायी व्यादेश सामान्यतः उपर्युक्त नियमों के आधारों पर ही जारी किया जाता है. लेकिन न्यायालय न्यायहित में उचित समझता है तो अन्य आधारों पर भी धारा 151 के तहत अस्थायी व्यादेश जारी कर सकता है.

4. एक पक्षीय निषेधाज्ञा

यदि मामले में अति आवश्यकता है तब न्यायालय आदेश 39, नियम 3 के अन्तर्गत पक्षकार को एक पक्षीय निषेधाज्ञा में प्रदान कर सकता है, परन्तु यह सीमित समय के लिये होती है.

AB नायडू बनाम चलप्पन, (2000) 7 SCC 695 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि जहाँ पक्षकार ने आदेश 39 नियम 3 के तहत एकपक्षीय अन्तरिम निषेधाज्ञा आदेश प्राप्त किया है वहाँ पक्षकार आदेश 39 नियम 3 में उल्लिखित सभी बाध्यताओं को पूरा करने के लिए बाध्य है यदि वह ऐसा नहीं करता है तब उस आदेश का लाभ नहीं होने दिया जायेगा.

अपर्याप्त आधारों पर व्यादेश प्राप्त करने की दशा में प्रतिकर 1999 में धारा 95 में संशोधन करके यह जोड़ा गया है कि, जहाँ न्यायालय को यह प्रतीत हो कि

व्यादेश के लिए आवेदन अपर्याप्त आधारों पर दिया गया था या बादी का वाद असफल हो जाता है, इसलिए कि बाद संस्थित किये जाने के लिये कोई युक्तियुक्त या अधिसंभाव्य आधार नहीं था, तो न्यायालय प्रतिवादी के खर्चों के लिए वादी के विरुद्ध 5,000 रुपये से अनधिक कोई धनराशि प्रतिकर के रूप में देने का आदेश दे सकेगा |

व्यादेश की अवलेहना अथवा भंग किये जाने के परिणाम

आदेश 39 के नियम 1 एवं 2 के अन्तर्गत जारी किया गया व्यादेश पक्षकारों पर बाध्यकर होता है. यदि कोई पक्षकार इसकी अवहेलना अथवा भंग करता है तो-

  1. उसकी अन्य सम्पत्ति को कुर्क कर लिया जायेगा. ऐसी कुर्की एक वर्ष तक प्रभाव में रहेगी. यदि इस अवधि के पश्चात् भी अवहेलना अथवा भंग जारी रहता है तो उस सम्पत्ति को बेच दिया जायेगा और क्षतिग्रस्त पक्षकार की क्षतिपूर्ति की जायेगी.
  2. उसे व्यवहार कारावास में निरुद्ध किया जा सकेगा, लेकिन यह अवधि तीन माह से अधिक की नहीं होगी.
  3. उसे न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) के लिये दण्डित किया जा सकेगा |

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