मूट कोर्ट क्या है? गठन के उद्देश्य एवं महत्त्व क्या हैं? | मूट कोर्ट और न्यायालय के बीच अंतर?

मूट कोर्ट क्या है? गठन के उद्देश्य एवं महत्त्व क्या हैं? | मूट कोर्ट और न्यायालय के बीच अंतर?

मूट कोर्ट क्या है?

मूट कोर्ट किसे कहते हैं? किसी सुनिश्चित किये गये विवाद को यथावत प्रस्तुत किया जाना मूट कोर्ट कहलाता है. मूट कोर्ट को हम काल्पनिक कोर्ट की संज्ञा दे सकते हैं. इसमें विधि के कुछ शिक्षार्थी मिलकर काल्पनिक कोर्ट चलाते हैं. इसमें कुछ विद्यार्थी अधिवक्ता की भूमिका निभाते हैं तो कुछ पक्षकारों एवं साक्षियों की कोई न्यायिक अधिकारी भी बनता है.

मूट कोर्ट के माध्यम से यह सीखने का प्रयास किया जाता है कि-

न्यायालय में अभिवचन कैसे प्रस्तुत किये जाने चाहिये. अभिवचन के प्रारूप कैसे तैयार किये जाने चाहिये. कार्यवाहियों के दौरान कब कौन सा प्रार्थनापत्र लगाया जाना चाहिये. बहस किस तरह की जानी चाहिये. न्यायालय की गरिमा किस प्रकार रखी जानी चाहिये. पक्षकारों एवं साक्षियों से किस प्रकार व्यवहार किया जाना चाहिये आदि मूट कोर्ट दो प्रकार का हो सकता है-

  1. फौजदारी विधि से सम्बन्धित मूट कोर्ट,
  2. दीवानी विधि से सम्बन्धित मूट कोर्ट |

मूट कोर्ट के गठन के उद्देश्य एवं महत्त्व क्या हैं?

विधि व्यवसाय में आने के पूर्व विद्यार्थियों को मूट कोर्ट का ज्ञान प्राप्त करना अति आवश्यक है क्योंकि इसके माध्यम से विधि छात्र में एक ‘कुशल अधिवक्ता’ की नींव पड़ जाती है |

मूट कोर्ट के गठन का उद्देश्य

  1. मूट कोर्ट के माध्यम से विधि छात्रों में आत्मसंयम, निर्भीकता, स्पष्टतः विचारों की अभिव्यक्ति, न्यायालयीय प्रक्रिया, मुकदमों का न्यायालय के समक्ष पेश करने तथा मुकदमों की पैरवी करने की कला का ज्ञान प्राप्त कराना है.
  2. मूट कोर्ट के गठन का उद्देश्य विधि छात्रों को न्यायालय के डायस पर उपस्थित होकर स्पष्ट रूप से साहसपूर्वक भरी अदालत में अपने विचारों की अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करना है.
  3. विधि छात्रों को गवाहों के परीक्षण तथा प्रतिपरीक्षण का ज्ञान एवं अनुभव प्रदान करना है.

मूट कोर्ट के महत्त्व निम्नलिखित हैं-

  1. सुन्दर अभिवचन (Drafting) प्रस्तुत करने का ज्ञान;
  2. न्यायालय में प्रस्तुत होने का ढंग;
  3. न्यायालय की कार्यवाही एवं तत्सम्बन्धी शिष्टाचार;
  4. न्यायालय के सम्मुख अपनी बातों को कहने का ढंग;
  5. अभिवचन के प्रारूप में निहित होने वाली बातों का ज्ञान;
  6. विविध स्तर की कार्यवाहियों का ज्ञान;
  7. बहस करने का ढंग;
  8. जिरह करने का ढंग;
  9. न्यायालय की गरिमा का बोध;
  10. पक्षकारों से किये जाने वाले व्यवहार का ज्ञान;
  11. साक्षियों से किये जाने वाले व्यवहार का ज्ञान;
  12. व्यावसायिक शिष्टाचार का बोध।

उपरोक्त के अलावा विद्यार्थियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने शिक्षकों के साथ न्यायालय में जाकर न्यायालय की प्रक्रिया से अवगत हों और विधि के व्यावहारिक पक्ष का (Practical Part Of Law) ज्ञान अर्जित करें |

मूट कोर्ट और न्यायालय के बीच अंतर?

  1. मूट कोर्ट एक कृत्रिम न्यायालय होता है, जबकि न्यायालय एक वास्तविक न्यायालय होता है.
  2. मूट कोर्ट का आयोजन विधि-छात्रों को प्रायोगिक प्रशिक्षण देने के लिए आयोजित किया जाता है. जबकि न्यायालय का आयोजन वास्तविक रूप से पीड़ित पक्षकारों को न्याय देने के लिए आयोजित किया जाता है.
  3. मूट कोर्ट आयोजित करने का उद्देश्य विधि-छात्रों को न्यायालयी कार्यवाहियों में भागीदारी करने के लिए व्यावहारिक कुशलता का ज्ञान कराना है. जबकि न्यायालयीय कार्यवाहियों का आयोजन वास्तविक मुकदमे के निपटारे के लिए होता है.
  4. मूट कोर्ट किसी न्यायालय द्वारा निर्णीत किसी विनिर्दिष्ट मामले अथवा किसी काल्पनिक वाद में विधि-छात्रों को प्रायोगिक प्रशिक्षण दो के वास्ते आयोजित किया जाता है, जबकि न्यायालय का आयोजन वास्तविक मुकदमों एवं लम्बित वादों के निस्तारण के लिए किया जाता है |

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