पुनर्विलोकन क्या है? | पुनर्विलोकन के आधार एवं प्रक्रिया

पुनर्विलोकन क्या है? | पुनर्विलोकन के आधार एवं प्रक्रिया

पुनर्विलोकन क्या है?

पुनर्विलोकन (Review) से अभिप्राय किसी ऐसे न्यायालय द्वारा जिसने कोई निर्णय, डिक्री या आदेश पारित किया है तथा जिसमें प्रक्रिया सम्बन्धी कोई त्रुटि रह गयी है, उस पर पुनः विचार किया जाकर उस त्रुटि को दूर करना है. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में इस सम्बन्ध मैं धारा 114 तथा आदेश 47 में प्रावधानों को उपबन्धित किया गया है.

किसी आदेश तथा डिक्री का पुनर्विलोकन हो सकता है?

  1. किसी ऐसी डिक्री या आदेश के विरुद्ध पुनर्विलोकन हो सकता है जिसकी कि अपील की जा सकती हो पर न की गई हो.
  2. किसी ऐसे आदेश या डिक्री के विरुद्ध पुनर्विलोकन हो सकता है जहाँ कि उसके विरुद्ध अपील के प्रावधान न हों.
  3. किसी ऐसे विनिश्चय के विरुद्ध पुनर्विलोकन हो सकेगा जो किसी लघुवाद न्यायालय द्वारा कोई मामला निर्दिष्ट किये जाने पर किया गया हो |

पुनर्विलोकन के आधार

1. किसी नवीन और आवश्यक विषय या साक्ष्य के ज्ञान होने पर

यदि आवेदन न्यायालय को यह समाधान करा देता है कि सम्यक् ज्ञान के प्रयोग के बाद वह आदेश या निर्णय पारित होने के पहले को नहीं दे सका था जो कि अब सामने आ गई है तथा ऐसे नये साक्ष्य निर्णय के लिए अति महत्त्वपूर्ण होना चाहिये.

2. प्रत्यक्षतः अभिलेख से ही स्पष्टतः प्रतीत होने वाली कोई गलती या त्रुटि

किसी अभिलेख में प्रत्यक्षत: प्रतीत होने वाली विधि तथा प्रक्रिया सम्बन्धी त्रुटि पुनर्विलोकन का दूसरा आधार है परन्तु यह गलती या त्रुटि अभिलेख से स्पष्टतः परिलक्षित होनी चाहिए.

3. अन्य किसी पर्याप्त कारण के होने पर

न्यायालय यदि किसी अन्य कारण से किसी आदेश या निर्णय का पुनर्विलोकन करना न्यायहित में उचित समझता है तो वह उसे कर सकता है.

इस सम्बन्ध में यूनियन ऑफ इण्डिया बनाम हरीनगर शुगर मिल्स लिमिटेड, AIR 2008 गुवाहाटी 161 का एक उद्धरणीय मामला है. इसमें गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि पुनर्विलोकन का क्षेत्र अत्यन्त सीमित है. केवल निम्नांकित अवस्थाओं में पुनर्विलोकन (Review) किया जा सकता है-

  1. जहां अभिलेख पर प्रकटतया कोई त्रुटि प्रतीत होती हो.
  2. जहां ऐसे किसी नये तथ्य अथवा साक्ष्य का पता चले जिसका सम्यक् तत्परता के बाद भी पहले पता नहीं चल सका था, अथवा
  3. जहां सम्यक् सतर्कता बरतने के बाद भी ऐसा तथ्य अथवा साक्ष्य ज्ञान में नहीं आ पाया था |

प्रक्रिया

पुनर्विलोकन के लिए आवेदन उसी रूप में किया जायेगा जैसे कि अपील के लिए किया जाता है. पुनर्विलोकन के लिए समय-सीमा 30 दिन की है |

पुनर्विलोकन तथा पुनरीक्षण के बीच अन्तर

  1. पुनर्विलोकन (Review) उसी न्यायालय द्वारा किया जाता है जिसके द्वारा निर्णय या आदेश दिया जाता है, जबकि पुनरीक्षण (Revision) उच्चतर न्यायालय द्वारा किया जाता है.
  2. पुनर्विलोकन कोई भी न्यायालय कर सकता है, जबकि पुनरीक्षण केवल उच्चतर न्यायालय द्वारा किया जाता है.
  3. पुनर्विलोकन किसी नये साक्ष्य के प्रकटीकरण या त्रुटि के कारण हो सकता है, जबकि पुनरीक्षण केवल क्षेत्राधिकार सम्बन्धी मामलों में ही होता है.
  4. पुनर्विलोकन सिर्फ आवेदन पर ही हो सकता है, जबकि पुनरीक्षण आवेदन पर तथा न्यायालय के स्वविवेक पर भी हो सकता है.
  5. पुनर्विलोकन ऐसे आदेशों का भी हो सकता है जिनकी अपील हो सकती है, जबकि पुनरीक्षण ऐसे आदेशों का नहीं हो सकता है जिनकी अपील हो सकती है.
  6. पुनर्विलोकन के आदेश के विरुद्ध अपील की जा सकती है, जबकि पुनरीक्षण में पारित किये आदेश के विरुद्ध अपील नहीं हो सकती है |

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