स्वामित्व क्या है? | स्वामित्व की परिभाषा, लक्षण एवं प्रकार

स्वामित्व क्या है? | स्वामित्व की परिभाषा, लक्षण एवं प्रकार

स्वामित्व की परिभाषा

स्वामित्व क्या है? विधिशास्त्रियों ने स्वामित्व की परिभाषा भिन्न-भिन्न प्रकार से की है.

हिल्बर्ट के अनुसार, स्वामित्व के अन्तर्गत चार प्रकार के अधिकार सन्निहित हैं. ये अधिकार है-

  1. वस्तु के प्रयोग का अधिकार
  2. दूसरों को उस वस्तु से अपवर्जित करने का अधिकार,
  3. उस वस्तु के व्ययन का अधिकार,
  4. उस वस्तु को नष्ट करने का अधिकार.

होम्स के अनुसार, एक स्वामी सभी को बहिष्कृत कर सकता है और यह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है.

मार्कीबी के अनुसार, किसी वस्तु पर स्वामित्व होना यह दर्शाता है कि उस वस्तु से सम्बन्धित समस्त अधिकार उस व्यक्ति में निहित है.

हालैण्ड के अनुसार, स्वामित्व किसी वस्तु पर समग्र नियन्त्रण है.

पैटन के अनुसार, सुविधा द्वारा निर्देशित एक असंगति है.

स्वामित्व के विषय में दो मत हैं-

  1. प्रथम आस्टिन का, एवं
  2. दूसरा सामण्ड का.

ऑस्टिन के अनुसार, ‘स्वामित्व उपयोग को अनन्वता, आदान-प्रदान को स्वच्छन्दता या अवधि की असीमितता है.’ ऑस्टिम की यह परिभाषा पूर्ण नहीं है. उनकी परिभाषा के निम्नलिखित तीन तत्व हैं—

उपयोग की अनन्तता

ऑस्टिन का कहना है कि स्वामित्व का अधिकार रखने वाला व्यक्ति अपनी वस्तु का जिस प्रकार चाहे उस प्रकार इस्तेमाल कर सकता है. उसकी इस स्वतन्त्रता पर किसी प्रकार की रोक नहीं है परन्तु यदि स्वामी चाहे तो पारस्परिक समझौता करके अपने इस अधिकार पर दूसरों द्वारा कुछ नियन्त्रण स्वीकार कर सकता है.

व्ययन अनिबंन्धित

इसके अनुसार स्वामित्व दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित भी किया जा सकता है. सम्पत्ति का स्वामी अपनी सम्पत्ति बेच सकता है, दान दे सकता है और यहाँ तक कि उसे इच्छानुकूल खत्म भी कर सकता है. परन्तु अपने ऋणदाताओं को धोखा देने के लिए अपनी भूमि को दूसरे व्यक्ति को देना चाहता है तो नहीं दे सकता.

अवधि की असीमितता

स्वामित्व सामान्य रूप से उस समय तक बना रहता है जब तक कि वस्तु का अस्तित्व रहता है. यह कहना गलत है कि स्वामी की मृत्यु से स्वामित्व समाप्त हो जाता है. स्वामी अपनी वस्तु को अपनी मृत्यु के पश्चात् किसी अन्य व्यक्ति को दे सकता है.

सामण्ड के अनुसार, ‘स्वामित्व’ व्यापक रूप में, व्यक्ति तथा उस व्यक्ति को किसी वस्तु पर प्राप्त अधिकार के आपसी सम्बन्ध को प्रकट करता है. सामण्ड के विचार से इस व्यापक अर्थ में स्वामित्व में सभी प्रकार के अधिकार शामिल होते हैं |

स्वामित्व के लक्षण

  1. स्वामित्व पूर्ण तथा अपूर्ण हो सकता है.
  2. स्वामित्व के अधिकारों को निर्बन्धित (Restrict) किया जा सकता है.
  3. स्वामित्व के अधिकार बनाये रखने के लिए राज्य को कर देना पड़ता है.
  4. स्वामी, अपनी सम्पत्ति का मनमाने ढंग से व्ययन कर सकता है.
  5. स्वामी की मृत्यु से सम्पत्ति का स्वामित्व समाप्त नहीं होता है.
  6. स्वामित्व, किसी वस्तु तथा व्यक्ति के मध्य आपसी सम्बन्धों को दर्शाता है |

स्वामित्व के प्रकार

1. मूर्त एवं अमूर्त स्वामित्व

व्यापक अर्थ में स्वामित्व किसी व्यक्ति में निहित अधिकार को भी व्यक्त करता है. मूर्त स्वामित्व वह है जो देखा एवं अनुभव किया जा सकता है, अमूर्त वे हैं जिन्हें पहिचाना नहीं जा सकता है. किसी व्यक्ति के अधिकारों के स्वामित्व को अमूर्त स्वामित्व कहते हैं जैसे कापीराइट के अधिकार पर स्वामित्व इत्यादि.

2. एकल एवं सहस्वामित्व

यदि किसी पदार्थ या अधिकार पर मात्र एक व्यक्ति का स्वामित्व होता है तो इसे एकल स्वामित्व कहते हैं. एक समय में एक वस्तु पर एक व्यक्ति का स्वामित्व एकल स्वामित्व होता है और जब दोहरा स्वामित्व होता है तब सहस्वामित्व कहलाता है. किन्तु कई बार स्वामित्व का अधिकार अनेक व्यक्तियों में संयुक्त रूप से होता है. ऐसे स्वामित्व को सहस्वामित्व कहते हैं.

3. न्यास एवं हितप्रद स्वामित्व

सम्पत्ति के न्यास में दोहरा स्वामित्व होता है. एक न्यासी का तथा दूसरा हित उठाने वाले व्यक्ति का न्यास स्वामित्व में दूसरे व्यक्ति का होना आवश्यक होता है. न्यास सम्पत्ति पर न्यासी के स्वामित्व को न्यास स्वामित्व एवं हिताधिकारी व्यक्तियों के स्वामित्व को हितप्रद स्वामित्व कहते हैं.

जिस व्यक्ति के लाभ के लिये न्यास सृजित किया जाता है उसे हितप्रद स्वामित्व कहा जाता है.

4. विधिक एवं साम्यिक स्वामित्व

यह भेद इंग्लैण्ड में प्रचलित कॉमन लॉ एवं साम्या के भेद पर आधारित है. जो स्वामित्व कॉमन लॉ से प्राप्त होता है वह विधिक एवं जो साम्या के सिद्धान्तों से प्राप्त होता है वह साम्यिक स्वामित्व कहलाता है. जूडिकेचर अधिनियम, 1875 द्वारा विधि और साम्या के समेकन ने इस विभेद को समाप्त कर दिया. उदाहरण के लिए, न्यासी का स्वामित्व विधिक होता है जबक हिताधिकारियों का स्वामित्व साम्यिक होता है.

5. निहित एवं समाश्रित स्वामित्व

यदि स्वामित्व प्राप्त करते समय सभी औपचारिकतायें पूरी हो जाती हैं अर्थात् पूर्ण हक प्राप्त हो जाता है तो इसे निहित स्वामित्व कहते हैं. निहित स्वामित्व तब होता है जब स्वामी का हक पहले से ही पूर्ण होता है. जब हक अपूर्ण होता है तब समाश्रित कहलाता है.

किन्तु जब अपूर्ण हक प्राप्त होता है, पूर्ण हक भविष्य में किसी घटना के घटने या न घटने पर निर्भर करता है तो इसे समाश्रित स्वामित्व (Vested Ownership) कहते हैं.

6. अबन्धित एवं सीमित स्वामित्व

जिस व्यक्ति का स्वामित्व लोकहित के अतिरिक्त अन्य कारणों से बाधित नहीं होता वह अबन्धित एवं जो अन्य विधिक शर्तों से बन्धित होता है उसे सीमित स्वामित्व कहते हैं |

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