मुसलमानों में मेहर क्या होता है? | मेहर का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं प्रकृति

मुसलमानों में मेहर क्या होता है? | मेहर का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं प्रकृति

मेहर का अर्थ

मेहर (Mehr) को अग्रेजी में ‘Dower’ या ‘Dowry’ भी कहा जाता है. मेहर का अर्थ होता है, निकाह (शादी) के समय पति से पत्नी द्वारा मांगी जाने वाली धनराशि या सम्पत्ति की मान्यता. यह पारंपरिक रूप से मुस्लिम समुदाय में एक महत्वपूर्ण पारंपरिक प्रथा है और निकाह के समय पति द्वारा पत्नी को देने के लिए होती है.

मेहर की राशि निकाह के समय दोनों पक्षों के सहमति और विचारात्मक अवसरों के हिसाब से तय की जाती है और इसमें पत्नी के परिवार के सदस्यों की सामाजिक स्थिति, पति की आर्थिक स्थिति, और पत्नी की योग्यता आदि के आधार पर निर्धारित होती है. यह धनराशि पति द्वारा निकाह के बाद तुरंत दी जाती है और इसका मतलब और महत्व मुस्लिम निकाह में होता है |

मेहर की परिभाषा

मेहर (Dower), “निकाह के प्रतिफल के रूप में पति से जो धन या सम्पत्ति पत्नी पाने की अधिकारिणी होती है, उसे मेहर कहते हैं”. यह प्रतिफल मुस्लिम विधि में पत्नी के सम्मान का प्रतीक है और इसका महत्व बहुत अधिक है.

मेहर पति और पत्नी के बीच निकाह के प्रतिफल के रूप में होता है. इसके माध्यम से पति अपनी पत्नी के सम्मान का संकेत देता है और यह भी दिखाता है कि वह अपनी पत्नी के प्रति वफादार है.

प्रतिफल जिस अर्थ में भारतीय संविदा अधिनियम, 1972 में प्रयोग हुआ है, उस अर्थ में यहां प्रयोग नहीं हुआ है. मुस्लिम विधि में मेहर पत्नी के सम्मान का प्रतीक है. यह विक्रय की संविदा में कीमत के आशय में प्रयोग नहीं हुआ है. अगर मेहर दुलहिन की कीमत होती तो निकाह सम्पन्न होने के बाद मेहर भुगतान किये जाने की संविदा बिना प्रतिफल के होने के कारण शून्य संविदा होती. लेकिन मुस्लिम विधि में इस प्रकार का करार एक विधिमान्य एवं प्रवर्तनीय संविदा है |

मेहर के प्रकार

मेहर दो प्रकार की होती है-

  1. विनिर्दिष्ट मेहर
  2. अविनिर्दिष्ट मेहर

1. अविनिर्दिष्ट मेहर

सामान्यतया मेहर निकाह के समय ही निश्चित की जाती है. जो काजी निकाह की रस्म सम्पन्न कराता है, वह रजिस्टर में मेहर की धनराशि को अंकित करता है. निकाह सम्पन्न हो जाने के बाद भी मेहर की धनराशि निश्चित की जा सकती है. पिता द्वारा अपने अवयस्क पुत्र की ओर से संरक्षक की हैसियत से मेहर के भुगतान का किया गया करार उस अवयस्क पुत्र पर आबद्धकारी होता है.

मेहर की कुछ भी धनराशि निश्चित की जा सकती है. यहां तक कि पति की भुगतान की क्षमता के बाहर भी हो सकती है तथा यह भी हो सकता है कि मेहर भुगतान करने के बाद पति के उत्तराधिकारियों के लिए कुछ भी न बचे. लेकिन किसी भी मामले में सुन्नी विधि में यह धनराशि 10 दिरहम (10 चाँदी के सिक्के) से कम नहीं हो सकती है.

शिया विधि में न्यूनतम धनराशि निश्चित नहीं की गयी है. अत्यधिक मेहर इसलिए रखी जाती है. जिससे पति-पत्नी को तलाक देने का साहस न कर सके. मेहर निकाह के पूर्व या निकाह के समय या निकाह सम्पन्न होने के बाद निश्चित की जा सकती है.

विनिर्दिष्ट मेहर को दो भागों में बांटा गया है-

  1. तुरंत देय मेहर (मुअज्जल मेहर)
  2. लम्बित मेहर (मुवज्जल मेहर)

1. तुरंत देय मेहर (मुअज्जल मेहर)

इस प्रकार की मेहर विवाह के समय ही निश्चित की जाती है. पत्नी की माँग पर तुरंत देनी होती है, और यह मेहर का प्रारंभिक भुगतान होता है.

2. लम्बित मेहर (मुवज्जल मेहर)

यह मेहर विवाह विच्छेद के समय, तलाक द्वारा या पति की मृत्यु के समय देनी होती है. इसका भुगतान विवाह सम्पन्न होने के बाद किया जाता है, और यह मेहर का अंतिम भुगतान होता है.

इन दो प्रकार के मेहर का चयन विवाह के शर्तों और पति और पत्नी की स्थिति के आधार पर किया जाता है. मेहर का यह विभाजन सम्पत्ति प्राप्ति के समय की सुविधा को सुनिश्चित करता है और विवाहित जीवन की सुरक्षा को बढ़ावा देता है.

अगर मेहर की धनराशि विवाह के समय निश्चित नहीं की गयी है. तो तुरन्त देय मेहर होगी या लम्बित मेहर, यह विधि शाखाओं पर निर्भर करता है. शिया विधि के अनुसार सम्पूर्ण मेहर तुरन्त देय मेहर होगी तथा सुन्नी विधि के अनुसार आंशिक तुरन्त देय मेहर तथा आंशिक लम्बित मेहर होगी.

2. अविनिर्दिष्ट मेहर

अगर मेहर की धनराशि निश्चित नहीं की गयी है तो पत्नी रूढ़िगत उचित मेहर की अधिकारिणी होती है. भले ही निकाह इस शर्त पर हुआ हो कि पत्नी मेहर की मांग नहीं करेगी.

उचित मेहर क्या है? इसे निश्चित करने के लिए पत्नी के पिता के परिवार के अन्य स्त्री सदस्यों के मामले में निश्चित की गयी मेहर की धनराशि विचारणीय होगी. जैसे-

  1. उसकी बुआ या उसकी सगी बहन को क्या धनराशि मेहर दी गयी थी.
  2. पत्नी की व्यक्तिगत योग्यता, उसकी आयु एवं सुंदरता.
  3. उसके पिता की सामाजिक स्थिति.
  4. उसके पिता की आर्थिक स्थिति.

सुन्नी विधि में इस मेहर की अधिकतम धनराशि निश्चित नहीं है. लेकिन शिया विधि में यह धनराशि 500 दिरहम से अधिक नहीं हो सकती |

मेहर की विषय-वस्तु

चल, अचल, मूर्त, अमूर्त सम्पत्ति मेहर की विषय वस्तु हो सकती है. शिया विधि में व्यक्तिगत सेवा भी मेहर है. कुरान का पाठ करना भी मेहर हो सकता है. केवल विद्यमान सम्पत्ति ही मेहर की विषय वस्तु होगी. शराब, सुअर महर नहीं हो सकता. मेहर की राशि पति बढ़ा सकता है किन्तु घटा नहीं सकता |

मेहर की माँफी

पत्नी स्वेच्छा से मेहर के अधिकार को छोड़ सकती है. मेहर की माफी पूर्णतः या अंशतः हो सकती है. विधि समस्त माफी के लिए निम्न बातें आवश्यक हैं-

  1. पत्नी वयस्क तथा स्वस्थचित्त हो,
  2. मेहर की माँफी स्वैच्छिक होनी चाहिए.
  3. मेहर की माँफी अधिकार का परित्याग है.
  4. अतः इसे लिखित होना चाहिए |

मेहर के अधिकार की प्रकृति

मेहर का अधिकार निहित होने के बाद यह कभी अनिहित नहीं होता और यह निकाह का अनिवार्य परिणाम होता है। यह एक अप्रत्याभूति ऋण होता है, जिसे पति करने के अधिकारी होता है.

मेहर का भुगतान करना पति का वैधानिक अधिकार है और इस ऋण की वसूली के लिए पत्नी वाद ला सकती है. असंदत्त मेहर के लिए पति व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होता है.

कपूर चन्द बनाम कदरूनिसा के वाद में निर्धारित किया गया कि मेहर एक अप्रत्याभूति ऋण है. अतः पत्नी अन्य ऋणदाताओं पर वरीयता का दावा नहीं कर सकती है |

मेहर का महत्व क्या है?

मेहर का महत्व समाज में पति-पत्नी के बीच संबंध को मजबूती देता है और पति के लिए पत्नी के साथ वफादारी की प्रतिष्ठा को दर्शाता है. यह एक समाजिक समझौता होता है जो सम्पूर्णतः स्वेच्छा से होता है |

मेहर कैसे तय होती है?

मेहर की राशि को निकाह के समय पति और पत्नी के बीच में तय की जाती है, और इसे निकाह की रस्म के दौरान अंकित किया जाता है |

मेहर की मांफी क्या होती है?

मेहर की मांफी, पत्नी के स्वेच्छा से मेहर के अधिकार को छोड़ने का प्रक्रिया होता है. इसका मात्र उद्देश्य यह होता है कि पत्नी अपने मेहर के अधिकार को स्वेच्छा से त्याग सकती है |

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