दायित्व क्या है? | दायित्व का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं सिद्धान्त

दायित्व की परिभाषा दायित्व का अर्थ क्या है? दायित्व को व्यापक अर्थ में न्यायिक बन्धन कहा जाता है. मनुष्य का दायित्व उस समय पर उत्पन्न होता है जब उसके द्वारा किसी व्यक्ति के प्रति अपने कानूनी कर्त्तव्यों का उल्लंघन किया गया है. सामण्ड की राय के अनुसार, “दायित्व या उत्तरदायित्व आवश्यकता का वह बन्धन है … Read more

कर्तव्य क्या है? | कर्तव्य की परिभाषा एवं वर्गीकरण

कर्तव्य क्या है? कर्तव्य बाध्यकारिता की विषयवस्तु है. कर्तव्य आचरण को व्यक्त करता है. प्रत्येक कर्तव्य नैतिक बाध्यता पर आधारित होता है. कर्तव्य व्यवहार का तरीका निधारित करता है जिससे वास्तविक आचरण की वैधानिकता निर्धारित हो सके | कर्तव्य की परिभाषा विधिक कर्तव्य की परिभाषा विधिक अधिकार के सन्दर्भ में ही की जा सकती हैं. … Read more

अभिवचन में संशोधन क्या है? | अभिवचन में संशोधन के प्रकार एवं प्रभाव

अभिवचन में संशोधन व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 में संशोधन सम्बन्धी प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है. अभिवचन में संशोधन (Amendment in Pleadings) तीन प्रकार से हो सकता है- संशोधन के प्रकार अभिवचन में संशोधन दो प्रकार का होता है- 1. अनिवार्य संशोधन जब अभिवचन में संशोधन न्यायालय के आदेश पर बिना किसी पक्षकार … Read more

उत्पीड़न किसे कहते हैं? | उत्पीड़न की परिभाषा एवं आवश्यक तत्व

उत्पीड़न की परिभाषा उत्पीड़न क्या है? भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, “उत्पीड़न (Coercion)” इस आशय से कि किसी व्यक्ति से कोई करार किया जाय, चाहे ऐसा कार्य करना या करने की धमकी देना है, जो भारतीय दण्ड संहिता (IPC, 1860 का 45) द्वारा निषिद्ध है अथवा किसी व्यक्ति पर, चाहे वह कोई … Read more

प्रस्थापना क्या है? | प्रस्थापना की परिभाषा, आवश्यक तत्व एवं प्रकार

प्रस्थापना अथवा प्रस्ताव की परिभाषा शब्द प्रस्थापना (प्रस्ताव) आंग्ल विधि के शब्द ‘Offer’ का पर्यायवाची हैं. इसे हम ‘प्रस्ताव’ भी कहते हैं. यह किसी करार अथवा संविदा का प्रथम चरण है. प्रस्थापना ही प्रतिग्रहण अर्थात स्वीकृति को जन्म देता है. संविदा अधिनियम 1872 की धारा 2 (a) के अनुसार, प्रस्थापना (प्रस्ताव) में एक व्यक्ति किसी … Read more

संविदा कल्प क्या है? | संविदा-कल्प की परिभाषा एवं विभिन्न प्रकार की कल्प संविदाएं

संविदा कल्प संविदा कल्प क्या है? सामान्यतः संविदाएं पक्षकारों के कार्य का परिणाम होती हैं. पक्षकार ही किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने का करार करते हैं और उन्हीं पर उसके अनुपालन का दायित्व रहता है. लेकिन कभी-कभी पक्षकारों के बीच प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कोई करार नहीं किया जाता है. फिर … Read more

पुनर्विलोकन क्या है? | पुनर्विलोकन के आधार एवं प्रक्रिया

पुनर्विलोकन क्या है? पुनर्विलोकन (Review) से अभिप्राय किसी ऐसे न्यायालय द्वारा जिसने कोई निर्णय, डिक्री या आदेश पारित किया है तथा जिसमें प्रक्रिया सम्बन्धी कोई त्रुटि रह गयी है, उस पर पुनः विचार किया जाकर उस त्रुटि को दूर करना है. सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में इस सम्बन्ध मैं धारा 114 तथा आदेश 47 में … Read more

स्वामित्व क्या है? | स्वामित्व की परिभाषा, लक्षण एवं प्रकार

स्वामित्व की परिभाषा स्वामित्व क्या है? विधिशास्त्रियों ने स्वामित्व की परिभाषा भिन्न-भिन्न प्रकार से की है. हिल्बर्ट के अनुसार, स्वामित्व के अन्तर्गत चार प्रकार के अधिकार सन्निहित हैं. ये अधिकार है- होम्स के अनुसार, एक स्वामी सभी को बहिष्कृत कर सकता है और यह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है. मार्कीबी के अनुसार, किसी वस्तु … Read more

विधिक अधिकार के विभिन्न प्रकार एवं विशेषतायें

विधिक अधिकार के प्रकार सामण्ड अधिकार का विभाजन निम्न आठ भागों में करते हैं- 1. पूर्ण तथा अपूर्ण अधिकार पूर्ण अधिकारों को राज्य केवल मान्यता ही नहीं देता वरन् उन्हें लागू भी करता है. अपूर्ण अधिकारों को राज्य केवल मान्यता देता है, पूर्ण अधिकार वह होता है जिसके सहवर्ती पूर्ण कर्तव्य हो. उन्हें लागू नहीं … Read more

विधिक अधिकार क्या है? | विधिक अधिकार की परिभाषा, सिद्धान्त एवं तत्व

विधिक अधिकार क्या है? अधिकार की निश्चित परिभाषा नहीं की जा सकती. इसकी परिभाषा अनेक प्रकार से विधि साहित्य में पायी जाती है. इसको सामान्यतया अनुज्ञात कार्य का मानक माना जाता है. अधिकार का यह अर्थ आक्सफोर्ड डिक्शनरी (Oxford Dictionary) में दिया गया हैं. एक विधिक पद के रूप में इसका अर्थ है कि विधि … Read more