कर्तव्य क्या है? | कर्तव्य की परिभाषा एवं वर्गीकरण

कर्तव्य क्या है? | कर्तव्य की परिभाषा एवं वर्गीकरण

कर्तव्य क्या है?

कर्तव्य बाध्यकारिता की विषयवस्तु है. कर्तव्य आचरण को व्यक्त करता है. प्रत्येक कर्तव्य नैतिक बाध्यता पर आधारित होता है. कर्तव्य व्यवहार का तरीका निधारित करता है जिससे वास्तविक आचरण की वैधानिकता निर्धारित हो सके |

कर्तव्य की परिभाषा

विधिक कर्तव्य की परिभाषा विधिक अधिकार के सन्दर्भ में ही की जा सकती हैं.

कीटन के अनुसार, “एक कर्तव्य दूसरे में निहित अधिकार के सम्बन्ध में राज्य द्वारा बाध्य किया गया कार्य या विरति है और इसका उल्लंघन अपकृत्य है।”

चिपमैन ग्रे के अनुसार, सामूहिक समाज द्वारा विधिक अधिकारों के संरक्षण के लिये कार्यों को करने या न करने के जो आदेश दिये जाते हैं, वे आदेश उन व्यक्तियों के लिये विधिक कर्तव्य होते हैं जिनके लिये आदेश दिये गये हैं.

आस्टिन के अनुसार, राजा या सम्प्रभु एक विशेष या निश्चित व्यक्तियों के लिये या उसके सम्बन्ध में एक या अधिक व्यक्तियों को कुछ करने या करने से विरत रहने का समादेश जारी करता है जो ऐसे कार्यों को करते हैं या करने से विरत रहते हैं, कर्तव्य के कर्ता कहे जाते हैं या कर्तव्याधीन माने जाते हैं.

सामण्ड के अनुसार, एक कर्तव्य विधिक है क्योंकि यह विधिक रूप से मान्य है |

कर्तव्य का वर्गीकरण

कर्तव्यों को निम्नलिखित रूप में वर्गीकरण किया जा सकता है.

1. सकारात्मक और नकारात्मक कर्तव्य

सकारात्मक कर्तव्य किसी व्यक्ति से कुछ करने की अपेक्षा करता है. यह बाध्यकारी प्रभाव वाला होता है. जब विधि किसी कार्य से विरत रहने के लिये बाध्य करती है तो कर्तव्य नकारात्मक होता है. दोनों प्रकार के कर्तव्यों का प्रयोजन हित का संरक्षण करना होता है उदाहरण के लिये A, B से ऋण लिया है तो A का सकारात्मक कर्तव्य है कि ऋण की अदायगी समय से कर दे.

इसी प्रकार एक व्यक्ति अपने लिये हार बनवाता है तो घर के उपभोग का उसका अधिकार अनन्य है तथा दूसरे व्यक्तियों का यह नकारात्मक कर्तव्य है कि वे उपभोग में बाधा न पहुँचाये.

साधारणतया सकारात्मक कर्तव्य संविदा की उपज होते हैं परन्तु अपराध और दुष्कृत्य में नकारात्मक कर्तव्य होते हैं क्योंकि कार्य करने से मना करते हैं.

2. नैतिक और विधिक कर्तव्य

नैतिक नियम नैतिकता द्वारा अधिरोपित होते हैं एवं विधिक कर्तव्य विधि द्वारा अधिरोपित होते हैं. विधिक कर्तव्य को विधि द्वारा मान्यता दी जाती है.

सामण्ड के अनुसार, विधिक कर्तव्यों के पालन न करने पर दण्ड का भागी होना पड़ता है. विधिक कर्तव्यों का अनुपालन अनुशास्ति द्वारा सुनिश्चित किया जाता है.

नैतिक कर्तव्यों का पालन न करने के कारण राज्य किसी व्यक्ति को दण्डित नहीं करता है. नैतिक कर्तव्यों के पालन न किये जाने की स्थिति में समाज द्वारा प्रताड़ित किये जाने का ही अनुशासित है. जैसे किसी हिन्दू पुरुष द्वारा अपने पिता की मृत्यु पर आत्मशुद्धि के लिये बाल ने मुड़वाना.

सामण्ड के अनुसार, विधिक कर्तव्य एक कार्य है जिसके विपरीत विधिक दुष्कृति होती है. नैतिक कर्तव्यों के अनुपालन के पीछे नैतिक बाध्यता होती है.

3. पूर्ण एवं अपूर्ण कर्तव्य

पूर्ण कर्तव्य वहां उत्पन्न होते हैं जहां कर्तव्य करने वाले व्यक्ति से कुछ करने या न करने की बात होती है. अपूर्ण कर्तव्य अपूर्ण बाध्यता से उत्पन्न होती है जैसे कालबाधित ऋण का भुगतान अपूर्ण कर्तव्य को सृजित करता है.

4. प्राथमिक एवं द्वितीयक कर्तव्य

प्राथमिक कर्तव्य का स्वतन्त्र अस्तित्व होता है. ये दूसरे कर्तव्य से सम्बन्धित नहीं होते हैं जैसे संविदा पालन का कर्तव्य प्राथमिक कर्तव्य है या किसी को चोट न पहुंचाने का कर्तव्य.

द्वितीयक कर्तव्यों का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता है और ये दूसरे कर्तव्यों के प्रवर्तन के लिये होते हैं. द्वितीयक कर्तव्य प्राथमिक कर्तव्य के उल्लंघन से उत्पन्न होते हैं. इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि द्वितीयक कर्तव्यों की उत्पति प्राथमिक कर्तव्यों के उल्लंघन से होती है. प्राथमिक कर्तव्य नकारात्मक प्रकृति के होते हैं. प्राथमिक कर्तव्य की अपेक्षा द्वितीयक कर्तव्यों का पालन करना सरल होता है. यदि प्राथमिक कर्तव्यों की अवहेलना करके किसी व्यक्ति को चोट पहुंचायी जाती है तो क्षतिपूर्ति करने का द्वितीयक कर्तव्य उत्पन्न हो जाता है.

5. सापेक्ष और निरपेक्ष कर्तव्य

सापेक्ष कर्तव्य वे होते हैं जिनका सहवर्ती अधिकार होता है. सापेक्ष कर्तव्यों के पालन से अधिकार संरक्षित होता है. जैसे एक व्यक्ति द्वारा अपने ऋणदाता को ऋण की अदायगी करने का कर्तव्य. निरपेक्ष कर्तव्य वे होते हैं जिनका सहवर्ती अधिकार नहीं होता है. आस्टिन द्वारा निरपेक्ष कर्तव्यों का वर्गीकरण किया गया है, जो निम्नलिखित चार प्रकार के बताये गये हैं-

  1. इस वर्ग में वे कर्तव्य सम्मिलित हैं जो ईश्वर या जानवरों के प्रति किये जाते हैं ऐसे कर्तव्य मानव से सम्बन्धित नहीं होते हैं.
  2. अनिश्चित व्यक्तियों के प्रति कर्तव्य-जनसामान्य के प्रति कर्तव्य होते हैं, किसी व्यक्ति या निश्चित व्यक्तियों के प्रति नहीं. जैसे; न्यूसेन्स न करने का कर्तव्य.
  3. अपने स्वयं से सम्बन्धित कर्तव्य जैसे आत्महत्या न करने का कर्तव्य या नशे की स्थिति में न रहने का कर्तव्य.
    राज्य के प्रति कर्तव्य, इसके अन्तर्गत नागरिकों का राज्य के प्रति कर्तव्य होता है.

ईश्वर एवं जानवरों के प्रति निरपेक्ष कर्तव्य विधिक कर्तव्य नहीं है. ईश्वर के प्रति कर्तव्य धर्म का विषय है विधि का नहीं जानवरों के प्रति कर्तव्य विधिक कर्तव्य नहीं है क्योंकि विधिक कर्तव्य अधिकार के धारक के प्रति होता है और अधिकार का धारक विधिक व्यक्ति ही होता है. पैटन ने कहा कि ऐसे व्यक्ति के प्रति कोई विधिक कर्तव्य नहीं है जो विधिक व्यक्ति नहीं है.

अनिश्चित के प्रति कर्तव्य की निरपेक्षता के सम्बन्ध में यह बात है कि सामान्यजन के प्रति कर्तव्य के बारे ऑस्टिन स्पष्ट नहीं करते कि क्या कहना चाहते हैं. अपने स्वयं के प्रति कोई विधिक कर्तव्य नहीं होता है.

पैटन के अनुसार, स्वयं के प्रति कर्तव्य करने का कोई कर्तव्य नहीं है बल्कि आपराधिक विधि का भाग है.

राज्य के प्रति कर्तव्य भी प्रभावकारी नहीं है क्योंकि राज्य जब चाहे विधि को बदल सकता है. वास्तव में राज्य के प्रति अधिकार उतने प्रभावकारी नहीं हैं जितने कि अन्य व्यक्तियों के प्रति होते हैं. निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि राज्य और नागरिक के बीच अधिकार और कर्तव्य का समरूप स्थापित नहीं हो सकता है |

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