उत्पीड़न किसे कहते हैं? | उत्पीड़न की परिभाषा एवं आवश्यक तत्व

उत्पीड़न किसे कहते हैं? | उत्पीड़न की परिभाषा एवं आवश्यक तत्व

उत्पीड़न की परिभाषा

उत्पीड़न क्या है? भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, “उत्पीड़न (Coercion)” इस आशय से कि किसी व्यक्ति से कोई करार किया जाय, चाहे ऐसा कार्य करना या करने की धमकी देना है, जो भारतीय दण्ड संहिता (IPC, 1860 का 45) द्वारा निषिद्ध है अथवा किसी व्यक्ति पर, चाहे वह कोई हो, प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए किसी सम्पत्ति का विधि विरुद्ध निरोध करना या निरोध करने की धमकी देना है।” |

उत्पीड़न के आवश्यक तत्व

  1. भारतीय दण्ड संहिता (IPC) द्वारा निषिद्ध कोई कार्य करना, या
  2. ऐसा कार्य करने की धमकी देना, या
  3. किसी सम्पत्ति का विधि विरुद्ध निरोध करना, या
  4. ऐसे निरोध की धमकी देना, उत्पीड़न है.

उत्पीड़न में विधिविरुद्ध कोई कार्य करना या करने की धमकी देना दोनों सम्मिलित है आवश्यक मात्र यह है कि ऐसा कार्य भारतीय दण्ड संहिता द्वारा दण्डनीय या निषिद्ध हो. उत्पीड़न के लिए तीन बातें साबित करनी होती हैं-

  1. धमकी का प्रकटन,
  2. भारतीय दण्ड संहिता द्वारा निषिद्ध कोई कार्य एवं
  3. ऐसा कार्य करने के लिए बाध्य करने का आशय.

रंगनायकाम्मा बनाम अलवर चेट्टी (1889, 13 मद्रास 214 का मामला) इस बाद में एक 13 वर्षीय लड़की को, जिसका पति मरा ही था, उसके पति के लिए एक लड़के को दत्तक लेने के लिए अपनी सम्मति देने हेतु बलपूर्वक बाध्य किया गया, इस धमकी के साथ कि यदि वह ऐसी सम्मति नहीं देगी तो उसके मृतक पति के शव को दाह संस्कार के लिए वहां से हटाने नहीं दिया जायेगा. यह अभिनिर्धारित किया गया कि दत्तक विधिमान्य नहीं था, क्योंकि उत्पीड़न द्वारा कराया गया था.

वहीं मुथैय्या चेट्टियार बनाम करुपान चेट्टियार (1927, 50 मद्रास 786 का मामला) इस बाद में एक अभिकर्त्ता ने अपने कार्य काल की समाप्ति पर तब तक कारोबार की लेखा पुस्तकों को देने से इन्कार कर दिया जब तक कि मालिक अभिकरण (Agency) के सम्बन्ध में होने वाले समस्त दायित्वों के लिए उसको निर्मुक्ति पत्र न दे दे. यह अभिनिर्धारित किया गया कि निर्मुक्ति पत्र उत्पीड़न के अधीन था |

क्या आत्महत्या की धमकी देना उत्पीड़न होगा?

इस सम्बन्ध में मतभेद है कि आत्महत्या की धमकी देना उत्पीड़न कहलायेगा या नहीं क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता (IPC) में आत्महत्या का प्रयास करना दण्डनीय है न कि उसकी धमकी देना.

अम्मीराजू बनाम सेशम्मा (1917, 41 मद्रास 33) के मामले में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी और लड़के को धमकी दी कि वह आत्महत्या कर लेगा यदि उन्होंने सम्पत्ति के बांड उनके पक्ष में नहीं लिखे. न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि कार्य उत्पीड़न के तहत माना जाना चाहिए |

उत्पीड़न व विवाध्यता के बीच अन्तर

  1. उत्पीड़न किसी व्यक्ति के शरीर व सम्पत्ति (दोनों) के खिलाफ धमकी होती है जैसे अधिनियम की धारा से स्पष्ट है कि दण्ड संहिता द्वारा निषिद्ध कोई कार्य करने की धमकी देना या किसी की सम्पत्ति को निरुद्ध करने को धमकी देना, जबकि विवाध्यता केवल व्यक्ति व उसके परिवार के शरीर व स्वतन्त्रता के खिलाफ धमकी होती है.
  2. उत्पीड़न किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति हो सकता है जो संविदा का पक्षकार नहीं है, जबकि विवाध्यता संविदा के पक्षकार, उसके पत्नी, माता-पिता बच्चे या किसी निकट सम्बन्धी के प्रति ही हो सकता है.
  3. उत्पीड़न किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा भी हो सकता है, जबकि विवाध्यता केवल संविदा के पक्षकार या उसके अधिकृत अभिकर्त्ता द्वारा ही होनी चाहिये.
  4. उत्पीड़न को सिद्ध करने के लिए इतना पर्याप्त है कि धमकी देकर सम्मति प्राप्त की गई है, जबकि विवाध्यता में शरीर के प्रति खतरा आसन्न होना चाहिए |

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