विधिक सहायता क्या है? | विधिक सहायता की परिभाषा, उद्देश्य एवं प्रमुख स्त्रोत

विधिक सहायता क्या है? | विधिक सहायता की परिभाषा, उद्देश्य  एवं प्रमुख स्त्रोत

विधिक सहायता क्या है?

विधिक सहायता प्रक्रिया को प्रायः सभी देशों में स्वीकार किया गया है परन्तु उसकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी गई हैं. विधिक सहायता को न्यायालयों तथा विधिवेत्ताओं ने अवश्य परिभाषित करने की कोशिश की है |

विधिक सहायता की परिभाषा

ये परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

इथोक ब्लैकमैन के अनुसार, “किसी मामले में निर्धन एवं असहाय व्यक्ति को विधिक राय देना ही विधिक सहायता है।”

सर थोम्स के अनुसार, “विधिक सहायता से अभिप्राय किसी भी कठिन परिस्थिति में अधिवक्ता से कानूनी राय प्राप्त करने से है।”

सेटोन पोलक के अनुसार, “मूल अर्थों में विधिक सहायता से अभिप्राय विधि के अन्तर्गत अपने अधिकारों को निर्धारित एवं प्रवर्तित कराने से सम्बन्धित व्यक्तियों को अनुदत्त की जाने वाली सहायता से है. यह नाममात्र के शुल्क पर या निःशुल्क उन व्यक्तियों को विधिक सेवायें उपलब्ध कराती है, जो इसमें असमर्थ हैं।”

अन्तर्राष्ट्रीय विधिक सहायता संगठन ने इस शब्द की परिभाषा देते हुए कहा है कि- “विधिक सहायता इस बात का आश्वासन हैं कि कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों से केवल इसलिये वंचित न रहे कि उसे अर्थाभाव अथवा अन्य किसी कारण से विधि विशेषज्ञ की सेवायें उपलब्ध नहीं हो सकीं।”

आनटेरियों विधिक सहायता अधिनियम, 1966 के अनुसार, “विधिक सहायता स्कीम प्रत्येक व्यक्ति को इस बात की गारन्टी देती है कि शुल्क का संदाय करने की चिन्ता किये बिना उसे अपनी पसन्द के अधिवक्ता अथवा विधि व्यवसायी से न्यायालय में प्रतिनिधित्व अथवा पैरवी करने का अधिकार एक सुरक्षित अधिकार है।”

डॉक्टर S. N. जैन के अनुसार, “न्याय प्रशासन में निर्धनता के प्रभाव को दूर करने कम करने के लिए निर्धन व्यक्तियों को उचित सहायता उपलब्ध कराना ही न्यायालय का अभिन्न अंग है।”

उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति P. N. भगवती के अनुसार, “सबके लिए समान न्याय एक महत्वपूर्ण अवधारणा है लेकिन अर्थाभाव निर्धन व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण के मार्ग में एक अवरोध है. विधिक सहायता निर्धन व्यक्तियों को विधि के समक्ष समान संरक्षण प्रदान करने हेतु एक साधन है।”

उपरोक्त परिभाषायें यह स्पष्ट करती हैं कि विधिक सहायता वह है जिसके द्वारा समाज के शोषित व्यक्ति या वर्ग को विधिक सहायता दी जाती है. इसके द्वारा ऐसे व्यक्तियों के विधिक अधिकारों को सुरक्षित रखा जाता है |

विधिक सहायता का उद्देश्य

विधिक सहायता के उद्देश्य हैं-

  1. निर्धन एवं कमजोर वर्ग के लोगों को निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराना.
  2. प्रत्येक व्यक्ति को उसको प्रतिरक्षा के लिए विधि-विशेषज्ञ अथवा अधिवक्ता की सेवायें उपलब्ध करना.
  3. ऐसे अधिवक्ताओं के लिए राज्य की ओर से समुचित पारिश्रमिक की व्यवस्था करना.
  4. स्वैच्छिक संगठनों को विधिक सहायता के लिए प्रेरित करना तथा उन्हें अनुदान देना.
  5. कारावास की सजा से दण्डित व्यक्तियों को निर्णय की प्रति निःशुल्क उपलब्ध करना.
  6. कारागृह में बंदी व्यक्तियों के मामले की अपीलें आदि समुचित न्यायालयों में पेश करने की व्यवस्था करना |

विधिक सहायता के प्रमुख स्त्रोत

विधिक सहायता का उद्भव अति प्राचीन है. यह मानव की प्राप्ति से जुड़ा हुआ है. इसलिए इसके ऐतिहासिक दृष्टिकोण से निम्नलिखित स्रोत हैं-

1. मैग्नाकार्टा

विधिक सहायता स्कीम का प्रमुख स्रोत “मैग्नाकार्टा” (1215) है. मैग्नाकार्टा (Magna Carta) में यह कहा गया है कि- “कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित नहीं किया जायेगा, न्याय की वस्तु होगी और न न्याय में विलम्ब ही किया जायेगा.

न्यायमूर्ति P. N. भगवती ने मैग्नाकार्टा को विधिक सहायता स्कीम के उद्भव का प्रमुख स्त्रोत माना है.

2. मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा

सन् 1948 का मानव अधिकार घोषणा पत्र विधिक सहायता स्कीम की व्युत्पत्ति का एक और महत्वपूर्ण स्रोत है. इस घोषणा में यह कहा गया है कि- “सभी व्यक्ति स्वतंत्र पैदा हुए हैं तथा वे प्रतिष्ठा एवं अधिकारों में समान हैं. उनमें विधिक एवं तर्क है. उनमें परस्परिक बंधुत्व का आचरण होना चाहिये. जीवन, स्वतंत्रता, व्यक्ति की सुरक्षा एवं विधि के समक्ष समानता उसके मूलभूत अधिकार हैं।”

न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के मत में “विधिक सहायता का विश्व आदेश इसी सार्वभौमिक घोषणा में अन्तर्निहित है।”

3. साम्य के सिद्धान्त

साम्य के सिद्धान्त (Priniciples of Equity) भी विधिक, सहायता स्कीम के प्रादुर्भाव में महत्वपूर्ण भागीदार माने जाते हैं. साम्य के सिद्धान्त हैं-

  1. साम्य सद्गुण है.
  2. समता ही साम्य है.
  3. साम्य महत्वपूर्ण आचरण अथवा व्यवहार में विश्वास करता है, आदि.

ये सिद्धान्त इस बात की प्रेरणा देते हैं कि कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित न रहे, सभी को विधियों का समान संरक्षण, मिले, न्याय- प्रशासन में धनी एवं निर्धन के बीच विभेद न किया जाये आदि.

4. संविधान

विश्व के सामान्यतः सभी संविधान भी विधिक सहायता स्कीम के प्रमुख स्रोत माने जाते हैं. संविधानों में विधिक सहायता स्कीम को स्थान दिया जाना उन्हें सार्वभौमिक मान्यता प्रदान करने का प्रमाण है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 39A में विधिक सहायता स्कीम को स्थान दिया गया है.

5. विधियां

विभिन्न विधियां (Laws) भी विधिक सहायता स्कीम को विधिक स्वरूप प्रदान करती हैं. भारत में सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) , 1908 के आदेश 2 नियम 10A आदेश 33 तथा आदेश 44 में विधिक सहायता स्कीम को स्थान दिया गया है.

दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) , 1973 की धारा 304 भी निर्धन व्यक्तियों को निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराने के बारे में प्रावधान करती है. इस प्रकार अब ये विधियों भी विधिक सहायता मिशन का स्रोत बन गई हैं.

6. न्यायिक निर्णय

विधिक सहायता स्कीम को आगे बढ़ाने में न्यायिक निर्णयों का भी महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है. न्यायालयों ने समय-समय पर अपने निर्णयों के माध्यम से व्यक्ति के विधिक सहायता के अधिकार की पुष्टि की है.

M. H. हासकार बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, (AIR 1978 SC 1548) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करना व्यक्ति का अधिकार है, राज्य की अनुकम्पा नहीं.

अनेक वादों में तो उच्चतम ने यहां तक कहा है कि निःशुल्क विधिक सहायता व्यक्ति का मूल अधिकार है. ऐसे मामलों में न्यायालयों को अभियुक्त के आवेदन की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये. यह न्यायालय का कर्तव्य है कि वह अभियुक्त को उसके इस अधिकार से अवगत कराये तथा उसे सुनिश्चित करे |

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