राष्ट्रीय आयोग का गठन एवं क्षेत्राधिकार

राष्ट्रीय आयोग का गठन एवं क्षेत्राधिकार

राष्ट्रीय आयोग का गठन

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 20 के अनुसार, राष्ट्रीय आयोग का गठन निम्न प्रकार से होगा-

  • वह व्यक्ति जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा जो उसका अध्यक्ष होगा;

परन्तु इस खण्ड के तहत कोई नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश की राय के बिना नहीं की जायेगी.

  • सदस्यों की संख्या चार से कम नहीं और जैसा कि उपबन्धित किया जाए उससे अधिक नहीं, जिनमें से एक महिला होगी, जो निम्न योग्यता धारित करते हों-
  1. 35 वर्षे से कम आयु का न हो;
  2. मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि धारित करते हों; और
  3. योग्यता, सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति होंगे और जिनको अर्थशास्त्र, विधि, वाणिज्य, लेखाकर्म, उद्योग, लोक कार्य या प्रशासन से सम्बन्धित समस्याओं को निपटाने को कम से कम दस वर्ष का पर्याप्त ज्ञान या अनुभव हो;

परन्तु यह कि न्यायिक पृष्ठभूमि धारित करने वाले व्यक्ति सदस्यों के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होंगे.

इस खण्ड के प्रयोजन के लिए पद “न्यायिक पृष्ठभूमि धारित करने वाले” का अर्थ होगा व्यक्ति जिन्हें जिला स्तर के न्यायालय या समान स्तर के किसी अधिकरण के पीठासीन अधिकारी के रूप में कम से कम 10 वर्ष का अनुभव व ज्ञान हों-

परन्तु आगे यह भी कि व्यक्ति सदस्य के रूप में नियुक्ति हेतु अयोग्य होगा, यदि वह-

  1. किसी अपराध में जो केन्द्रीय सरकार के अभिमत में नैतिक अधमता (Moral Tarpitude) से सम्बन्धित हो,
  2. कारावास के दण्ड हेतु दोषसिद्ध ठहराया जा चुका हो; या
  3. एक अनुन्मोचित (Undischarged Insolvent) दिवालिया हो; या
  4. विकृतचित्त (Unsound mind) का हो और सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया हो; या
  5. शासन या शासन के स्वामित्व की या उसके द्वारा नियंत्रित निगमित निकाय की सेवा में हटाया या निलम्बित किया जा चुका हो; या
  6. राज्य सरकार के अभिमत में ऐसे वित्तीय या अन्य हित रखता हो, जिनसे सदस्य के रूप में उसके कर्तव्य निर्वहन पर प्रतिकूल प्रभाव पहना सम्भावित हो, या
  7. ऐसी कोई अन्य अयोग्यता रखता हो जैसा कि केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए:

परन्तु यह भी कि इस खण्ड के अधीन की जाने वाली प्रत्येक नियुक्ति निम्न सदस्यों से मिल कर गठित चयन समिति (Selection Commission) के अनुमोदन पर केन्द्रीय सरकार द्वारा की जायेगी, अर्थात्-

  1. व्यक्ति जो कि उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हो जो कि भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा मनोनीत किया जायेगा–अध्यक्ष.
  2. भारत सरकार के विधि मामलों से सम्बन्धित विभाग का सचिव–सदस्य..
  3. भारत सरकार के उपभोक्ता संबंधी मामलों के विभाग का सचिव–सदस्य.
  1. राष्ट्रीय आयोग का न्याय क्षेत्र, शक्तियाँ और प्राधिकार उसको न्यायपीठों द्वारा प्रयुक्त किये जा सकेंगे.
  2. न्यायपीठ, अध्यक्ष और एक या अधिक सदस्यों जैसा भी अध्यक्ष ठीक समझे, से गठित हो सकेगी.
  3. यदि न्यायपीठ के सदस्यों में किसी बिन्दु पर मतभेद है तब वह बिन्दु यदि वहाँ बहुमत हो तो बहुमत की राय से निर्धारित किया जाना चाहिए किन्तु यदि सदस्य समान रूप से विभाजित हों तब उन्हें बिन्दु या बिन्दुओं का उल्लेख करना चाहिए जिन पर उनमें मतभेद है, और अध्यक्ष को निर्दिष्ट किया जाना चाहिए जो उस बिन्दु या बिन्दुओं पर या तो स्वयं सुनवाई करेगा या ऐसे बिन्दु या बिन्दुओं पर मामले की सुनवाई एक या अधिक या अन्य सदस्यों द्वारा की जा कर ऐसे बिन्दु या बिन्दुओं पर सुनवाई करने वाले सदस्यों, जिनमें में वे सदस्य भी सम्मिलित है, जिन्होंने आरम्भ में सुनवाई की थी के बहुमत के बहुमत के मतानुसार, निर्णीत किया जायेगा.

नोट– इस प्रावधान को उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2002 द्वारा संशोधित किया गया है.

कार्यकाल

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 20(3) के अनुसार, आयोग के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु या इसमें से जो पहले तक होता है. एक बार नियुक्त सदस्य को पुनः सदस्य भी बनाया जा सकता है |

राष्ट्रीय आयोग का क्षेत्राधिकार

राष्ट्रीय आयोग का क्षेत्राधिकार क्या है? उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 21 के अनुसार, राष्ट्रीय आयोग को चार प्रकार का क्षेत्राधिकार प्राप्त है-

आर्थिक अधिकारिता

राष्ट्रीय आयोग को ऐसे परिवादों की सुनवाई करने की अधिकारिता प्राप्त है जिनमें परिवादित माल या सेवा अथवा दावाकृत प्रतिकर का मूल्य 1 करोड़ रुपये से अधिक हो.

सन् 2002 के उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम से पूर्व यह अधिकारिता 20 लाख रुपये से अधिक के मामलों की थी. राष्ट्रीय आयोग के क्षेत्राधिकार को इस आधार पर नकारा नहीं जा सकता है कि परिवादी ने तथ्य या विधि के उलझे हुये प्रश्न उठाये हैं (C.C.I. को आपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड बनाम डेवलपमेन्ट क्रेडिट बैंक लिमिटेड (AIR 2004 S.C. 184) यदि आवंटितो को कब्जा दिये जाने का प्रस्ताव किया जाता है लेकिन न तो आवंटिती कब्जा लेता है और न ही कोई उत्तर देता है, इसके अतिरिक्त वह जिला फोरम में परिवाद संस्थित करता है.

तो ऐसी स्थिति में आवंटितो प्रस्ताव की तिथि से लेकर कब्जा पाने की तिथि तक ब्याज प्राप्त करने का हकदार नहीं होगा (गाजियाबाद डेवलपमेन्ट अथारिटी बनाम बलवीर सिंह, (AIR 2005 S.C. 1206)

प्रादेशिक अधिकारिता

राष्ट्रीय आयोग की अधिकारिता का विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है अर्थात् सम्पूर्ण भारत में उद्भूत विवादों की सुनवाई करने की अधिकारिता है.

अपीलीय अधिकारिता

जहां तक अपीलीय अधिकारिता का प्रश्न है, राष्ट्रीय आयोग को किसी भी राज्य आयोग के आदेशों के विरुद्ध अपील की सुनवाई करने की अधिकारिता है.

पुनरीक्षण अधिकारिता

राज्य आयोग को पुनरीक्षण (Revision) की शक्तियों भी प्रदान की गई हैं. जहाँ राज्य आयोग को यह प्रतीत हो कि-

  1. आयोग ने ऐसी अधिकारिता का प्रयोग किया है कि जो उसमें निहित नहीं है, या
  2. राज्य आयोग ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने में असफल रहा हो जो उसमें निहित है, या.
  3. राज्य आयोग ने अपनी अधिकारिता का प्रयोग अवैध रूप से या तात्विक अनियमितता (Material irregularity) से किया है;

वहां आयोग ऐसे अभिलेखों को अपने पास मँगवा सकेगा और उनमें समुचित आदेश पारित कर सकेगा |

Leave a Comment