विधि की परिभाषा क्या है? | विधि के विभिन्न प्रकार एवं वर्गीकरण

विधि की परिभाषा क्या है? | विधि के विभिन्न प्रकार एवं वर्गीकरण

विधि की परिभाषा में कठिनाई

विधिशास्त्र की भाँति विधि को भी परिभाषित करना एक कठिन कार्य है. विधियाँ सामान्यतया देश और काल की उपज होती है. किसी भी देश की विधि को वहाँ की परिस्थितियाँ, वहाँ के जीवन मूल्य, आवश्यकतायें, अपेक्षायें भौगोलिक वातावरण, धर्म आदि प्रभावित करते हैं. यह सारी चीजें सभी देशों में एक जैसी नहीं पाई जातीं. अतः विधि के प्रति दृष्टिकोण में भिन्नता पाई जाती है.

प्रत्येक विधिशास्त्री का अपना एक दृष्टिकोण होता है. उसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर वह विधि को पारिभाषित करता है. फिर विधिशास्त्र विभिन्न स्कूलों (विचारधाराओं) में बंटा हुआ है.

विधि के प्रति उन सबका अपना-अपना अलग दृष्टिकोण है, अतः उन विचारधाराओं के विधिशास्त्रियों की परिभाषा में अन्तर होना अस्वभाविक नहीं है. यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिये कि ऊपर वर्णित वे सभी प्रमाण, जो विधि को प्रभावित करते हैं सामाजिक परिवर्तनों के साथ-साथ बदलते रहते हैं, उनके मूल्य, प्रतिमान, परिस्थितियाँ आदि परिवर्तित होती रहती हैं, अतः विधि की एक सार्वजनिक (Universal) परिभाषा करना आसान नहीं है |

विधि की परिभाषा

विधिशास्त्रीयों के अनुसार विधि की परिभाषा, ये निम्न हैं-

1. हालैंड की विधि की परिभाषा

हालैंड के अनुसार, विधि राजनैतिक सम्प्रभु द्वारा प्रवर्तित बाह्य मानवीय आचरण के लिये सामान्य नियम है.

परिभाषा के विश्लेषण से निम्नलिखित तत्व उभर कर सामने आते हैं-

  1. विधि बाह्य मानवीय आचरण का सामान्य नियम है. सम्प्रभु की विधि मनुष्य के बाह्य आचरण से सम्बन्ध रखती है. मनुष्य की आन्तरिक भावनाओं से उसका कुछ नहीं लेना देना है. विधि न केवल सम्प्रभु द्वारा निर्गत की जाती है अपितु, उसके द्वारा प्रवर्तित भी की जाती है. हालैण्ड के अनुसार विधि को स्वभाव से सामान्य होनी चाहिये. यह विशिष्ट नहीं होनी चाहिये.
  2. विधि एक निर्धारित राजनैतिक प्राधिकारी द्वारा निर्गत किया जाना चाहिये. हालैण्ड का सम्प्रभु राजनैतिक प्राधिकारी और कोई नहीं बल्कि राज्य है जो दूसरे राज्यों एवं संस्थाओं से स्वतन्त्र एवं सम्प्रभु है |

2. ग्रे की विधि की परिभाषा

ग्रे के अनुसार, राज्य की विधि या मनुष्यों के किसी संगठित समूह की विधि नियमों से बनी होती है जिन्हें न्यायालय या उस समूह का न्यायिक अंग विधिक अधिकारों एवं कर्तव्यों के निर्धारण के लिये प्रतिपादित करता है.

ग्रे (Gray) की परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि विधि का अस्तित्व तथा प्रवर्तन दो बातों पर निर्भर होता है. पहला यह कि राज्य का होना आवश्यक है. अतः उनकी विधि की परिभाषा राज्य से संदर्भित है. दूसरा यह कि विधि वह है जो न्यायालय नागरिकों के विधिक अधिकारों एवं कर्तव्यों के निर्धारण के लिये प्रतिपादित करते हैं |

3. सामण्ड की विधि की परिभाषा

सामण्ड (Salmond) विधि को निम्न प्रकार से पारिभाषित करते हैं-

विधि सिद्धान्तों का ऐसा समूह है जिसे राज्य मान्यता देता है एवं न्याय प्रशासन में लागू करता हैं.

यह परिभाषा करीब-करीब वैसी है जैसी कि ग्रे की और ग्रे की परिभाषा है. सामण्ड की परिभाषा के अनुसार, विधि सिद्धान्तों का ऐसा समूह है जिसे न्यायालय प्रवर्तित (Enforce) करते हैं. विधि विधायन के माध्यम से बनायी जाती है और लोकप्रिय व्यवहार (Popular Practice) जिसे हम परम्परा या प्रथा कहते हैं, से भी निर्मित होती है, लेकिन उन्हें विधि का बल तभी प्राप्त होता है या उनका विधिक स्वभाव तभी प्रगट होता है जब उन्हें न्यायालय न्याय प्रशासन में मान्यता देते हैं एवं उन्हें लागू करते हैं.

विधि के अन्तर्गत केवल वही विधि नहीं आती जिसका निर्माण सम्प्रभू करता है, अपितु प्रथायें एवं न्यायाधीश निर्मित विधि भी आती है. न्यायालय संविधि (Statute) की अशुद्ध व्याख्या कर सकता है और प्रथा को अस्वीकार कर सकता है. यह तो न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त है, जिसे विधि का बल प्राप्त है. सामण्ड विधि को न्याय से युक्त करते हैं. लेकिन न्याय का प्रशासन विधि के ही परिप्रेक्ष्य में होना चाहिये. सामण्ड न्याय पक्ष पर विशेष बल देते हैं तभी तो वे कहते हैं.

विधि न तो केवल अधिकार है और न केवल शक्ति अपितु दोनों का पूर्ण संयोजन है. यह राज्य के स्वर में मनुष्यों के लिये किया गया न्याय है. सामण्ड के अनुसार, विधि का उद्देश्य न्याय प्रशासन है लेकिन न्याय से उनका तात्पर्य आदर्श एवं अमूर्त न्याय से नहीं.

यहां इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि विधि का एकमात्र उद्देश्य न्याय प्राप्त करना नहीं है, विधि के और भी उद्देश्य होते हैं जो समय के साथ परिवर्तित होते रहते हैं. सामण्ड ने न्याय को परिभाषित नहीं किया है.

सामण्ड की विधि की कल्पना में विधि एकादमी निर्णयों का एक समूह बनकर रह जाता है, उसमें गयात्मकता नहीं आ पाती या सुसंगठित समूह नहीं बन पाता. उनकी विधि की परिभाषा न्यायालयीय निर्मित विधि के सन्दर्भ में है. इनकी विधि सम्बन्धी धारणा में अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं प्रशासी विधि भी नहीं आ पाती |

विधि के प्रकार

विधि का विभिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया गया है. ये निम्न हैं-

1. प्राकृतिक विधि

प्राकृतिक विधि क्या है? प्राकृतिक विधि (Law of Nature or Natural Law) से तात्पर्य एक ऐसी सार्वभौमिक (Universal) विधि हैं जो सभी मनुष्यों, सभी स्थानों एवं सभी काल पर लागू हो सकती है. जिसके अन्तर्गत न्याय एवं आदर्श के तत्व समाविष्ट हैं. जिसे मानव विवेक से उत्पन्न विधि या ईश्वरीय विधि भी कहा जाता है.

प्राकृतिक विधि को सामान्य मानव जाति के मार्गदर्शन के लिये सार्वभौमिक तर्क (विवेक) या ईश्वर द्वारा निर्धारित आचरण का नियम कहा गया है.

सामण्ड के अनुसार, न्याय के सिद्धान्त एवं नैतिकता मिलकर प्राकृतिक विधि का निर्माण करते हैं. प्राकृतिक विधि सिद्धान्त का निर्माण वास्तव में स्टोइक दार्शनिकों (Stoic Philosophers) ने किया. उनका दर्शन यह था कि मनुष्य को प्रकृति के अनुसार रहना चाहिये, और मनुष्य के विशेष गुण है कि उसके पास विवेक (Reason) होता है. अर्थात मनुष्य को विवेक (तर्कों) के आदेशानुसार रहना चाहिये.

हिन्दू दर्शन के भी अनुसार मनुष्य को विवेक के अनुसार चाहे वह दैवी हो या मानव-अनुसार आचरण करना चाहिये. मध्य युग में प्राकृतिक विधि को देवी विधि (Divine Law) या ईश्वरीय विधि (Law of God) कहा जाता था |

2. प्रयागत विधि

प्रयागत विधि क्या है? प्रयागत विधि (Customary Law) से तात्पर्य ऐसी विधि से है जो प्रथाओं पर आधारित है या सामान्यतया अतिप्राचीन चला एवं व्यवहार पर आधारित है.

सामण्ड के अनुसार, ऐसी परम्परागत चलन जिसका मनुष्यों द्वारा स्वेच्छा से वास्तविक रूप से पालन किया जाता है, प्रथागत विधि कहलाती है. उनके अनुसार प्रथा का समाज के लिये वही स्थान है जो राज्य के लिये विधि का. प्रथा में उचित या सही एवं न्याय के सिद्धान्तों का समावेश है.

राज्य के द्वारा उसको मान्यता एवं अनुमोदन नहीं प्राप्त होता वरन् उसे मान्यता एवं अनुमोदन समाज के बहुसंख्यक वर्ग के सार्वजनिक मत के द्वारा प्राप्त होती है. हमारे अपने ही देश में हिन्दू एवं मुस्लिम विधि में अनेक प्रथाओं का समावेश है.

प्राचीन हिन्दू विधि तो श्रुतियों एवं स्मृतियों के रूप में हमारे सामने हैं, प्रथाओं पर आधारित है. प्रयागत विधि के विकास के कई कारण है, जैसे औचित्य (Expedient), अनुकरण एवं सुविधा आदि ऐतिहासिक विचारधारा के प्रमुख विधिशास्त्री सेविनी एवं हनेरी मेन, प्रयागत विधि को अधिक महत्व देते हैं |

3. भौतिक या वैज्ञानिक विधि

भौतिक या वैज्ञानिक विधि क्या है? इस प्रकार की विधि उन एकरूपताओं एवं नियमितताओं को प्रदर्शित करती है जो प्रकृति में देखी जा सकती है. दूसरे शब्दों में भौतिक या वैज्ञानिक विधि (Physical Or Scientific Law) से तात्पर्य उन विधियों से है जो सिद्धान्तों के सामान्य स्वभाव की विवेचना करती है, जिसके अनुसार भौतिक घटनायें एक दी हुई स्थिति में क्रिया एवं प्रतिक्रिया करती है.

उदाहरण के लिये ऊष्मा की विधि, प्रकाश कि विधि, सापेक्षता की विधि, गुरुत्वाकर्षण की विधि, गति सम्बन्धी विधि, जीवों के विकास की विधि, जैविक विधि, ज्वार भाटे सम्बन्धी विधि आदि |

4. नैतिक विधि

नैतिक विधि क्या है? नैतिक विधि (Moral Law) वह विधि है जिसे हम मानव मूल्यों पर आधारित विधि कह सकते हैं. एक प्रकार से यह भी प्राकृतिक विधि का ही एक भाग है. नैतिक विधि मानव आचरण के लिये एक आदर्श मानव के रूप में कार्य करती है और इसमें एक उचित आचरण के सिद्धान्त, एक अच्छे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उचित माध्यम अपनाने का सिद्धान्त, स्वाभाविक न्याय के सिद्धान्त और ईमानदारी एवं न्याय-व्यवहार के सिद्धान्तों का समावेश है.

नैतिक विधि मानने वालों का ऐसा विचार है कि एक ऐसी भी विधि है जो मानवेतर होते हुये भी मनुष्य से सम्बन्धी है. मानवेतर से यहाँ अभिप्राय उसके स्त्रोत से है. नैतिक विधि का स्रोत लौकिक न होकर दैवी होता है. बहुत-सी विधियों का आधार नैतिक है. नैतिक विधि का प्रवर्तन सामान्यतया राज्य नहीं करता अपितु इसका प्रवर्तन व्यक्ति की अन्तरात्मा की पुकार से होती है, प्रबुद्ध जन चेतना से होती |

5. अमिसामायिक विधि

अमिसामायिक विधि क्या है? अमिसामायिक विधि (Conventional Law) से अभिप्राय ऐसी विधि से है जिसकी उत्पत्ति व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह के बीच स्वैच्छिक करार से होती है. यह करार उनके पक्षकारों के बीच विधिक होती है. दूसरे शब्दों में अभिसामायिक विधि के अन्तर्गत ऐसे नियमों का समावेश है जो व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह द्वारा स्वेच्छा से एक दूसरे के आचरणों को विनियमित करने के लिये बनाये जाते हैं.

जैसे व्यापार के नियम, क्लब के नियम, गेम या खेलकूद सम्बन्धी नियम, कम्पनी या व्यापारिक संघों के नियम, श्रम संघों के नियम आदि. इसके अन्तर्गत राष्ट्रों द्वारा किये गये संधियो या अभिसमयों सम्बन्धी विधि भी आती है. ऐसी विधियों पक्षकारों के बीच किये गये संविधायों या करारों के परिणाम है, जिनका प्रवर्तन इनके भंग होने की स्थिति में न्यायालय करते हैं |

6. संवैधानिक विधि

संवैधानिक विधि क्या है? प्रत्येक देश का अपना एक संविधान होता है. उसमें सत्रिविष्ट (Embodied) विधि को संवैधानिक विधि (Constitutional Law) कहते हैं. यह देश की आधारभूत या मौलिक विधि होती है और अन्य सभी विधियाँ इससे विनियमित एवं शासित होती हैं. इसे मौलिक विधि भी कहते हैं. इसके द्वारा राज्य के विभिन्न अंगों के ढाँचें एवं कार्य का निर्धारण किया जाता है. संविधान राज्य के विभिन्न अंगों को परिभाषित करता है और उनकी सीमायें निर्धारित करता है. संघीय संविधान केन्द्रीय सरकार और संघ राज्यों के बीच के सम्बन्ध को परिभाषित करता है. भारत में भी यह स्थिति है.

भारतीय संविधान भी संघीय राज्यों जिन्हें, इकाई (Units) भी कहा जाता है, के अधिकारों को निश्चित करता है. संघ (केन्द्र) तथा राज्यों के क्षेत्राधिकार का स्पष्टीकरण करता है. राज्यों एवं संघ के बीच एवं राज्य के विभिन्न अंगों के बीच शक्ति विभाजन का कार्य करता है |

7. कामन लाॅ

कामन लाॅ क्या? कामन लाॅ (Common Law) से तात्पर्य किसी देश की सामान्य विधि से है परन्तु इंगलैण्ड के कामन लाॅ का एक तकनीकी अर्थ है. सामण्ड के अनुसार, कामन लाॅ से तात्पर्य सम्पूर्ण आंग्ल विधि समूह से है, तीन अपवादों को छोड़कर ये हैं, विशिष्ट विधि, (अपने विभिन्न रूपों में), संविधि विधि एवं साम्या संविधि विधि से भिन्न कामन लाॅ के अन्तर्गत वे सिद्धान्त, चलन एवं व्यवहार के नियम सम्मिलित हैं, जो राज्य पर भी लागू होते हैं और लोगों की जान-माल की सुरक्षा सम्बन्धित है, जो अपने प्राधिकार के लिये विधायिका की इच्छा की स्पष्ट एवं निश्चयात्मक घोषणा पर निर्भर नहीं करते. दूसरे शब्दों में ये राज्य की इच्छा की स्पष्ट एवं निश्चयात्मक घोषणा की मुखापेक्षी नहीं है. अतः कामन लाॅ में अलिखित विधि एवं चलन सम्मिलित है, जो स्वयं समय में परिवर्तन के साथ बदलते रहते हैं.

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि कामन लाॅ इंगलैण्ड की सामान्य विधि में से संविधि विधि एवं साम्या विधि को घटाने पर जो शेष बचता है, वही है. या दूसरे शब्दों में जैसा पहले कहा जा चुका है कि कामन ला सम्पूर्ण आंग्ल विधि समूह को कहते हैं. तीन अपवादों को छोड़कर ये हैं-

  1. अपने विभिन्न रूपों में विशिष्ट विधि,
  2. संविधि विधि, एवं
  3. साम्या |

8. साम्या विधि

साम्या विधि क्या है? साम्या का तात्पर्य न्यायोचित (Rights) से है, जो प्राकृतिक विधि, चारुता या निष्पक्षता (Fairness) और न्याय पर आधारित है. यह वह विधि है जो सामान्यतया मूल नागरिक विधि के साथ-साथ (समानान्तर) चलती है जो निश्चित रूप से विशिष्ट सिद्धांतों (Distinct Principles) पर आधारित है और कभी-कभी नागरिक विधि के नियमों का अधिक्रमण (Supercede) कर जाती है. दूसरे शब्दों में यह नागरिक विधि द्वारा उत्पन्न कठोरता के निवारण में सहायक होती है.

सान्या विधि की उत्पत्ति नागरिक विधि की कठिनाइयों के सुधारक के रूप में हुई है. इंगलैण्ड में चान्सरी न्यायालयों ने जिस विधि का उपयोग न्याय देने या करने के लिये किया, उन्हें साम्या विधि कहा गया. साम्या विधि निष्पक्षता एवं न्यायसंगतता पर आधारित है |

9. प्रशासनिक विधि

प्रशासनिक विधि क्या है? सामान्यतया प्रशासनिक विधि (Administrative Law) का सम्बन्ध प्रशासन से होता है. यह प्रशासी अभिकरणों के गठन (Agencies), अधिकारों एवं कर्तव्यों को निर्धारित करती है.

दूसरे शब्दों में प्रशासनिक विधि का सम्बन्ध सरकार के विभिन्न अभिकरणों द्वारा की जाने वाली सेवायों एवं संगठन से सम्बन्धित होती है. राज्य जब कर वसूलने वाले राज्य नहीं रहे, वे कल्याणकारी राज्य में परिवर्तित हो चुके हैं. अतः स्वभाविक है हकि उनके क्रिया-कलापों में न केवल मित्रता आई है अपितु इनके क्रिया-कलाप लोक कल्याण की दृष्टि से, चाहे वह आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक शैक्षिक या राजनैतिक क्षेत्र हो, काफी बढ़ गये हैं और इसी ने प्रशासी विधि को जन्म दिया है.

जेनिंग्स के अनुसार, प्रशासनिक विधि का सम्बन्ध प्रशासन से होता है. डायसी ने जो विचार फ्रांस की प्रशासनिक विधि को लेकर किया है वह सामान्यतया सभी जगह प्रशासनिक विधि पर लागू होता है. डायसी कहते हैं (फ्रांस के संदर्भ में) कि यह (प्रशासनिक विधि) फ्रांस की विधि का वह भाग है, जिसका सम्बन्ध राज्य के प्राधिकारियों की स्थिति एवं उनके उत्तरदायित्वों के निर्धारण से है, प्रशासनिक कार्यों के दौरान प्रशासनिक अधिकारियों और गैरसरकारी व्यक्तियों के बीच के आपसी सम्बन्धों तथा उनके अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों के निर्धारण से हैं. यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से प्रशासनिक अधिकारियों के कर्तव्यों एवं दायित्वों का प्रवर्तन किया जाता. राज्य के क्रिया-कलापों में आयी विभिन्नतायें एवं वृद्धि के कारण विधानपालिकायें (चाहे वह संसद हो या राज्य की विधान सभायें ) नियम बनाने का कार्य कार्यकारी अधिकारियों को प्रत्यायोजित कर देते हैं, कि वे नियम बनाकर अधिनियमिति या संविधि के उद्देश्यों का क्रियान्वयन करे. यही नहीं, उन नियमों के अनुसार विभिन्न पक्षकारों के दावों का निपटारा करे या दूसरे शब्दों में न्याय प्रशासन करे |

10. मार्शल विधि

मार्शल विधि क्या है? सामान्यतया मार्शल विधि (Martial Law) से तात्पर्य उस विधि से है जिसका प्रयोग सैनिक न्यायालय न्याय प्रशासन के लिये करते हैं. सैनिक प्राधिकारियों द्वारा जिस न्यायालय की स्थापना सैनिकों के बीच न्याय प्रशासन के लिये किया जाता है उसे मार्शल न्यायालय (Court Martial) कहते हैं. परन्तु मार्शल विधि को तीन अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है-

  • प्रथम इसका सम्बन्ध उस विधि से है जिसका प्रयोग सैनिक अधिकारी युद्ध के दौरान अधिगृहीत विदेशी क्षेत्र के शासन (Governance) के लिये करते हैं.
  • दूसरा, इसका सम्बन्ध उस विधि से है जिसके माध्यम से सेना असाधारण परिस्थितियों में एवं खतरे के समय सामान्य नागिरक विधि के निलम्बन की स्थिति से राज्य का प्रशासन चलाती है.
  • तीसरा उसका सम्बन्ध इस विधि से है, जिसके माध्यम से सेना स्वयं अपने सदस्यों के बीच अनुशासन कायम करती है अर्थात जिसकी आवश्यकता स्वयं सेना का प्रशासन चलाने के लिये होती है. इसे मिलिटरी का या सेना सम्बंधी नियम भी कहते हैं. यह दोनों समय में शान्त एवं युद्ध लागू रहता है |

11. सैनिक विधि

सैनिक विधि क्या है? यह ध्यान रखा जाना चाहिये कि सैनिक विधि (Military Law) एवं मार्शल विधि एक ही चीजे नहीं है. सैनिक विधि सेना में कार्यरत लोगों के आचरण को नियमित एवं नियन्त्रित करने के लिये बनायी जाती है.

भारतवर्ष में सेना के तीनों अंगों की सेवा में सक्रिय सदस्य जिसमें टेरीटोरियल भी शामिल है, सैनिक विधि के अधीन होते हैं. भारतीय नौसेना में कार्य करने वाले सैनिकों के लिये भारतीय नौसेना अधिनियम 1957 है, उससे ही नौसैनिक शासित होते हैं. भारतीय स्थल सेना एवं भारतीय वायु सेना के लिये क्रमशः भारतीय स्थल सेना अधिनियम, 1950 एवं भारतीय वायु सेना अधिनियम 1950 है. इन सभी से मिलकर सैनिक विधि बनती है.

भारतीय संविधान की धारा 33 इस बात का प्रावधान करती है कि किस सीमा तक संसद सैनिकों के लिये या शान्ति व्यवस्था कायम करने में कार्यरत लोगों के प्रति मौलिक अधिकारों को सीमित कर सकती है या समाप्त कर सकती है. इसका उद्देश्य सेना में सेवारत लोगों के बीच अनुशासन कायम रखना है |

12. सार्वजनिक विधि या लोक-विधि

सार्वजनिक विधि या लोक-विधि क्या है? लोक विधि (Public Law) से तात्पर्य ऐसी विधि से है जो राज्य के संगठन और उसके कार्य को अवधारित एवं विनियमित करती है. दूसरे शब्दों में लोक विधि वह विधि है जो राज्य एवं उसके अधीनस्थ नागरिकों के बीच के सम्बन्ध को अवधारित करती है.

लोक विधि के निर्धारण की कसौटी पक्षकारों के बीच का सम्बन्ध है. अगर विधि में एक पक्षकार राज्य है तो विधि लोक विधि होगी. यह सर्वसाधारण के लिये समान रूप से व्यवहुत की जाती है। आजकल जबकि राज्य कल्याणकारी राज्य में परिवर्तित हो गये हैं, लोक विधि का महत्व अधिक बढ़ गया है. इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से संवैधानिक विधि, प्रशासी विधि एवं दण्ड विधि आती है |

13. प्राइवेट या वैयक्तिक विधि

प्राइवेट या वैयक्तिक विधि क्या है? प्राइवेट विधि या वैयक्तिक विधि (Public Law) , विधि का वह भाग है जो व्यक्तियों के (सामान्य निजी हैसियत में) बीच के सम्बन्ध को अवधारित करती है. दूसरे शब्दों में, वैयक्तिक विधि के माध्यम से व्यक्तियों के बीच के पारस्परिक सम्बन्धों को निर्धारित किया जाता है. विवाह, उत्तराधिकार, संविदा आदि से सम्बन्धित विधियों को वैयक्तिक विधि के अन्तर्गत माना जाता है. इसके अन्तर्गत सम्पत्ति सम्बन्धी विधि, बाध्यता सम्बन्धी विधि तथा विधियों में परस्पर विरोध सम्बन्धी विधि भी आती है.

वैयक्तिक विधि में पक्षकार सामान्यतः व्यक्ति होते हैं और राज्य उसके न्याय प्रशासन सम्बन्धी कार्य के माध्यम से उनके बीच के विवादों का न्यायनिर्णयन (Adjudication) करती है. इस विधि में राज्य एक माध्यम होता है. कुछ ऐसे भी आधुनिक विधिशास्त्री हैं जो लोकविधि एवं वैयक्तिक विधि के अन्तर को स्वीकार नहीं करते, जैसे केल्सन एवं ड्यूगिट |

14. अन्तर्राष्ट्रीय विधि

अन्तर्राष्ट्रीय विधि क्या है? अन्तर्राष्ट्रीय विधि (International Law) से तात्पर्य उस विधि से है जो सामान्यतया राज्यों के बीच के पारस्परिक सम्बन्धों को, उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों का विनियमन और नियन्त्रण करती है. पर अब आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर कार्य करने वाली ऐसी अनेक संस्थायें हैं जिनके पारस्परिक सम्बन्ध अधिकारों एवं कर्तव्यों का विनियमन भी अन्तर्राष्ट्रीय विधि करती है.

पहले (परम्परागत अन्तर्राष्ट्रीय विधि में) राज्य ही अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विषयवस्तु माने जाते थे पर अब व्यक्ति भी कुछ सीमा तक अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विषय वस्तु माने जाते हैं. जिस सीमा तक व्यक्ति अन्तर्राष्ट्रीय विधि की विषयवस्तु बना है, उस सीमा तक उसे भी अन्तर्राष्ट्रीय विधि अधिकार प्रदान करती है (मानवाधिकार इसका सबसे अच्छा उदाहरण है) और उस पर कर्तव्य अधिरोपित करती है. अतः अन्तर्राष्ट्रीय विधि कुछ सीमा तक व्यक्ति के आचरण को भी विनियमित एवं नियन्त्रित करती है, तथा साथ ही साथ अन्तर्राष्ट्रीय विधि गैर राज्य इकाइयों के प्रति भी लागू होती है. इसीलिये स्टार्क’ ने अन्तर्राष्ट्रीय विधि को परिभाषित करते हुये कहा है कि-

यह नियमों का समूह है जो अधिकांशतः उन सिद्धान्तों एवं आचरण के नियमों से मिलकर बना है जिनका पालन करने के लिये राज्य अपने को बाध्य समझते हैं और इसीलिये सामान्यतया एक दूसरे के साथ अपने सम्बन्धों में पालन भी करते हैं और जिसमें निम्नलिखित भी आते हैं-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के क्रिया-कलाप से सम्बन्धी विधि, उनके बीच के आपसी सम्बन्ध, उनके एवं राज्यों के सम्बन्ध तथा उनके और व्यक्तियों के बीच के सम्बन्ध और
  2. व्यक्तियों एवं गैर राज्य इकाइयों से सम्बन्धी कतिपय नियम जहां तक कि ऐसे और गैर राज्य इकाइयों के अधिकार एवं कर्तव्य अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की दिलचस्पी या महत्त्व की विषय-वस्तु है |

15. नागरिक विधि

नागरिक विधि क्या है? नागरिक विधि (Civil Law) से तात्पर्य देश की विधि या राष्ट्रीय विधि या धरती की विधि से है. विधिशास्त्र में विधि शब्द का प्रयोग मुख्य रूप के इसी विधि के लिये किया जाता है. न्यायालय सामान्यतया नागरिक विधिवेत्ताओं की विधि होती है. देश का प्रशासन चलाने के लिये नागरिक विधि अपरिहार्य है |

विधि का वर्गीकरण

विभिन्न प्रकार की विधियों की विवेचना के पश्चात हम विधि का वर्गीकरण निम्न प्रकार से कर सकते हैं-

विधि को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय विधि, और
  2. राष्ट्रीय विधि.

अन्तर्राष्ट्रीय विधि दो प्रकार की होती है-

  1. सार्वजनिक या लोक अन्तर्राष्ट्रीय विधि और
  2. प्राइवेट अन्तर्राष्ट्रीय विधि.

राष्ट्रीय विधि को निम्न प्रकार बाँटा जा सकता है-

  1. लोक विधि, और
  2. प्राइवेट या वैयक्तिक विधि.

लोक विधि को मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. संवैधानिक विधि,
  2. प्रशासी विधि,
  3. दण्ड विधि (Criminal Law).

प्राइवेट विधि या वैयक्तिक विधि का विभाजन कई रूपों में किया जा सकता है, यथा-

  1. व्यक्ति सम्बन्धी विधि,
  2. सम्पत्ति सम्बन्धी विधि,
  3. बाध्यता सम्बन्धी विधि,
  4. विधियों का परस्पर विरोध सम्बन्धी विधि.

बाध्यता सम्बन्धी विधि का भी विभाजन किया गया है-

  1. संविदा सम्बन्धी विधि,
  2. संविदा कल्प या अर्थ-संविदा सम्बन्धी विधि |

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