वाद पत्र की परिभाषा | वाद पत्र में दिये जाने वाले विवरण एवं लौटाये जाने या अस्वीकृत किये जाने के आधार

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वाद पत्र की परिभाषा

वाद पत्र की परिभाषा

वाद पत्र क्या है? वाद पत्र एक कानूनी दस्तावेज होता है जो सिविल कोर्ट में किसी विवाद के मामले में प्रस्तुत किया जाता है. यह पत्र मामले की प्रारंभिक जानकारी, दावा, और जवाब को संकेतित करता है और कोर्ट को विवाद की विशेषता और प्रक्रिया के बारे में जानकारी प्रदान करता है. इसमें विवाद के पूर्व के और बाद के चरणों के बारे में भी विवरण होता है जो कोर्ट को मामले को सुनने और निर्णय देने में मदद करता है.

सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के तहत वाद पत्र की आवश्यकता होती है ताकि विवादों को कानूनी तरीके से समाधान किया जा सके और न्यायिक प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया जा सके. यह पत्र किसी व्यक्ति या व्यवसाय के द्वारा तैयार किया जाता है और इसमें किसी विवाद के समाधान की मांग की जाती है |

वाद पत्र में दिये जाने वाले विवरण

1. सामान्य विवरण

आदेश 7 नियम 1 के अनुसार, प्रत्येक वाद में निम्नलिखित विवरण दिये जाने चाहिए-

वाद पत्र के क्या-क्या विवरण होते हैं? न्यायालय का नाम, वादी का नाम, विवरण तथा निवासस्थान, प्रतिवादी का नाम तथा निवास स्थान, अवयस्कता या चित्तविकृतता की स्थिति तथा प्रभाव, वाद हेतु, न्यायालय का क्षेत्राधिकार, वादी द्वारा माँगा गया अनुतोष, मुजराई यदि हो तो राशि का उल्लेख, वाद मूल्य, न्यायालय की फीस शामिल होना चाहिए.

2. प्रतिवादी का हित तथा दायित्व

वादपत्र में यह दर्शाया जाना चाहिये कि प्रतिवादी वाद की विषय-वस्तु में हित रखता है या कि रखने का दावा करता है और वह वादी की माँग का उत्तर देने के लिये समाहूत किये जाने के दायित्याधीन है.

3. मर्यादा विधि के छूट के आधार

जहां वाद मर्यादा विधि द्वारा मियाद बाधित हो वहां वादपत्र में वह आधार दर्शाया जाना चाहिये जिस पर ऐसी विधि से छूट पाने का दावा किया गया हो.

4. उस अनुतोष का कथन जिसके लिये वादी विकल्प के रूप में दावा करता है

प्रत्येक वादपत्र में उस अनुतोष का विशिष्ट रूप में दावा करता है और यह आवश्यक नहीं होगा कि ऐसा कोई साधारण या अन्य अनुतोष माँगा जावे जैसा कि न्यायालय द्वारा ठीक ठहराये जाने पर सदा उसी विस्तार से तर्क ऐसे दिया जा सकता हो मानो कि वह माँगा गया हो, और यही नियम किसी ऐसे अनुतोष को भी लागू होगा जिसका दावा प्रतिवादी ने अपने जवाबदावा में किया हो.

5. पृथक् और सुभिन्न आधारों पर आधारित अनुतोष का कथन

जहां वादी पृथक और मुभिन्न आधारों पर सुन्नि दावों का बाद हेतुकों के बारे में अनुतोष चाहता है, वहीं वे यथासाध्य पृथक् पृथक् और मुभिन्न रूप से कथित किये जाने चाहिये |

विशिष्ट वादों में दिये जाने वाले विवरण

1. धन सम्बन्धी वादों में

वादी को अपने वाद में उन समस्त धनराशियों का ठीक-ठीक उल्लेख करना चाहिए जिन्हें यह प्रतिवादी से विभिन्न संव्यवहारों के तहत पाने का हक रखता है. जहां मूल्य निश्चित न हो वहां उचित राशि को मूल्य के रूप में उल्लेखित करना चाहिए.

2. जहां वाद की विषयवस्तु अचल सम्पत्ति हो

वादपत्र में ऐसी सम्पत्ति का ऐसा अभिवर्णन किया जाना चाहिये जो उसकी पहचान के लिये पर्याप्त हो और उस दशा में जिसमें ऐसी सम्पत्ति की पहचान भू-परिमाप या बन्दोबस्त सम्बन्धी अभिलेख की सीमाओं या संख्याओं के द्वारा की जा सकती हैं, ऐसी सीमाओं या संख्याओं का उल्लेख किया जाना चाहिये.

3. प्रतिनिधि वाद में

वादी को वाद पत्र में न केवल यह कि उसका विषय-वस्तु में वास्तविक विद्यमान हित है, बल्कि यह भी दर्शाना चाहिये कि वह उससे सम्बद्ध वाद दायर करने के लिये उसे समर्थ बनाने के लिये आवश्यक कदम भी (यदि कोई हो) उठा चुका है.

सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1999 के द्वारा यह प्रतिस्थापित किया गया है कि वादपत्र के साथ वादपत्र के तथ्यों को समर्पित करते हुये एक शपथ पत्र भी दिया जाना चाहिये. साथ ही वादपत्र के साथ उन समस्त दस्तावेजों को भी आवश्यक रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिये जिन पर वादपत्र आधारित है. जहां कोई दस्तावेज उसके कब्जे में नहीं है या उसकी शक्ति से बाहर है तब वह इसका उल्लेख करेगा कि वह किसके कब्जे या शक्ति में है.

जहां कोई दस्तावेज वादपत्र के साथ प्रस्तुत नहीं किया जाता है वहां उसे सुनवाई के दौरान साक्ष्य में ग्रहण नहीं किया जा सकेगा |

वाद पत्र लौटाये जाने या अस्वीकृत किये जाने के आधार

1. वाद पत्र का लौटाया जाना

सीपीसी आदेश 7, नियम 10 के अन्तर्गत न्यायालय किसी वादपत्र को, वाद के किसी भी प्रक्रम पर उस न्यायालय में पेश किये जाने के लिये वादी को लौटा देगा जिसमें वाद दायर किया जाना चाहिये था. अपील या पुनरीक्षण न्यायालय भी वाद में पारित की गई डिक्री को अपास्त करके इस संहिता के अधीन वादपत्र को लौटा दिये जाने का निदेश दे सकेगा.

न्यायिक निर्णय के अनुसार इस नियम के अन्तर्गत कोई वादपत्र केवल तभी लौटाया जा सकता है जब वह दूसरे न्यायालय, जिसमें वाद दायर किया जा सकता रहा हो, वादपत्र के दाखिल करने के समय पर विद्यमान रहा हो.

2. वाद पत्र के लौटा दिये जाने पर प्रकिया

CPC आदेश 7 के नियम 10 (a) के अनुसार, किसी वादपत्र को लौटाने पर न्यायाधीश उस पर उसके पेश किये जाने और लौटा दिये जाने की तारीख, पेश करने वाले पक्षकार का नाम और लौटाये जाने के कारणों का संक्षिप्त कथन पृष्ठांकित करेगा.

3. वाद पत्र का अस्वीकृत किया जाना

CPC आदेश 7, नियम 11 के अन्तर्गत, निम्नलिखित आधारों पर न्यायालय किसी वादपत्र को अस्वीकृत कर सकता है-

  1. जहां उससे वाद हेतु प्रकट नहीं होता हो,
  2. जहां दावाधीन अनुतोष का मूल्यांकन कम किया गया हो, और वादी ने मूल्यांकन की न्यायालय द्वारा नियत किये गये समय के अन्दर ठीक न किया हो,
  3. जहां वादपत्र अपर्याप्त मुद्रांकित पत्र पर लिखा गया हो और वादी ने न्यायालय द्वारा नियत समय के अन्दर अपेक्षित मुद्रांकित कागज दाखिल न किया हो,
  4. जहां वादपत्र के कथन से ही यह प्रतीत होता हो कि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है,
  5. जहां वादपत्र दो प्रतियों में पेश न किया गया हो,
  6. जहां वादी ने समन प्राप्त कराने की तिथि से दो दिन के भीतर उसके तामील कराने के लिए कोई कदम नहीं उठाया हो.

हरमन्स मेरिन्स लिमिटेड बनाम केमशोर मेरिटाईम पार्टनर्स, AIR 2016 N.O.C. 732 गुजरात के मामले में यह प्रतिपादित किया गया है कि विधि द्वारा वर्जित वादों को अस्वीकार किये जाने के संदर्भ में ‘विधि’ से अभिप्राय सांविधिक विधि के साथ-साथ न्यायाधीश द्वारा निर्मित विधि से भी है.

वादपत्र अस्वीकृत किये जाने पर प्रक्रिया

सीपीसी आदेश 7 नियम 12 के अनुसार, वादपत्र को अस्वीकृत करने पर न्यायाधीश उस प्रभाव को आदेश के कारणों सहित, अभिलेखित करेगा.

वादपत्र के अस्वीकृत हो जाने पर उसी वाद हेतु पर नये वाद का दायर किया जाना

CPC आदेश 7, नियम 13 के अनुसार, किसी वादपत्र से नियम 11 के अन्तर्गत, अस्वीकृत किये जाने का, स्वतः यह प्रभाव नहीं होगा कि वादी उसी वाद हेतु पर नया वादपत्र पेश करने से वंचित हो गया हो, अर्थात् वह उसी वाद हेतु पर नया वादपत्र पेश कर सकता है |

वाद पत्र से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

वाद पत्र क्या होता है?

वाद पत्र, भारतीय कानूनी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है जिसे किसी विधिक कार्रवाई के दौरान उपयोग किया जाता है. यह पत्र एक प्रकार की फिरोजा (लीगल नोटिस) की तरह होता है, जिसमें एक व्यक्ति अपने विधिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए अपना विचार व्यक्त करता है |

वाद पत्र क्यों आवश्यक होता है?

1. न्यायिक प्रक्रिया में निर्देशन

वाद पत्र, किसी व्यक्ति या उसके प्रतिष्ठान के वकील के द्वारा मामले की न्यायिक प्रक्रिया में मार्गदर्शन के रूप में प्रयुक्त होता है. इसके माध्यम से कोर्ट को यह जानकारी मिलती है कि मामले की विशेषता और न्यायिक प्रक्रिया के तहत कैसे आगे बढ़ना चाहिए.

2. आपत्तियों का समाधान

वाद पत्र के माध्यम से, व्यक्ति अपनी आपत्तियों का समाधान प्राप्त कर सकता है. यह उनके अधिकारों की रक्षा करने में मदद कर सकता है और न्यायिक प्रक्रिया को सुविधाजनक बना सकता है |

वाद पत्र कैसे तैयार करें?

1. वकील की सलाह

पहली कदम यह है कि आप एक वकील से सलाह लें. वकील आपको सही दिशा में मार्गदर्शन करेंगे और आपको वाद पत्र की आवश्यकता के बारे में स्पष्ट जानकारी देंगे.

2. प्रारूप और जानकारी

वाद पत्र का प्रारूप अवश्यकताओं के हिसाब से तैयार करें. आपको अपने मामले की विशेषता को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना होगा और आवश्यक जानकारी जैसे कि आपके वकील का नाम, मामले का विवरण, और अपने दावों का समर्थन करने के तरीके को शामिल करना होगा |

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