सीपीसी के तहत प्रथम अपील के सिद्धांत | सीपीसी में प्रथम अपील सम्बन्धी क्या प्रावधान हैं?

सीपीसी के तहत प्रथम अपील के सिद्धांत | सीपीसी में प्रथम अपील सम्बन्धी क्या प्रावधान हैं?

सीपीसी के तहत प्रथम अपील क्या है?

प्रथम अपील एक न्यायिक प्रक्रिया है जिसे किसी मुकदमे के फैसले के खिलाफ जब सजा या निर्णय दिया जाता है, तो व्यक्ति या संगठन द्वारा की जाती है. यह एक उच्चतम न्यायिक प्राधिकृति की ओर बढ़ने का प्रयास होता है जिसमें मुकदमे की फैसले को पुनर्विचार किया जाता है. यह प्रक्रिया सुनवाई की जाने वाली प्राधिकृति के न्यायिक प्राधिकृति के खिलाफ जाने के रूप में भी जानी जाती है.

प्रथम अपील का मतलब होता है कि जब कोई व्यक्ति या संगठन मुकदमे के पहले न्यायिक फैसले से संतुष्ट नहीं होते हैं, तो वे उच्चतम न्यायिक प्राधिकृति में जाकर फैसले की पुनर्विचार की मांग कर सकते हैं. इस प्रक्रिया में वे अपने पक्ष की यथासंभाव सुनवाई कराने की कोशिश करते हैं ताकि उनके हितों की सुरक्षा हो सके.

प्रथम अपील का परिणाम विभिन्न कारणों पर निर्भर कर सकता है, और यह एक उच्चतम न्यायिक प्राधिकृति के जज या पैनल के द्वारा दिया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य न्यायिक गड़बड़ी को सुधारना और न्यायिक प्रक्रिया की सटीकता और न्यायिक निर्णय की गुणवत्ता को बनाए रखना होता है |

प्रत्येक मूल डिक्री की अपील होगी

किसी न्यायालय द्वारा अपने प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के प्रयोग में, पारित की गई प्रत्येक डिक्री से, प्राधिकृत अपील न्यायालय में अपील करने का अधिकार देती है, अपील का अधिकार मुकदमेबाजी से सम्बद्ध कोई प्राकृतिक या अन्तर्निहित अधिकार नहीं है अपितु यह संविधि द्वारा या संविधि का बल रखने वाले नियमों द्वारा प्रदान किया जाता है. CPC की धारा 96 से 99 तक में एवं आदेश 41 में अपील के सम्बन्ध में उपबन्ध किया गया है, अपील के अधिकार मौलिक अधिकार हैं, केवल प्रक्रिया के विषय नहीं.

कब अपील नहीं हो सकती है?

निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी डिक्री या आदेश की अपील नहीं हो सकती है-

  1. जहां न्यायालय द्वारा कोई आज्ञप्ति पक्षकार की सहमति (Consent) से पारित की गयी हो,
  2. जहां पक्षकारों के मध्य किसी आज्ञप्ति या आदेश से अपील न करने का विधिपूर्ण प्रतिफल के बदले मान्य करार विद्यमान हो,
  3. जहां इस संहिता द्वारा या अन्य विधि द्वारा अपील वर्जित (Prohibited) किया गया हो,
  4. जहां अपील के लिए प्राधिकृत समय बीत गया हो और अपील न की गई हो तो विबन्ध के आधार पर अपील नहीं की जा सकती है, लघुवाद न्यायालयों द्वारा संज्ञान योग्य ऐसे मामलों की अपील नहीं होगी जिनमें विधि का प्रश्न (Question of Law) विवादित न हो, परन्तु सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1999 के द्वारा यह जोड़ा गया है कि वहां अपील नहीं हो सकेगी जहां कि वस्तु का मूल्यांकन 10,000 रुपये से अधिक नहीं है.

एकपक्षीय मूल डिक्री से अपील

CPC की धारा 96 (2) के अनुसार, एकपक्षीय पारित मूल डिक्री के विरुद्ध अपील की जा सकती है, क्योंकि ऐसी डिक्री, धारा 2 (2) में उपबन्धित डिक्री की परिभाषा के अन्दर डिक्री होती है।

पक्षकारों की सम्मति से पारित डिक्री की अपील

ऐसी अपील, धारा 96 (3) के अन्तर्गत वर्जित है. ऐसी अपील नहीं हो सकती है. घोषणा एवं आनुषंगिक अनुतोष के मामले में पारित डिक्री अपील योग्य है.

मामला, जारुल इस्लाम बनाम स्टेट आफ आसाम, (AIR 2016 गुवाहाटी 169)

अपील कौन कर सकता है?

निम्नलिखित व्यक्ति अपील कर सकते हैं-

  1. वाद का ऐसा कोई पक्षकार जिस पर उस डिक्री का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा हो,
  2. ऐसे पक्षकार की मृत्यु पर उसका वैध प्रतिनिधि,
  3. ऐसे पक्षकार के हित का कोई अन्तिरिती,
  4. कोई नीलामी क्रेता.

अपील की प्रक्रिया

CPC के आदेश 41 में अपील के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है-

  1. अपील उचित प्रारूप पर अपीलकर्त्ता या उसके अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित होगी. अपील के ज्ञापन के साथ उस डिक्री को भी प्रस्तुत किया जायेगा जिसके विरुद्ध अपील की जा रही है.
  2. अपील का ज्ञापन अलग-अलग शीर्षकों के अन्तर्गत विभाजित होगा। ज्ञापन में उन आधारों का उल्लेख किया जायेगा जिन पर अपील की गयी है.
  3. न्यायालय अपील के ज्ञापन को उस समय अस्वीकृत कर सकेगा जबकि वह उचित रूप से उचित शुल्क के साथ प्रस्तुत नहीं किया गया है.
  4. अपील को प्रस्तुत किये जाने के बाद पक्षकार निष्पादन जैसी कार्यवाहियों पर स्थगन प्राप्त कर सकता है.
  5. न्यायालय अपील को निम्नलिखित अवस्थाओं में खारिज कर सकता है-
    • जबकि सुनवाई की नियत तिथि को अपीलकर्त्ता उपस्थित नहीं होता है,
    • जहां कि अपीलकर्त्ता आदेशिका शुल्क प्रस्तुत नहीं करता है.
  6. अपील पर पूर्ण सुनवाई होने के बाद न्यायालय उस पर निर्णय देता है.

मामला, राजस्थान राज्य बनाम हरफूल सिंह, (2000) 5 SCC 625 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि प्रथम अपील की सुनवाई के मामले में न्यायालय का कर्तव्य है कि वह मामले का पूरा आलोचनात्मक विश्लेषण करे. प्रथम अपील का निपटारा बिना मस्तिष्क का प्रयोग किये मशीनरी रूप से नहीं किया जा सकता है.

अपील में अतिरिक्त साक्ष्य

CPC आदेश 41 नियम 27 के प्रावधानों के तहत अपील में अतिरिक्त साक्ष्य को तभी लिया जा सकता है जब कि प्रार्थी यह समाधान कर दे कि-

  1. वह साक्ष्य, सम्यक तत्परता बरती जाने पर भी विचारण के दौरान प्राप्त नहीं हो पाया था.
  2. साक्ष्य विश्वसनीय तथा मामले के निपटारे के लिये सारवान है |

Leave a Comment