पुनरीक्षण की परिभाषा, प्रक्रिया एवं न्यायालय की पुनरीक्षण की शक्तियां?

पुनरीक्षण की परिभाषा, प्रक्रिया एवं न्यायालय की पुनरीक्षण की शक्तियां?

पुनरीक्षण की परिभाषा

किसी मामले में चाहे वह लम्बित हो या निर्णीत किया जा चुका हो उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा किसी अधीनस्थ न्यायालय द्वारा की जाने वाली कार्यवाही या दिये ज जाने वाले निर्णय या दण्डादेश की शुद्धता या वैधता या औचित्य की जांच करना पुनरीक्षण कहलाता है |

पुनरीक्षण की प्रक्रिया क्या है?

दण्ड प्रक्रिया संहिता में पुनरीक्षण की शक्ति केवल उच्च न्यायालय द्वारा या सेशन न्यायालय को ही दी गई है. CrPC की धारा 397 से 405 तक में पुनरीक्षण सम्बन्धी व्यवस्था की गई है.

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1. पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए अभिलेख मंगाना

CrPC की धारा 397 के अनुसार, पुनरीक्षण शक्तियों के अन्तर्गत उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय अपने स्थानीय क्षेत्राधिकार के किसी अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के अभिलेख की शुद्धता, वैधता और औचित्य के बारे में या किसी निर्णय, आदेश या दण्डादेश की शुद्धता या नियमितता के बारे में अपना समाधान करने के प्रयोजन से मँगा सकेगा या उसकी परीक्षा कर सकेगा.

जब न्यायालय ऐसा अभिलेख अपने समक्ष मँगाता है, तब वह उस अधीनस्थ न्यायालय को यह निर्देश दे सकेगा कि जब तक अभिलेख की परीक्षा न हो जाये, तब तक के लिये-

  1. दण्डादेश का निष्पादन निलम्बित किया जाए,
  2. परिरुद्ध व्यक्ति को जमानत पर या व्यक्तिगत बन्धपत्र पर छोड़ दिया जाये।

इस प्रकार CrPC की धारा 397 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय को पुनरीक्षण का विस्तृत क्षेत्राधिकार प्राप्त है. आवेदन कर्ता द्वारा सेशन न्यायालय के समक्ष कार्यवाही किये बिना प्रत्यक्ष रूप से उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण के लिये आवेदन किये जाने पर उस पर उच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई किया जाना अवैधानिक नहीं होगा. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग अन्तर्वती आदेशों की बाबत नहीं किया जा सकेगा.

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2. अतिरिक्त जाँच किया जाना

CrPC की धारा 398 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को-

  1. किसी अभिलेख की धारा 397 के अन्तर्गत परीक्षा करने पर,
  2. उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्देश दे सकता है. कि किसी ऐसे परिवाद को जो धारा 203 या धारा 204 की उपधारा (4) के अन्तर्गत खारिज कर दिया गया हो,
  3. अभियुक्त को जिसे उन्मोचित कर दिया गया हो, की अतिरिक्त जाँच स्वयं या अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसा करने के लिये निर्देश दे सकेगा।

लेकिन यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि कोई न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति के मामले में जो उन्मोचित कर दिया गया हो, इस धारा के अन्तर्गत जाँच या निर्देश उसी दशा में दे सकेगा जब इस बात का कारण दर्शित करने का उसे अवसर मिल चुका हो, अन्यथा नहीं |

सेशन एवं अपर न्यायालय की पुनरीक्षण की शक्तियां?

जब सेशन न्यायाधीश स्वयं किसी कार्यवाही में के अभिलेख को अपने पास मँगाता है तब यह न्यायाधीश उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जिनका धारा 401 की उपधारा (1) के अन्तर्गत उच्च न्यायालय प्रयोग कर सकता है. यदि ऐसा मामला अपर सेशन न्यायाधीश को हस्तान्तरित कर दिया जाता है तो उस पर भी यही बात लागू होगी. लेकिन यदि उसे मामला हस्तान्तरित नहीं किया जाता है तो वह उस मामले के सम्बन्ध में निदेश करने के लिये सक्षम नहीं होगा.

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जहाँ किसी व्यक्ति द्वारा सेशन न्यायालय में पुनरीक्षण के लिये आवेदन किया जाता है तो वहां सेशन न्यायालय का विनिश्चय अंतिम माना जायेगा एवं ऐसे व्यक्ति की प्रेरणा पर पुनरीक्षण के रूप में उच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय में कोई कार्यवाही ग्रहण नहीं की जायेगी |

उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण की शक्तियाँ?

CrPC की धारा 401 उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण की शक्तियों का उल्लेख करती है. इसके अनुसार जब उच्च न्यायालय किसी मामले की कार्यवाही के अभिलेख को अपने पास मँगाता है या उसे अन्यथा ज्ञात होता है तो ऐसी दशा में वह धारा 386, 389, 390 और 391 द्वारा किसी अपील न्यायालय को प्रदत्त शक्तियों का या धारा 307 द्वारा किसी सेशन न्यायालय को प्रदत्त शक्तियों का अपने विवेकानुसार प्रयोग कर सकेगा।

इस प्रकार पुनरीक्षण के दौरान सामान्यतः उच्च न्यायालय उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है जिनका कि एक अपील न्यायालय द्वारा किया जाता है.

विवेक राय बनाम हाई कोर्ट ऑफ झारखण्ड (AIR 2015 SC 1088) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि उच्च न्यायालय नियमों के अन्तर्गत पुनरीक्षण की सुनवाई के दौरान दोषसिद्ध व्यक्ति को न्यायालय की अभिरक्षा में समर्पित करने का आदेश दिया जाना संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 का अतिक्रमण नहीं है.

कोई बात उच्च न्यायालय को दोषमुक्ति के निष्कर्ष को दोषसिद्धि के निष्कर्ष में संपरिवर्तित करने वाली न समझी जायेगी। पुनरीक्षण केवल ऐसे मामलों में किया जा सकता है जिनके विरुद्ध अपील नहीं होती है.

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1. पक्षकारों को सुनवाई का अवसर दिया जाना

CrPC की धारा 403 पुनरीक्षण न्यायालय को यह विकल्प प्रदान करती है कि वह अपने समक्ष किसी पक्षकार को सुने जाने का अवसर प्रदान करे या नहीं. पुनरीक्षण के दौरान सदा ही किसी पक्षकार को सुनवाई का अवसर दिया जाना आवश्यक नहीं है और ऐसा नहीं किये जाने से प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों का किसी प्रकार से उल्लंघन हीं माना जाता.

लेकिन यदि पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा दिया जाने वाला आदेश ऐसा हो जो अभियुक्त या किसी अन्य व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला हो तो ऐसा आदेश तब तक नहीं दिया जब तक कि उसे स्वयं या अपने अधिवक्ता के द्वारा प्रतिरक्षा किये जाने एवं सुनवाई का अवसर नहीं दे दिया जाता |

अपील एवं पुनरीक्षण में अंतर?

  1. अपील (Appeal) एक विधिक अधिकार है. कोई भी व्यक्ति विधि या तथ्य के किसी प्रश्न पर अपील कर सकता है, जबकि पुनरीक्षण (Revision) न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति है. न्यायालय अपनी इस शक्ति का प्रयोग कर भी सकता है और नहीं भी। पुनरीक्षण के अन्तर्गत केवल न्यायालय का ध्यान केन्द्रित किये जाने का अधिकार है.
  2. अपील विधि एवं तथ्य के किसी भी प्रश्न पर की जा सकती है, जबकि पुनरीक्षण सामान्यतः विधि के प्रश्न पर ही किया जाता है किन्हीं विशेष परिस्थितियों में यह तथ्य के प्रश्न पर भी किया जा सकता है.
  3. अपील में अपीलकर्त्ता द्वारा प्रस्तुत कथनों को सुना जाना आवश्यक है, जबकि पुनरीक्षण में यह आवश्यक नहीं है.
  4. अपील में उच्च न्यायालय द्वारा न तो दण्डादेश में वृद्धि की जा सकती है और न ही क्षमा प्रदान की जा सकती है, जबकि पुनरीक्षण में दोनों ही बातें की जा सकती हैं.
  5. उच्च न्यायालय अपील के अन्तर्गत उन्मोचन को दोषसिद्धि में परिवर्तित कर सकता है, जबकि पुनरीक्षण में ऐसा नहीं किया जा सकता है.
  6. आपराधिक अपोलों में हस्तक्षेप करने की न्यायालय की शक्तियाँ विस्तृत हैं. आपराधिक मामलों में अभियुक्त की दोषसिद्धि से सन्तुष्ट नहीं होने पर उच्च न्यायालय उसमें हस्तक्षेप कर सकता है, जबकि पुनरीक्षण में न्यायालय की यह शक्ति अत्यन्त सीमित है.
  7. अपील में केवल एक ही प्रक्रिया होती है, जबकि पुनरीक्षण में दो स्तरों पर प्रक्रिया होती है प्रारम्भिक एवं अन्तिम |

पुनरीक्षण एवं निर्देश में अंतर?

पुनरीक्षण निर्देश से अलग होता है. निर्देश में किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम की विधिमान्यता के सम्बन्ध में प्रश्न अन्तर्ग्रस्त होता है जबकि पुनरीक्षण में किसी अभिलेख, निर्णय या दण्डादेश की शुद्धता, वैधता या औचित्य के सम्बन्ध में प्रश्न अन्तर्ग्रस्त होता है पुनरीक्षण लम्बित मामलों एवं निर्णीत मामलों दोनों में किया जा सकता है जबकि निर्देश सिर्फ लम्बित मामलों में ही किया जा सकता है. निर्देश सिर्फ उच्च न्यायालय को ही किया जा सकता है जबकि पुनरीक्षण सेशन न्यायालय एवं उच्च न्यायालय दोनों में किया जा सकता है |

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