अंशों की जब्ती कब की जा सकती है? इसकी क्या प्रक्रिया है?

अंशों की जब्ती क्या है?

अंशों की जब्ती क्या है?

कम्पनी के प्रत्येक अंशधारी का यह कर्तव्य है कि वह समय पर मांग की राशि का भुगतान करे. यदि कोई अंशधारी मांग की राशि का भुगतान करने में विफल रहता है तो कम्पनी के द्वारा उसके विरुद्ध समुचित कार्यवाही की जा सकती है. ऐसी कार्यवाही में अंशों की जब्ती भी एक है.

सामान्यतः प्रत्येक कम्पनी के संगम अनुच्छेदों में अंशों या शेयरों की जब्ती (Forfeiture Of Shares) के बारे में प्रावधान किया जाता है. संगम अनुच्छेदों में प्रावधानों के अभाव में अंशों की जब्ती नहीं की जा सकती है.

माधव रामचन्द्र कामथ बनाम केनरा बैंकिंग कारपोरेशन (AIR, 1941 मद्रास 354) के मामले में भी यह अभिनिर्धारित किया गया है कि अंशों की जब्ती के लिए संगम अनुच्छेदों में स्पष्ट प्रावधान होना चाहिये.

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जब कम्पनी का कोई अंशधारी मांग पर अथवा मांग की अवधि तक अंशों की राशि का भुगतान नहीं करता है तो निदेशक बोर्ड द्वारा ऐसे अंशधारी को इस आशय का नोटिस दिया जायेगा कि वह-

  1. एक निश्चित तिथि तक बकाया राशि का भुगतान करें,
  2. उसके अंशों को जब्त कर लिया जायेगा यदि ऐसे नोटिस की प्राप्ति के दो सप्ताह के भीतर मांग की राशि का संदाय या भुगतान नहीं किया जाता है तो निदेशक बोर्ड द्वारा अंशों की जब्ती का निर्णय लिया जा सकेगा.
  3. ऐसा निर्णय लिये जाने की तारीख से ही सम्बन्धित अंश जब्त किये गये समझे जायेंगे तथा अंशों के रजिस्टर से ऐसे अंशधारी का नाम हटा दिया जायेगा. इसकी सूचना सम्बन्धित अंशधारी को दी जायेगी.

काशीराम बनाम किशोर चन्द्र (AIR, 1915 लाहौर 100) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि अंशों की जब्ती निदेशक बोर्ड द्वारा समुचित रूप से, पर्याप्त कोरम द्वारा, सही उद्देश्यों के लिए की जानी चाहिये. साथ ही इस शक्ति का प्रयोग सदभावपूर्वक किया जाना चाहिए क्योंकि इस शक्ति के प्रयोग की कठोरता से जाँच की जानी है.

मांग पर राशि का भुगतान न किये जाने के अलावा अन्य कारणों से भी अंशों की जब्ती की जा सकती है, जैसे कम्पनी के सदस्यों के आपसी सम्बन्ध बिगड़ जाना.

इस प्रकार अंशों की जब्ती दो परिस्थितियों में की जा सकती है-

  1. मांग पर बकाया राशि के जमा नहीं कराये जाने पर,
  2. कम्पनी के सदस्यों के आपसी सम्बन्ध बिगड़ जाने पर |

अंशों की जब्ती की प्रक्रिया?

अंशों की जब्ती की अपनी प्रक्रिया है या यों कह सकते हैं कि विधिमान्य जब्ती की कुछ शर्तें हैं जिन्हें पूरा किया जाना या जिनका पूरा होना आवश्यक है यह शर्तें निम्नांकित हैं-

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1. संगम अनुच्छेदों में प्रावधान होना

जैसा कि ऊपर कहा गया है अंशों की जब्ती केवल तभी की जा सकती है जब संगम अनुच्छेदों में तत्सम्बन्धी प्रावधान हो। अर्थात अंशों की जब्ती के लिए निदेशक बोर्ड को प्राधिकृत किया गया हो.

2. जब्ती की पूर्व सूचना

अंशों की जब्ती से पूर्व अंशधारक को विधिवत सूचना दिया जाना आवश्यक है. सूचना दिये बिना अंशों की जब्ती नहीं की जा सकती. ऐसी सूचना कम से कम 14 दिन की समयावधि में दी जानी अपेक्षित है.

पब्लिक पैसेन्जर सर्विस बनाम MA कादर, AIR 1966 SC 489) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि पूर्व सूचना दिया जाना अंशों की जब्ती की एक पूर्ववर्ती शर्त है. इसके अभाव में की गई जब्ती अवैध मानी जायेगी. फिर सूचना का सावधानी पूर्वक दिया जाना अपेक्षित है. छोटी से छोटी गलती सूचना की अवैध बना सकती है.

जब्ती का संकल्प अंशों की जब्ती के लिए संकल्प (Resolution) पारित किया जाना आवश्यक है. ऐसे संकल्प के अभाव में अंशधारी कम्पनी का सदस्य बना रहेगा.

पर्याम प्रसाद बनाम गया बैंक (AIR1931 पटना 44) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि सूचना के बाद निदेशकों द्वारा संकल्प पारित किये बिना अंशों की जब्ती किया जाना अवैध है.

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3. सद्भाव का होना

अंशों की जब्ती के अधिकार का प्रयोग-

  1. सदभावपूर्वक एवं
  2. कम्पनी के हित में, किया जाना चाहिये।

‘इन रि एस्पार्टी टेडिंग कम्पनी’ (1879) 12 चासंरी डिवीजन 791 के मामले में यह प्रतिपादित किया गया है कि-

  1. जब्ती के अधिकार का प्रयोग सदभावपूर्वक किया जाना चाहिये।
  2. कम्पनी के हित में किया जाना चाहिये।
  3. कपटपूर्वक नहीं किया जाना चाहिये, तथा
  4. केवल अंशधारक को दायित्व से मुक्त करने के लिए नहीं किया जाना चाहिये।

4. जब्ती के परिणाम

अंशों की जब्ती के निम्नांकित परिणाम होते हैं-

  1. अंशों की जब्ती के साथ ही अंशधारी की कम्पनी की सदस्यता समाप्त हो जाती है.
  2. अंशधारी का जब्त किये गये अंशों पर स्वामित्व समाप्त हो जाता है.
  3. जिस अंशधारी के अंश जब्त किये जाते हैं उसके जब्ती के पश्चात के अधिकार एवं दायित्व संगम अनुच्छेदों पर निर्भर करते हैं. यदि संगम अनुच्छेदों में यह प्रावधान रखा जाता है कि जब्ती के बाद भी अंशधारी अंशों के मूल्य का संदाय या भुगतान करने के लिए आबद्ध होगा, तब वह कम्पनी का ऋणी हो जायेगा, अंशधारी नहीं रहेगा।
  4. जब्त किये गये अंशों के विक्रय से प्राप्त राशि यदि मांग की राशि से अधिक होती है. तो वह अधिक राशि अंशधारी को लौटा दी जायेगी।
  5. अंशधारी के अंश जब्त कर लिये जाने पर ऐसा प्रतिभू अपने दायित्व से मुक्त हो जायेगा जिसने माँग धन के भुगतान के लिए प्रत्याभूति दी है.
  6. यदि जब्ती दुर्भावनापूर्ण अन्यायपूर्ण अथवा अवैध पाई जाती है तो ऐसी जब्ती को निरस्त करने तथा क्षतिपूर्ति पाने की कार्यवाही की जा सकेगी |

जब्त किये गये अंशों का पुनर्निर्गमन

जब्त किये गये अंशों के सम्बन्ध में एक प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसे अंशों का पुनर्निर्गमन (Re-issue) किया जा सकता है? इसका उत्तर सकारात्मक दिया गया है अर्थात जब्त किये गये अंश कम्पनी की सम्पत्ति हो जाती है और ऐसी दशा में कम्पनी द्वारा ऐसे जब्त किये गये अंशों का पुनर्निर्गमन किया जा सकता है.

इन रि कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज एसोसियेशन (AIR 1957 कलकत्ता 438) के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब्त किये गये अंश कम्पनी की सम्पत्ति हो जाते हैं. उस सीमा तक जब्ती से कम्पनी की अंश पूँजी घट जाती है. कम्पनी द्वारा ऐसे अंशों को पुनः जारी किया जा सकता है, लेकिन उसे आवंटन नहीं कहा जा सकता. अंशों का निरस्तीकरण भी अधिनियम के उपबंधों के अनुसार ही किया जा सकेगा, अन्यथा नहीं |

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