CrPC के तहत पत्नी एवं माता-पिता के भरण-पोषण के लिए क्या उपबन्ध हैं?

CrPC के तहत पत्नी एवं माता-पिता के भरण-पोषण के लिए क्या उपबन्ध हैं?

भरण-पोषण की मांग कौन कर सकता है?

CrPC की धारा 125 (1) के अनुसार, पर्याप्त साधनों वाले व्यक्ति से निम्नलिखित व्यक्ति भरण-पोषण के लिए हकदार हैं-

  • पत्नी जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो.

एक मामले में उच्चतम न्यायालय (SC) द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि पत्नी के भरण-पोषण के मामलों में पत्नी का भरण-पोषण करने में असमर्थ होना पूर्ववर्ती शर्त है.

  • अवयस्क सन्तान, चाहे वह धर्मज या अधर्मज अथवा विवाहित हो या अविवाहित जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो.
  • विवाहित पुत्री से अन्यथा ऐसी धर्मज या अधर्मज सन्तान जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली हो, लेकिन वह शारीरिक या मानसिक दुर्बलता के कारण भरण-पोषण करने में असमर्थ है.
  • माता-पिता जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं.
  • ऐसी अवयस्क विवाहिता पुत्री, जो अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ है |

पत्नी का भरण-पोषण

CrPC की धारा 125 के लिए ‘पत्नी’ पद के अन्तर्गत वयस्क तथा अवयस्क दोनों ही शामिल है तथा इसमें ऐसी पत्नी भी शामिल है जिसे पति ने तलाक दे दिया हो या जिसने पति से तलाक ले लिया जो किन्तु पुनर्विवाह नहीं किया हो पत्नी का आशय उसी महिला से है जिसका वैधानिक रीति से विवाह हुआ हो. शब्द पत्नी से अभिप्राय यहां विधिवत विवाहित पत्नी (legally wedded wife) से है.

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एक वाद में उच्चतम न्यायालय (SC) ने यह अभिनिर्धारित किया कि शब्द ‘पत्नी’ से अभिप्राय विधितया विवाहित पत्नी से है न कि ऐसी पत्नी जिसका विवाह प्रथमदृष्ट्या अकृत (null) तथा शून्य (void) है.

इस धारा में पत्नी को परिभाषित करने के लिये स्पष्टीकरण भी जोड़ दिया गया है. स्पष्टीकरण के अनुसार, पत्नी ऐसी स्त्री भी है जिसके पति ने उससे विवाह विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है और जिसने पुनर्विवाह नहीं किया है. परन्तु मुस्लिम स्त्री (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत मुस्लिम स्त्री तलाक के पश्चात अपने पूर्व पति से इद्दत की अवधि तक के लिये ही भरण-पोषण की हकदार है तथा मुस्लिम पति तलाक के पश्चात अपनी प्रथम पत्नी का भरण-पोषण करने का जिम्मेदार नहीं है.

CrPC की धारा 125 (4), एक मुसलमान पत्नी जो कि अपने पति द्वारा तलाक दे दी गई है, के प्रति प्रयोज्यता एक साधारण कारण से नहीं रखती है क्योंकि तलाकशुदा पत्नी के लिए यह नहीं कहा जा सकता है कि वह जारता (adultery) करती है चाहे वह स्पष्ट रूप से अन्य व्यक्तियों के साथ सम्भोग करती पाई जाये. उक्त धारा में पत्नी शब्द का अर्थ ऐसी महिला से है जिसका वैवाहिक सम्बन्ध बना है और तलाकशुदा महिला धारा 125 (4) के अंतर्गत नहीं आती है.

परन्तु यदि एक तलाकशुदा स्त्री व उसका प्रथम पति न्यायालय में शपथ-पत्र या निर्धारित फार्म में घोषणा दाखिल करते हैं. कि वे CrPC की धारा 125 से 128 के उपबन्धों से अधिशासित होना चाहते हैं तो मजिस्ट्रेट ऐसे प्रार्थना-पत्र का विचारण करके निर्णय दे सकता है.

एक के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि जहां पति तथा पत्नी में हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत विवाह विच्छेद हो गया है वहां पत्नी CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए पत्नी रहेगी.

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वहीं एक और मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि जहां आवेदक की प्रथम पत्नी जीवित हो तथा उसके साथ उसका विवाह, विवाह विच्छेद या अन्य प्रकार से शून्य न हुआ हो वहां आवेदक की द्वितीय पत्नी के भरण-पोषण की हकदार नहीं है |

मुस्लिम तलाकशुदा पत्नी की स्थिति

मोहम्मद अहमद हुसैन बनाम शाहबानो के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि मुस्लिम तलाकशुदा पत्नी CrPC की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की राशि प्राप्त कर सकती है क्योंकि धारा 125 की प्रकृति धर्मनिरपेक्ष है.

वहीं शमीम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत किया गया कि मुस्लिम विधि में भरण-पोषण का दायित्व, तलाक के लिये एक आवश्यक तत्व है. न्यायालय ने आगे अभिनिर्धारित किया कि लिखित कथन में तलाक को उल्लेखित करने मात्र से ही तलाक नहीं होता है, इसे साबित करना पड़ता है तथा लिखित कथन में तलाक को उल्लेखित करने के बाद से ही भरण-पोषण का अधिकार समाप्त नहीं हो जाता है. वह तलाक के बाद भी विद्यमान रहता है |

धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतानों का भरण-पोषण

प्रत्येक व्यक्ति अपनी धर्मज एवं अधर्मज अवयस्क संतानों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है. परन्तु सौतेला पिता अपनी सौतेली संतानों का भरण-पोषण करने के लिए उत्तरदायी नहीं है. अवयस्क संतानें यदि विवाहित हैं तो भी उनका भरण-पोषण करने का दायित्व माता-पिता पर होता है |

अवयस्क विवाहिता पुत्री का भरण-पोषण

यदि कोई अवयस्क विवाहिता पुत्री अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ है तो वह माता-पिता से भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है |

माता-पिता का भरण-पोषण

इस धारा के तहत प्रत्येक व्यक्ति को अपने माता-पिता के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी बनाया गया है. माता-पिता पदावली में सौतेले तथा दत्तक माता-पिता को शामिल माना गया है. लेकिन इसमें ‘सास-ससुर सम्मिलित नहीं हैं.

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एक मामले में गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि CrPC की धारा 125 में प्रयुक्त शब्द माता-पिता से अभिप्राय प्राकृतिक माता-पिता से है. सास-ससुर से नहीं |

क्या पुत्री माता-पिता के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी है?

एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि पुत्री चाहे विवाहिता हो या अविवाहिता, यदि पर्याप्त साधनों के साथ अच्छी आय अर्जित कर रही है तो वह अपने माता-पिता के भरण-पोषण के लिए CrPC की धारा 125 के तहत दायित्वाधीन होगी |

मजिस्ट्रेट कब भरण-पोषण या अन्तरिम (Interim) भरण-पोषण या वाद प्रक्रिया खर्च का आदेश दे सकेगा

यदि कोई व्यक्ति उपर्युक्त व्यक्तियों के भरण-पोषण की उपेक्षा करता है या भरण-पोषण से इन्कार करता है और प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ऐसे तथ्य से आश्वस्त हो जाता है तो ऐसे उपेक्षा करने वाले व्यक्ति को अपने माता-पिता, पत्नी या अवयस्क बच्चों का भरण-पोषण या अन्तरिम भरण-पोषण या प्रक्रिया खर्च का आदेश दे सकेगा.

केन्द्र में संसद द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2001 पारित कर भरण-पोषण या अन्तरिम भरण-पोषण या प्रक्रिया खर्च के लिए तय की जाने वाली मासिक राशि के सम्बन्ध में यह निर्धारित किया गया है कि मजिस्ट्रेट जैसा उचित समझे उसी मासिक दर से भरण-पोषण या अन्तरिम भरण-पोषण की राशि का निर्धारण कर सकता है. इस संशोधन से पहले यह राशि 500 रुपये मासिक तक निर्धारित की जा सकती थी. परन्तु अब यह असीमित है अर्थात इतनी धनराशि जितना मजिस्ट्रेट युक्तियुक्त समझे |

भरण-पोषण या अन्तरिम भरण-पोषण की राशि कब देय होगी

CrPC की धारा 125 (2) के अनुसार, भरण-पोषण या अन्तरिम भरण-पोषण या वाद प्रक्रिया खर्च की राशि या तो आदेश के दिनांक से, या आवेदन के दिनांक से देय होगी.

मजिस्ट्रेट भरण-पोषण या अन्तरिम भरण-पोषण के आवेदन-पत्र का निराकरण आवेदक पर ऐसी सूचना की तामील होने के 60 दिन के भीतर करेगा. इस प्रावधान को दण्ड प्रक्रिया (संशोधन) अधिनियम, 2001 के द्वारा जोड़ा गया है.

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एक मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि भरण-पोषण का आदेश चाहे आवेदन की तारीख से किया जाये या आदेश की तारीख से, उसके कारणों का उल्लेख किया जाना चाहिये |

भरण-पोषण के आदेश का अनुपालन नहीं किये जाने पर प्रक्रिया

CrPC की धारा 125 (3) के अनुसार, यदि कोई मजिस्ट्रेट के ऐसे आदेश को बिना युक्तियुक्त कारण के पालन करने में चूक करता है तो मजिस्ट्रेट वारण्ट जारी कर सकेगा और उसे एक माह तक के लिये एवं यदि वह इससे पूर्व भरण-पोषण की राशि का भुगतान कर दे तो भुगतान की तिथि तक के लिये कारावास से दण्डित कर सकेगा. यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को अपने साथ रहने की पेशकश करे और न्यायालय को यह युक्तियुक्त लगे तो वह इस पर विचार कर सकेगा. लेकिन पत्नी ऐसे प्रस्ताव को मानने के लिए बाध्य नहीं है. वह युक्तियुक्त कारणों के आधार पर उसके साथ रहने से इन्कार कर सकती है. ऐसे युक्तियुक्त कारण निम्नलिखित हो सकते हैं-

  1. यदि पति ने किसी अन्य स्त्री से विवाह कर लिया हो,
  2. वह अपने साथ रखैल रखता हो,
  3. जहां पति नपुंसक हो,
  4. जहां पत्नी को यह आशंका हो कि दहेज की मांग को लेकर पति और उसके माता- पिता एवं रिश्तेदारों द्वारा उसे शारीरिक कष्ट दिया जायेगा.

एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने निम्नांकित कारणों को युक्तियुक्त (reasonable) मानते हुए यह अभिनिर्धारित किया है कि पत्नी अपने पति से पृथक रहते हुए भरण-पोषण की हकदार है. जहां पति नपुंसक हो, या नहीं पत्नी को यह आशंका हो कि दहेज की मांग को लेकर पति और उसके माता-पिता एवं रिश्तेदारों द्वारा उसे शारीरिक कष्ट दिया जायेगा.

वहीं एक वाद में पति ने पत्नी को पत्र लिखा कि वह उसके साथ आकर रहे अन्यथा इस पत्र को ही तलाक मान लिया जावे. धमकी भरे इस पत्र के आधार पर पत्नी अपने पति के साथ रहने से इन्कार कर सकती है |

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पत्नी कब भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए हकदार नहीं होगी?

CrPC धारा 125 (4) के अनुसार, पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं होगी, यदि वह-

  1. जारता (adultery) की दशा में रह रही है,
  2. बिना किसी पर्याप्त कारण के पति के साथ रहने से इन्कार कर दे,
  3. वे दोनों पारस्परिक सहमति से पृथक रह रहे हों.

यदि उपर्युक्त में से कोई बात सिद्ध हो जाती है तो मजिस्ट्रेट CrPC की धारा 125 (5) के अन्तर्गत भरण-पोषण के आदेश को रद्द कर सकेगा.

पति अपनी पत्नी के चाल-चलन पर सन्देह के आधार पर भरण-पोषण की राशि देने से इन्कार नहीं कर सकता. फिर जारता की दशा में भी निरन्तर रहना आवश्यक है. केवल एक चार जारता के कारण ही पत्नी अपने भरण-पोषण का अधिकार नहीं खो देती. जहां पति ने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हों कि जिससे पत्नी को अपने पति से पृथक रहने के लिए विवश हो जाना पड़े वहां पत्नी अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार हो जाती है. चाहे पत्नी ईसाई धर्म को मानने वाली ही क्यों न हो |

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