आरोप से आप क्या समझते हैं?

आरोप एवं परिवाद में अन्तर?

आरोप किसे कहते हैं?

आरोप अभियुक्त के विरुद्ध अपराध की जानकारी का ऐसा लिखित कथन होता है जिसमें आरोप के आधारों के साथ-साथ समय, स्थान, शक्ति एवं वस्तु का भी उल्लेख रहता है, जिसके बारे में अपराध किया गया है.

आरोप के उद्देश्य क्या है?

आरोप का उद्देश्य प्रतिरक्षा करने वाले व्यक्ति को विशिष्ट मामला बताना है जिससे वह उन पर ध्यान दे सके जिनका उत्तर उसे देना है. यदि अपराध की आवश्यक बातें जिनका आरोप अपराधी पर लगाया गया है. आरोप में नहीं दी गई हैं तो लगाया गया आरोप त्रुटिपूर्ण होता है.

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आरोप के प्रावधान?

CrPC, 1973 के अध्याय 17 को धाराओं 211 से 224 तक में आरोप के सम्बन्ध में विभिन्न प्रावधान किये गये हैं. आरोपों की विरचना अत्यन्त सावधानी से की जानी चाहिए। यदि अपराध की उन सभी बातों का जिनके आधार पर अभियुक्त पर आरोप लगाया गया है.

आरोप में उल्लेख नहीं किया जाता है तो वह त्रुटिपूर्ण होने के कारण अमान्य है. आरोप किसी व्यक्ति के विरुद्ध विनिर्दिष्ट दोषारोपण का ठीक-ठीक निरूपण किया जाना है जो कि उसके प्रकार को प्रारम्भिक अवस्था पर जानने का हकदार है. आरोप को इस प्रकार भी पारिभाषित किया गया है कि यह अपराध के प्रकार को अन्तविष्ट करने वाला एक ऐसा लिखित दस्तावेज है जिसे न्यायालय जाँच अथवा विचार में अपने समय के आधार पर प्रथमदृष्ट्या साबित पाता है जो कि अभियुक्त द्वारा किया गया होता है और उससे अपनी प्रतिरक्षा करने की अपेक्षा करता है.

आरोप विरचित करने का उद्देश्य उन आवश्यक तथ्यों को आरोप द्वारा अभियुक्त को नोटिस देना है जिन्हें अभियुक्त के विरुद्ध साबित करने का अभियोजन प्रस्ताव करता है जिससे अभियुक्त को प्रतिरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ सके. आरोप आपराधिक कार्यवाही में एक आवश्यक कदम है. आरोप तब विरचित किया जाता है जब किसी अपराध या अपराधों के बारे में प्रथमदृष्ट्या मामला बनता है. जब अदालत किसी विनिर्दिष्ट अपराध के लिए आरोप विरचित करती है तो उसका अभिप्राय होता है कि अदालत के दृष्टिकोण में उस आरोप के सम्बन्ध में एक प्रथमदृष्ट्या मामला बन गया है.

यदि अभियुक्त को विचारण का युक्तियुक्त एवं पूर्ण अवसर प्रदान किया गया हो तथा उसके द्वारा अपना बचाव भी किया गया हो तो आरोप में किसी त्रुटि, लोप अथवा अनियमितता के आधार पर कोई विचारण त्रुटिपूर्ण या दूषित नहीं होगा.

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आरोप एवं परिवाद में अन्तर?

  1. आरोप न्यायालय द्वारा विरचित लिखित अभिकथन है, जबकि परिवाद किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है तथा यह मौखिक एवं लिखित दोनों ही हो सकता है.
  2. आरोप किसी अधिनियम की किसी धारा के अन्तर्गत किये गये अपराध के सम्बन्ध में होता है जिसके आधार पर अभियुक्त अपनी बचाव व्यवस्था कर सकता है, जबकि परिवाद उन तथ्यों को प्रदर्शित करता है जिनके आधार पर परिवादी किसी व्यक्ति को किसी अपराध का अभियुक्त होने एवं उसे दण्ड प्रदान किये जाने की सूचना देता है.
  3. मजिस्ट्रेट अथवा सक्षम न्यायालय ही किसी अभियुक्त के विरुद्ध आरोप-पत्र तैयार कर सकते है जिसमें आरोपों का वर्णन होता है, जबकि परिवाद किसी मजिस्ट्रेट अथवा सक्षम न्यायालय के समक्ष किसी अभियोगी द्वारा प्रस्तुत किया जाता है.
  4. आरोप का निस्तारण विचारण आरम्भ होने से लेकर दोषमुक्ति अथवा दोषसिद्धि के निर्णय के साथ ही होता है, जबकि परिवाद समापन परिवाद के निरस्त (खारिज) किये जाने अथवा अभियुक्त के विरुद्ध उपस्थिति का सम्मन जारी होने या परिवादी को अनुपस्थिति में होता है.

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