संज्ञेय अपराध एवं असंज्ञेय अपराध क्या है? दोनों में क्या अंतर है?

संज्ञेय अपराध एवं असंज्ञेय अपराध क्या है? दोनों में क्या अंतर है?

संज्ञेय अपराध

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 2 (C) के अनुसार, संज्ञेय अपराध एवं मामलों से अभिप्राय ऐसे अपराध एवं मामलों से है जिनमें पुलिस अधिकारी; प्रथम अनुसूची के अनुसार, या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अनुसार, वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकता है.

(“Cognizable offence” means an offence for which, and “Cognizable case” means a case in which a police officer may, in accordance with the first schedule or under any other law for the time being in force. arrest without warrant).

संज्ञेय अपराध क्या है? इस प्रकार के संज्ञेय मामलों में पुलिस बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती हैं जबकि असंज्ञेय मामलों में बिना वारंट गिरफ्तार करने का एकमात्र कारण यह है कि ये अपराध गम्भीर एवं संगीन प्रकृति के होते हैं; अतः अभियुक्त कहीं बच कर भाग न जाय एवं अपराध के प्रमाणों को नष्ट न कर दे पुलिस ऐसे अपराध की सूचना मिलते ही बिना किसी वारंट के अभियुक्त को गिरफ्तार कर अन्वेषण प्रारम्भ कर देती है |

किसी अपराधी को कैद में रखने का मुख्य उद्देश्य यह है जिससे कि वह विधि द्वारा प्रदत्त दण्ड को स्वीकार करने के लिए प्रस्तुत हो सके. इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु कुछ ऐसी परिस्थितियां होती हैं जिनमें कि न्यायालय को जमानत पर मोचन का स्वविवेकाधिकार (Discretionary Power) दिया गया है. ये परिस्थितियां निम्नलिखित हैं-

  1. आरोप की प्रवृत्ति एवं तीव्रता.
  2. दण्ड की कठोरता एवं उसकी सीमा जहां तक दिया जा सके,
  3. अपराधी को जमानत पर छोड़ने से उसके भाग जाने का खतरा,
  4. उसका चरित्र,
  5. सामाजिक स्तर,
  6. अपराध के दुबारा किये जाने का खतरा,
  7. अपराधी के बचाव की तैयारी का अवसर.

CrPC की प्रथम अनुसूची में यह स्पष्ट किया गया है कि कौन-कौन से अपराध संज्ञेय होते हैं. ऐसे अपराधों में समय का बड़ा ही महत्त्व होता है तथा जाँच शीघ्रातिशीघ्र हो जानी चाहिए क्योंकि ऐसा अपराध करने वाला व्यक्ति जिसने अपराध किया है उस अपराध को पूर्णतया छिपाने का प्रयत्न करता है एवं यह भी प्रयत्न करता है कि अपराध का सारा सबूत नष्ट हो जाय. ऐसे अपराधों की सूचना जैसे ही पुलिस को प्राप्त होती है वह उस अपराधी को अतिशीघ्र पकड़ने का प्रयत्न करती है तथा मजिस्ट्रेट द्वारा कैद किये जाने की प्रतीक्षा नहीं करती है अर्थात् बिना वारण्ट के ही गिरफ्तार कर सकती है.

असंज्ञेय अपराध

CrPC की धारा 2 (L) के अनुसार, असंज्ञेय अपराध एवं मामलों से अभिप्राय ऐसे अपराध एवं मामलों से है जिनमें पुलिस अधिकारी को वारंट के बिना गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं होता.

(“Non-cognizable offence” means an offence for which, and “Non-cognizable case” means a case in which a police officer has no authority to, arrest without warrant).

असंज्ञेय अपराध क्या है? असंज्ञेय मामलों में पुलिस अधिकारी बिना वारण्ट के गिरफ्तार करने का कोई अधिकार नहीं रखता है. असंज्ञय मामले में पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट की पूर्व आज्ञा के बिना जांच आरम्भ नहीं कर सकता. ये मामले छोटे अपराधों से सम्बन्धित होते हैं तथा समाज को जो क्षति की जाती है. यह अपेक्षाकृत कम होती है. वह व्यक्ति जो अपराध द्वारा क्षतिग्रस्त हुआ है मजिस्ट्रेट के सामने अपराधकर्ता की शिकायत करके उस पर कार्यवाही कराने के लिये स्वतन्त्र है.

ओम प्रकाश बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया, AIR 2012 SC 545 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि “असंज्ञेय अपराध से अभिप्राय ऐसे अपराध से है जिसमें पुलिस अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है.”

(Non-cognizable offence means an offence for which a police officer will have no authority to make an arrest without obtaining a warrant for said purpose.) |

संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध में अंतर

  1. संज्ञेय अपराध गम्भीर एवं संगीन प्रकृति के होते हैं, जबकि असंज्ञेय अपराध सामान्य तथा कम गम्भीर प्रकृति के होते हैं.
  2. संज्ञेय अपराधों में पुलिस अभियुक्त को बिना वारण्ट गिरफ्तार कर सकती है, जबकि संज्ञेय अपराधों में पुलिस अभियुक्त को बिना वारण्ट गिरफ्तार नहीं कर सकती है.
  3. संज्ञेय मामलों में पुलिस बिना किसी आदेश के जांच कर सकती है, जबकि असंज्ञेय मामलों में पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना जांच नहीं कर सकता है.
  4. संज्ञेय मामलों में कार्यवाही करने के लिए परिवाद की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि असंज्ञेय मामलों में कार्यवाही का प्रारम्भ परिवाद से होता है |

अपवाद

साधारणतया यह सिद्धान्त माना जाता है कि गम्भीर प्रकार के अपराध संज्ञेय हैं और लघु प्रकृति के अपराध असंज्ञेय होते हैं, किन्तु इस सिद्धान्त के निम्नलिखित अपवाद होते हैं-

गम्भीर अपराध जैसे भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 467 के अन्तर्गत जाल का अपराध, या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 312 से 314 तक के अन्तर्गत कारित गर्भपात, अक्षय अपराधों के अन्तर्गत माने जाते हैं क्योंकि पहले प्रकरण में पुलिस इस बात का निर्णय नहीं कर पाती है कि अपराध का असली महत्व क्या है, क्योंकि ऐसे अपराध प्रायः तकनीकी प्रकृति के होते है. इसके विपरीत कुछ हल्के प्रकृति के अपराधी भी इस कारण से संज्ञेय बन जाते हैं कि यदि ठीक समय पर तत्काल ही कदम न उठाया गया तो उनके गम्भीर परिणाम हो सकते हैं |

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