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द्वितीय अपील
सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) ने प्रथम अपील को विस्तृत रूप दिया है. वहीं द्वितीय अपील के बारे में संहिता में सीमित प्रावधानों को उपबन्धित किया गया है जिसका एकमात्र उद्देश्य मुकदमेबाजी का अन्त करना है.
द्वितीय अपील के आधार
CPC की धारा 100 में निम्नलिखित उन आधारों का उल्लेख किया गया है जिनके आधार पर द्वितीय अपील की जा सकती है-
- वहां के सिवाय, जहां कि इस संहिता से निकाय में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित है, उच्च न्यायालय के अधीनस्थ किसी न्यायालय द्वारा अपील में पारित की गई प्रत्येक आज्ञप्ति के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी, बशर्ते कि उसमें विधि का कोई सारभूत प्रश्न अन्तर्ग्रस्त हो.
- जहां अपीलीय न्यायालय द्वारा कोई अपील एकपक्षीय (Ex-parte) सुनी जाकर आज्ञप्ति की गई हो, वहां उसके विरुद्ध अपील की जा सकेगी.
- इस धारा के अन्तर्गत संस्थित की जाने वाली अपील में उसमें के सारभूत विधि के प्रश्नों के अपील के ज्ञापन में संक्षिप्तत: अभिकथित किया जायेगा.
- जब उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि मामले में विधि का कोई सारभूत प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है तो वह ऐसे प्रश्न को व्यवस्थित (Formulate) अथवा निश्चित करेगा.
विधि का सारभूत प्रश्न
सीपीसी द्वारा ‘विधि के सारभूत प्रश्न’ शब्दावली को परिभाषित नहीं किया गया है. फिर भी उच्चतम न्यायालय द्वारा निम्नलिखित प्रश्नों को विधि का सारभूत प्रश्न माना गया है-
- किसी दस्तावेज की रचना के बारे में निष्कर्ष,
- प्रमाण भार के बारे में निष्कर्ष,
- अभिलेख पर किसी साक्ष्य पर विचार करने में न्यायालय द्वारा कार्य लोप,
- अभित्याग (Waiver), विबन्ध के प्रश्न,
- तथ्य के निष्कर्षो से विधि में उचित अनुमान का गलत होना,
- ऐसे प्रश्न जिनमें न्यायालय का स्वविवेक अन्तर्ग्रस्त हो.
वीराई अमल बनाम सैनी अमल, (2002) 1 SCC 134 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि “वादी द्वारा यह स्थापित किया जाना कि वह संविदा का अपना हिस्सा पूरा करने के लिये तैयार है.” एक विधि का सारवान प्रश्न नहीं है.
द्वितीय अपील में किसी भी तथ्य या विधि के प्रश्न के निर्णय करने की उच्च न्यायालय की शक्ति
सीपीसी की धारा 100 के अन्तर्गत पहले स्वयं अपीलकर्त्ता ही अपने अपील-ज्ञापन में ऐसे किसी सारभूत विधि के प्रश्न का ठीक-ठीक कथन करता है जो मामले में अन्तर्ग्रस्त होता है. इसके बाद, ऐसे प्रश्न का समाधान हो जाने पर उच्च न्यायालय उस प्रश्न को सूत्रबद्ध करता है और तब उसी प्रश्न पर अपील की सुनवाई की जाती है.
फिर भी, यदि उच्च न्यायालय का आगे यह समाधान होता है कि ऐसा कोई अन्य सारभूत विधि का प्रश्न मामले में अन्तर्यस्त है, जिसको उसने पहले सूत्रबद्ध नहीं किया था, तो वह उस प्रश्न पर अपील की सुनवाई कर सकेगा.
श्री सिंहा रामानुज जीर बनाम रंगा रामानुज, AIR 1961 SC 1720 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है कि उच्च न्यायालय द्वितीय अपील में वाद पत्र में तथ्यगत प्रश्नों के अभिनिश्चय में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है.
वहीं, रूपसिंह बनाम राम सिंह, (2003) 3 SCC 708 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि जब उच्च न्यायालय द्वितीय अपील पर निर्णय दे रहा हो तब उसे निर्णय में विधि के प्रश्नगत विवाद का उल्लेख आवश्यक रूप से करना चाहिए. द्वितीय अपील केवल तथ्यों के प्रश्न पर नहीं हो सकती है.
कुछ मामलों में अपील का न होना
सिविल प्रक्रिया संहिता संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा नई धारा 100 A जोड़कर तथा धारा 102 को संशोधित कर उल्लेखित किया गया कि निम्नलिखित मामलों में द्वितीय अपील नहीं होगी.
CPC की धारा 100 A के अनुसार, किसी उच्च न्यायालय के लिए लेटर पेटेन्ट या विधि का प्रभाव रखने वाले किसी विलेख में या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होने के बावजूद भी जहां उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश द्वारा मूल या अपीलीय आज्ञप्ति या आदेश से कोई अपील सुन ली गई हो और विनिश्चत कर दी गई हो, वहाँ ऐसे एकल न्यायाधीशों के निर्णय व आज्ञप्ति से पुनः कोई अपील नहीं होगी.
1. धारा 102 के अनुसार
किसी डिक्री की द्वितीय अपील नहीं होगी, जबकि धनराशि की वसूली के मूल वाद की विषय-वस्तु 25,000 रुपये से अधिक नहीं है.
2. द्वितीय अपील की सीमायें
द्वितीय अपील का क्षेत्र सीमित है. उस पर निम्नलिखित सीमायें अधिरोपित हैं-
- द्वितीय अपील में नया मामला प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है,
- द्वितीय अपील में नये अभिवचन को शामिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है,
- जहां कोई विधि द्वितीय अपील को वर्जित करती है वहाँ द्वितीय अपील नहीं हो सकती है |