IPC की धारा 375 क्या है? | बलात्कार की परिभाषा | बलात्कार के अपराध के आवश्यक तत्व

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बलात्कार के अपराध के आवश्यक तत्व

बलात्कार की परिभाषा

बलात्कार (Rape) की परिभाषा को भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 375 में परिभाषित किया गया है. बलात्कार की परिभाषा को दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 (2013 का 13) की धारा 9 द्वारा धारा 375 के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया जो 3 फरवरी, 2013 से लागू है.

इस संशोधन के द्वारा धारों 375 में दी गई पूर्व बलात्कार की परिभाषा को हटा दिया गया. अतः दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 के द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 में बलात्कार को इस प्रकार परिभाषित किया गया है-

धारा 375 क्या है?

धारा 375 आईपीसी क्या है? कोई पुरुष बलात्कार किया है यह तब कहा जाता है, यदि वह-

  1. A. अपना लिंग किसी भी सीमा तक स्त्री की योनि, उसके मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या किसी अन्य व्यक्ति के साथ करवाता है. उसका लिंग योनि में कितना गया यह महत्त्वहीन है, या
  2. B. मनुष्य के द्वारा लिंग के अतिरिक्त भी किसी वस्तु या शरीर का कोई अंग किसी भी सीमा तक स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग, गुदा में प्रवेश (घुसाना या डालना) या किसी अन्य व्यक्ति से करवाता है, या
  3. C. यदि कोई मनुष्य महिला के शरीर के किसी भाग को इस प्रकार मोड़ता है जिससे कि उसका लिंग स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा या शरीर के किसी भाग में घुसता है या उसने किसी अन्य साथी के साथ करवाया है, या
  4. D. यदि कोई पुरुष स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में अपना मुँह लगाता है या किसी अन्य व्यक्ति के साथ करवाता है, तो इसे बलात्कार कहा जाता है.

ऐसा कोई भी काम जो धारा 375 के खण्ड (A) से खण्ड (D) के उपबन्ध के अन्दर आता है. उसे धारा में वर्णित निम्नलिखित 7 प्रकार की परिस्थितियों में से किसी के अधीन होना चाहिए-

1. उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध सम्भोग

धारा 375 का प्रथमखण्ड उन मामलों में लागू होता है जहाँ कि स्त्री की इच्छा के विरुद्ध कोई पुरुष मैथुन करता है. यह खण्ड पूर्णतया चेतन स्त्री की परिकल्पना करता है जो सम्मति देने की स्थिति में होती है इच्छा के विरुद्ध शब्दावली से तात्पर्य उस इच्छा से है जिसके द्वारा स्त्री कुछ करने या करने का निर्णय नहीं कर पाती. इच्छा से तात्पर्य संभोग से पहले की इच्छा से है न कि संभोग के बाद की.

2. स्त्री की सम्मति के बिना संभोग

धारा 375 का दूसरा खण्ड उन मामलों में लागू होता है जहाँ कि शराब या दवा के प्रभाव या किसी अन्य कारण से स्त्री संज्ञाहीन है या इतनी अल्पमति है कि वह कोई उचित सम्मति देने में असमर्थ है. बचाव के लिए संभोग से पूर्व स्त्री की सम्मति प्राप्त करना आवश्यक है न कि संभोग के बाद यह कोई युक्तियुक्त बचाव नहीं माना जायेगा कि स्त्री ने कृत्य (संभोग) के बाद अपनी सम्मति दे दिया था.

प्रताप मिश्रा बनाम उड़ीसा राज्य, (AIR 1977 SC 1307) के मामले में अभियुक्त तथा स्त्री के शरीर पर कोई निशान नहीं पाये गये जिससे न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि स्त्री द्वारा संभोग का प्रतिरोध नहीं किया गया. अतः निश्चित रूप से संभोग स्त्री की सहमति से किया गया था.

3. मृत्यु या चोट के अधीन प्राप्त की गयी सहमति

धारा 375 के तृतीय खण्ड के अन्तर्गत यह उपबन्ध किया गया है कि यदि किसी स्त्री को मृत्यु या उपहति में डालकर उसकी सम्मति संभोग के लिए प्राप्त की जाती है तो ऐसी सम्मति वैध सम्मति नहीं होगी और संभोग करने वाला व्यक्ति बलात्कार का दोषी होगा.

4. धोखे से सहमति प्राप्त करना

धारा 375 के चतुर्थ खण्ड में यह उपबन्ध किया गया है यदि कोई स्त्री किसी पुरुष द्वारा यह विश्वास दिलाये जाने पर कि वह उसका पति है, सद्भावपूर्वक उसे अपना पति समझकर सम्भोग की सहमति देती है इस प्रकार की सहमति भी वैध सहमति नहीं मानी जायेगी तथा अभियुक्त बलात्कार के अपराध का दोषी माना जायेगा.

5. चित्तविकृतता या मदमत्तता आदि के कारण कार्य की प्रकृति समझने में असमर्थ स्त्री द्वारा दी गयी सम्मति

धारा 375 के पंचम खण्ड के अन्तर्गत उन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जिन परिस्थितियों में महिला की सम्मति से किया गया संभोग बलात्कार माना जाता है-

  1. विकृतचित्त है,
  2. मदोन्मत है या
  3. ऐसी स्त्री जिसको किसी पुरुष ने कोई ऐसी वस्तु पिला दी है जिससे वह कार्य की प्रकृति और परिणाम को समझने में असमर्थ हो गई हो.

6. 18 वर्ष से कम आयु की स्त्री द्वारा सहमति दिया जाना

धारा 375 का खण्ड (6) के अन्तर्गत उपबन्ध है कि 18 वर्ष से कम आयु की स्त्री की सम्मति विसंगत होती है इसलिए किसी ऐसी स्त्री की सम्मति से संभोग किया जाता है जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है तो वह बलात्कार होगा. धारा 375 के द्वितीय अपवाद के अन्तर्गत यह उपबन्ध किया गया है कि पुरुष द्वारा अपनी स्त्री के साथ लैंगिक समागम से बलात्कार गठित नहीं होगा बशर्ते पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम न हो. यदि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम है तो लैंगिक समागम बलात्कार होगा.

धारा 375 के खण्ड सात के अन्तर्गत यह उपबन्ध किया गया है कि लिंग सम्बन्ध बलात्कार होगा जबकि महिला अपनी सहमति व्यक्त करने में असमर्थ है और यह असमर्थता किसी भी कारण से हो सकती है |

एक्सप्लेनेशन

  1. धारा 375 के प्रयोजन हेतु किसी महिला की योनि के अन्दर भगोष्ठ भी शामिल है.
  2. सहमति से तात्पर्य स्पष्ट ऐच्छिक सहमति है जब महिला शब्दों या किसी प्रकार की मौखिक या अमौखिक संसूचना द्वारा लैंगिक काम में शामिल होने को इच्छा व्यक्त करती है.

धारा 375 के परन्तुक में यह उपबन्ध किया गया है कि कोई भी महिला जो पुरुष द्वारा योनि में लिंग प्रवेश का विरोध नहीं करती मात्र उसी तथ्य के कारण यह नहीं माना जायेगा कि उसने लैंगिक कार्य के लिये सहमति दी है सहमति सक्रिय होना चाहिये |

धारा 375 के अपवाद

7. धारा 375 के दो अपवाद भी हैं. पहला अपवाद यह कहता है कि किसी चिकित्सीय प्रक्रिया या अंतःप्रवेशन से बलात्कार गठित नहीं होगा, द्वितीय अपवाद यह कहता है कि किसी पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सहवास बलात्कार नहीं माना जायेगा यदि पत्नी को उम्र पन्द्रह वर्ष से अधिक है |

धारा 375 में दण्ड

जो कोई बलात्संग करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कठोर कारावास से, जिसकी अवधि 10 वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा. जो कोई 16 वर्ष से कम आयु को किसी स्त्री से बलात्संग करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि 20 वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा, तक की हो सकेगी, दंडित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा [दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 द्वारा अन्तःस्थापित ]

उत्तर प्रदेश राज्य बनाम पप्पू [(2005) SC 331] में उच्चतम न्यायालय ने यह अवधारित किया कि यह निष्कर्ष कि अभियोक्त्री का चरित्र अच्छा नहीं और वह अपने शरीर को समर्पित करते रहने की अभ्यस्त थी, अभियुक्त को दोषमुक्ति का आधार नहीं हो सकता |

2013 के संशोधन के बाद निम्नलिखित को भी दण्डनीय बनाया गया है-

पीड़िता की मृत्यु या लगातार विकृतशीलदशा कारित करने के लिए दण्ड (धारा 376A)

धारा 376A को दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 की धारा 9 द्वारा धारा 376A के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया जो कि 3 फरवरी, 2013 से लागू है. धारा 376A, धारा 376 मृत्यु कारित करने अथवा बलात्कार जिसका परिणाम पीड़ित को निरन्तर निष्क्रिय स्थिति कारित करता है जो कोई भी धारा 376 की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन दण्डनीय अपराध कारित करता है और ऐसे अपराध के समय ऐसी कोई चोट पहुँचाता है जो स्त्री की मृत्यु कारित करता है या स्त्री को निरन्तर या स्थायी रूप से निष्क्रिय बना देता है वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जायेगा. यहाँ आजीवन कारावास का अर्थ होगा उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन का शेष अवधि या मृत्यु.

(376AB) 12 वर्ष से कम आयु की स्त्री से बलात्संग के लिए दण्ड

जो कोई 12 वर्ष से कम आयु की किसी स्त्री से बलात्संग करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि 20 वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा, तक की हो सकेगी और जुर्माने से, अथवा मृत्यु से दण्डित किया जाएगा :

परन्तु ऐसा जुर्माना पीड़ित को चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति करने के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परन्तु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीड़ित किया जाएगा [दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 द्वारा अन्तःस्थापित] |

पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ पृथक्करण के दौरान मैथुन (धारा 376B)

इस धारा को दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 की धारा 9 द्वारा धारा 376B के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया जो 3 फरवरी, 2013 से लागू है. धारा 376B के अन्तर्गत यह उपबन्ध किया गया है कि जो कोई अपनी पत्नी से जो विलगाव की डिक्री के तहत किसी रूढ़ि या परम्परा के अधीन अलग रह रही है, उसकी सम्मति के बिना लैंगिक संभोग करता है. वह किसी भी प्रकार के कारावास (साधारण या कठोर) से जो 2 वर्ष से कम नहीं होगा’ और जो 7 वर्ष तक विस्तारित हो सकता है से दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डित होगा. जुर्माने की राशि निश्चित नहीं है.

प्राधिकारवान व्यक्ति द्वारा मैथुन (धारा 376C)

इस धारा को दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 की धारा 9 द्वारा धारा 376C के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया जो 3 फरवरी, 2013 से प्रभावी है. भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 376 (C) किसी महिला के साथ निम्न श्रेणी में से किसी में आने वाले पुरुष द्वारा लैंगिक संभोग के लिए दण्ड का उपबन्ध करती है-

  1. कोई पुरुष जो प्राधिकार की स्थिति या वैश्वासिक सम्बन्ध की स्थिति में है, या
  2. कोई लोक सेवक या
  3. जेल, रिमाण्ड होम या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन स्थापित किसी अभिरक्षा के स्थान की अधीक्षक या मैनेजर अथवा महिलाओं अथवा बच्चों की संस्था के पुरुष द्वारा लैंगिक संभोग या लैंगिक सम्पर्क, या
  4. किसी अस्पताल के प्रबंधक या अस्पताल के कर्मचारी हैं,

ऐसी किसी को जो उसकी अभिरक्षा में है या उसकी देखरेख में हो या परिसीमाओं में मौजूद हो, किसी स्थिति में यदि कोई पुरुष फुसलाने या प्रेरित करे कि वह उसके साथ मैथुन करे तो वह दण्डनीय होगा. इस धारा के अन्तर्गत मैथुन बलात्कार की कोटि में नहीं आना चाहिए. जैसा ऊपर वर्णित है ऐसा कोई व्यक्ति जो लैंगिक सम्बन्ध या सम्पर्क रखता है वह किसी प्रकार के कारावास से जो 5 वर्ष से कम नहीं होगा परन्तु जो 10 वर्ष तक विस्तारित हो सकता है दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा |

एक्सप्लेनेशन

  1. इस धारा में मैथुन से तात्पर्य धारा 375 के खण्ड (A) से खण्ड (D) में वर्णित कोई कृत्य अभिप्रेत है.
  2. इस धारा के प्रयोजन हेतु धारा 375 का एक्सप्लेनेशन (1) भी लागू होगा, जो यह उपबन्धित करती है कि योनि शब्द के अन्तर्गत वृहत भगोष्ठ (लबिया मेजर) भी शामिल होगा.
  3. इसके अन्तर्गत जेल, रिमाण्ड होम अथवा अभिरक्षा के अन्य स्थान अथवा महिलाओं और बच्चों की संस्था के सम्बन्ध में अधीक्षक में कोई अन्य जो व्यक्ति जेल, रिमाण्ड होम, एकान्त स्थान, संस्था में कोई अन्य पद धारण करने वाला जो इनके सहवासियों पर अधिकार या कण्ट्रोल करता है, भी शामिल हैं.
  4. इसके अन्तर्गत यह उपबन्ध किया गया है कि अस्पताल और महिलाओं या बच्चों की संस्था का क्रमशः वही अर्थ होगा जो धारा 376 की उपधारा (2) के एक्सप्लेनेशन में उनका है |

सामूहिक बलात्संग (धारा 376D)

भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 376D सामूहिक बलात्कार के लिए दण्ड का प्रावधान करती है.

इस धारा को दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013 की धारा 9 धारा 376D के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया जो 3 फरवरी, 2013 से लागू है. धारा 376D के अनुसार, जहाँ किसी महिला के साथ कई व्यक्तियों के द्वारा एक समूह के रूप में अपने सामान्य आशय के अग्रसरण में बलात्कार किया जाता है उन व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति को यह माना जायेगा कि उसने बलात्कार का अपराध किया है और वह व्यक्ति ऐसी अवधि के लिए कठोर कारावास से जो 20 वर्ष से कम नहीं होगा किन्तु आजीवन कारावास तक विस्तारित हो सकता है दण्डित किया जायेगा. आजीवन कारावास का अर्थ है उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन तक का कारावास। वह व्यक्ति जुर्माने से भी दण्डित किया जायेगा.

इस धारा के परन्तुक में यह उपबन्धित किया गया है कि ऐसा जुर्माना पीड़िता के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने और पुनर्वास के लिये उचित और युक्तियुक्त होगा :

परन्तु यह और कि इस धारा के अधीन ऐसा लगाया गया अर्थदण्ड पीड़िता को दे दिया जायेगा.

(376DA) 16 वर्ष से कम आयु की स्त्री से सामूहिक बलात्संग के लिए दण्ड

जहाँ व्यक्तियों के समूह में से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा सब के सामान्य आशय को अग्रसर करने में 16 वर्ष से कम आयु की किसी स्त्री से बलात्संग किया जाता है, वहां ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने बलात्संग किया है. और वह आजीवन कारावास से, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा और जुर्माने से दंडित किया जाएगा :

परन्तु ऐसा जुर्माना पीड़ित की चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति करने के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परन्तु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीड़ित को किया जाएगा [दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 द्वारा अन्तःस्थापित] ।

(376DB) 12 वर्ष से कम आयु की स्त्री से सामूहिक बलात्संग के लिए दण्ड

जहां व्यक्तियों के समूह में से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा सब के सामान्य आशय को अग्रसर करने में 12 वर्ष से कम आयु की किसी स्त्री से बलात्संग किया जाता है. वहां ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने बलात्संग किया है और वह आजीवन कारावास से, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास होगा. और जुर्माने से अथवा मृत्यु से दंडित किया जाएगा :

परन्तु ऐसा जुर्माना पीड़ित को चिकित्सा व्ययों और पुनर्वास की पूर्ति करने के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :

परन्तु यह और कि इस उपधारा के अधीन अधिरोपित किसी भी जुर्माने का संदाय पीड़ित को किया जाएगा [दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 द्वारा अन्तःस्थापित].

पुरुषोत्तम दशरथ बोराटे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र (AIR 2015 SC 2170) के मामले में अभियुक्तगण मृतका के घर से उठाकर ले गये तथा उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया. बलात्कार के बाद मृतका की ओढ़नी से ही उसकी गला घोंटकर मृत्यु कारित कर दी. इसे विलक्षण मामला मानते हुए मृत्यु दण्ड दिया गया.

पुनरावृत्तिकर्ता अपराधियों के लिए दण्ड (धारा 376E)

धारा 376E को दण्ड विधि संशोधन अधिनियम, 2013 की धारा 9 द्वारा धारा 376E के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया जो 3 फरवरी, 2013 से लागू है. इस धारा के अन्तर्गत यह उपबन्ध है कि ऐसे अपराधी जो बार-बार अपराध करते हैं, उनके लिए दण्ड प्रावधान करती है.

इसके अनुसार, जो भी पूर्व में धारा 376A या धारा 376D के अधीन दण्डनीय अपराध हेतु दण्डित किया गया है और वह बाद में पुनः इन्हीं धाराओं के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध हेतु दोषसिद्ध किया जाता है वह आजीवन कारावास से दण्डित किया जायेगा. आजीवन कारावास का अर्थ है उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास अथवा मृत्युदण्ड से दण्डनीय होगा.

साक्ष्य

जहां बलात्संग किसी गूंगी एवं बहरी लड़की के साथ किया गया हो और उसने घटना के तुरन्त बाद हावभाव द्वारा सारी घटना अपनी माता को बता दी हो, वहां ऐसी साक्ष्य को विश्वसनीय मानते हुए अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जा सकेगा. [स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम बन्दू उर्फ दौलत, (AIR 2017 SC 5414] |

जारकर्म की परिभाषा

भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 497 में व्यभिचार या जारकर्म (Adultery) की परिभाषा निम्न प्रकार दी गयी है- “जो किसी स्त्री के साथ लैंगिक सम्भोग करता है जिसको वह जानता है या बारे में उसे विश्वास करने का कारण है कि वह किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है. तथा ऐसे व्यक्ति की सहमति या कामतः उपेक्षा नहीं ली जाती तथा ऐसा अपराध यदि बलात्कार का अपराध नहीं होता है तो वह जारकर्म या व्यभिचार का दोषी होगा, जिसके लिये उसे 5 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है. ऐसे मामले में पत्नी अवप्रेरक के रूप में दण्डित नहीं की जायेगी |

जारकर्म के अपराध के आवश्यक तत्व

जारकर्म के अपराध के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं-

  1. किसी व्यक्ति का किसी स्त्री के साथ लैंगिक सम्भोग होना चाहिये जिसको वह जानता है या जिसके बारे में उसे विश्वास करने का कारण है कि वह अन्य व्यक्ति की पत्नी है.
  2. ऐसा लैंगिक सम्भोग उस स्त्री के पति की सहमति या मौनानुकूलता के बिना होना चाहिए.
  3. ऐसा लैंगिक सम्भोग बलात्कार नहीं होना चाहिए |

पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दण्डनीय नहीं है कब?

पत्नी को दुष्प्रेरक के रूप में धारा 497 के अधीन दण्डित नहीं किया जा सकता है.

अभी हाल ही में जोसेफ शाइन बनाम यूनियन आफ इंडिया (रिट पिटीशन क्रमांक 194/2017) में दिनांक 27-9-2018 को दिए गए उच्चतम न्यायालय के निर्णय द्वारा भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 497 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 एवं 21 के प्रतिकूल मानते हुये आंशिक रूप से असंवैधानिक करार दे दिया गया है लेकिन जारकर्म विवाह विच्छेद का एक आधार हो सकेगा। इसी निर्णय में दण्ड प्रकिया संहिता, 1973 की धारा 198 (2) को  भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 497 की सीमा तक निष्प्रभावी घोषित किया गया है |

बलात्कार तथा जारकर्म या व्यभिचार के बीच अन्तर

  1. बलात्कार (Rape) के अपराध में लैंगिक संभोग स्त्री की सहमति के बिना किया जाता है, जबकि जारकर्म या व्यभिचार (Adultery) में लैंगिक संभोग स्त्री की सहमति से होता है, परंतु उसके पति की सहमति नहीं होती है.
  2. बलात्कार किसी भी स्त्री के साथ किया जा सकता है, जैसे कुंवारी, विवाहित या विधवा स्त्री, जबकि व्यभिचार सिर्फ विवाहित स्त्री के साथ हो हो सकता है. कुँवारी या विधवा स्त्री के साथ व्यभिचार नहीं हो सकता है.
  3. जिस स्त्री के साथ लैंगिक संभोग किया जाता है उसके पति की सहमति से अपराध पर कोई फर्क नहीं पड़ता, जबकि जारकर्म या व्यभिचार में स्त्री के पति की सहमति से व्यभिचार के अपराध को क्षमा मिल जाती है.
  4. बलात्कार में क्षतिग्रस्त पक्ष स्त्री होती है, जबकि इसमें क्षतिग्रस्त पक्ष पति होता है.
  5. बलात्कार में पति द्वारा पत्नी के साथ भी हो सकता है, यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम हो, जबकि यह पति द्वारा पत्नी के विषय में नहीं हो सकता है.
  6. बलात्कार में शरीर के विरुद्ध अपराध है, जबकि यह विवाह के विरुद्ध अपराध है.
  7. बलात्कार के लिये आजीवन कारावास या जुर्माना या दोनों दंड मिल सकते हैं, जबकि जारकर्म या व्यभिचार में 5 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना या दोनों दण्ड मिल सकते हैं |

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