उपेक्षा का अर्थ, परिभाषा, सिद्धान्त एवं आवश्यक तत्व

उपेक्षा का अर्थ, परिभाषा, सिद्धान्त एवं आवश्यक तत्व

उपेक्षा का अर्थ

उपेक्षा (Negligence) का अर्थ एक विशेष प्रकार का कानूनी दोष होता है जो व्यक्ति या संस्था के कार्य या उपायोग के लिए सावधानी और यत्न की कमी के कारण किसी दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाने या उसके हकों को लाभ पहुंचाने की स्थिति होती है. तोर्ट लॉ वह शाखा है जो व्यक्तियों या संस्थाओं के बीच होने वाले निजी ज्ञान, कर्तव्य, और आचरण के मामलों के लिए जिम्मेदार होती है.

नियमों और मानकों के अनुसार, व्यक्ति के व्यवहार में इसकी आवश्यकता होती है और अगर कोई व्यक्ति या संस्था इसे नजरअंदाज करते हुए या उसमें लापरवाही दिखाते हुए किसी को चोट पहुंचाते हैं, तो वे उपेक्षा के दोषी माने जाते हैं.

तोर्ट लॉ में उपेक्षा के दोष का प्रमुख तीन अंश होते हैं-

  1. व्यक्ति या संस्था के पास उस दूसरे व्यक्ति के प्रति एक निश्चित दायित्व होता है.
  2. व्यक्ति या संस्था ने अपने उत्तरदायित्व के प्रति चुक की होती है, जिससे किसी को नुकसान होता है.
  3. इस उपेक्षा के कारण हुई चोट या क्षति के कारण किसी को नुकसान होता है.

नुकसान प्राप्त करने वाला व्यक्ति या संस्था उस व्यक्ति के प्रति क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी हो सकता है और उसे नुकसान पहुंचाने वाले से मुआवजा मिल सकता है.

तोर्ट लॉ में उपेक्षा विवादों में न्यायिक प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है ताकि सजायें और मुआवजे का निर्धारण किया जा सके |

उपेक्षा की परिभाषा

प्रोफेसर विनफील्ड के अनुसार, उपेक्षा एक अपकृत्य के रूप में सावधानी बरतने के विधिक कर्तव्य का उल्लंघन है जिसके परिणामस्वरूप प्रतिवादी के न चाहने पर भी वादी को क्षति पहुँचती है.

सामण्ड के अनुसार, जब व्यक्ति का विधिक कर्तव्य होता है कि वह सावधानी बरते तो उसकी लापरवाही से उपेक्षा का अपकृत्य बनता है.

लिण्डसे एवं क्लार्क के अनुसार, उपेक्षा वह भूल है जिसको वह विविध कार्य करते समय करता है.

भारत संघ बनाम हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड (AIR 1975 पंजाब 259) में न्यायालय ने उपेक्षा को परिभाषित करते हुए कहा कि, ‘उपेक्षा किसी कार्य को करने की ऐसी त्रुटि है जिसकी सामान्य बुद्धि वाला उन्हीं परिस्थितियों में नहीं करता है.’ |

उपेक्षा के सिद्धान्त

Theories of Negligence; उपेक्षा की परिभाषा एवं प्रकृति के सम्बन्ध में दो सिद्धान्त हैं-

1. आत्मनिष्ठ सिद्धान्त

आत्मनिष्ठ सिद्धान्त (Subjective Theory) के प्रवर्तकों में आस्टिन, सामण्ड एवं विनफील्ड प्रमुख हैं. इस सिद्धान्त के अनुसार असावधानी एक मानसिक अवस्था है. आस्टिन के अनुसार असावधानी मस्तिष्क की एक दोषपूर्ण अवस्था है, जिसमें दण्डस्वरूप क्षतिपूर्ति देनी पड़ती है.

सामण्ड के मतानुसार यह सावधानी बरतने के विधिक कर्त्तव्य का उन मामलों में उल्लंघन है, जिसमें विधि द्वारा सावधानी बरतना अनिवार्य है. डॉक्टर विनफील्ड के अनुसार क्षतिकृत्यों के दायित्व में असावधानी मानसिक तत्व के रूप में है और प्रतिवादी के व्यवहार में आंशिक या पूर्णरूपेण महत्व रखती है.

2. वस्तुनिष्ठ सिद्धान्त

वस्तुनिष्ठ सिद्धान्त (Objective Theory) के अनुसार असावधानी मानसिक अवस्था न होकर व्यवहार का एक रूप है. पोलक के अनुसार असावधानी परिश्रमशीलता की विरोधी है और परिश्रमशीलता को कोई व्यक्ति मस्तिष्क की अवस्था नहीं मान सकता. परिश्रमशीलता का अर्थ श्रमपूर्ण कार्य से है जो मस्तिष्क की अवस्था में नहीं आता है. जहां सावधानी बरतने का अर्थ होता है कि ऐसा आचरण करना जिससे अपने कार्य से किसी व्यक्ति को हानि न उठानी पड़े.

सही दृष्टिकोण (Correct View) असावधानी के सम्बन्ध में दिये गये दोनों सिद्धान्तों का अध्ययन करने पर वस्तुनिष्ठ सिद्धान्त (Objective Theory) ही अधिक उपयुक्त एवं व्यावहारिक प्रतीत होता है |

उपेक्षा के आवश्यक तत्व

1. सावधानी बरतने का विधिक कर्त्तव्य

विधि वादी की कार्य सम्बन्धी स्वतन्त्रता पर नियन्त्रण रखती है जिससे वह एक विवेकपूर्ण और सावधान व्यक्ति की तरह आचरण करे. यह ऐसा कर्त्तव्य है कि किसी व्यक्ति को करने के लिए अथवा न करने के लिए जैसा कि सामान्य बुद्धि वाला समझता है, करने के लिए बाध्य करता है.

उड़ीसा रोड ट्रान्सपोर्ट कंपनी लिमिटेड बनाम उमाकान्त सिंह (1987 ACT 1330) नामक बाद में सवारी बस के चालक ने समतल रेलवे क्रासिंग के द्वार बन्द होते समय बस को क्रासिंग में प्रवेश कराया. कतिपय यांत्रिक त्रुटि के कारण बस का इंजन बन्द हो गया और पुनः चालू नहीं हुआ और बस से आती हुई रेलगाड़ी टकरा गई. परिणामस्वरूप दो बस यात्रियों की मृत्यु हो गई. उल्लेखनीय है कि बस में स्टार्टिंग दोष था और इस तथ्य से बस चालक अवगत था. बस चालक को उपेक्षा का दोषी पाया गया.

2. वादी के प्रति कर्त्तवा

सावधानी बरतने का यह कर्त्तव्य वादी के प्रति होना चाहिये. प्रतिवादी का वादी के प्रति सावधानी बरतने का कर्त्तव्य किसी विशेष व्यवहार के प्रति होता है.

हेले बनाम लन्दन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड [(1965) AC 778] के बाद में प्रतिवादीगण ने बिजली की फिटिंग के लिये सड़क पर एक गड्ढा खोदा. उन्हें गड्ढा खोदने का विधिक प्राधिकार प्राप्त था. सामान्य व्यक्ति के लिये उन्होंने पर्याप्त सावधानी बरती परन्तु अन्धे-बहरे लोगों के लिये कोई विशेष सावधानी नहीं बरती. परिणामत: वादी जो एक अन्धा व्यक्ति था, गड्ढे में गिर गया. न्यायालय का मत था कि प्रतिवादी क्षतिपूर्ति के लिये उत्तरदायी था, क्योंकि वह इस बात की युक्तियुक्त कल्पना कर सकते थे कि सड़क पर अन्धे एवं बहरे लोग भी चल सकते हैं. अतः उनके प्रति भी विशेष सावधानी बरतने की उन्हें आवश्यकता थी.

3. सावधानी बरतने के कर्त्तव्य का उल्लंघन

असावधानी की कार्यवाही में यह भी प्रमाणित करना होता है कि वादी का सावधानी बरतने का जो कर्तव्य था, उसका उल्लंघन हुआ है. सावधानी का परिणाम वही होता है जो किर विवेकशील सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति मानवोचित व्यवहार करते हुए बरतता.

फिलिप्स इण्डिया लिमिटेड बनाम कुंजू पुन्नू (AIR 1975 बम्बई 306) बम्बई में मरीज के प्रति डॉक्टर द्वारा बरती जाने वाली सावधानी के स्तर पर एवं परिणाम का विवेचन करते हुये न्यायालय ने कहा था कि डॉक्टर को यह ध्यान रखना चाहिये कि वह मानव-जीवन के साथ व्यवहार कर रहा है जिसमें मरीज को भीषण क्षति पहुँच सकती है. परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि यह कार्यकुशलता की चरम सीमा को प्रमाणित करे. यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि उसने एक सामान्य डॉक्टर से अपेक्षित सामान्य बुद्धि एवं सावधानी का बर्ताव किया है तो वह असावधानी के अपकृत्य से बच सकता है.

वहीं, श्रीमती अर्चना पाल बनाम त्रिपुरा राज्य (AIR 2004 गौहाटी 7) के बाद में न्यायालय ने चिकित्सक द्वारा किये गये नसबन्दी आपरेशन में किसी प्रकार की असावधानी के बिना भी 2.5 प्रतिशत मामलों में गर्भ ठहर जाने की सम्भावना को ध्यान में रखते हुये वादिनी को क्षतिपूर्ति दिलाई जाने से इन्कार कर दिया क्योंकि वह चिकित्सक की लापरवाही साबित नहीं कर सकी थी.

4. सावधानी की मात्रा

सावधानी की मात्रा दो बातों पर निर्भर करती है-

  1. खतरे का विस्तार एवं
  2. खतरे के विरुद्ध सावधानी की आवश्यकता की सीमा.

बोल्टन बनाम स्टोन [(1951) AC 850] इस मामला में वादी एक क्रिकेट के मैदान के पास से गुजरते हुए क्रिकेट की गेंद से जख्मी हो गया. मैदान चहारदीवारी से घिरा था. न्यायालय का मत था कि प्रतिवादी असावधानी का दोषी नहीं है. क्योंकि मैदान को काफी ऊँची चहारदीवारी से घेरा गया था जो पर्याप्त सावधानी थी और पिछले 100 वर्षों में चहारदीवारी पार करके गेंद बाहर जाने की घटना कभी नहीं हुई थी.

वहीं, काउन्टी काउन्सिल बनाम ल्यूस (1955) नर्सरी स्कूल का बच्चा सड़क पर चला आया, जिसे बचाने में ट्रक जिसे वादिनी का पति चला रहा था, खम्भे से टकरा गया और वादिनी का पति मर गया. वादिनी ने काउन्टी काउन्सिल के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का वाद चलाया जिसमें काउन्टी काउन्सिल को उत्तरदायी माना गया, क्योंकि वह बच्चे को सड़क पर जाने से रोकने के कर्तव्य में असफल रही थी.

5. वादी को क्षति होना

उपेक्षा के मामले में वादी को यह भी सिद्ध करना चाहिये कि प्रतिवादी की असावधानी के परिणामस्वरूप वादी को क्षति हुई है. क्षति प्रतिवादी की असावधानी का परिणाम होना चाहिये. यदि क्षति दूरगामी हो तो प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता. क्षतिपूर्ति का निर्धारण असावधानी की मात्रा पर निर्भर करता है.

स्ट्रेन्चा बनाम टूमैन (1948) एक ठेकेदार मकान की सजावट का काम कर रहा था. जब मकान में कोई नहीं था ठेकेदार द्वार को बिना ताला लगाये हुए बाहर चला गया. ठेकेदार की अनुपस्थिति में घर में कोई चोर घुसा और बहुत सारा सामान चुरा ले गया. न्यायालय ने ठेकेदार को क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी माना.

इसी प्रकार नेटलशिप बनाम वेस्टन (1972) वादी सड़क की गलत पटरी की ओर गाड़ी चला रहा था और इस प्रकार उससे दुर्घटना हो गई. चालक का कहना था कि वह सीखने वाला चालक था. न्यायालय ने उसे दुर्घटना के लिए उत्तरदायी मानते हुए यह निर्धारित किया कि सोखने वाले चालक से भी उसी प्रकार की सावधानी की उम्मीद की जाती है, जिस प्रकार होशियार चालक से |

अपेक्षा और उपेक्षा में क्या अंतर है?

1. अपेक्षा

अपेक्षा (Expectation) एक भावना है जो हमें किसी घटना, स्थिति, व्यक्ति या परिस्थिति के प्रति आशा या विश्वास का अनुभव कराती है. जब हम किसी कार्य को करने से पहले उम्मीद रखते हैं कि वह कार्य होगा, और हम उस कार्य के संबंध में सकारात्मक परिणामों की उम्मीद करते हैं, तो उसे अपेक्षा कहा जाता है. यह एक आशावादी भावना होती है जो भविष्यवाणी के साथ जुड़ी होती है.

2. उपेक्षा

उपेक्षा (Neglect) एक अनुभव है जो हमें किसी व्यक्ति, स्थिति, विचार या कार्य को ध्यान नहीं देने का अनुभव कराता है. जब हम किसी चीज को उपेक्षा करते हैं, तो हम उसे नजरअंदाज करते हैं और इसे अपने जीवन से बाहर रखने की कोशिश करते हैं. यह एक नकारात्मक भावना होती है जो आम तौर पर किसी चीज को नजरअंदाज करने के परिणामस्वरूप होती है.

इन दोनों शब्दों के बीच यह मुख्य अंतर है कि अपेक्षा किसी सकारात्मक भावना का प्रतीक है जो हमारे आशाओं और विश्वास को दर्शाता है, जबकि उपेक्षा नकारात्मक भावना है जो हमारे असामान्य या अनचाहे विचारों या कार्यों को छिपाने या नजरअंदाज करने की प्रक्रिया को दर्शाती है |

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