मुस्लिम विधि के अनुसार वसीयत का अर्थ, परिभाषा एवं वसीयत कौन कर सकता है?

मुस्लिम विधि के अनुसार वसीयत का अर्थ, परिभाषा एवं वसीयत कौन कर सकता है?

वसीयत का अर्थ

मुस्लिम विधि में वसीयत का तात्पर्य ऐसी घोषणा से है, जिसमें घोषणा करने वाला यह व्यवस्था करता है कि मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति या सम्पत्ति सम्बन्धी अन्य अधिकारों का अमुक ढंग से निस्तारण किया जाय.

उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार, वसीयत के दो मुख्य अनिवार्य तत्व है-

  1. वसीयतकर्ता की सम्पत्ति में अधिकारों का अन्तरण, और
  2. सम्पत्ति सम्बन्धी इन अधिकारों का अन्तरण वसीयत करने वाले की मृत्यु के पश्चात् होना.

वसीयत की प्रकृति

वसीयत के अन्तर्गत सम्पत्ति का वसीयतकर्ता के जीवनकाल में अन्तरण नहीं होता है. यह वसीयत करने वाले की मृत्यु के पश्चात् लागू होता है, जबकि दान (Gift) में अधिकार व स्वामित्व तुरन्त अन्तरित होते हैं.

मान्य वसीयत के लिये शर्तें

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत किसी विधिमान्य वसीयत के लिये निम्नलिखित शर्तों का होना अनिवार्य है-

  1. वसीयतकर्ता तथा वसीयतदार सक्षम हो
  2. सहमति स्वतंत्र हो.
  3. औपचारिकतायें पूर्ण हों.
  4. सम्पत्ति वसीयत करने योग्य हो.
  5. वसीयतकर्ता की वसीयत करने का अधिकार प्राप्त हो. वसीयत मौखिक या लिखित हो सकती है.

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधान वसीयत पर लागू नहीं होते हैं.

मौखिक वसीयत

यदि वसीयत मौखिक हो तो वसीयत करने वाले की इच्छा स्पष्टतः सिद्ध होनी चाहिये. इस प्रकार जो व्यक्ति बोलने में असमर्थ है, वह इशारे आदि द्वारा वसीयत कर सकता है. मौखिक वसीयत की प्रामाणिकता का भार अत्यन्त कठिन है क्योंकि वसीयत की यथार्थता, परिस्थिति, समय एवं स्थान का प्रमाण आवश्यक है.

लिखित वसीयत

लिखित वसीयत अप्रमाणित तथा बिना हस्ताक्षर के भी हो सकती है.

मजहर हुसैन बनाम बोधा बीबी, [(1818) 21 इलाहाबाद 91] के बाद में प्रिवी काउन्सिल ने यह निर्णय दिया कि मृत्यु के पूर्व लिखा गया पत्र, जिसमें सम्पत्ति के बन्दोबस्त के लिये. निर्देश अन्तर्विष्ट थे, एक मान्य वसीयत संघटित करता था.

मोहम्मद यूसुफ बनाम बोर्ड आफ रेवेन्यू (AIR 2005 इलाहाबाद 199) के में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह अवलोकन किया है कि वसीयत के निष्पादन में वसीयतकर्ता का आशय स्पष्ट हो इसके लिये विधिक औपचारिकतायें पूर्ण होनी चाहिये.

वसीयतनामे को लिखने वाले व्यक्ति को अनुप्रमाणक साक्षी नहीं माना जा सकता.

वसीयत कौन कर सकता है?

1. वयस्क द्वारा वसीयत

मुस्लिम विधि के अनुसार, प्रत्येक स्वस्थ मस्तिष्क वाले वयस्क व्यक्ति को अपनी सम्पत्ति को वसीयत करने का अधिकार होता है. वसीयत के लिये वयस्कता भारतीय वयस्कता अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार नियमित होती है, अर्थात् वयस्कता की आयु 18 वर्ष का होने पर प्राप्त होती है.

2. अवयस्क द्वारा वसीयत

एक अवयस्क की वसीयत अमान्य होती है, परन्तु वह उसे वयस्क होने पर अनुसमर्थन द्वारा मान्य कर सकता है.

3. पागल व्यक्ति द्वारा वसीयत

ऐसे व्यक्तियों द्वारा की गई वसीयत बिल्कुल निष्प्रभावी होती है.

4. धर्मत्यागी द्वारा वसीयत

मलिकी सम्प्रदाय के अनुसार, धर्म त्याग वसीयत को रद्द कर देता है, परन्तु हनफी सम्प्रदाय के अनुसार, वसीयत यदि उस व्यक्ति के मूल सम्प्रदाय के अनुसार वैध हो, तो मान्य हो सकती है. इस प्रकार, यदि कोई व्यक्ति वसीयत करने के समय मुस्लिम है, परन्तु बाद में किसी अन्य धर्म को स्वीकार कर लेता है और मृत्यु के समय मुसलमान नहीं रहता, तो मलिकी विधि के अनुसार, उसके द्वारा की गई वसीयत उसके धर्मत्याग के कारण अमान्य हो जायेगी क्योंकि मलिकी विधि के अनुसार, वसीयतकर्ता को वसीयत करने के समय के साथ मृत्यु के समय भी मुसलमान रहना चाहिये. परन्तु हनफी विधि के अनुसार, धर्म-त्याग के कारण वसीयत अमान्य नहीं होगी.

5. दिवालिये व्यक्ति द्वारा

दिवालिये व्यक्ति द्वारा निष्पादित वसीयत के विषय में नियम यह है कि यदि उसका ऋण एवं आर्थिक दायित्व सम्पत्ति के कुल मूल्य से अधिक हो तो वसीयत के प्रावधान निष्प्रभावी माने जायेंगे. किन्तु यदि ऋणदातागण वसीयतकर्ता को समस्त दायित्वों से मुक्त कर दें तो वसीयत पूर्णतया मान्य होगी. यदि ऋण की अदायगी के बाद कुछ सम्पत्ति बचती हो तो उसी बचे हुये भाग पर वसीयत लागू होगी.

6. आत्महत्या करने वाले व्यक्ति द्वारा वसीयत

सुन्नी विधि के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति ने आत्महत्या करने से पूर्व अपनी सम्पत्ति की वसीयत लिखी है, तो वह मान्य होगी. शिया विधि के प्रावधान इस विषय में भिन्न हैं, शिया विधि के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति ने आत्महत्या करने की कोई कार्यवाही करने के पूर्व वसीयत लिखी है, तो वह मान्य होगी किन्तु यदि उसने आत्महत्या करने की कोई कार्यवाही करने के बाद वसीयत लिखी है तो ऐसी वसीयत मान्य न होगी.

एक मान्य वसीयत किसके पक्ष में की जा सकती है

A. निम्नलिखित के पक्ष में वसीयत की जा सकती है-

  1. सम्पत्ति रखने में सक्षम किसी व्यक्ति के लिये.
  2. किसी संस्था की भलाई के लिये.
  3. किसी धार्मिक या खैराती प्रयोजन के लिये जो इस्लाम के विपरीत न हो.

B. वसीयतग्रहीता को सक्षमता-

  1. उसमें सम्पत्ति का अधिकारी होने की क्षमता हो.
  2. वह वसीयत की तारीख पर वर्तमान हो.
  3. आयु, लिंग, सम्प्रदाय, धर्म आदि बाधा नहीं उपस्थित करते हैं.

कुछ खास मामले

  1. अजन्मे व्यक्ति को वसीयत की जा सकती है यदि वह वसीयत की तारीख से 6 माह के भीतर पैदा हो जाता है एवं वसीयतकर्ता की मृत्यु के समय जीवित है.
  2. ऐसे व्यक्ति के पक्ष में की गई वसीयत जो वसीयतकर्ता की मृत्यु वसीयत के पश्चात्कारित कर देता है, निष्प्रभावी होती है. जब कोई मुस्लिम किसी व्यक्ति के पक्ष में वसीयत कर दे और तत्पश्चात् उसे (रिक्थग्राही) के द्वारा हत्या कर दिया जाय तो ऐसी वसीयत शून्य हो जाती है. शिया विधि के अन्तर्गत केवल साशय हत्या ही वसीयत को शून्य करती है.
  3. उत्तराधिकारी के पक्ष में वसीयत शून्य होती है जब तक कि वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात् अन्य अधिकारीगण अपनी सहमति न दे दें. शिया विधि के अन्तर्गत इस प्रकार की वसीयत सम्पत्ति के तृतीयांश की सीमा तक उत्तराधिकारियों की सहमति के बिना भी वैध होती है |

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