मुस्लिम विधि के स्रोत क्या है?

मुस्लिम विधि के स्रोत

मुस्लमानों का नियम ईश्वरीय ज्ञान पर आधारित है और धर्म के साथ भी मिला-जुला है |

मुस्लिम विधि के स्त्रोत

सुन्नी विधि के अनुसार मुस्लिम विधि के चार प्रमुख स्रोत हैं-

  1. कुरान
  2. अहादिस
  3. इजमा
  4. कियास

उपर्युक्त चारों स्त्रोत स्वयं पैगम्बर से प्रमाणित माने जाते हैं. इनके अलावा निम्नलिखित अन्य स्रोत भी बताये जाते हैं-

  1. रीति-रिवाज
  2. न्यायिक विनिश्चय
  3. विधायन
  4. न्याय, साम्या तथा सद्विवेक |

1. कुरान

कुरान शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द ‘कुर्रा’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है- पढ़ना या जो पढ़ा जाना चाहिये. कुरान, मुस्लिम विधि की उत्पत्ति का प्रथम पवित्र दैवी मूल स्रोत है. इसका एक-एक शब्द ईश्वर ने स्वयं के आदेश के रूप में प्रेषित किया है. कुरान में ईश्वर ने पैगम्बर मुहम्मद साहब को प्रत्यक्ष उपदेश दिया है. इसमें विषयानुसार 114 अध्याय (सुरा) और 6234 आयतें हैं. कुरान के प्रत्येक सुरा का नामकरण कर दिया गया है जो अधिकांशतः उसमें दी गई आयतों के विषयों पर आधारित हैं. केवल 200 आयतें हो विधि के क्षेत्र में आती हैं. इनमें से 80 आयतें वैयक्तिक मामलों के बारे में हैं.

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कुरान मुस्लिम विधि का सबसे अधिक प्रामाणिक स्रोत माना गया है. इसलिये यदि किसी आयत का कोई विशिष्ट अर्थ शिया या सुन्नी विधिशास्त्रियों द्वारा पहले ही दिया जा चुका है तो अदालतों को उस आयत विशेष का दूसरा अर्थ देने का अधिकार नहीं प्राप्त है.

यद्यपि कुरान मुस्लिम विधि का सर्वप्रथम स्रोत माना गया है और महत्वपूर्ण भी कहा जाता है, परन्तु निष्पक्ष दृष्टि से देखने पर कुरान स्वयं प्रथम स्रोत होते हुये भी एक संशोधन अधिनियम है, पूर्ण विधि संहिता नहीं |

2. अहादिस तथा सुन्ना

वास्तव में अहादिस और सुन्ना मुहम्मद साहब के आचरणों तथा कथनों का लेख है. जिसे मुहम्मद साहब के जीवनकाल में लिखा नहीं गया था, बल्कि मुहम्मद साहब के अनुपायियों एवं शिष्यों ने इनको परम्परागत रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पौढ़ी को बताया. मुहम्मद साहब के आचरणों एवं कथनों को लिखित रूप मुहम्मद साहब के जीवनकाल के बाद प्रदान किया गया. यह कहना अनुचित न होगा कि अहादिस और सुन्न कुरान के पूरक हैं.

यदि किसी विषय में कुरान के प्रावधान मूक या दुर्बोध होते हैं, तो वहाँ सुन्ना य अहादिस के आधार पर नियम माना जाता है |

3. इजमा

जहां कहीं किसी विषय पर कुरान के प्रावधान मूक होते हैं और सुन्ना एवं अहादिस में भी उन विषयों पर कुछ नहीं मिलता है वहाँ इज्मा को विधि का आधार बनाया जाता है. इजमा मुस्लिम विधि का एक तीसरा स्रोत है. वास्तव में इजमा का अर्थ है- किसी विषय पर विधिशास्त्रियों का एकमत होना. यदि किसी कानून सम्बन्धी ऐसे प्रश्न पर जिसका प्रावधान न तो कुरान में हो और न अहादिस तथा सुन्ना में हो तो ऐसी परिस्थिति में इजमा के आधार पर कथित विधिक समस्या का हल ढूँढा जाता है.

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नोट – शिया सम्प्रदाय सिर्फ उसी इजमा को विधि का स्रोत मानता है जिसके सृजन में पैगम्बर मुहम्मद के परिवार के लोगों ने भाग लिया |

4. कियास

मुस्लिम विधि के उद्गम का चौथा स्त्रोत कियास है कियास का शाब्दिक अर्थ तार्किक तुलना या तुलनीयता के आधार पर तर्क देकर दो वस्तुओं को एक समान सिद्ध करना है.

D.F. मुल्ला के अनुसार, कियास तुलना द्वारा न्याय है. विल्सन ने कियास की परिभाषा इस प्रकार की है- किसी मूल पाठ में अन्तर्निहित भाव का दूसरी स्थिति जो वस्तुतः उसकी परिलक्षित शब्दावली में न हो, से सादृश्यमूलक अनुमान करने को ही कियास कहते हैं |

अतिरिक्त विधि स्रोत

उपर्युक्त स्त्रोतों से प्राप्त विधिक सिद्धान्त सतत परिवर्तनशील समाज की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में अपर्याप्त हैं. इस कमी को पूरा करने के लिये कानून के दूसरे स्रोतों का आधार लिया गया है. ये अतिरिक्त विधि स्रोत हैं-

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1. रिवाज तथा रीतियाँ

जिनमें कानून का सा बल हो, ऐसे रिवाज तथा रूढ़ियाँ कानून के उद्गम माने जाते हैं. रीति-रिवाजों में इतना अधिक बल है कि पंजाब में तथा कुछ वर्गों में, उदाहरणार्थ खोजा जातियों में तो हिन्दुओं के रीति-रिवाजों का अनुकरण करके मुसलमानों ने अपने कानूनी सिद्धान्तों को संशोधित किया है.

अब्दुल हुसैन बनाम सोना डेरो (1917, 45 IA 10) के बाद में प्रिवी कौंसिल ने यह कहा कि किसी मूल ग्रन्थ के लिखित कानून की तुलना में एक प्राचीन तथा अपरिवर्तनीय प्रथा को वरीयता मिलेगी. अनुकरण किये गये इन रीति-रिवाजों के विधिक सिद्धान्तों को विधान माना गया है तथा न्यायालयों द्वारा अनुमोदन प्राप्त हुआ है. रिवाजों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. बहुविवाह
  2. स्त्रियों का आदर
  3. मेहर
  4. तलाक
  5. मौखिक वसीयत |

2. न्यायिक विनिश्चय

विधि के उद्गम का यह एक और स्रोत है. विधि के विभिन्न स्रोतों में न्यायिक कथनों का भी महत्वपूर्ण स्थान है. प्रतिदिन देश के उच्च एवं उच्चतम न्यायालय मुकदमों का निर्णय करने के लिये विधि सम्बन्धी बहुत से प्रश्नों का निश्चयन करते हैं और इस प्रकार अनेक नियमों का प्रतिपादन होता है. ये नियम अधीनस्थ न्यायालयों में भविष्य में दिये जाने वाले निर्णयों पर बाध्यकारी होते हैं. धीरे-धीरे न्यायिक विनिश्वय न्यायलयों के लिये कानून का रूप धारण कर लेते हैं और उसके लिये उसी प्रकार मान्य हो जाते हैं जिस प्रकार विधायन द्वारा निर्मित कानून |

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3. विधायन

विधायन विधि के उद्गम का एक स्रोत है. प्रत्येक देश में विधायन द्वारा कानूनों का निर्माण किया जाता है. भारत में निम्नलिखित विधायन हैं—

  1. गार्जिएन्स एण्ड वाईस एक्ट, 1890
  2. मुस्लिम वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट, 1913
  3. मुस्लिम वक्फ एक्ट, 1923
  4. चाइल्ड मैरिजेज रेस्ट्रेण्ट एक्ट, 1929
  5. शरियत एक्ट, 1937
  6. डिस्सोलुशन ऑफ मुस्लिम मेरिजेज एक्ट, 1939
  7. मुस्लिम महिला (तक के पश्चात अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986
  8. प्राहिबिशन आफ चाइल्ड मैरिज ऐक्ट, 2006 |

4. न्याय, साम्या तथा सद्विवेक

न्याय, साम्या तथा सद्विवेक का सिद्धान्त मुस्लिम विधि का एक महत्वपूर्ण आधार है. इस सिद्धान्त की नींव भारत में अंग्रेजों द्वारा डाली गई, जिसका मतलब था कि मुस्लिम विधि के नियमों के अभाव में यह नियम लागू करना. विधि के उद्गम का यह अन्तिम स्रोत है.

मुस्लिम विधि के उद्गम के उक्त स्रोतों के विषय में यह जान लेना आवश्यक है कि सुत्री विधि के अनुसार मुस्लिम विधि के मुख्य स्रोत कुरान सुन्ना तथा अहादिस इजमा और कियास ही हैं किन्तु शिया विधि के मतानुसार मुस्लिम विधि के स्रोत केवल कुरान, अहादिस और तर्क ही हैं.

इस प्रकार हम यह निष्कर्ष पाते हैं कि सुन्नी एवं शिया दोनों मुसलमान कुरान को मुस्लिम विधि का प्रथम स्रोत मानते हैं. शिया लोग पैगम्बर व उनके खानदानों के रिवाजों को अहादिस के रूप में मानते हैं और जब इनमें भी कोई नियम नहीं मिलता है तो इमाम के तर्क की विधि को मानते हैं |

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