Table of Contents
- 1 अधिवक्ता के सामान्य कर्त्तव्य
- 2 1. अपने मुवक्किल के मामले की पैरवी करना
- 3 2. अनावश्यक शुल्क वसूल न करना
- 4 3. पक्षकारों की ओर से उपस्थिति देना
- 5 4. मिथ्या एवं कूटरचित दस्तावेज आदि प्रस्तुत न करना
- 6 5. पक्षकारों द्वारा दी गई राशि को नहीं रोकना
- 7 6. पक्षकारों की सम्पत्ति को क्रय न करना
- 8 7. न्यायालय की गरिमा को बनाये रखना
- 9 8. अन्य कोई व्यवसाय न करना
- 10 9. अनावश्यक स्थगन न लेना
- 11 10. विपक्ष के साथ दुरभिसंधि न करना
- 12 11. बार-बैंच के बीच सौम्य संबंध बनाये रखना
- 13 12. पक्षकारों को गलत राय न देना
- 14 13. न्यायालय में अपने पक्ष में निर्णय के लिए अवैध रूप से लेनदेन न करना
- 15 14. अन्य महत्वपर्ण कर्त्तव्य
अधिवक्ता के सामान्य कर्त्तव्य
अधिवक्ता के सामान्य कर्त्तव्य क्या हैं? अधिवक्ता का कार्य एक पवित्र कार्य है जिसे समर्पित भाव से किया जाना चाहिये. किसी मामले में पैरवी करने के लिए अधिवक्ता को अनेक अधिकार दिये गये हैं उसी प्रकार उस पर अनेक कर्त्तव्य भी आरोपित किये गये हैं. ये कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं-
1. अपने मुवक्किल के मामले की पैरवी करना
अधिवक्ताओं का सबसे पहला कर्त्तव्य अपने पक्षकारों के मामले की पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से पैरवी करना है. अधिवक्ता को सदैव इस बात के लिये प्रयासरत रहना होता है कि मामले में उसके पक्षकार को विजय हो. यदि अधिवक्ता अपने पक्षकारों की पैरवी में शिथिलता अथवा लापरवाही बरतता है तो वह वृत्तिक अवचार का दोषी भी हो जाता है.
अब तो कई मामलों में यह अभिनिर्धारित किया जा चुका है कि यदि कोई अधिवक्ता जानबूझकर अपने पक्षकारों के मामलों की पैरवी में लापरवाही बरतता है तो ऐसे अधिवक्ता के विरुद्ध उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम के अन्तर्गत कार्यवाही की जा सकती है. इस प्रकार अधिवक्ता का यह कर्तव्य बन जाता है कि वह पूर्ण निष्ठा से अपने मुवक्किल के मामले की पैरवी करे.
2. अनावश्यक शुल्क वसूल न करना
अधिवक्ताओं का यह भी कर्त्तव्य है कि ये अपने पक्षकारों से केवल वहीं शुल्क वसूल करें जो दोनों के बीच तय हुआ हो. अधिवक्ता पक्षकारों से अनावश्यक शुल्क वसूल नहीं कर सकते हैं. यदि करते हैं तो यह भी अधिवक्ता का एक अवचार हो माना जायेगा.
जब कोई व्यक्ति अपने मामलों में अधिवक्ता की नियुक्ति करता है तब ही दोनों पक्षों के बीच शुल्क आदि की शर्त तय हो जाती है. वकालतनामे में इस बात का उल्लेख किया जाता है. अत: एक बार शुल्क तय हो जाने के पश्चात अधिवक्ता को उसी शुल्क की सीमा में रहकर मामले की पैरवी करनी चाहिये.
3. पक्षकारों की ओर से उपस्थिति देना
अधिवक्ताओं का यह भी कर्त्तव्य है कि वे न्यायालय में अपने पक्षकारों की ओर से उपस्थिति दें. यदि किसी तिथि पर पक्षकार उपस्थित नहीं होता है तो अधिवक्ता को समय पर न्यायालय में उपस्थित होकर अपने पक्षकार की उपस्थिति को माफ करने का प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करना चाहिये. ऐसा न हो कि पक्षकार भी उपस्थित न रहे और अधिवक्ता भी उपस्थित न रहे. एक मामले में तो यहां तक कहा गया है कि आपराधिक मामले में अधिवक्ताओं को दिन-प्रतिदिन न्यायालय में उपस्थिति देनी चाहिये.
4. मिथ्या एवं कूटरचित दस्तावेज आदि प्रस्तुत न करना
अधिवक्ताओं का यह कर्त्तव्य है कि वे किसी भी मामले में अपने पक्षकारों की तरफ से किसी भी प्रकार के मिथ्या अथवा कूटरचित दस्तावेज आदि प्रस्तुत न करें. यदि कोई अधिवक्ता इस प्रकार के दस्तावेज प्रस्तुत करता है तो ऐसे अधिवक्ता के विरुद्ध भी नियमानुसार कार्यवाही की जा सकती है. साथ हो अधिवक्ता अधिनियम के अन्तर्गत ऐसे अधिवक्ताओं को कदाचार के लिये दोषी भी ठहराया जा सकता है. अतः अधिवक्ताओं को इस प्रवृत्ति से सदैव बचते रहना चाहिये.
5. पक्षकारों द्वारा दी गई राशि को नहीं रोकना
जहां न्यायालय में जमा कराने के लिये पक्षकारों द्वारा कोई धनराशि अधिवक्ता को दी गई हो तो अधिवक्ता का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह इस राशि को यथासमय न्यायालय में जमा कराये. यदि कोई अधिवक्ता ऐसी राशि को न्यायालय में जमा नहीं कराता है और उसे अपने पास रोक लेता है तो ऐसे अधिवक्ता के विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है.
कई बार देखा जाता है कि किरायेदारी के मामलों में किरायेदारों द्वारा किराये की राशि न्यायालय में जमा कराने के लिये अधिवक्ताओं को दी जाती है लेकिन अधिवक्ता न्यायालय में जमा नहीं करा कर उसे अपने उपयोग में ले लेते हैं. इससे किरायेदारों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. वह चूककर्त्ता हो जाता है. अतः ऐसे मामलों व अन्य मामलों में भी अधिवक्ता का यह कर्त्तव्य है कि वह इस प्रकार की राशि को बीच में ही रोके नहीं.
6. पक्षकारों की सम्पत्ति को क्रय न करना
अधिवक्ताओं से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे पक्षकारों की वादग्रस्त सम्पत्ति को न तो क्रय करें. यदि कोई अधिवक्ता वादग्रस्त सम्पत्ति को अपने लाभ के लिये क्रय कर लेता है तो इसे अधिवक्ता का वृत्तिक कदाचार माना जायेगा. ऐसे अधिवक्ता को अधिवक्ता अधिनियम के अन्तर्गत दण्डित किया जा सकता है.
7. न्यायालय की गरिमा को बनाये रखना
अधिवक्ताओं का यह कर्त्तव्य है कि वे न्यायालय की गरिमा को बनाये रखें. ऐसा कोई भी कार्य न करें जिससे न्यायालय की गरिमा को ठोस लगे. जैसा कि हम जानते हैं कि अधिवक्ता भी न्यायालय के अधिकारी माने जाते हैं. न्याय प्रशासन में उनका भी महत्वपूर्ण योगदान होता है. ऐसी दशा में अधिवक्ताओं का यह कर्तव्य बन जाता है कि वे न्यायालय की गरिमा को अक्षुण्ण बनाये रखें. अधिवक्ता को चाहिए कि जिस किसी भी न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो रहा है, उसका सम्मान करे और उसकी गरिमा के अनुसार व्यवहार करे.
8. अन्य कोई व्यवसाय न करना
अधिवक्ताओं का यह कर्त्तव्य है कि वे अपने विधि व्यवसाय के साथ-साथ अन्य कोई ऐसा व्यवसाय नहीं करें जिससे विधि व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े. विधि व्यवसाय एक पूर्णकालिक व्यवसाय है इसमें अधिवक्ताओं को पूरा समय देना होता है. अतः यह आवश्यक है कि अधिवक्ता को अन्य कोई व्यवसाय करने की अनुमति नहीं दी जावे. यदि अधिवक्ता अन्य कोई व्यवसाय करने लगता है तो इससे वह विधि व्यवसाय के साथ न्याय नहीं कर पायेगा. अतः अधिवक्ताओं को पूर्ण समर्पित भाव से विधि व्यवसाय में लगे रहना चाहिये. विधि व्यवसाय पूर्णकालिक व्यवसाय है. इस व्यवसाय के साथ-साथ कोई अंशकालिक व्यवसाय नहीं किया जा सकता.
9. अनावश्यक स्थगन न लेना
अधिवक्ताओं का यह कर्त्तव्य है कि वह मामले को पैरवी में सदैव तत्परता बरतें. न्यायालय से अनावश्यक स्थगन नहीं लें. त्वरित न्याय के लिये ऐसा किया जाना आवश्यक है. कई बार यह देखा जाता है कि अधिवक्ता अनावश्यक स्थगन लेकर मामले में विचारण को लम्बित करते हैं. इस प्रवृत्ति से न्याय में विलम्ब होता है. अतः इस प्रवृत्ति को सदैव टाला जाना चाहिये.
10. विपक्ष के साथ दुरभिसंधि न करना
अधिवक्ताओं का यह भी कर्त्तव्य है कि जिस पक्षकार के मामलों की वे पैरवी कर रहे हैं उसके प्रति पूर्ण निष्ठावान रहें. इसके लिये यह आवश्यक है कि अधिवक्ताओं को विपक्ष के साथ न तो दुरभिसंधि करनी चाहिये और न ही उनसे ऐसा कोई अवैध लाभ प्राप्त करना चाहिये जिससे उनके पक्षकारों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े.
11. बार-बैंच के बीच सौम्य संबंध बनाये रखना
अधिवक्ताओं से यह अपेक्षा को जाती है कि वे बार-बैंच के बीच सदैव मधुर संबंध बनाये रखें. वे ऐसा कोई कार्य नहीं करें जिससे बार और बैंच के बीच संबंधों में दरार पड़े.
बार और बैंच न्याय प्रशासन के दो आवश्यक घटक है. अतः यदि दोनों के बीच अलगाव, विलगाव अथवा सौहार्द उत्पन्न हो जाता है तो न्याय प्रशासन कार्य नहीं कर सकता. अतः न्याय प्रशासन को गतिशील बनाये रखने के लिए बार एवं बैंच के बीच अच्छे संबंध बनाए रहना आवश्यक है.
12. पक्षकारों को गलत राय न देना
अधिवक्ताओं का यह भी कर्त्तव्य है कि वे अपने पक्षकारों को कभी भी गलत राय न दें यदि कोई अधिवक्ता अपने पक्षकार का मामला हार जाता है तो अधिवक्ता का यह कर्तव्य है कि वह अपने पक्षकार को निर्णय के विरुद्ध अपील, पुनरीक्षण, पुनरावलोकन आदि की राय दे. इस संदर्भ में अधिवक्ता का यह भी कर्त्तव्य बन जाता है. वह अपील, पुनरीक्षण, पुनरावलोकन आदि के लिये समय पर न्यायालय से निर्णय, आदेश अथवा डिक्री की प्रतिलिपि प्राप्त करे और समय पर उन्हें न्यायालय में प्रस्तुत करे.
13. न्यायालय में अपने पक्ष में निर्णय के लिए अवैध रूप से लेनदेन न करना
अधिवक्ताओं का यह कर्त्तव्य है कि वे पैरवी के दौरान किसी भी कार्य को जल्दी कराने अथवा अपने पक्ष में कराने के लिये किसी भी प्रकार का अवैध लेनदेन नहीं करें. अवैध लेनदेन से अभिप्राय यह है कि वह किसी को भी किसी प्रकार की रिश्वत, परितोषण आदि न दें.
14. अन्य महत्वपर्ण कर्त्तव्य
उपरोक्त कर्त्तव्यों के अतिरिक्त अधिवक्ताओं के और भी कई महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य हैं. संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अधिवक्ताओं को वह सारे कार्य करने चाहिये जो उनके पद की गरिमा के अनुकूल हों, जैसे- अधिवक्ता न्यायालय में सदैव निर्धारित पोशाक में आयें, अधिवक्ता न्यायालय में समय पर उपस्थित हो जायें, अधिवक्ता, न्यायालय में अनावश्यक विलम्ब को टालें, आदि |