उपधारणायें क्या हैं? : अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार?

उपधारणा से आप क्या समझते हैं?

उपधारणायें क्या हैं?

न्याय में उपधारणा शब्द को विशेष तथा संकुचित अर्थ में लिया जाता है. सामान्यतया उपधारणा से किसी तथ्य के अस्तित्व के विषय में सकारात्मक या नकारात्मक अनुमान से अभिप्रेत है. जो न्यायालय के तर्क के आधार पर किसी दूसरे ऐसे तथ्यों से निकलता है. जो सर्वस्वीकृत हो या जिसकी न्यायिक अवेक्षा की जा सके या जो न्यायालय को समाधान प्रदान करने वाले रूप में साबित कर दिये गये हैं. दूसरे शब्दों में उपधारणा एक तथ्य का अनुमान है. जो किन्हीं अन्य जाने हुए या साबित किये हुए तथ्यों से निकाला जाता है.

उपधारणा का शाब्दिक अर्थ होता है बिना जांच या सबूत के सत्य मान लेने से है. संक्षेप में उपधारणा एक अनुमान है जो विपरीत साक्ष्य न मिलने पर दिया जाता है. जब न्यायालय किसी तथ्य के अस्तित्व को मान ले अथवा उपधारित कर ले तो इसे उपधारणा कहते हैं. इसका प्रभाव यह होता है कि जिस पक्षकार के पक्ष में उपधारणा होती है, वह उस तथ्य को साबित करने के भार से बच जाता है |

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उपधारणाओं के प्रकार

उपधारणायें निम्न प्रकार की होती हैं-

  1. तथ्य की उपधारणा (Presumption Of Facts )
  2. विधि की उपधारणा (Presumption Of Law)
    • (1) खण्डनीय उपधारणा (Rebutable Presumptions)
    • (2) अखण्डनीय उपधारणा (Irrebutable Presumptions)
  3. मिश्रित उपधारणा (Mixed Presumptions)

1. तथ्य की उपधारणा

तथ्य की उपधारणा ऐसा अनुमान है जो प्राकृतिक रूप से प्रकृति के क्रम के निरीक्षण और मानवीय मस्तिष्क की रचना से निकाले जाते हैं अर्थात किसी तथ्य के अस्तित्व का तार्किक एवं स्वाभाविक अनुमान है जो बिना किसी कानूनी मदद के निकाले जाते हैं. ये उपधारणायें केवल तार्किक निष्कर्ष हैं जो किन्हीं अन्य तथ्यों के साबित होने पर निकाले जाते हैं.

तथ्य की उपधारणा, उपधारणा कर सकेगा, (My Presume) के बराबर है तथा प्रायः खण्डनीय होती है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम में इनको निम्नलिखित प्रकार से उल्लिखित किया गया है-

  1. धारा 86 के अनुसार विदेशी न्यायिक अभिलेख की प्रमाणित प्रति.
  2. धारा 87 के अनुसार पुस्तकों, मानचित्रों और चाटों के बारे में.
  3. धारा 88 के अनुसार तार सन्देश.
  4. धारा 88A के तहत इलेक्ट्रॉनिक सन्देश.
  5. धारा 90 के तहत तीस वर्ष पुरानी दस्तावेज.
  6. धारा 90A के अनुसार पांच वर्ष पुरानी इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख.
  7. धारा 113A के अनुसार किसी विवाहित स्त्री द्वारा आत्महत्या के दुष्प्रेरण.
  8. धारा 114 के तहत तथ्यों के अस्तित्व के बारे में.

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2. विधि की उपधारणा

विधि की उपधारणायें कृत्रिम अनुमान हैं जिनको विधि के अनुसार निश्चित किया जाता है. ये कानूनी तथा इच्छाधीन अनुमान होते हैं जिन्हें कानून किन्ही खास तथ्यों से निकालने के लिए न्यायाधीश को निर्दिष्ट करता है. विधि की उपधारणा के मामलों में न्यायालय का विवेक नहीं होता है और न्यायालय तथ्य को साबित करने के लिए बाध्य होता है जब तक कि हितबद्ध पक्षकार द्वारा उसे नासाबित नहीं कर दिया जाता है.

विधि की उपधारणायें दो प्रकार की होती हैं-

  1. अखण्डनीय उपधारणा
  2. खण्डनीय उपधारणा

(1). खण्डनीय उपधारणा

खण्डनीय उपधारणायें ऐसे निष्कर्ष हैं जिन्हें न्यायालय निकालने के लिए बाध्य है जब तक कि विरुद्ध साक्ष्य द्वारा उसे नासाबित नहीं किया जाता है. इसका प्रभाव यह होता है कि पक्षकार प्रमाणभार से बरी हो जाता है. खण्डनीय उपधारणायें, उपधारणा करेगा, (Shall Presume) के अन्तर्गत आती है.

इनका उल्लेख साक्ष्य अधिनियम में निम्नानुसार किया गया है-

  1. धारा 79 के तहत प्रमाणित प्रतियों के असली होने के बारे में उपधारणा.
  2. धारा 80 के तहत साक्ष्य के अभिलेख के तौर पर पेश की गई दस्तावेजों के बारे में उपधारणा.
  3. धारा 81 के तहत राजपत्रों समाचार पत्रों, पार्लियामेण्ट के प्राइवेट एक्टों और अन्य दस्तावेज के बारे में उपधारणा.
  4. धारा 83 के तहत सरकार द्वारा बनाये गये मानचित्र या रेखांकों के बारे में उपधारणा.
  5. धारा 85 के तहत मुख्तारनामों के बारे में उपधारणा.
  6. धारा 89 के तहत पेश न की गई दस्तावेजों के सम्यक निष्पादन आदि के बारे में उपधारणा.
  7. धारा 113 के तहत किसी विवाहित स्त्री के द्वारा आत्महत्या की दुष्प्रेरणा के बारे में उपधारणा.
  8. धारा 113 (ख) में दहेज मृत्यु की उपधारणा.
  9. धारा 114 (क) में बलात्संग के लिए कुछ अभियोजनों में सम्मति न होने की उपधारणा.

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सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के द्वारा निम्न प्रावधानों को जोड़ा गया-

  1. धारा 81A इलेक्ट्रॉनिक रूप में राजपत्रों के बारे में उपधारणा.
  2. धारा 85A के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक करार के बारे में उपधारणा.
  3. धारा 85B के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों और अंकीय हस्ताक्षर के बारे में उपधारणा.
  4. धारा 85C के अनुसार अंकीय हस्ताक्षर प्रमाण-पत्र के बारे में उपधारणा.

(2). अखण्डनीय उपधारणा

अखण्डनीय उपधारणाओं का अर्थ है जो निश्चायक प्रमाण है ये ऐसे अनुमान हैं, जो निश्चायक, निर्णायक और निर्विवाद प्रमाण के समान हैं. इनके विपरीत साक्ष्य देने की अनुमति नहीं दी जाती है.

साक्ष्य अधिनियम में इनका निम्नलिखित प्रकार से उल्लेख किया गया है-

  1. धारा 41 के तहत वर्णित निर्णयों के बारे में उपधारणा.
  2. धारा 112 के तहत धर्मजत्व (Legitimacy) के बारे में उपधारणा.
  3. धारा 113 के तहत राज्य क्षेत्र के अध्यर्पण के बारे में उपधारणा.

3. मिश्रित उपधारणा

ये ऐसी उपधारणायें हैं जो कि तथ्य तथा विधि की उपधारणा के मध्य की होती है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम में मिश्रित उपधारणाओं को स्थान नहीं दिया गया है |

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