न्यायिक अवेक्षा क्या है? इसका क्या सिद्धान्त है?

न्यायिक अवेक्षा क्या है? इसका क्या सिद्धांत है?

न्यायिक अवेक्षा क्या है?

न्यायिक अवेक्षा (Judicial Notice) का मतलब होता है कि न्यायाधीश द्वारा किसी तथ्य की सत्यता को मान्यता देना. बिना साक्ष्य के यदि किसी तथ्य को न्यायालय सत्य मान लेता है तो कहा जाता है कि न्यायालय ने उस तथ्य को न्यायिक अवेक्षा की है. इसका कारण यह होता है कि ऐसी अपेक्षा की जाती है कि न्यायालय को उसका ज्ञान होगा.

जैसे; देश के सामान्य विधि, विधायिका द्वारा निर्मित अधिनियम, सरकारी सील और अधिकारियों के हस्ताक्षर, साधारण शब्दों के अर्थ, समय का विभाजन, नाप-तौल के माप आदि |

न्यायिक अवेक्षा का सिद्धान्त

न्यायिक अवेक्षा का सिद्धान्त यह है कि कुछ तथ्य ऐसे होते हैं. जिनको सभी लोग जानते हैं. वे सर्वविदित होते हैं. उनके बारे में सबूत माँगना ज्ञान का अपमान करना है. कुछ तथ्य ऐसे भी होते हैं जिनके बारे में सही ज्ञान पुस्तकों में आसानी से सुलभ हो सकता है और साक्ष्य द्वारा साबित करना कठिन हो सकता है. ऐसे तथ्यों की भी न्यायिक अवेक्षा की जा सकती है और न्यायालय सम्बन्धित पुस्तक को देख सकता है.

जैसे यदि प्रश्न यह है कि ऊँट एक पालतू जानवर है या नहीं, तो इस पर साक्ष्य देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, क्योंकि न्यायालय इस तथ्य की न्यायिक अवेक्षा करेगा कि ऊँट एक पालतू जानवर है.

लक्ष्मी राजवेटी बनाम तमिलनाडू राज्य (AIR 1988 SC 1274) में अभिनिर्धारित किया गया कि यदि न्यायालय किसी तथ्य की जानकारी रखने के लिए बाध्य है तो न्यायालय द्वारा पक्षकारों को उसे साबित करने का बोझ नहीं लादा जाना चाहिए |

वे तथ्य जिनका साबित किया जाना आवश्यक नहीं है?

किसी बाद में निम्नलिखित तथ्यों को साबित करने की आवश्यकता नहीं होती है-

1. ऐसे तथ्य जिनकी न्यायालय न्यायिक अवेक्षा करता है

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 56 में बताया गया है कि न्यायालय कुछ तथ्यों को न्यायिक अवेक्षा करेगा, जिन्हें साबित करना आवश्यक नहीं है. धारा 57 में उन 13 तथ्यों को बताया गया है, जिनकी न्यायिक अवेक्षा होती है. ये तथ्य निम्नलिखित हैं-

  1. भारत के राज्य में प्रवृत्त समस्त विधियों,
  2. युनाइटेड किंगडम की पार्लियामेण्ट द्वारा पारित या एतत्पश्चात पारित किये जाने वाले समस्त एक्ट तथा वे समस्त स्थानीय और पर्सनल एक्ट, जिनके बारे में यूनाइटेड किंगडम की पार्लियामेण्ट ने निर्दिष्ट किया है कि उसकी न्यायिक अवेक्षा की जाये,
  3. भारतीय सेना, नौ सेना या वायु सेना के लिए बुद्ध की नियमावली,
  4. यूनाइटेड किंगडम की पार्लियामेण्ट की, भारत की संविधान सभा की, संसद की तथा किसी प्रान्त या राज्यों में तत्समय प्रवृत्त विधियों के अधीन स्थापित विधानमण्डलों की कार्यवाही का अनुक्रम,
  5. ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की यूनाइटेड किंगडम के तत्समय संप्रभु का राज्यारोहण और राज्य हस्ताक्षर,
  6. वे सब मुद्रायें, जिनकी अँग्रेजी न्यायालय न्यायिक अवेक्षा करते हैं,
  7. किसी राज्य में किसी लोकपद पर तत्समय आरूढ़ व्यक्तियों के कोई पदारोहण, नाम, उपाधियाँ, कृत्य और हस्ताक्षर, यदि ऐसे पद पर उनकी नियुक्ति का तथ्य किसी शासकीय राजपत्र में अधिसूचित किया गया हो,
  8. भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हर राज्य या संप्रभु का अस्तित्व, उपाधि और राष्ट्रीय ध्वज,
  9. समय के प्रभाग, पृथ्वी के भौगोलिक प्रभाग तथा शासकीय राजपत्र में अधिसूचित लोक उत्सव, उपवास और अवकाश दिन,
  10. भारतीय सरकार के आधिपत्य के अधीन राज्य-क्षेत्र,
  11. भारत सरकार और अन्य किसी राज्य या व्यक्तियों के निकाय के बीच संघर्ष का प्रारम्भ, चालू रहना और पर्यवसान,
  12. न्यायालय के सदस्यों और ऑफीसरों के तथा उनके उप-पदीयों और अधीनस्थ ऑफीसरों और सहायकों के और उनको आदेशिकाओं के निष्पादन में कार्य करने वाले सब ऑफीसरों के भी, तथा सब अधिवक्ताओं, अटानियों, प्रॉक्टरों वकीलों, प्लीडरों और उनके समक्ष उपसंजात होने या काम करने के लिए किसी विधि द्वारा प्राधिकृत अन्य व्यक्तियों के नाम, तथा
  13. भूमि का या समुद्र पर मार्ग का नियम.

राजकुमार सेठी बनाम जानकी देवी (AIR 2018 NOC 682) दिल्ली के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि राजस्व अभिलेख पर अंकित मोहर एवं उसके अभिप्राय (Seal And Notions) के सम्बन्ध में न्यायिक अवेक्षा लेने के लिए न्यायालय आबद्ध है. राजस्व अभिलेख (जमाबन्दी) लोक दस्तावेज है.

2. स्वीकृत तथ्य

धारा 58 भारतीय साक्ष्य अधिनियम में यह कहा गया है कि किसी ऐसे तथ्य को किसी कार्यवाही में साबित करना आवश्यक नहीं है. जिसे उस कार्यवाही के पक्षकार या उनके अभिकर्ता सुनवायी पर स्वीकार करने के लिए सहमत हो जाते हों या जिसे वे सुनवाई के पूर्व किसी स्व-हस्ताक्षरित लेख द्वारा स्वीकार करने के लिए सहमत हो जाते हों या जिसके बारे में अभिवचन सम्बन्धी किसी तत्समय प्रवृत्त नियम के अधीन यह समझ लिया जाता है कि उन्होंने उसे अपने अभिवचनों द्वारा स्वीकार कर लिया है.

3. वे तथ्य जिनकी उपधारणा की जाती है

कुछ तथ्यों के साबित होने पर न्यायालय एक दूसरे तथ्य के अस्तित्व या अनस्तित्व पर अनुमान लगा लेता है और तब उस दूसरे तथ्य का साबित किया जाना आवश्यक नहीं रह जाता. यदि ‘अ’ का जन्म उसकी माँ और ‘ब’ के वैध विवाह के दौरान हुआ था तो न्यायालय यह मान लेगा कि ‘अ’ ‘ब’ का वैध पुत्र है और वैधता साबित किया जाना आवश्यक नहीं होगा |

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