कूटरचना के अपराध की परिभाषा एवं आवश्यक तत्व | IPC 463 In Hindi

कूटरचना के अपराध की परिभाषा एवं आवश्यक तत्व | IPC 463 In Hindi

कूटरचना की परिभाषा

कूटरचना (Forgery) का अपराध लिखाई के आविष्कार का परिणाम कहा जाता है. कूटरचना से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा मिथ्या दस्तावेज की रचना करने से है, जिसका आशय उसे उचित दस्तावेज के रूप में प्रयोग में लाना है. कूटरचना के अपराध का सार मिथ्या दस्तावेज का आपराधिक आशय से रचना करने में है.

भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 463 के अनुसार, जो कोई किसी मिथ्या दस्तावेज या मिथ्या इलेक्ट्रानिक अभिलेख या दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख के किसी भाग को इस आशय से रचता है कि लोक को या किसी व्यक्ति को नुकसान या क्षति कारित की जाए, या किसी दावे या हक का समर्थन किया जाय कि कोई व्यक्ति सम्पत्ति अलग करे या कोई अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा करे. या इस आशय से रचता है कि कपट करे तो कूटरचना का अपराध करता है.

धर्मपाल भरद्वाज बनाम स्टेट [(1985) Cr. L. J. 474] के वाद में न्यायालय ने अभिमत व्यक्त किया कि कूटरचित दस्तावेज पर कपटपूर्वक तथा बेईमानीपूर्ण आशय से उसका एक सही दस्तावेज के रूप में प्रयोग करना एक अपराध है.

इस प्रकार कूटरचना के अपराध को संरचना के लिए मिध्या दस्तावेज की सहज रचना करना ही पर्याप्त है. मिथ्या दस्तावेज रचने की कोटि में आने वाला कार्य धारा 464 में वर्णित है. कूटरचना के अपराध को करने की तैयारी मात्र अपराध नहीं हो सकता. बासप्या S. सागोती बनाम राज्य [1973 C. R. L. J. 1374] के मामले में कहा गया है कि धारा 363 में कूटरचना की दी गयी परिभाषा से स्पष्ट है कि कूटरचना के अपराध के लिए मिथ्या दस्तावेज की रचना के साथ-साथ लोक को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुँचाने का आशय भी होना चाहिये |

कूटरचना के आवश्यक तत्व

  1. मिथ्या दस्तावेज या दस्तावेज के किसी भाग को रचना,
  2. ऐसी रचना इस आशय से की जाये कि-
    • किसी लोक या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुँचायो जाये, या
    • किसी दावे या हक का समर्थन किया जाय, या
    • यह किया जाये कि कोई व्यक्ति सम्पत्ति अलग करे, या
    • कोई अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा करे, वा
    • कपट करने के आशय से दस्तावेज की या दस्तावेज के किसी भाग को रचना करना |

क्या कोई व्यक्ति अपने स्वयं के हस्ताक्षर करके कूटरचना का अपराध कर सकता है?

धारा 464 के पहले स्पष्टीकरण में कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं अपने नाम का हस्ताक्षर करना कूटरचना की कोटि में आ सकेगा.

उदाहरण के लिए-

‘क’ एक विनिमयपत्र पर अपने हस्ताक्षर इस आशय से करता है कि यह विश्वास कर लिया जाये कि यह विनिमयपत्र उसी के नाम के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखा गया था. ‘क’ ने कूटरचना की है.

‘क’ के पास ‘य’ द्वारा ‘ख’ पर लिखा हुआ 10,000 रुपये का एक प्रत्ययपन्न है. ‘ख’ से कपट करने के लिए ‘क’ 10,000 रुपये में एक शून्य बढ़ा देता है और उस राशि को 1,00,000 रुपये इस आशय से बना देता है कि ‘ख’ यह विश्वास कर ले कि ‘य’ ने वह पत्र ऐसा ही लिखा था. ‘क’ ने कूटरचना की है |

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