दुष्प्रेरण क्या है? | दुष्प्रेरण की परिभाषा, आवश्यक तत्व, प्रकार एवं दुष्प्रेरक का दायित्व

दुष्प्रेरण क्या है? | दुष्प्रेरण की परिभाषा, आवश्यक तत्व, प्रकार एवं दुष्प्रेरक का दायित्व

दुष्प्रेरण की परिभाषा

जब किसी अपराध को करने में अनेक व्यक्ति हिस्सा लेते हैं तो प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग ढंग से भिन्न-भिन्न तरीके से मदद करता है. अतः उसके आपराधिक दायित्व के निर्धारण के लिए प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग की मात्रा एवं प्रकृति का अवधारणा किया जाय. भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 107 के अनुसार, वह व्यक्ति किसी बात का दुष्प्रेरण करता है जो-

  1. उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है, या
  2. अपराध करने के लिए किसी को षड्यंत्र में सम्मिलित करता है. या.
  3. अपराध करने के लिए किसी व्यक्ति को साहय सहायता देता है.

उदाहरण के लिए, ‘क’ एक लोक आफिसर न्यायालय के वारन्ट द्वारा ‘य’ को पकड़ने के लिए प्राधिकृत है. ‘ख’ इस तथ्य को जानते हुए और यह भी जानते हुए कि ‘ग’ ‘य’ नहीं है, ‘क’ को जान-बूझकर यह व्यपदिष्ट करता है कि ‘ग’, ‘य’ है और एतद्द्वारा साशय ‘क’ से ‘य’ को पकड़वाता है. यहां ‘ख’, ‘ग’ के पकड़े जाने का उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण करता है |

दुष्प्रेरण के आवश्यक तत्व

  1. एक दुष्प्रेरक हो,
  2. वह दुष्प्रेरण करे, तथा
  3. दुष्प्रेरण एक अपराध हो |

दुष्प्रेरण के प्रकार

दुष्प्रेरण के प्रकार से तात्पर्य दुष्प्रेरण के किये जाने के तरीके से है, अर्थात् किस प्रकार का कार्य किये जाने पर व्यक्ति दुष्प्रेरण का दोषी हो सकेगा. IPC की धारा 107 के अनुसार, निम्न तीन प्रकार से दुष्प्रेरण का अपराध किया जा सकता है-

1. उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण

उकसाना का शाब्दिक अर्थ है किसी कार्य को करने के लिए बढ़ावा देना, उत्तेजित करना, उदीपा करना, भड़काना अथवा प्रोत्साहित करना. साधारण शब्दों में उकसाहट किसी व्यक्ति को सदोष कार्य करने के लिए भड़काना है.

उकसाहट के लिए आवश्यक है कि कुछ सक्रिय कार्यवाही की जाये जिसका प्रभाव अपराध कार्य को प्रोत्साहन देना हो, मात्र सलाह सदैव दुष्प्रेरण नहीं होता. क्योंकि दुष्प्रेरण के लिए सक्रिय कार्यवाही जरूरी होती है उकसाने की क्रिया प्रत्यक्ष भी हो सकती है और परोक्ष भी.

गंगुला मोहन रेड्डी बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य, [(2010) 2 Cr.L.J. 2110 (SC)] के प्रकरण में यह कहा गया कि दुष्प्रेरण उकसाने की मानसिक अथवा कोई निश्चित कार्य करने में साशय सहायता पहुँचाने की प्रक्रिया आवण्टित करता है. दुष्प्रेरण हेतु अभियुक्त द्वारा कुछ सकारात्मक कार्य किया जाना आवश्यक है.

रंगा नायकी बनाम स्टेट (AIR 2005 SC 418) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि विधि में उकसाने का कोई विनिर्दिष्ट तरीका अथवा प्रारूप नहीं बताया गया है. यह आचरण द्वारा भी हो सकता है.

2. षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण

षड्यंत्र द्वारा दुष्प्ररेण के लिए निम्न बातें आवश्यक हैं-

  1. दो या अधिक व्यक्तियों के बीच षड्यन्त्र.
  2. एक कार्य या अवैध लोप किया गया हो.
  3. कार्य या लोप षड्यन्त्र के होने में हो.

षड्यंत्र दो या अधिक व्यक्तियों के बीच अपराध करने के लिए समझौता है जो कार्य किया जाय या कोई ऐसा कार्य किया जाय जो अवैध नहीं है बल्कि अवैध साधनों द्वारा किया जाय.

3. सहायता द्वारा दुष्प्रेरण

दुष्प्रेरण का तीसरा तरीका है. कार्य अथवा अवैध लोप द्वारा साशय सहायता करना. साशय सहायता द्वारा दुष्प्रेरण तीन प्रकार से हो सकता है-

  1. कार्य करके सहायता प्रदान करना,
  2. कार्य न करके अवैध लोप द्वारा, जिसका वही परिणाम हो, सहायता करना,
  3. कार्य किये जाने को आसान बनाकर सहायता करना.

उभी बनाम रेक्स के बाद में पुरोहित को द्वितीय शादी कराने के लिए अवैध लोप के आधार पर दंडित किया गया.

मोहित पाण्डे का मामला [(1871) 3 N.W.P. 316] इसमें अभियुक्त ने एक महिला से कहा था, कि यदि मरते समय राम-राम कहे तो वह सती हो जायेगी. वह महिला की चिता तक गया और उसने राम-राम का उच्चारण किया. चिता में आग लगा दी और वह जल मरी. यह धारण किया गया कि अभियुक्त आत्म हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी था |

दुष्प्रेरक का दायित्व

1. दुष्प्रेरित कार्य से भिन्न कार्य किया जाये

IPC की धारा 111 यह प्रावधान करती है कि यदि मुख्य अपराधी ने दुष्प्रेरक के आशय के अनुसरण में दुष्प्रेरित कार्य से अधिक अपराध कर दिया है तो यदि दुष्प्रेरक अपने सामान्य ज्ञान से यह जान सकता था कि दुष्प्रेरित कार्य के किये जाने के समय ऐसा कार्य किया जाना सम्भव है. तो उस कार्य के लिये भी उसे उसी प्रकार उत्तरदायी ठहराया जायेगा मानों उसने ऐसा करने के लिए ही मुख्य अपराधी को दुष्प्रेरित किया था. संक्षेप में-

  1. अभियुक्त कोई विशेष कार्य किये जाने के लिए दुष्प्रेरित किया गया हो,
  2. किया गया कार्य दुष्प्रेरण के प्रभाव के अधीन किया गया हो,
  3. वह दुष्प्रेरित कार्य का सम्भावित परिणाम हो तो ही दुष्प्रेरक को उत्तरदायी ठहरा जायेगा अन्यथा नहीं.

उदाहरण के लिए, ‘ख’ और ‘ग’ को बसे हुए गृह में अर्द्धरात्रि में लूट के प्रयोजन से भेदन करने के लिए के उकसाता है, और उनको उस प्रयोग के लिए आयुध देता है. ‘ख’ और ‘ग’ वह गृह-भेदन करते हैं, और ‘य’ द्वारा जो निवासियों में से एक है, प्रतिरोध किये जाने पर ‘य’ की हत्य कर देते यहां, यदि वह हत्या दुष्प्रेरण का अधिसम्भाव्य परिणाम थी, तो के हत्या के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय है।

2. दुष्प्रेरित अपराध से भिन्न अपराध

IPC की धारा 112 के अनुसार, यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को किसी कार्य के लिए दुष्प्रेरित करता है और वह अपराधकर्ता दुष्प्रेरित कार्य से भिन्न कार्य कर देता है जिससे भिन्न अपराध का गठन होता है तो वह दुष्प्रेरक उस भिन्न अपराध के लिए भी समान रूप उत्तरदायी होगा.

उदाहरण के लिए, ‘ख’ को एक लोकसेवक द्वारा किये गये करस्थम् का बलपूर्वक प्रतिरोध का के लिए ‘क’ उकसाता है. ‘ख’ परिणामस्वरूप उस करस्थम् का प्रतिरोध करता है. प्रतिरोध करने में ‘ख’ करस्थम् का निष्पादन करने वाले आफिसर को स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है. ने करस्थम् का प्रतिरोध करने और स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के दो अपराध किये हैं.

इसलिए ‘ख’ इन दोनों अपराधों के लिए दण्डनीय है और यदि ‘क’ यह सम्भाव्य जानता था कि उस करस्थम् का प्रतिरोध करने में स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, तो कभी उनमें से हर एक अपराध के लिए दण्डनीय होगा.

3. दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न परिणाम

IPC की धारा 113 के अनुसार, कार्य जो दुष्प्रेरक की इच्छानुसार किया जाये. परन्तु उसका प्रभाव यदि दुष्प्रेरक के आशय से अलग हो तो यदि दुष्प्रेरक उस प्रभाव के बारे में जानता था तो वह उस भिन्न प्रभाव के लिए समान रूप से उत्तरदायी ठहराया जायेगा |

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