किशोर न्याय बोर्ड के गठन, कार्य, शक्तियां, उत्तरदायित्व

किशोर न्याय बोर्ड के गठन, कार्य, शक्तियां, उत्तरदायित्व

किशोर न्याय बोर्ड का गठन

किशोर न्याय अधिनियम की धारा 4 में किशोर न्याय बोर्ड के गठन के सम्बन्ध में प्रावधानों को बताया गया है. धारा 4 के प्रावधानों के अनुसार-

किशोर न्यायिक बोर्ड

  1. दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 (1974 का 2) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार प्रत्येक जिले में एक या अधिक किशोर न्याय बोर्डों को, इस अधिनियम के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों के संबंध में शक्तियों का प्रयोग करने और अपने कृत्यों का निर्वहन करने के लिए, स्थापित करेगी.
  2. बोर्ड एक ऐसे महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट, जो मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (जिसे इसमें इसके पश्चात् प्रधान मजिस्ट्रेट कहा गया है) न हो, जिनके पास कम से कम तीन वर्ष का अनुभव हो और दो ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं से मिलकर बनेगा जिनका चयन ऐसी रीति से किया जाएगा, जो विहित की जाए और उनमें से कम से कम एक महिला होगी. यह एक न्यायपीठ का रूप लेगा और ऐसी न्यायपीठ को वही शक्तियां प्राप्त होंगी, जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) द्वारा, यथास्थिति, किसी महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रदत्त की गई हैं.
  3. किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता को बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त तभी किया जाएगा जब ऐसा व्यक्ति कम से कम सात वर्ष तक बालकों से तात्पर्यित स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण संबंधी क्रियाकलापों में सक्रिय रूप से अंतर्वलित हो या बालक मनोविज्ञान, मनोरोग विज्ञान, सामाजिक विज्ञान या विधि में डिग्री सहित व्यवसायरत वृतिक (Professional) हो.
  4. कोई भी व्यक्ति बोर्ड के सदस्य के रूप में चयन के लिए पात्र नहीं होगा, यदि-
    • उसका मानव अधिकारों या बाल अधिकारों का अतिक्रमण किए जाने का कोई पिछला रिकार्ड है;
    • उसे ऐसे किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है जिसमें नैतिक अधमता अंतर्वलित है और ऐसी दोषसिद्धि को उलटा नहीं गया है या उसे उस अपराध के संबंध में पूर्ण क्षमा प्रदान नहीं की गई है;
    • उसे केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी उपक्रम या निगम की सेवा से हटा दिया गया है या पदच्युत कर दिया गया है;
    • वह कभी बालक दुर्व्यापार या बाल श्रम के नियोजन या किसी अन्य मानव अधिकारों के अतिक्रमण या अनैतिक कार्य में लिप्त रहा है.
  5. राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सभी सदस्यों, जिनके अंतर्गत बोर्ड में का प्रधान मजिस्ट्रेट भी है, का देखरेख, संरक्षण, पुनर्वासन बालकों के लिए विधिक उपबंधों और न्याय के संबंध में ऐसा समावेशन, प्रशिक्षण और संवेदीकरण (Sensitisation) जो विहित किया जाए, उसकी नियुक्ति की तारीख से साठ दिन की अवधि के भीतर अधिष्ठापन किया जाए.
  6. बोर्ड के सदस्यों की पदावधि और यह रीति जिसमें ऐसा सदस्य त्यागपत्र दे सकेगा, ऐसी होगी, जो विहित की जाए.
  7. बोर्ड के किसी सदस्य की, प्रधान मजिस्ट्रेट के सिवाय, नियुक्ति को राज्य सरकार द्वारा जांच करने के पश्चात् समाप्त किया जा सकता है, यदि यह सदस्य-
    • इस अधिनियम के अधीन निहित शक्ति के दुरुपयोग का दोषी पाया गया है, या
    • बोर्ड की कार्यवाहियों में बिना किसी विधिमान्य कारण के लगातार तीन मास तक भाग लेने में असफल रहता है, या
    • किसी वर्ष में न्यूनतम तीन-चौथाई बैठकों में भाग लेने में असफल रहता है,या
    • सदस्य के रूप में अपनी अवधि के दौरान उपधारा (4) के अधीन अपात्र हो जाता है.

बोर्ड के संबंध में प्रक्रिया

बोर्ड अपनी कार्यवही को किस प्रकार करेगा इस सम्बन्ध में धारा 7 में प्रावधानों को उपबन्धित किया गया है. धारा 7 के अनुसार-

  1. बोर्ड ऐसे समयों पर अपनी बैठकें करेगा और अपनी बैठकों में कारबार के संव्यवहार के बारे में ऐसे नियमों का अनुपालन करेगा जो विहित किए जाएं और यह सुनिश्चित करेगा कि सभी प्रक्रियाएँ बाल हितैषी हों और यह कि वह स्थान बालक को अभित्रास करने वाला अथवा नियमित न्यायालय के समान न हो.
  2. विधि का उल्लंघन करने वाले बालक को बोर्ड के, जब बोर्ड की कोई बैठक न हो, किसी व्यष्टिक सदस्य के समक्ष पेश किया जा सकेगा.
  3. बोर्ड, बोर्ड के किसी सदस्य के अनुपस्थित होते हुए भी कार्य कर सकेगा और बोर्ड द्वारा पारित कोई भी आदेश कार्यवाहियों के किसी प्रक्रम के दौरान केवल किसी सदस्य की अनुपस्थिति के कारण ही अविधिमान्य नहीं होगा;
    • परन्तु मामले के अंतिम निपटारे के समय या धारा 18 की उपधारा (3) के अधीन कोई आदेश करने में कम से कम दो सदस्य, जिसके अंतर्गत प्रधान मजिस्ट्रेट भी है, उपस्थित रहेंगे.
  4. बोर्ड के सदस्यों के बीच अंतरिम या अंतिम निपटारे में कोई मतभेद होने की दशा में बहुमत की राय अभिभावी होगी, किन्तु जहाँ ऐसा कोई बहुमत नहीं है, वहाँ प्रधान मजिस्ट्रेट की राय अभिभावी होगी.

किशोर न्याय बोर्ड की शक्तियाँ, कृत्य और उत्तरदायित्व

किशोर न्याय अधिनियम की धारा 8 के अनुसार, बोर्ड की शक्तियाँ, कृत्य और उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैं-

  1. तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, और इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय किसी जिले के लिए गठित बोर्ड को विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों के संबंध में इस अधिनियम के अधीन उस बोर्ड के अधिकारिता क्षेत्र में सभी कार्यवाहियों को अनन्य रूप से निपटाने की शक्ति होगी.
  2. इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन बोर्ड को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग उच्च न्यायालय और बालक न्यायालय द्वारा भी तब जब कार्यवाहियां अपील, पुनरीक्षण में या अन्यथा धारा 19 के अधीन उसके समक्ष आती हैं, किया जा सकेगा.
  3. बोर्ड के कृत्यों और उत्तरदायित्वों के अन्तर्गत निम्नलिखित भी आएंगे-
    • प्रक्रिया के प्रत्येक क्रम पर बालक और माता-पिता या संरक्षक की सूचनाबद्ध सहभागिताको सुनिश्चित करना,
    • यह सुनिश्चित करना कि बालक के अधिकारों की, बालक की गिरफ्तारी, जाँच, पश्चात्वर्ती देखरेख और पुनर्वासन की सम्पूर्ण प्रक्रिया के दौरान, संरक्षा हो,
    • विधिक सेवा संस्थाओं के माध्यम से बालक के लिए विधिक सहायता की उपलब्धता सुनिश्चित करना,
    • बालक को, जब कभी आवश्यक हो, यदि वह कार्यवाहियों में प्रयुक्त भाषा को समझने में असमर्थ हैं, दुभाषिया या अनुवादक, जिसके पास ऐसी अर्हताएँ और अनुभव हो, ऐसी फीस का, जो विहित की जाए, संदाय करने पर उपलब्ध करायेगा;
    • परिवीक्षा अधिकारी या यदि परिवीक्षा अधिकारी उपलब्ध नहीं है तो बाल कल्याण अधिकारी या सामाजिक कार्यकर्ता को मामले का सामाजिक अन्वेषण करने और सामाजिक अन्वेषण रिपोर्ट, उन परिस्थितियों को अभिनिश्चित करने के लिए, जिनमें अभिकथित अपराध किया गया था, उसके बोर्ड के समक्ष प्रथम चार पेश किए जाने की तारीख से पन्द्रह दिन की अवधि के भीतर प्रस्तुत करने का निदेश देना,
    • विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों के मामलों का धारो 14 में विनिर्दिष्ट जाँच की प्रक्रिया के अनुसार न्यायनिर्णयन और निपटारा करना,
    • विधि का उल्लंघन करने के अभिकथित बालकों से, जिनके बारे में यह कथन किया गया है कि किसी प्रक्रम पर देखरेख और संरक्षण की जरूरत है, संबंधित मामलों को इसके द्वारा इस बात को मानते हुए कि विधि का उल्लंघन करने वाला चालक तत्समय देखरेख का जरूरतमंद बालक हो सकता है समिति और बोर्ड, दोनों के उसमें अन्तर्वलित होने की जरूरत है, समिति को अंतरित करना,
    • मामले का निपटारा करना और अंतिम आदेश पारित करना जिसके अंतर्गत बालक के पुनर्वास के लिए व्यष्टिक देखरेख योजना भी है, जिसके अन्तर्गत परिवीक्षा अधिकारी या जिला बालक संरक्षण एकक या किसी गैर-सरकारी संगठन के सदस्य, जैसे अपेक्षा की जाए, द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई सहित भी है,
    • विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों की देखरेख के बारे में “योग्य व्यक्ति” घोषित करने के लिए जाँच करना,
    • विधि का उल्लंघन करने वाले चालकों के लिए आवासीय सुविधाओं का प्रत्येक मास कम से कम एक निरीक्षण दौरा करना और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए जिला बालक संरक्षण एकक और राज्य सरकार को कार्रवाई की सिफारिश करना,
    • विधि का उल्लंघन करने वाले किसी बालक के विरुद्ध, कारित अपराधों के संबंध में, इस बारे में की गई किसी शिकायत पर इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन प्रथम इत्तिला रिपोर्ट रजिस्टर करने का पुलिस को आदेश देना,
    • देखरेख और संरक्षा के जरूरतमंद किसी चालक के विरुद्ध कारित अपराधों के संबंध में, इस बारे में समिति द्वारा लिखित शिकायत पर इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन प्रथम इत्तिला रिपोर्ट रजिस्टर करने का पुलिस को आदेश देना,
    • इस बात की जाँच करने के लिए कि क्या वयस्कों के लिए बनी जेलों में कोई बालक डाला गया है, उन जेलों का नियमित निरीक्षण करना और उस बालक को, यथास्थिति, संप्रेक्षण गृह या सुरक्षित स्थान में स्थानान्तरित किये जाने के तत्काल उपाय करना; और
    • कोई अन्य कृत्य, जो विहित किया जाए |

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