किशोर न्याय अधिनियम 2015 के लक्ष्य, उद्देश्य एवं विशेषताएं

किशोर न्याय अधिनियम 2015 के लक्ष्य, उद्देश्य एवं विशेषताएं

किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के लक्ष्य एवं उद्देश्य

संसद ने 1986 में किशोर न्याय अधिनियम पारित किया था जिसे सन् 2000 में किशोर न्याय (बालकों की देखरेख तथा संरक्षण) अधिनियम पारित करके 1986 के अधिनियम को समाप्त कर दिया गया. किशोर न्याय अधिनियम, 2015 पारित होने पर किशोर न्याय (बालकों की देखरेख तथा संरक्षण) अधिनियम, 2000 को समाप्त कर दिया गया. अधिनियम के प्रावधानों द्वारा किशोर अपराधियों को सुधारना मुश्किल हो रहा था. इसी कारण से 2015 में एक नया अधिनियम पारित किया गया. सन् 2021 में किशोर न्याय बालकों की देखरेख तथा संरक्षण) अधिनियम को संसद ने संशोधित कर दिया है.

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015

किशोर न्याय से सम्बन्धित विधि और अधिक व्यापक करने के लिए संसद ने 2015 में किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम पारित किया तथा 2000 के अधिनियम को निरस्त कर दिया. इस अधिनियम के लक्ष्य तथा उद्देश्य इसकी प्रस्तावना में दिया गया हैं जो इस प्रकार हैं-

  1. विधि का अभिकथित उल्लंघन करते पाये जाने वाले बालकों और देखरेख तथा संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों से सम्बन्धित विधि का बालकों के सर्वोत्तम हित में मामलों के न्याय निर्णयन और निपटारे में बालकों के प्रति मित्रवत दृष्टिकोण अपनाना.
  2. ऐसे बालकों के समुचित देखरेख, संरक्षण, विकास, उपचार, सामाजिक पुनः एकीकरण के माध्यम से उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना.
  3. उपबन्धित प्रक्रियाओं तथा अधिनियम के अधीन स्थापित संस्थाओं और निकायों के माध्यम से उनके पुनर्वासन के लिए तथा उससे सम्बन्धित और उसके आनुषंगिक विषयों के लिए समेकन और संशोधन करना |

किशोर न्याय अधिनियम 2015 की मुख्य विशेषताएं

1. किशोर न्याय सामान्य विधि

किशोर न्याय अधिनियम, 2015 से पहले किशोर न्याय अधिनियम, 2000 लागू था. वह विधान अपने उद्देश्यों को पूर्ण रूप से प्रभाव में नहीं ला पा रहा था. बाल अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मानकों के लिए कोई विधि नहीं थी. इसी उद्देश्य की पूर्ति करने के लिये इस अधिनियम को प्रभाव में लाया गया है. इसके पहले किशोर न्याय अधिनियम, 1986 था.

2. अधिनियम का उद्देश्य

अधिनियम की प्रस्तावना में अधिनियम का उद्देश्य बताया गया है. “देखरेख तथा संरक्षण की आवश्यकता वाले बालको को उचित देखभाल को व्यवस्था करना, (उनके) संरक्षण और उनकी विकास संबंधी आवश्यकताओं के पोषण द्वारा उपचार, और न्यायनिर्णयन तथा मामलों के व्ययन में बाल-मैत्री अवधारणा को अंगीकार करते हुए बालकों के सर्वोत्तम हित में इस अधिनियमिति के अन्तर्गत स्थापित विभिन्न स्थानों के माध्यम से उनके पुनर्वास हेतु विधि विरोधी किशोरों, से संबंधित विधि को संशोधित तथा समेकित करना है.”

“विधि के उल्लंघन के लिए अधिकथित और उल्लंघन करते पाये जाने वाले बालकों और देखरेख तथा संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों से सम्बन्धित विधि का समेकन और संशोधन करने के लिए, बालकों के सर्वोत्तम हित में मामलों के न्याय निर्णयन और निपटारे में बालकों के प्रति निम्नवत् दृष्टिकोण अपनाते हुए समुचित देखरेख, संरक्षा, उपचार, समाज में पुनः मिलाने के माध्यम से उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करते हुए और उपबन्धित प्रक्रियाओं तथा इसमें इसके अधीन स्थापित संस्थाओं और निकायों के माध्यम से उनके पुनर्वासन के लिए तथा उससे सम्बन्धित और उसके आनुषंगिक विषयों के लिए” अधिनियम को पारित किया गया है.

अब्दुल रजाक बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश, AIR 2015 SC 1770 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह विनिर्धारित किया गया है कि ऐसा बालक जिसकी आयु घटना के समय 16 वर्ष से अधिक किन्तु 18 वर्ष से कम रही हो, इस अधिनियम का कभी भी लाभ प्राप्त कर सकता है.

3. परिभाषायें

अधिनियम की धारा 2 में विभिन्न शब्दावलियों को परिभाषित किया गया है. अधिनियम में भीख माँगना, विधि विरुद्ध बालक, किशोर या बालक, देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता में बालक सम्प्रेषण गृह, परिवीक्षा अधिकारी, उपयुक्त व्यक्ति, अभिभावक आदि शब्दों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है. उपरोक्त परिभाषायें अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या करने में पूर्ण सहायक हैं.

● भीख मांगना

किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 2 (8) के अनुसार, “भीख मांगना (Begging)” से अभिप्रेत है-

  1. लोक स्थान में भिक्षा की याचना या प्राप्ति, या किसी प्राइवेट परिसर में भिक्षा की याचना या प्राप्ति हेतु प्रवेश करना, चाहे वह किसी भी बहाने से हो.
  2. भिक्षा अभिप्राप्त या उद्दापित करने के उद्देश्य से अपना या किसी अन्य व्यक्ति या जीव वस्तु का कोई व्रण, घाव, क्षति, विरूपता या रोग अभिदर्शित या प्रदर्शित करना.

● किशोर या बालक

किशोर; अधिनियम की धारा 2 (35) के अनुसार, किशोर से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है.

बालक; अधिनियम की धारा 2 (12) के अधीन “बालक” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है.

● विधि विरुद्ध बालक

अधिनियम की धारा 2 (13) के अनुसार, विधि विरुद्ध बालक का तात्पर्य उस बालक से है जिसके बारे में यह अभिकथन है या पाया जाता है कि उसने कोई अपराध किया है और जिसने उस अपराध को किए जाने के तारीख को अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं किया है.

इस अधिनियम से पहले के विधानों में ऐसे बालक को बाल अपराधी कहा गया था.

बाल अधिनियम, 1960 में बाल अपराधी की परिभाषा इस प्रकार की गई थी, ‘बाल अपराधी वह बालक है जो किसी अपराध का दोषी पाया गया है.’

D. P. N. वर्मा के अनुसार, ‘बाल अपराध कर्तव्यों की उपेक्षा अथवा उल्लंघन है, एक गलती है.”

रॉबिन्स के अनुसार, बाल अपराधों से अभिनय आवारागर्दी, भिक्षावृत्ति, दुर्व्यवहार शैतानी, उद्दण्डता आदि प्रवृत्तियों से है.”

डॉक्टर M. J. सेठना के अनुसार, ‘बाल अपराध के अन्तर्गत किसी बालक अथवा ऐसे तरुण व्यक्ति के गलत कार्य आते हैं जो तत्समय प्रचलित विधि द्वारा निर्दिष्ट आयु के भीतर हैं.’

T. शिवकुमार बनाम इन्सपेक्टर ऑफ पुलिस, AIR 2012 मद्रास 62, के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 3 के उल्लंघन में विवाह करने वाली अवयस्क लड़की विधि विरोधी कार्यों में लिप्त किशोर नहीं है.

● देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाला बालक

अधिनियम की धारा 2 (14) के अनुसार, “देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाला बालक” का अभिप्राय उस बालक से है-

  1. जिसके बारे में यह पाया जाता है कि उसका कोई घर या निश्चित निवास स्थान नहीं है और जिसके पास जीवन निर्वाह के कोई दृश्यमान साधन नहीं हैं; या
  2. जिसके बारे में यह पाया जाता है कि उसने इस अधिनियम के उपबंधों का या तत्समय प्रवृत्त श्रम विधियों का उल्लंघन किया है या पथ पर भीख मांगते या वहीं रहते पाया जाता है; या
  3. जो किसी व्यक्ति के साथ रहता है (चाहे वह बालक का संरक्षक हो या नहीं) और ऐसे व्यक्ति ने-
    • बालक को क्षति पहुँचाई है, उसका शोषण किया है, उसके साथ दुर्व्यवहार किया है या उसकी उपेक्षा की है अथवा बालक के संरक्षण के लिए अभिप्रेत तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि का अतिक्रमण किया है; या
    • बालक को मारने, उसे क्षति पहुँचाने, उसका शोषण करने या उसके साथ दुर्व्यवहार करने की धमकी दी है और उस धमकी को कार्यान्वित किए जाने की युक्तियुक्त संभावना है;
    • किसी अन्य बालक या बालकों का वध कर दिया है, उसके या उनके साथ दुव्यर्वहार किया है, उसकी या उनकी उपेक्षा या उसका या उनका शोषण किया है और प्रश्नगत बालक का उस व्यक्ति द्वारा वध किए जाने, उसके साथ दुर्व्यवहार, उसका शोषण या उसकी उपेक्षा किए जाने की युक्तियुक्त संभावना है; या
  4. जो मानसिक रूप से बीमार या मानसिक या शारीरिक रूप से असुविधाग्रस्त है या घातक अथवा असाध्य रोग से पीड़ित है, जिसकी सहायता या देखभाल करने वाला कोई नहीं है या जिसके माता-पिता या संरक्षक हैं, किन्तु वे उसकी देखरेख करने में, यदि बोर्ड या समिति द्वारा ऐसा पाया जाए, असमर्थ हैं; या
  5. जिसके माता-पिता अथवा कोई संरक्षक है और ऐसी माता या ऐसे पिता अथवा संरक्षक को बालक की देखरेख करने और उसकी सुरक्षा तथा कल्याण की संरक्षा करने के लिए, समिति या बोर्ड द्वारा अयोग्य या असमर्थ पाया जाता है; या
  6. जिसके माता-पिता नहीं हैं और कोई भी उसकी देखरेख और संरक्षण करने का इच्छुक नहीं है या जिसका परित्याग या अभ्यर्पण कर दिया गया है; या
  7. जो गुमशुदा या भागा हुआ है या जिसके माता-पिता, ऐसी ऐति में, जो विहित की जाए, युक्तियुक्त जाँच के पश्चात् भी नहीं मिल सके हैं; या
  8. जिसका लैंगिक दुर्व्यवहार या अवैध कार्यों के प्रयोजन के लिए दुर्व्यवहार, प्रपीड़न या शोषण किया गया है, किया जा रहा है या किए जाने की संभावना है; या
  9. जो असुरक्षित पाया गया है और उसे मादक द्रव्य दुरुपयोग या अवैध व्यापार में सम्मिलित किया गया है या सम्मिलित किया जा रहा है या सम्मिलित किए जाने की संभावना है; या
  10. जिसका लोकात्मा विरुद्ध अभिलाभों के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है या किए जाने की संभावना है; या
  11. जो किसी सशस्त्र संघर्ष, सिविल उपद्रव या प्राकृतिक आपदा से पीड़ित है या संभावना है; या
  12. जिसको विवाह की आयु प्राप्त करने के पूर्व विवाह का आसन्न जोखिम है और जिसके माता-पिता और कुटुम्ब के सदस्यों, संरक्षकों और अन्य व्यक्तियों के ऐसे विवाह के अनुष्ठान के लिए उत्तरदायी होने की संभावना है.

● परिवीक्षा अधिकारी

अधिनियम की धारा 2 (48) के अनुसार, “परिवीक्षा अधिकारी” से राज्य सरकार द्वारा अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के अधीन परिवीक्षा अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा जिला बालक संरक्षण एकक के अधीन नियुक्त किया गया विधि सह परिवीक्षा अधिकारी अभिप्रेत है.

वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार, “परिवीक्षा अधिकारी का आशय ऐसे व्यक्ति से है जो परिवीक्षाधीन अपराधी पर पर्यवेक्षण रखता है तथा जो उसके आचरण के बारे में अपनी रिपोर्ट देता है.”

● उपयुक्त व्यक्ति

अधिनियम की धारा 2 (28) के अनुसार, “योग्य व्यक्ति” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो बालक की किसी विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है. और ऐसे व्यक्ति की इस निमित्त जाँच के पश्चात् पहचान कर ली गई है और उसे उक्त प्रयोजन के लिए यथास्थिति, समिति या बोर्ड द्वारा बालक को लेने और उसकी देखरेख करने के लिए ‘योग्य’ के रूप में मान्यता प्रदान की गई है.

● अभिभावक

अधिनियम की धारा 2 (31) के अनुसार, “संरक्षक” से, किसी बालक के संबंध में, उसका नैसर्गिक संरक्षक या ऐसा कोई अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है जिसको वास्तविक देखरेख में, यथास्थिति, समिति या बोर्ड की राय में, वह बालक है और जिसे, यथास्थिति, समिति या बोर्ड द्वारा कार्यवाहियों के दौरान संरक्षक के रूप में मान्यता प्रदान की गई है.

4. बोर्ड

अधिनियम में अधिनियम के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किशोरों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) संप्रेषण गृह आदि का उल्लेख किया है. इसी अध्याय में इनके अधिकारों तथा शक्तियों के बारे में बताया गया है.

5. किशोर का सामाजिक संरक्षण

अधिनियम में यह विशेष तौर पर उल्लेखित किया गया है कि किशोर के अधिकारों को सामाजिक रूप से संरक्षित रखा जाये. इसके लिये अधिनियम में बाल कल्याण समिति बाल गृह, सामाजिक संपरीक्षण जैसे प्रावधानों को उपबन्धित किया गया है.

6. पुनर्वास

अधिनियम के अध्याय चार में बालकों के पुनर्वास (Re-habilitation) के लिये आवश्यक प्रक्रिया को उल्लेखित किया गया है, साथ ही उत्तर रक्षा संगठन (After Care Organisation) की उपयोगिता पर भी बल दिया गया है.

7. गृह बालकों के हितों को ध्यान

गृह बालकों के हितों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार या संगठनों द्वारा कई प्रकार के गृहों के व्यवस्था की अपेक्षा किया गया है जैसे; संप्रेक्षण गृह, खुले आश्रय (Open Shelter) विशेष गृह तथा बालक गृह.

8. अन्य उपबन्ध

अधिनियम में किशोरों से सम्बन्धित कई तरह के सार्वभौमिक प्रावधानों का उल्लेख किया गया है.

9. प्रभावी उपाय

इस अधिनियम के अन्तर्गत विधि के विरुद्ध बालकों की देख-रेख व संरक्षण वाले बालकों के लिए समाज में प्रभावी उपायों की व्यवस्था की गयी है |

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