Table of Contents
आत्महत्या का प्रयास
‘आत्महत्या’ आमतौर से घटित बहुचर्चित अपराधों में से एक है. आये दिन हम आत्महत्या की घटनाओं के बारे में सुना करते हैं. पारिवारिक कलह, आर्थिक कठिनाइयाँ, प्रेम-सम्बन्ध आदि अनेक ऐसी समस्याएं हैं जिनसे मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति औषधि की तरह आत्महत्या का सहारा लेता है. लेकिन आत्महत्या को विधि के अन्तर्गत दण्डनीय नहीं बनाया गया है. क्योंकि आत्महत्या कर लेने पर वह व्यक्ति ही जीवित नहीं रहता है, जिसने आत्महत्या की है, तो फिर दण्डित किसे किया जाय. अतः विधि में आत्महत्या को नहीं अपितु आत्महत्या के प्रयास (Attempt to commit suicide) को दण्डनीय बनाया गया है.
सम्पूर्ण विधि में यही एक ऐसा अपराध है जो पूरा हो जाने पर दण्डनीय नहीं होता, जबकि ‘प्रयास’ दण्डनीय माना जाता है.
यह भी जाने : धारा 307 IPC | IPC 307 In Hindi | हत्या करने का प्रयास
आत्महत्या के सम्बन्ध में एक बड़ा रोचक प्रश्न सामने आया है.
एक बार आत्महत्या के प्रयास के एक अभियुक्त ने मजिस्ट्रेट से पूछा- “यह शरीर मेरा है, मैं स्वेच्छा से इसे समाप्त करना चाहता हूँ, फिर समाज एवं सरकार को इसमें आपत्ति क्यों है?”
मजिस्ट्रेट ने थोड़ा विचार करने के बाद कहा- “यह सही है कि यह शरीर तुम्हारा है, लेकिन यह सही नहीं है कि यह शरीर निरपेक्ष रूप से तुम्हारा ही है. इस पर परिवार का, समाज एवं सरकार का तथा राष्ट्र का भी अधिकार है. परिवार, समाज एवं राष्ट्र के प्रति प्रत्येक व्यक्ति का कुछ कर्त्तव्य एवं दायित्व होता है. वह अपने जीवन को इस प्रकार समाप्त करके अपने कर्त्तव्य एवं दायित्वों से से मुक्त नहीं हो सकता. यह कायरता की निशानी है. फिर इस शरीर पर उस परम पिता परमेश्वर का भी अधिकार है, जिसने इस सृष्टि की रचना की है.” |
IPC की धारा 309
भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में इसके बारे में प्रावधान किया गया है. “जो कोई भी आत्महत्या करने का प्रयास करेगा और ऐसे अपराध को अंजाम देने के लिए कोई कार्य करेगा, उसे साधारण कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा.”
सरल शब्दों में, यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का प्रयास करता है और उस प्रयास के लिए कोई कार्रवाई करता है, तो उसे एक वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत में आत्महत्या का प्रयास एक आपराधिक अपराध माना जाता है. हालाँकि, आत्महत्या के प्रयासों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और इसके बजाय मानसिक स्वास्थ्य सहायता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बहस चल रही है |
यह भी जाने : हत्या क्या है? कब सदोष मानव वध हत्या नहीं होती? | हत्या के अपराध के आवश्यक तत्व
महत्वपूर्ण मामलें
रामक्का 1884 का मामला
रामक्का बनाम मद्रास राज्य [(1884) 8 मद्रास 5] के वाद में, जहाँ एक स्त्री कुएं में कूदकर आत्महत्या करने के आशय से कुएं की ओर दौड़ती है, लेकिन कुएं में कूदने के पूर्व ही उसे एक व्यक्ति द्वारा पकड़ लिया जाता है. यह धारण किया गया कि वह आत्महत्या के प्रयास की दोषी नहीं थी; क्योंकि कुएं में कूदने के पूर्व वह अपने आशय को परिवर्तित कर सकती थी. यह मात्र एक तैयारी थी |
धीरजिया 1962 का मामला
धीरजिया बनाम इलाहाबाद राज्य AIR [(1962) इलाहाबाद 262] इसमें एक गाँव की 20 वर्षीय स्त्री को उसके पति ने बहुत सताया और परेशान किया. एक अवसर पर पति-पत्नी दोनों में झगड़ा हुआ और पति ने उसको मारने-पीटने की धमकी दी. उसी रात को घने अँधेरे में वह अपने एक छः महीने के बच्चे को गोद में लेकर घर से निकल पड़ी. कुछ दूर जाने के पश्चात् उसने अपने पीछे से कोई आवाज सुनी.
उसने जब यह देखा कि उसका पति ही उसका पीछा कर रहा है तो वह डर गई और उस बच्चे सहित निकट के कुयें में गिर गई. परिणाम यह हुआ कि बच्चा मर गया और स्त्री बच गई. यह धारण किया गया कि वह इस धारा के अन्तर्गत दोषी नहीं थी; क्योंकि आत्महत्या कर अपने प्राणों को लेने का उसका कोई आशय नहीं था. ऐसा उसने केवल अपने पति से बचने के लिए किया था |
यह भी जाने : भारतीय दंड संहिता की धारा 100 | आईपीसी 100 धारा क्या है?
इससे यह स्पष्ट है कि ‘आत्महत्या के प्रयास के लिये’ अभियुक्त के मन में आत्महत्या करने का आशय रहा होना आवश्यक है.
आजीविका बनाम आत्महत्या
स्वतंत्र भारत में पहली बार उठा यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि क्या आजीविका के अभाव में किया गया आत्महत्या का प्रयास दण्डनीय अपराध है? बम्बई उच्च न्यायालय (मारुति श्रीपति दुबल बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1987) ने इसका नकारात्मक उत्तर दिया है. आजीविका के साधन जुटाना सरकार का दायित्व है. सरकार यदि आजीविका के साधन जुटाने में असफल रहती है और आजीविका के अभाव में यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या के लिए विवश हो जाता है तो उसके प्रयास को धारा 309 के अन्तर्गत दण्डनीय मान लेना न्यायोचित नहीं है |