छँटनी की परिभाषा, शर्त, प्रक्रिया एवं प्रतिकर पाने का अधिकार?

छँटनी का अर्थ, परिभाषा, शर्त, प्रक्रिया एवं प्रतिकर पाने का अधिकार?

छँटनी की परिभाषा

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा ‘2णण’ में दी गई परिभाषा के अनुसार, इस पद का अर्थ है कि नियोजक द्वारा किसी कामगार की सेवा जो किसी भी कारण से हो, किन्तु अनुशासन की कार्यवाही द्वारा दंडित करने के लिए दण्ड स्वरूप न हो, किन्तु इसमें सम्मिलित नहीं है-

  1. किसी कामगार का स्वेच्छा सेवा निवृत्त होना,
  2. वृद्धावकाश की अवस्था पर पहुंचने पर किसी कामगार की सेवानिवृत्ति यदि नियोजक और सम्बन्धित कामगार के बीच सेवा-सम्बन्धी संविदा में इस निमित्त कोई अनुबन्ध (Stipulation) हो, अथवा
  3. बराबर अस्वस्थ रहने के आधार पर किसी कामगार की सेवा की समाप्ति. कार्य के बन्द किये जाने के परिणामस्वरूप विमुक्ति (Discharge) जो छँटनी नहीं माना जायगा.

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आनन्द बिहारी बनाम राजस्थान परिवहन निगम, (1954 I LLJ 243) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि लगातार अस्वस्थ रहने के कारण सेवा मुक्ति को छँटनी नहीं माना है.

इस प्रकार कहा जा सकता है कि निम्न कारणों से कर्मकार की सेवामुक्ति छँटनी नहीं कहलायेगी-

  1. अनुशासनात्मक कार्यवाही के दौरान सेवामुक्ति,
  2. श्रमिक की स्वयं की इच्छा से सेवामुक्ति,
  3. वृद्धावस्था के कारण सेवामुक्ति,
  4. लगातार अस्वस्थ रहने के कारण सेवानिवृत्ति,
  5. संविदा के कारण सेवामुक्ति |

छंटनी के लिए पूर्ववर्ती शर्तों

किसी उद्योग में नियुक्त कोई कामगार जो किसी मालिक की सेवा में कम से कम एक वर्ष तक रहा है उस स्वामी द्वारा छाँटा न जायेगा जब तक कि-

  1. कामगार को एक मास या यथास्थिति (3 मास) की लिखित सूचना छँटनी के कारणों को दिखाते हुए नहीं दी गई है और सूचना में दी गयी अवधि समाप्त नहीं हो गयी है, अथवा ऐसी सूचना के बदले में कामगार की सूचना की अवधि काल तक की मजदूरी नहीं कर दी गयी है. किन्तु ऐसी सूचना आवश्यक न होगी यदि छँटनी किसी करार के अन्तर्गत है जो छँटनी की एक तिथि निर्धारित करता है.
  2. छँटनी के अवसर पर कामगार को क्षतिपूर्ति नहीं दी गई है जो वर्ष की पूर्ण सेवा के लिए या उसके किसी भाग के लिए जो 6 मास से अधिक होगी, 15 दिन का औसत वेतन के बराबर होगी, तथा
  3. उचित सरकार को निर्धारित रीति से सूचना नहीं दी गयी है.
  4. धारा ’25ढ’ के अनुसार, छंटनी की सूचना सरकार को दिया जाना आदेशात्मक प्रावधान है.

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मंजू सक्सेना बनाम यूनियन आफ इण्डिया (AIR 2019 SC 257) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि स्वेच्छा से नौकरी छोड़ देना छंटनी नहीं है. ऐसा कर्मचारी पुनः नियोजन का हक़दार नहीं रह जाता है |

छँटनी सम्बन्धी प्रक्रिया

जहां किसी औद्योगिक व्यवस्थापन में कोई कामगार, जो भारत का एक नागरिक है छंटनी किया जाने वाला है और व्यवस्थापन में कामगारों की किसी विशिष्ट श्रेणी से सम्बन्ध रखता है और इस मामले में मालिक और कामगारों के बीच किसी करार का अभाव है, तो मालिक कामगारों की उस श्रेणी में सर्वप्रथम उस व्यक्ति की सामान्यतः छँटनी करेगा जिसका नाम उस श्रेणी में सबसे अन्तिम है. जब तक कि मालिक किसी अन्य व्यक्ति को किन्हीं अभिलिखित कारणों से नहीं छाँटता है.

जहाँ कामगारों की छँटनी की जा चुकी है और मालिक उनमें से कुछ व्यक्तियों को अपनी सेवा में रखने का प्रस्ताव करता है, तो वह निर्धारित रीति से छाँटे गये कामगारों को अवसर देगा कि पुनर्नियुक्ति के लिए अपना नियुक्ति प्रस्ताव प्रस्तुत करें और छाँटे गये व्यक्ति जो इस प्रकार से पुनर्नियुक्ति के लिए प्रस्ताव करते हैं, को अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा प्राथमिकता मिलेगी |

छंटनी की दशा में प्रतिकर पाने का अधिकार

यदि नियोजक किसी कर्मकार की छँटनी करता है, तो वह उस कर्मकार को प्रत्येक वर्ष की पूरी की गई लगातार सेवा के लिये 6 मास से अधिक किसी भाग के लिये 15 दिन के औसत वेतन के बराबर प्रतिकर देने के लिये बाध्य है.

वर्कमेन आफ अमेरिकन एक्सप्रेस इन्टरनेशनल बैंकिंग कारपोरेशन बनाम प्रबन्ध (1985) II LLJ 539 SC) के बाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिनों की गणना करते समय रविवार एवं अवकाश के दिनों की भी गणना की जायेगी तथा उन दिनों की मजदूरी कर्मकार को दो जायगी |

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छँटनी तथा जबरी छुट्टी में अन्तर

  1. छँटनी (Retrenchment) में कर्मकारों को हमेशा के लिए हटा दिया जाता है, जबकि जबरी छुट्टी (Lay off) में कर्मकारों को हमेशा के लिए नहीं हटाया जा सकता है.
  2. छँटनी का मुख्य कारण कर्मकारों की ज्यादा संख्या होना है, जबकि जबरी छुट्टी निर्धारित कारणों के कारण ही हो सकती है.
  3. छंटनी में सदैव अन्तिम आता है तथा पहला जाता है (Last Come First Go) के सिद्धान्त पर आधारित है, जबकि जबरी छुट्टी में ऐसा कोई सिद्धान्त कार्य नहीं करता है.
  4. छँटनी के दौरान कर्मकार नियोजक के कर्मकार नहीं रहते हैं अर्थात दोनों के बीच सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं, जबकि जबरी छुट्टी के दौरान कर्मकार तथा नियोजक का सम्बन्ध समाप्त नहीं होता है.
  5. छंटनी में कर्मकार प्रतिकर पाने का अधिकारी नहीं होता है, जबकि जबरी छुट्टी में कर्मकार प्रतिकर पाने का अधिकारी होता है |

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