अंतर्राष्ट्रीय कानून में युद्ध की परिभाषा एवं प्रभाव | युद्ध अपराध की परिभाषा एवं प्रकार

अंतर्राष्ट्रीय कानून में युद्ध की परिभाषा एवं प्रभाव | युद्ध अपराध की परिभाषा एवं प्रकार

युद्ध की परिभाषा

जैसा कि सर्वविदित है कि युद्ध शब्द अन्तर्राष्ट्रीय विधि में दो राष्ट्रों के मध्य मतवैभिन्यता की सहनशील सीमा को पार करने के उपरान्त हिंसात्मक बल प्रयोग को इंगित करता है. ऐसा बल प्रयोग एक राष्ट्र शांति का उल्लंघन माना जाता है. युद्ध में बल प्रयोग एवं हिंसा नियमित होती है तथा उद्देश्य एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र (शत्रु से) अपना इच्छित उद्देश्य या शर्तें मनवाना होता है. यही परिभाषा ‘हाल’ ने भी दी है.

स्टार्क के मतानुसार, युद्ध वह स्थिति है जब बहुधा दो या दो से अधिक राष्ट्र सशस्त्र सैनिकों के माध्यम से विवाद को संघर्ष का रूप देकर युद्धरत हो जाते हैं तथा युद्ध का उद्देश्य प्रतिद्वंदी को पराजित करना होता है अथवा अपनी शांति की शर्तों को प्रतिपक्षी को स्वीकार कराना.

ओपेनहाइम की युद्ध की परिभाषा भी लगभग इसी प्रकार है. अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमयों के माध्यम से युद्ध सम्बन्धी कुछ नियम हैं जिनका पालन आक्रमणकारी एवं प्रतिपक्षी दोनों को ही करना होता है। इस बिन्दु पर न्यूरेम्बर्ग विचारण उल्लेखनीय है |

युद्ध का प्रभाव

1. राजनयिक तथा वाणिज्य दूत सम्बन्ध

युद्ध के प्रारम्भ होते ही युद्धरत देशों के बीच राजनयिक तथा वाणिज्य दूत सम्बन्धों का विच्छेद हो जाता है. इसके परिणामस्वरूप युद्धरत राज्य अपने राजनैतिक प्रतिनिधियों को वापस बुला लेते हैं.

2. सन्धियों पर प्रभाव

युद्ध का संधियों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है-

  1. युद्धरत देशों के बीच वे सन्धियों, जिनके लिए सामान्य राजनयिक कार्य या अच्छे सम्बन्धों का बने रहना आवश्यक है, युद्ध के प्रारम्भ होने से समाप्त हो जाती है. उदाहरण के लिए मित्रता (Alliance) की सन्धि.
  2. स्थायी बातों को तय करने वाली या पूर्ण परिस्थितियों को स्थापित करने वाली संधियों, जैसे सीमा निर्धारण सन्धि आदि युद्ध के समय भी अप्रभावित तथा लागू रहती हैं.
  3. युद्ध को नियन्त्रित करने वाली सन्धियाँ, जिनमें कि युद्धरत पक्षकार हैं, युद्ध के समय में भी लागू रहती हैं, जैसे- 1899 तथा 1907 की हेग प्रतिज्ञाएँ.
  4. वह बहुपक्षीय विधि निर्माण करने वाली सन्धियाँ जो स्वास्थ्य, दवायें, उद्योग और सम्पत्ति की सुरक्षा से सम्बन्धित हैं, युद्ध के प्रारम्भ होने से पूर्णतया समाप्त नहीं होतीं अपितु केवल निलम्बित हो जाती हैं और युद्ध समाप्त होने पर पुनः लागू हो जाती हैं.
  5. कभी-कभी सन्धियों में ऐसे व्यक्त प्रावधान रखे जाते हैं जिससे स्पष्ट होता है कि युद्ध के आरम्भ होने पर ऐसी सन्धियाँ लागू रहेंगी अथवा नहीं.
  6. कुछ दूसरे प्रकार की सन्धियों, जैसे प्रत्यर्पण सन्धि, केवल निलम्बित हो जाती हैं तथा युद्ध के बाद फिर से लागू होती हैं. यह बहुत कुछ सन्धियों के प्रावधान, पक्षकारों की इच्छा, सन्धियों की प्रकृति आदि पर निर्भर करता है.
  7. ऐसे किसी राज्य के लिये जो शान्ति के खतरे शान्ति भंग अथवा अतिक्रमण के कृत्यों से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का अनुपालन कर रहा है यह आवश्यक हो जाता है कि ऐसी किसी संधि जिसका वह पक्षकार है और जो सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव से असंगत है, को समाप्त करे.

3. युद्ध पर संविदा का प्रभाव

वस्तुतः संविदा पर युद्ध का प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय विधि का विषय नहीं है क्योंकि पक्ष राष्ट्र सहमति से पारस्परिक संविदाओं के भविष्य का निर्धारण करते हैं और अन्तर्राष्ट्रीय विधि पक्षकार राष्ट्रों को संविदा के सन्दर्भ में सभी नियम व उपनियम बनाने की स्वतंत्रता प्रदान करती है.

युद्धरत राज्य संविदा के भविष्य या युद्ध के प्रभाव पर जिस नियम पर सहमत रहते हैं वही लागू होता है, संविदा पर युद्ध के प्रभाव का अध्ययन करने हेतु संविदाओं की प्रकृति पर ध्यान देना आवश्यक है. जो संविदाएं पूर्ण हो चुकी हैं उन पर युद्ध का कोई प्रभाव नहीं होता है, परन्तु वे संविदाएं जिन्हें अभी पूर्ण किया जाना है यानी जो भविष्यलक्षी हैं वे युद्ध प्रारम्भ होने के साथ ही शून्य हो जाती हैं ऐसी शून्यता अवैधता के आधार पर होती है.

4. युद्ध का शत्रु सम्पत्ति पर प्रभाव

इस बिन्दु पर विधि का वर्णन करने से पूर्व यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि शत्रु सम्पत्ति की प्रकृति क्या है? यदि सम्पत्ति शत्रु की सार्वजनिक सम्पत्ति होती है तो निम्नलिखित रीति से उसका प्रयोग होगा-

  1. शत्रु देश में स्थित सभी चल शत्रु सम्पत्ति जब्त की जा सकेगी.
  2. शत्रु देश में अवस्थित अचल सम्पत्तियों का अस्थाई रूप से अधिग्रहण कर लिया जाता है तथा उसका उपयोग किया जा सकता है. परन्तु उसे बिक्री नहीं किया जा सकता.

शत्रु की व्यक्तिगत सम्पत्ति के सन्दर्भ में यह सर्वमान्य नियम है कि युद्धरत राष्ट्रों द्वारा शत्रु राष्ट्र की व्यक्तिगत सम्पत्ति अस्थाई रूप से अधिग्रहीत की जा सकती है परन्तु उसे न तो ले जाया जा सकता है और न ही उसे लूटा जा सकता है. उक्त प्रकार की सम्पत्तियों का प्रयोग स्थानीय उद्देश्य जो कि अति आवश्यक है व अति आवश्यक सैनिक कार्यों हेतु उपयोग की जा सकती है.

5. व्यापारिक सम्बन्ध तथा आवागमन

युद्ध के प्रारम्भ होते ही युद्धरत देशों के बीच व्यापार तथा आवागमन वर्जित हो जाता है. अतः इस विषय में यह सर्वमान्य नियम है कि युद्ध के प्रारम्भ होने से युद्धरत देशों के बीच व्यापार तथा आवागमन समाप्त होता है.

युद्ध अपराधों की परिभाषा

अन्तर्राष्ट्रीय अपराधों की सबसे विस्तृत परिभाषा स्वार्जनबर्जर ने दी है. उनके अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय अपराध वह कार्य है जो अन्तर्राष्ट्रीय समाज के अस्तित्व के लिये घातक है. इस परिभाषा के अनुसार, युद्ध अपराध, सामुद्रिक डाका, नरसंहार आदि निस्सन्देह अन्तर्राष्ट्रीय अपराध हैं.

प्रोफेसर केल्सन के अनुसार, युद्ध अपराध युद्ध के नियमों तथा प्रथाओं के उल्लंघन को कहते हैं.

प्रोफेसर हिगिन्स के अनुसार, युद्ध अपराधों में युद्ध के स्वीकृत नियमों का सशस्त्र सैनिकों द्वारा उल्लंघन, उन व्यक्तियों द्वारा युद्ध के स्वीकृत नियमों का उल्लंघन जो सेना के सदस्य नहीं है, जासूसी, राजद्रोह तथा लूटपाट आदि शामिल है.

प्रोफेसर क्विन्सी राइट के अनुसार, शब्द ‘युद्ध अपराध’ सैनिक क्षेत्रों में “युद्ध के नियमों का उल्लंघन” के पर्यायवाची समझे जाते हैं परन्तु वर्तमान समय में इसकी परिभाषा अधिक विस्तृत हो गयी है. इसका प्रमुख कारण न्यूरेम्बर्ग परीक्षण, 1946 द्वारा अनेक नियमों का प्रतिपादन है.

प्रोफेसर ओपेनहाइम ने युद्ध अपराध की विस्तृत परिभाषा दी है. उसके अनुसार, युद्ध अपराध सैनिकों तथा दूसरे व्यक्तियों के वह शत्रुतापूर्ण तथा दूसरे कार्य हैं जिनके लिये उन्हें शत्रु पकड़ने के उपरान्त दण्ड दे सकता है |

युद्ध अपराध के प्रकार

न्यूरेम्बर्ग न्यायालय द्वारा प्रतिपादित नियमों का सारांश अन्तर्राष्ट्रीय विधि कमीशन ने 1950 में अपने दूसरे सेशन की रिपोर्ट में प्रस्तुत किया. इस रिपोर्ट के छठे सिद्धान्त में उपर्युक्त अपराधों का वर्गीकरण किया गया है. जिसमें-

  1. हत्या, युद्धबन्दियों के साथ बुरा व्यवहार करना या उन्हें दास बनाना,
  2. नाविकों के साथ बुरा व्यवहार या उन्हें दास बनाना;
  3. असैनिक जनता के साथ बुरा व्यवहार करना;
  4. बन्धक के रूप में बन्दियों की हत्या करना या;
  5. सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत सम्पत्ति की लूटपाट,
  6. शहरों, कस्बों या गाँवों को नष्ट करना,
  7. ऐसी हानि जो कि सैनिक आवश्यकता के अनुरूप न हो, आदि को युद्ध अपराध माना गया.

उपर्युक्त परिभाषा में यह भी स्पष्ट किया गया है कि युद्ध अपराध उपर्युक्त लिखित अपराधों तक सीमित नहीं है वरन् इसके अतिरिक्त और भी हो सकते हैं |

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