अन्तर्राष्ट्रीय विधि क्या है? | अन्तर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा, स्रोत एवं प्रकृति

अन्तर्राष्ट्रीय विधि क्या है? | अन्तर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा, स्रोत एवं प्रकृति

अन्तर्राष्ट्रीय विधि की परिभाषा

ओपेनहाइम अन्तर्राष्ट्रीय विधि (International Law) के एक विख्यात विधिशास्त्री है, अतः सर्वप्रथम ओपेनहाइम द्वारा दी गई परिभाषा का उल्लेख वांछनीय (आकर्षक) होगा. ओपेनहाइम की परिभाषा के मूल्यांकन के पश्चात अन्य परिभाषाओं का संक्षिप्त उल्लेख किया जायगा.

ओपेनहाइम (Oppenheim) द्वारा दी गई परिभाषा ओपेनहाइम के अनुसार, “राष्ट्रों की विधि अथवा अन्तर्राष्ट्रीय विधि उन रूढ़िजन्य तथा परम्परागत नियमों के समूह के नाम को कहते हैं जिन्हें सभ्य राज्य अपने पारस्परिक व्यवहारों में बन्धनकारी मानते हैं।”

यह परिभाषा ओपेन आइम ने 1905 में दी थी. इस परिभाषा की आलोचना करके यह दर्शित किया जा सकता है कि पिछले आठ से अधिक दशकों में अन्तर्राष्ट्रीय विधि की धारणा में कितना परिवर्तन हुआ है.

लॉरेंस के अनुसार

“वे नियम जो सभ्य राज्यों के सामान्य और सामूहिक आचरण को उनके पारस्परिक व्यवहार में निर्धारित करते हैं, उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय विधि कहते हैं।”

अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अधिकांश भाग में अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार से पृथक् युद्ध के प्रबन्ध के नियम सन्निहित हैं. स्वतन्त्र सम्प्रभु राज्यों के बीच असमानता उनके पारस्परिक व्यवहार में बाधा उत्पन्न करती हैं. उनका अनियन्त्रित सम्बन्ध मानवीय समाज में एक ऐसा कारण है जिससे युद्ध का सूत्रपात हो जाता है. अतः अन्तर्राष्ट्रीय विधि राष्ट्रों के पारस्परिक व्यवहार में उनके आचरण को नियमित करती है चाहे वे शत्रु रूप में हों अथवा शान्ति की स्थिति में हों.

स्टार्क के अनुसार

अन्तर्राष्ट्रीय विधि को यों परिभाषित किया जा सकता है कि यह उन विधियों का समूह है जिनका अधिकांश भाग उन आचरण के सिद्धान्तों तथा नियमों का बना हुआ है जिनको राज्य अपने परस्पर के सम्बन्धों में पालन करने के लिये अपने को बाध्य समझते हैं, अत: साधारणतया पालन करते हैं, और जिनमें कि निम्नलिखित भी सम्मिलित हैं-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं या संगठनों के संचालन सम्बन्धी विधि के नियम, उनके दूसरे के प्रति संबंध तथा उनके राज्यों और व्यक्तियों के प्रति संबंध; और एक
  2. व्यक्तियों से सम्बन्धित कुछ विधि नियम जो कि ऐसे व्यक्तियों के अधिकार या कर्त्तव्य को निर्धारित करते हों जो अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के विषय हों.

स्टार्क द्वारा दी गई परिभाषा उपयुक्त तथा वर्तमान समय तथा परिस्थितियों के अनुकूल है |

ओपनहाइम, लारेंस तथा स्टार्क की परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय विधि ऐसे नियमों का समूह है जो कि अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियन्त्रित करता है.

अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों में राज्य प्रमुख स्थान रखता है, परन्तु राज्य के अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें, व्यक्ति तथा गैर राज्य इकाइयां भी अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के अन्तर्गत आते हैं तथा अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विषय हैं |

अन्तर्राष्ट्रीय विधि के स्त्रोत

अन्तर्राष्ट्रीय विधि के निम्नलिखित स्रोत हैं-

1. अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय

आधुनिक युग जबकि अन्तर्राष्ट्रीय विधि अपने विकसित रूप में है, अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय (जिसमें सभी प्रकार की अन्तर्राष्ट्रीय संधियां शामिल होती हैं) ने अंतर्राष्ट्रीय विधि के स्रोतों में सर्वप्रथ स्थान प्राप्त कर लिया है.

2. विधि निर्माण करने वाली संधियां

स्टार्क के अनुसार “विधि निर्माण करने वाली संधि के प्रावधान अन्तर्राष्ट्रीय विधि के प्रत्यक्ष स्रोत हैं।”

3. अन्तर्राष्ट्रीय प्रथा

सदियों से अन्तर्राष्ट्रीय प्रथ (International Custom) अन्तर्राष्ट्रीय विधि का सर्वप्रमुख स्रोत मानी जाती हैं. केवल आधुनिक युग में ही अन्तर्राष्ट्रीय संधि के विकास के कारण इसका महत्व कम हो गया है परन्तु आज भी इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय विधि के महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से माना जाता है. अन्तर्राष्ट्रीय विधि के प्रथा सम्बन्धी नियम वह नियम हैं जिनका विकास सामान्यतः लम्बी ऐतिहासिक प्रक्रिया द्वारा हुआ है.

4. सभ्य राष्ट्रों द्वारा स्वीकृत विधि के सामान्य नियम

न्याय के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि के अनुच्छेद 38 में सभ्य राष्ट्रों द्वारा स्वीकृत विधि के सामान्य सिद्धान्तों को तीसरे क्रम में लिखा गया है. अर्थात अन्तर्राष्ट्रीय संधियों तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रथा के बाद तीसरा स्रोत ‘सभ्य राष्ट्रों द्वारा स्वीकृत विधि के सामान्य सिद्धान्त’ है.

5. न्यायालयों एवं न्यायाधिकरणों के निर्णय

यह स्रोत प्रत्यक्ष स्रोत नहीं है. न्यायालय सम्बन्धित विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों को जानने के लिए न्यायधिकरणों के निर्णय तथा विधिशास्त्रियों एवं भाष्यकारों की रचनाओं को गौण साधन के रूप में देख सकता है.

न्यायाधिकरणों एवं न्यायालयों के निर्णयों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायिक निर्णय,
  2. राज्यों के न्यायिक निर्णय, तथा
  3. अन्तरर्राष्ट्रीय विवाचन न्यायालय के निर्णय.

6. विधिशास्त्रियों तथा भाष्यकारों की रचनाएं

विधिशास्त्रियों तथा भाष्यकारों की रचनाएं अन्तर्राष्ट्रीय विधि की स्वतन्त्र स्रोत नहीं मानी जा सकतीं. परन्तु कभी-कभी इनकी रचनाओं तथा मतों के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय विधि का विकास होता है.

7. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अंगों के निर्णय

आधुनिक युग में अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के अंगों के निर्णय भी अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विकास में सहायता पहुँचाते हैं अतः वे भी अन्तर्राष्ट्रीय विधि के स्रोत हैं.

अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अन्य स्रोत निम्न हैं-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय सौजन्य,
  2. राज्यों के पत्र आदि,
  3. राज्यों द्वारा अपने अधिकारियों को प्रेषित अनुदेश,
  4. तर्क,
  5. साम्य तथा न्याय |

अन्तर्राष्ट्रीय विधि की प्रकृति

अंतर्राष्ट्रीय विधि की प्रकृति क्या है? अन्तर्राष्ट्रीय विधि को कुछ विद्वान भले ही विधि की मान्यता न देते हों, परन्तु वह विधि तो है ही क्योंकि राज्य इसे विधि मानते हैं.

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि आज के समय में, जबकि अन्तर्राष्ट्रीय विधि का यथेष्ट विकास हो चुका है, ओपेनहाइम द्वारा की गई. परिभाषा पुरानी तथा अनुपयुक्त हो गई है. वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय विधि निरन्तर विकसित होने वाले नियमों तथा सामान्य सिद्धान्तों का ऐसा समूह है जो अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियन्त्रित करता है.

‘अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के अन्तर्गत प्रभुत्वसम्पन्न राज्य, व्यक्ति, लोक-अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं तथा गैर राज्य इकाइयां सभी आ जाती हैं |

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