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स्थावर सम्पत्ति से सम्बन्धित विवाद सम्बन्धी अपराधों के रोकने का व्यवहार करने वाली विधि का उपबन्ध
अचल सम्पत्ति से सम्बन्धित मामलों का निवारण दण्ड न्यायालय एवं व्यवहार न्यायालय दोनों के द्वारा किया जाता है. लेकिन दोनों के क्षेत्राधिकारों में कुछ मौलिक अन्तर हैं. व्यवहार न्यायालय (Civil Court) का कार्य स्वत्व एवं स्वामित्व के आधार पर विवाद का निवारण करना है जबकि दण्ड न्यायालय (Criminal Court) का कार्य सम्पत्ति पर वास्तविक आधिपत्य रखने वाले व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना है. दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 145 इससे सम्बन्धित उपबन्धों का उल्लेख करती है.
146 CrPC in hindi? धारा 145 के अनुसार, जब कभी किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट का पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से या अन्य सूचना पर समाधान हो जाता है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर किसी भूमि या जल या उसकी सीमाओं से सम्बद्ध ऐसा विवाद वर्तमान है, जिससे परिशान्ति भंग होना सम्भव है तब वह अपना ऐसा समाधान होने के आधारों का कथन करते हुए और ऐसे विवाद से सम्बद्ध पक्षकारों से यह उम्मीद करते हुए लिखित आदेश देगा कि वे विनिर्दिष्ट तारीख और समय पर स्वयं या अधिवक्ता (Pleader) द्वारा उसके न्यायालय में हाजिर हों, और विवाद की विषय-वस्तु पर वास्तविक कब्जे के तथ्यों के बारे में अपने-अपने दावों का लिखित कथन पेश करें.
भागवत सरन बनाम स्टेट ऑफ U. P. (A.1. R. 1961 All 164) के बाद में यह निर्धारित किया गया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 145 के अन्तर्गत कार्यवाही केवल निरोधात्मक (Preventive) होती है और अपनी प्रकृति में अर्द्धयामिक एवं अर्द्ध प्रशासनिक होती है. इसका उद्देश्य शान्ति भंग को रोकना है एव शान्ति बनाये रखना है.
CrPC की धारा 145 का उद्देश्य क्या है? प्रीतम सिंह बनाम रंजीत सिंह (AIR 1972 Raj 59) के बाद में भी यह निर्धारित किया गया है कि धारा 145 का मुख्य उद्देश्य भूमि सम्बन्धी विवादों से उत्पन्न शान्ति भंग के खतरे का निवारण करना है.
राम केवाइ उपाध्याय बनाम बुद्धा नाथ पांडेय (AIR 1969 Pat. 317) के बाद में यह निर्धारित किया गया है कि पक्षकारों की न्यायालय के समक्ष अपना कब्जा निश्चित करने के लिए उपस्थित होने का अवसर देते हुए विवाद-ग्रस्त वस्तु को यथास्थिति बनाये रखने का शीघ्र उपचार प्रदान करना होता है जब तक कि सक्षम न्यायालय द्वारा उनके अधिकारों का निश्चय नहीं हो जाय.
CrPC की धारा 145 (2) के अनुसार, इस धारा के प्रयोजनों के लिए भूमि या जल के अन्तर्गत भवन, बाजार, मीन क्षेत्र, फसलें, भूमि की अन्य उपज और ऐसी किसी सम्पत्ति के भारक या लाभ भी आते हैं.
CrPC की धारा 145 (3) के तहत इस आदेश की एक प्रति की तामील इस संहिता द्वारा समनों की तामील के लिए उपबन्धित प्रकार से ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों पर की जायेगी जिन्हें मजिस्ट्रेट निर्दिष्ट करे बीर कम-से-कम एक प्रति विवाद की विषय-वस्तु पर या उसके निकट किसी सहज दृश्य स्थान पर लगाकर प्रकाशित की जायेगी |
कब्जे की जाँच
CrPC की धारा 145 (4) के अनुसार, मजिस्ट्रेट तब विवाद को विषय-वस्तु को पक्षकारों में से किसी के भी कब्जे में रखने के अधिकार के गुणागुण या दावे के प्रति निर्देश किये बिना उन कथनों का जो ऐसे पेश किये गये हैं परिशीलन (Persue) करेगा, पक्षकारों को सुनेगा और ऐसा सभी साक्ष्य लेगा जो उनके द्वारा प्रस्तुत किये जायें और यदि कोई अतिरिक्त साक्ष्य होगा तब उसे भी लेगा जैसा यह आवश्यक समझे और यदि सम्भव हो तो यह निश्चित करेगा कि क्या उन पक्षकारों में से कोई उसके द्वारा दिये गये आदेश की तारीख पर विवाद की विषय-वस्तु पर कब्जा रखता था और यदि रखता तो वह कौन-सा पक्षकार था.
परन्तु यदि मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि पक्षकार द्वारा उस तारीख के जिस पर पुलिस अधिकारी को रिपोर्ट या अन्य सूचना मजिस्ट्रेट को प्राप्त हुई थी, ठीक पूर्व दो माह के अन्दर या उस तारीख के पश्चात या आदेश दिये जाने के पूर्व जबरदस्ती और सदोष रूप से बेकब्जा किया गया है तो वह मान सकेगा कि उस प्रकार बेकब्जा किया गया पक्षकार मजिस्ट्रेट द्वारा दिये गये आदेश की तारीख को कब्जा रखता था.
U. J. M. Myiem Vs. U. R. Mohan Roy Myntri (AIR 1963 Assam 311) के बाद में यह निर्धारित किया गया है कि संरचनात्मक आधिपत्य (Constructive Possession) विधि की दृष्टि में वैसा ही आधिपत्य माना जायेगा जैसा कि एक वास्तविक भौतिक आधिपत्य माना जाता है.
धारा 145 (5) के अनुसार, इस धारा की कोई बात हाजिर होने के लिए ऐसे अपेक्षित किसी पत्रकार को या किसी अन्य हितबद्ध व्यक्ति को यह दर्शित करने से नहीं रोकेगी कि कोई पूर्वोक्त प्रकार का विवाद वर्तमान नहीं है या नहीं रहा है और ऐसी दशा में मजिस्ट्रेट अपने उक्त आदेश को रद्द कर देगा और उस पर आगे की सभी कार्यवाहियां रोक दी जायेंगी परन्तु उपधारा (1) के अन्तर्गत मजिस्ट्रेट का आदेश ऐसे रद्दकरण के अधीन रहते हुए अन्तिम होगा.
J. N. Roy Vs. Queen Empress (3. C. W. N. 329) के बाद में यह धारित किया गया है कि कार्यवाही का कोई भी पक्षकार यहाँ तक कि एक अजनबी भी जो उस कार्यवाही से प्रभावित हो रहा हो इस प्रकार की प्रार्थना कर सकेगा.
धारा 145 (6) (क) के अनुसार, यदि मजिस्ट्रेट यह विनिश्चित करता है. कि पक्षकारों में से एक का उक्त विषय-वस्तु पर ऐसा कब्जा था या उपधारा (4) के परन्तुक के अधीन ऐसा कब्जा माना जाना चाहिए, तो वह घोषणा करते हुए कि ऐसा पक्षकार उस पर तब तक कब्जा रखने का हकदार है जब तक उसे विधि के सम्यक् अनुक्रम में बेदखल न कर दिया जाये, आदेश जारी कर सकेगा.
इसके साथ ही वह इस प्रकार का एक निषेधात्मक आदेश भी जारी कर सकेगा कि जब तक उसको विधि की किसी प्रक्रिया द्वारा आधिपत्य से वंचित नहीं कर दिया जाता है तब तक उसके आधिपत्य में किसी प्रकार का विघ्न या हस्तक्षप नहीं किया जायेगा. इस प्रकार का आदेश उपधारा (3) में अधिकथित रीति से तामील और प्रकाशित किया जायेगा.
CrPC की धारा 145 (7) के तहत, जब किसी ऐसी कार्यवाही के पक्षकार की मृत्यु हो जाती है तब मजिस्ट्रेट मृत पक्षकार के विधिक प्रतिनिधि (Legal Representative) को कार्यवाही का पक्षकार बनवा सकेगा और फिर जांच चालू रखेगा और यदि इस बारे में कोई प्रश्न उत्पन्न होता है कि मृत पक्षकार का ऐसी कार्यवाही के प्रयोजन के लिए विधिक प्रतिनिधि कौन है तो मृत पक्षकार का प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले सब व्यक्तियों को उस कार्यवाही का पक्षकार बना लिया जायेगा.
धारा 145 (8), यदि मजिस्ट्रेट की यह राय है कि उस सम्पत्ति की जो इस धारा के अधीन उसके समक्ष लम्बित (Pending) कार्यवाही में विवाद की विषय-वस्तु है, कोई फसल का अन्य उपज शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील है तो वह ऐसी सम्पत्ति की उचित अभिरक्षा या विक्रय के लिए आदेश दे सकता है और जाँच समाप्त होने पर ऐसी सम्पत्ति के या उसके विक्रय के आगमों के व्ययन के लिए ऐसा आदेश दे सकता है जिसे वह उचित समझे.
धारा 145 (9), यदि मजिस्ट्रेट ठीक समझे तो वह इस धारा के अन्तर्गत कार्यवाहियों के किसी प्रक्रम में पक्षकारों में से किसी के आवेदन पर किसी गवाह के नाम समन यह निर्देश देते हुए जारी कर सकता है कि वह हाजिर हो या कोई दस्तावेज या चीज पेश करे.
धारा 145 (10) के अनुसार, इस धारा की कोई बात धारा 107 के अधीन कार्यवाही करने की मजिस्ट्रेट की शक्तियों का अल्पीकरण करने वाली नहीं समझी जाएगी |