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दान क्या है?
‘दान’ सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम धारा 122 में परिभाषित है. इसके अनुसार, दान किसी वर्तमान जंगम या स्थावर सम्पत्ति का वह अन्तरण है, जो एक व्यक्ति द्वारा, जो दाता कहलाता है, दूसरे व्यक्ति को, जो आदात कहलाता है, स्वेच्छया और प्रतिफल के बिना किया गया हो, और आदाता द्वारा या की ओर से प्रतिग्रहीत किया गया हो. ऐसा प्रतिणदाता के जीवन काल में और जब तक वह देने के लिए समर्थ हो, करना होगा. यदि प्रतिग्रहण के पूर्व आदाता की मृत्यु हो जाती है तो दान शून्य होगा.
मिताक्षरा ने दान की परिभाषा किसी व्यक्ति द्वारा अपनी सम्पत्ति पर से अपना अधिकार उठाकर उसी सम्पत्ति पर किसी अन्य व्यक्ति का अधिकार करना है, कह कर दी है. यह दान स्वीकृति करने से पूर्ण हो जाता है. दायभाग के अनुसार दाता के देने मात्र से दान पूर्ण हो जाता है. मिताक्षरा विधि के अनुसार दान लिखित अथवा मौखिक हो सकता है क्योंकि हिन्दू विधि में दान का लिखित होना उसकी वैधता के लिए आवश्यक नहीं है.
वैध दान के आवश्यक अंग
पूर्व हिन्दू विधि के अनुसार, दान का लिखित होना आवश्यक नहीं था. किन्तु दान की वस्तु का कब्जा आदाता (Donee) को मिलना आवश्यक था. किन्तु जब सब सम्पत्ति ऐसी है कि उसे हाथ से उठाकर कब्जा नहीं दिया जा सकता तो दाता अपना कर्त्तव्य पूरा करके उपहार पूर्ण कर सकता था. मिताक्षरा विधि की शाखा के अनुसार बिना स्वीकृति के दान अपूर्ण होता है. दाता स्वयं को स्वामित्व से वंचित कर सकता है किन्तु वह अपनी स्वेच्छा से दूसरे को बिना उसकी स्वीकृति के स्वामित्व से संयुक्त नहीं कर सकता. अतः दान देने तथा स्वीकृत किये जाने की अवधि काल तक दातव्य सम्पत्ति दाता की नहीं हो जाती.
अनुत्पन्न व्यक्ति को दान सामान्य नियम
सामान्यतः न पैदा हुए व्यक्ति के पक्ष में दान नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उपहार देने के दिन उस व्यक्ति का अस्तित्व होना आवश्यक है.
मामला, टैगोर बनाम टैगोर, 9 बंगाल, VLR 323 (टैगोर बनाम टैगोर 9 B.L.R. 323)
अपवाद
किन्तु उपर्युक्त पूर्व हिन्दू विधि का नियम निम्नलिखित तीन अधिनियमों से परिवर्तित हो गया है-
- हिंदू स्थानांतरण और वसीयत अधिनियम, 1914.
- हिंदू संपत्ति निपटान अधिनियम, 1916.
- हिंदू स्थानांतरण और वसीयत (मद्रास शहर) अधिनियम, 1921.
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 13 के अनुसार, अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में दान किया जा सकता है बशर्ते कि उससे पहले किसी और व्यक्ति को वह सम्पत्ति न्यास के माध्यम से अन्तरित कर दी जाये और अजन्में व्यक्ति के पक्ष में संपूर्ण स्वत्व निहित होगा.
कौन सी सम्पत्ति दान में दी जा सकती है?
1. मिताक्षरा विधि के अनुसार
- कोई भी हिन्दू चाहे अलग हो या संयुक्त हिन्दू परिवार का सदस्य हो, वह अपनी स्वार्जित या पृथक सम्पत्ति दान में दे सकता है परन्तु उसे उस सम्पत्ति से अपने द्वारा पोषण पाने वाले व्यक्तियों का ध्यान रखना चाहिये.
- इसी प्रकार अपने द्वारा पोषित व्यक्तियों को ध्यान में रखते हुये कोई भी सहदायिक अन्य सहदायिकों की सहमति से अपना अविभाजित हिस्सा उपहार में दे सकता है.
- पिता बिना अपने पुत्रों की सहमति के भी पैतृक चल सम्पत्ति को अपने आवश्यक कर्तव्य को पूरा करने के लिए या मूलपाठ द्वारा निर्धारित धार्मिक कर्त्तव्यों के लिए पैतृक अचल सम्पत्ति को अपने सीमित अधिकारों के अन्तर्गत दान दे सकता है.
- पत्नी अपने स्त्रीधन को दान में दे सकती है किन्तु कुछ मामलों में उसे अपने पति की सलाह लेना आवश्यक है.
- अपने पति से दाय में प्राप्त सम्पत्ति का एक छोटा हिस्सा पत्नी द्वारा (इच्छा पत्र से नहीं) में अपनी पुत्री के विवाह या गौने में दे सकती है या विवाह के समय अपने दामाद को दे सकती है. मयूख विधि के अन्तर्गत आने वाली स्त्री अपनी समस्त चल सम्पत्ति किसी भी रूप में दान में दे सकती है.
- कोई भी दान ऋणदाता के हितों को समाप्त करने अथवा भरण-पोषण के दावे को विफल करने के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता है, इस बात की पुष्टि उच्चतम न्यायालय ने अम्माथेयी बनाम कुमारसेन (AIR 1967 SC 469 ) में किया है.
- अविभाज्य सम्पत्ति का स्वामी अपनी सम्पत्ति दान में दे सकता है. किन्तु यदि रीति-रिवाज अन्य संक्रमण को रोकते हैं तो वह ऐसा नहीं कर सकता है.
2. दायभाग विधि के अनुसार
- कोई हिन्दू चाहे वह पृथक् हो या संयुक्त परिवार में वह अपने आश्रितों को ध्यान में रखते हुये अपनी पृथक् या सहभागीदारी सम्पत्ति को दान में दे सकता है.
- पिता भी आश्रितों के पोषण का ध्यान रख कर अपनी स्वार्जित या पैतृक सम्पत्ति दान में दे सकता है.
- कोई स्त्री अपने स्त्रीधन को स्वयतापूर्वक दान में दे सकती है.
- किसी स्थिति में विधवा स्त्री भी दाय में प्राप्त सम्पत्ति के एक छोटे से हिस्से को दान में दे सकती है.
- अविभाज्य सम्पत्ति का मालिक भी अपनी सम्पत्ति दान में दे सकता है |