स्त्रीधन क्या है? स्त्रीधन के अन्तर्गत कौन-कौन सी सम्पत्ति आती है?

स्त्रीधन क्या है? स्त्रीधन के अन्तर्गत कौन-कौन सी सम्पत्ति आती है?

स्त्रीधन का तात्पर्य

‘स्त्रीधन’ दो शब्दों से मिलकर बना है; स्त्री और धन. अतएव इसका शाब्दिक अर्थ है ‘स्त्री की सम्पत्ति’. किन्तु यदि हम विभिन्न मूल टीकाओं पर दृष्टिपात करें तो हमें विदित हो कि स्त्रीधन शाब्दिक रूप से प्रयोग नहीं किया गया है अपितु क्रियात्मक रूप से किया गया है. जैसा कि राजम्मा बनाम बरदराजनुलू चेट्टी, AIR 1957 मद्रास 198 के मामले में कहा गया है कि हिन्दू स्त्री को विवाह के पहले और विवाह के समय मिले उपहार उसके स्त्रीधन होते हैं.

वहीं प्रतिभारानी बनाम सूरज कुमार, AIR 1985 SC 628 के बाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जो भी सम्पत्ति पत्नी को उपहार में प्राप्त होती है उस पर उसका एक मात्र अधिकार होता है.

‘सौदायिका’ का शाब्दिक अर्थ उस उपहार से है जो अनुराग से दिया जाता है, यह स्त्रीधन में आता है. किन्तु इसके अन्तर्गत केवल उन्हीं उपहारों की गणना होगी जो सम्बन्धियों से मिले हैं, अन्य जनों से मिले उपहार की नहीं.

किसी भी मूल ग्रन्थ ने स्त्रीधन की परिभाषा नहीं की है, केवल स्त्रीधन की गणना की है.

स्मृतिकारों के अनुसार स्त्रीधन

स्मृतिकारों ने न तो स्त्रीधन की परिभाषा की है, न स्त्रीधन का प्रयोग शाब्दिक अर्थ में ही किया है. उन्होंने केवल कुछ सम्पत्तियाँ स्त्रीधन में गिनाई भर हैं.

मनु ने निम्नलिखित 6 सम्पत्तियों को स्त्रीधन कहा है-

  1. अध्यग्नि, वैवाहिक अग्नि के समक्ष मिला उपहार,
  2. अध्यवनिका या वधू के जाने के समय दिया गया उपहार,
  3. प्रीतिदत्त, अनुरागवश सास और श्वसुर द्वारा दिया गया उपहार, और पदवन्दनिका या विवाह के बाद श्रेष्ठ जनों के चरण-स्पर्श में मिला उपहार,
  4. पिता द्वारा दिया गया उपहार
  5. माँ द्वारा दिया गया उपहार,
  6. भाई द्वारा दिया गया उपहार.
    • इस सूची में ‘विष्णु’ ने 4 और उपहार जोड़ दिया है-
  7. अधिवेदनिका; अन्य पत्नी लाते समय पति द्वारा प्रथम पत्नी को दिया गया उपहार.
  8. विवाह होने के बाद पति के पैतृक सम्बन्धियों द्वारा मिला उपहार.
  9. कन्या को विवाह में देने का शुल्क,
  10. भाइयों एवं सम्बन्धियों से मिला उपहार.
    • देवल ने दो उपहारों को और जोड़ा है-
  11. भोजन और वस्त्र समस्त स्मृतिकारों के अनुसार.
  12. पति द्वारा दिया गया आभूषण स्त्री का स्त्रीधन होता है.

याज्ञवल्क्य के अनुसार, ‘पिता, माता, पति, भाई से प्रायः वैवाहिक अग्नि के समक्ष और अन्य पत्नी लाते समय आदि जो उपहार औरत को मिलता है वह उसका स्त्रीधन है’. इसी ‘आदि’ शब्द को लेकर याज्ञवल्क्य की स्मृति पर टीका लिखने वाले विज्ञानेश्वर ने स्त्रीधन की सूची और भी बढ़ा दी है.

मिताक्षरा के अनुसार स्त्रीधन

मिताक्षरा के प्रणेता विज्ञानेश्वर ने याज्ञवल्क्य को परिभाषा लेकर स्त्रीधन को संख्या बढ़ा दी है. विज्ञानेश्वर ने ‘आदि’ शब्द को लेकर निम्नलिखित सम्पत्ति को भी स्त्रीधन कहा है-

‘स्वामी रिक्थक्रम संविभाग परिग्रहाधिगमेषु’.

दाय से मिली सम्पत्ति – रिक्थ
खरीद कर ली गई सम्पत्ति – क्रय,
विभाजन से मिली सम्पत्ति – संविभाग,
प्रतिकूल कब्जा से मिली सम्पत्ति – परिग्रह,
अन्य मिली हुई सम्पत्ति – अधिगम.

विज्ञानेश्वर आगे अपनी व्याख्या में कहते हैं कि स्त्रीधन शब्द का प्रयोग शाब्दिक अर्थ में किया है न कि क्रियात्मक अर्थ में. अतएव मिताक्षरा के अनुसार जो भी सम्पति औरत के कब्जे में है वह उसकी स्त्रीधन सम्पत्ति है.

शिवशंकर बनाम देवी सहाय, 30 IA 202 में प्रिवी काउन्सिल ने अभिनिर्धारित किया था कि यदि कोई स्त्री किसी सम्पत्ति को दाय के बंटवारे में प्राप्त करती है तो वाह स्त्रीधन की सम्पत्ति नहीं होगी.

वर्तमान अर्थ में स्त्रीधन

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 के अधीन हिन्दू स्त्रियों को उन समस्त सम्पत्तियों में सम्पूर्ण स्वामित्व प्रदान कर दिया गया है जो उसे दाय, दान, विक्रय, इच्छापत्र, न्यायालय के निर्णय के द्वारा अथवा विभाजन, भरण-पोषण, स्वाध्यवसाय अथवा अन्य किसी विधिक तरीके से प्राप्त हुई है. सम्पत्ति चल अथवा अचल हो इस अधिनियम के पूर्व उसके कब्ज में आई हो अथवा बाद में उसे सम्पत्ति किसी भी सम्बन्धी से प्राप्त हुई हो सकती है, विवाह के पूर्व अथवा बाद में प्राप्त हो सकती है, किन्तु वे समस्त सम्पत्ति स्त्रीधन की कोटि में आयेंगी.

हिन्दू स्त्री को सम्पत्ति के अन्य संक्रामण की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान कर दी गई है. उसकी इस स्वतन्त्रता पर पति अथवा अन्य किसी सम्बन्धी द्वारा किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं किया जा सकता है. पूर्व हिन्दू विधि में स्त्रीधन के कतिपय मामलों में अन्तरण के सम्बन्ध में पूर्ण अधिकार नहीं प्रदान किया गया था, किन्तु अब स्थिति एकदम बदल गई है. उसे पति के बिना किसी नियन्त्रण के सम्पत्ति पर भी निर्वाध स्वतन्त्रता प्रदान कर दी गई है.

श्रीमती इन्द्रकली बनाम रविधान प्रसाद, AIR 2012 N.O.C. 256 मध्य प्रदेश के मामले में भाई की पत्नी को उसके पिता द्वारा दान (उपहार) में दी गयी सम्पत्ति को उसका स्त्रीधन माना गया है |

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