विभाजन/बंटवारा क्या है तथा किसके कहने पर हो सकता है? | आंशिक बंटवारा क्या है?

विभाजन/बंटवारा क्या है तथा किसके कहने पर हो सकता है? |  आंशिक बंटवारा क्या है?

विभाजन/बंटवारा का तात्पर्य

विधि के अनुसार, बंटवारे के दो अर्थ हैं पहला सम्पूर्ण सम्पत्ति पर होने वाले अधिकार को विभिन्न सदस्यों के मध्य प्रत्येक के हिस्से में निश्चित करना. दूसरा, उससे उत्पन्न होने वाले वैधानिक परिणामों में संयुक्त स्थिति को समाप्त करना. मिताक्षरा विधि के अन्तर्गत बंटवारे की परिभाषा ‘संयुक्त परिवार की सम्पत्ति में सहभागीदार के अस्थिर हिस्से को एक स्थिर हिस्से में निश्चित करना’ की गई है.

यदि विभाजन के समय कोई समांशिन सम्पत्ति का अपनी स्वार्जित सम्पत्ति होने का अभिकथन करता है तो उसे इस तथ्य को साबित करना होगा अर्थात् स्वार्जित सम्पत्ति को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होगा जो ऐसा कथन करता है.

मामला, रवीन्द्र प्रताप शर्मा बनाम राजेश कुमार शर्मा, AIR 2012 पटना 163

अधिकार का बंटवारा और सम्पत्ति का बंटवारा

एप्रूवियर बनाम राम सुभा, (11 MIA 75), के मामले में लार्ड बेस्टबरी ने कहा है कि मिताक्षरा बंटवारे को दो अवस्थायें होती हैं. प्रथम अवस्था, वह है कि जब सहभागीदार अलग होने के लिए अपना हिस्सा निश्चित करता है. दूसरी अवस्था है कि जब वास्तविक हिस्सा निश्चित करके, संयुक्त सम्पत्ति को अनुपात से प्रत्येक सहभागीदार के हिस्से में बांटना. प्रथम अवस्था को अधिकार का बंटवारा और दूसरी अवस्था को सम्पत्ति का बंटवारा कहते हैं.

बंटवारे में विभाजनीय सम्पत्ति

केवल सहदायिकी सम्पत्ति विभाजनीय होती है, पृथक् सम्पत्ति विभाजनीय नहीं होती है पृथक् सम्पत्ति पर केवल एक स्वामी का अधिकार होता है. साथ ही परिवार की मूर्ति और पूजाघर का विभाजन नहीं हो सकता. कुछ सम्पत्तियों का बंटवारा न होकर उनके मूल्य का अनुमान लगाकर हिस्सेदारों में बाँट दिया जाता है, जैसे- जानवर, कुर्सी, मेज इत्यादि.

हरीशंकर शर्मा बनाम पूरनसिंह, AIR 2012 NOC 215 (राजस्थान) के मामले में शिवालय को अविभाजनीय सम्पत्ति माना गया है. बंटवारा किसके कहने पर संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति का बंटवारा निम्नलिखित लोगों के कहने पर हो सकता है-

1. पुत्रों और पौत्रों के

पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र या वयस्क, सहदायिक अन्य सहदायिकों या सदस्यों की सहमति के बिना बंटवारे की माँग कर सकते हैं. बम्बई उच्च न्यायालय ने ‘अप्पाजी बनाम रामचन्द्र’ के मामले में पूर्ण पीठ द्वारा यह निर्णय दिया है कि यदि पिता अपने पिता, भाई और भतीजों से संयुक्त है. तो बिना उसकी सहमति के उसके जीवन काल में उसके पुत्र बंटवारे का दावा नहीं कर सकते हैं.

2. बाद में उत्पन्न पुत्र

बाद में उत्पन्न पुत्रों को दो श्रेणी में रखा जा सकता है- प्रथम, वह जो बंटवारे के पूर्व गर्भस्थ हुए हैं दूसरे वह जो बंटवारे के बाद गर्भ में आए हैं और तत्पश्चात् पैदा हुए हैं. माँ के गर्भ में स्थित पुत्र का अस्तित्व समझा जाता है और पैदा होने पर वह अन्य भाइयों के बराबर पुनः बंटवारा कराके अपना हिस्सा पाने का हकदार होता है. यदि पुत्र बंटवारे के पश्चात् गर्भ में आता है और बंटवारे में पिता स्वयं हिस्सा ले सकता है तो बाद में पैदा हुआ लड़का पिता के हक का हिस्सा प्राप्त करेगा.

अवैध पुत्र

अवैध पुत्र तीन पूर्वजों तक की सम्पत्ति के बंटवारे की मांग नहीं कर सकता है. वह केवल पिता की संपत्ति से भरण-पोषण का अधिकारी है.

स्त्री हिस्सेदार

स्त्री हिस्सेदारों के अन्तर्गत तीन प्रकार की स्त्रियाँ आती हैं-

  1. पत्नी
  2. विधवा माँ,
  3. पितामही (Grand Mother).

यह तीन स्त्रियाँ न तो अपने बंटवारे की माँग कर सकती हैं न परिवार के यह तभी अपना हिस्सा पायेंगी जब परिवार की सम्पत्ति का विभाजन होगा.

पुत्री

हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के पश्चात् मिताक्षरा सहदायिक की पुत्री भी सहदायिक हो गयी है. अतः यह भी विभाजन की माँग कर सकती है.

बंटवारा कैसे होता है?

1. मात्र बंटवारे की घोषणा से

चूँकि मिताक्षरा के अनुसार बंटवारा संयुक्त स्तर को समाप्त करना है, इस प्रकार यह व्यक्तिगत इच्छा का विषय है. अतएव बंटवारे के लिए सबसे आवश्यक बात यह है कि सदस्य द्वारा स्पष्ट रूप से उसके लिए ‘इच्छा’ प्रकट की जाय कि वह संयुक्त परिवार से पृथक् होकर पृथकता से अपने भाग (Share) का उपभोग करना चाहता है.

उच्चतम न्यायालय ने रघवम्मा बनाम चेन्दम्मा, (AIR 1964 SC 136) के बाद में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि बंटवारे के सम्बन्ध में केवल एकतरफा इच्छा की घोषणा पर्याप्त नहीं है, यह भी आवश्यक है कि इस इच्छा की घोषणा की जानकारी उन सभी लोगों को अवश्य संचारित की जाय जो इससे प्रभावित हो रहे हों. हवा में की गई बंटवारे की घोषणा कोई घोषणा नहीं है.

2. नोटिस द्वारा बंटवारा

संयुक्त स्थिति को समाप्त करने के लिए अन्य सहदायिकी को नोटिस देकर भी बंटवारा किया जा सकता है. उस नोटिस में पृथक होने की इच्छा और बंटवारा की मांग होनी चाहिए. नोटिस बाद में अन्य सहदायिकों की राय से वापस भी ली जा सकती है और यदि नोटिस वापस ले ली जाती है तो यह समझा जायगा कि बंटवारा नहीं होगा.

3. दूसरा धर्म अपनाने पर

जब एक सहभागीदार अपना धर्म परित्याग करके अन्य धर्म अपना लेता है तो उसमें तथा अन्य सहदायिकों की संयुक्त स्थिति में बंटवारा हो जाता है. इस प्रकार परिवर्तित व्यक्ति उत्तरजीविता द्वारा सम्पत्ति नहीं प्राप्त कर सकता.

4. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के अन्तर्गत विवाह

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के अन्तर्गत अन्तर्धार्मिक विवाह करने से भी अन्य सहदायिकों में बंटवारा हो जाता है.

5. वाद दायर कर

बंटवारे का वाद दायर करने से भी शीघ्र बंटवारा हो जाता है. वादी के अंश पृथक होने के अधिकार का व्यक्तिकरण हो संयुक्त सम्पत्ति से उसकी पृथक् स्थिति का द्योतक है, चाहे वह परिणामतः विनिश्चय प्राप्त करे अथवा नहीं.

6. सहमति से बंटवारा

जब संयुक्त परिवार के सदस्य आपस में यह निश्चित करते हैं या चाहते हैं कि यह पृथक् स्वामी हों और बंटवारा के लिए सहमत होते हैं तो प्रत्येक सदस्य का हिस्सा निश्चित करके बंटवारा किया जा सकता है.

7. विवाचन द्वारा बंटवारा

जब परिवार के सदस्य किसी मध्यस्थ को बुलाकर बंटवारा कराना चाहते हैं तो उसे विवाचन द्वारा बंटवारा कहते हैं. केवल पंच निर्णय न देने से प्रमाणित नहीं होता है कि पृथक होने को नीयत हो छोड़ दी गयी है.

8. पिता द्वारा बँटवारा

पिता बिना अपने पुत्रों की सलाह लिए बंटवारा कर सकता है. यह प्राचीन सिद्धान्तों में व्यक्त पिता का अधिकार है. पिता का किया हुआ विभाजन पुत्रों पर बाध्यकारी होगा. इसके अलावा अन्य प्रकार से भी बंटवारा हो सकता है.

आंशिक बंटवारा क्या है?

आंशिक बंटवारा किसी संयुक्त परिवार का आंशिक बंटवारा (Partial Partition) या तो-

  1. सम्पत्ति का था,
  2. अलग होने वाले व्यक्ति का हो सकता है.

1. सम्पत्ति का आंशिक बंटवारा

संयुक्त परिवार के किसी भी सदस्य को यह अधिकार है कि वह सम्पत्ति के एक भाग का विभाजन करवा ले और बाकी संयुक्त रहे. किन्तु यहां पर स्पष्ट हो जाता है कि सदस्य का इरादा पूर्ण बंटवारे का है और समस्त सम्पत्ति का बंटवारा हो जाता है तो प्रकल्पना यह होती है कि सभी सदस्य अपने पाये हुये हिस्से के संयुक्त आभोगी हैं, लेकिन संयुक्त आभोगियों के रूप में होने के लिए विशेष सहमति प्रमाणित की जा सकती है.

संयुक्त परिवार के सदस्यों के लिए यह सम्भव है कि संयुक्त सम्पत्ति के किसी एक भाग का ही बंटवारा हो, जबकि शेष सम्पत्ति संयुक्त रखी जा सकती है.

2. व्यक्ति का आंशिक बंटवारा

किसी भी सदस्य को पृथक होने का अधिकार है. वह संयुक्त परिवार से अपना हिस्सा निश्चित करवा कर अलग हो सकता है. शेष सदस्य बिना किसी विशेष सहमति के स्वेच्छा से संयुक्त परिवार में रह सकते हैं. किन्तु प्रकल्पना नहीं की जा सकती है कि अन्य सदस्यों में एकता है.

श्रीमती कैलाश पति देवी बनाम श्रीमती भुनेश्वरी देवी (AIR 1984 SC 10 1802) उच्चतम न्यायालय ने अपूर्व शान्ती लाल शाह बनाम इन्कमटैक्स कमिश्नर (AIR 1983 SC 409) के बाद में निर्णित किया कि पिता और उसके दो अवयस्क पुत्रों के दरमियान सम्पत्ति का आंशिक विभाजन/बंटवारा हुआ था, और ऐसा विभाजन वैध ठहराया.

परिवार के अन्य सदस्यों पर विभाजन का प्रभाव

एक सहदायिकी के पृथक होने जाने पर प्रश्न यह उठता है कि शेष सदस्यों को कैसे समझा जाय कि वे ‘संयुक्त’, ‘पुन: संयुक्त’ या ‘पृथक्’ हैं.

इस प्रश्न का उत्तर पक्षकारों का आशय समझ कर ही दिया जा सकता है. इसके लिए यह समझना आवश्यक है कि अन्य सदस्य क्या चाहते हैं? वे एक में रहना चाहते हैं या पृथक होना चाहते हैं. इस उद्देश्य के लिए किसी विशेष सहमति की आवश्यकता नहीं है. संयुक्त रहने का आशय उनके रहने की अवस्था देखकर ही समझा जा सकता है. यदि एक भाई पृथक् होना चाहता है तो इससे यह तात्पर्य नहीं है कि अन्य सदस्य एक में रहना ही चाहते हैं. उनका ऐसा इरादा भी सिद्ध होना चाहिये.

पुनः यदि संयुक्त परिवार के सदस्यों के मध्य विभाजन हो गया है तो इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि वे अपने वंशजों से भी पृथक हो गये हैं. यदि दो भाई ‘अ’ और ‘ब’ अलग हो जाते हैं तो इससे यह आशय नहीं निकालना चाहिए कि ‘अ’ और उसके पुत्रों में भी बंटवारा हो गया है। एक हिन्दू पिता अपने पुत्रों से पृथक् हो सकता है और उसके पुत्र संयुक्त रह सकते हैं. ऐसे मामलों में व्यक्तियों का इरादा सिद्ध होना चाहिये |

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