Table of Contents
- 1 न्यासों का वर्गीकरण
- 2 I. न्यासधारियों के कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा स्वरूप के अनुसार
- 3 1. साधारण अथवा सामान्य न्यास
- 4 2. विशिष्ट न्यास
- 5 II. न्यास के उद्देश्य के आधार पर
- 6 1. असार्वजनिक या व्यक्तिगत न्यास
- 7 2. सार्वजनिक या पूर्त (खैराती) न्यास
- 8 III. न्यास सृजन की रीति के अनुसार
- 9 1. अभिव्यक्त अथवा घोषित
- 10 निष्पादित न्यास
- 11 निष्पाद्य न्यास
- 12 2. उपलक्षित या अनुमानित न्यास
- 13 3. अन्वयाश्रित न्यास
- 14 4. परिणामी न्यास
- 15 5. प्रार्थनात्मक न्यास
- 16 6. गुप्त न्यास
- 17 7. न्यास के सृजन के प्रतिफल के अनुसार
- 18 प्रतिकर के बदले में न्यास
- 19 स्वैच्छिक न्यास
- 20 1. आभासी या अपूर्ण न्यास
- 21 2. साभिप्राय न्यास
- 22 3. विवेकाश्रित न्यास
- 23 4. संरक्षी न्यास
न्यासों का वर्गीकरण
न्यास को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से वर्गीकृत किया गया है. ये दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं-
I. न्यासधारियों के कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा स्वरूप के अनुसार
इसके अन्तर्गत न्यास दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-
1. साधारण अथवा सामान्य न्यास
इस न्यास में न्यासधारी न्यास की सम्पत्ति का केवल धारणकर्ता है और उसे किसी सक्रिय कर्त्तव्यों का पालन नहीं करना पड़ता है. लेविस के अनुसार, एक सामान्य न्यास (Simple Trust) की सृष्टि तब होती है जब एक व्यक्ति में न्यस्त सम्पत्ति निहित हो जाती है और न्यास की प्रकृति न्यासकर्त्ता निश्चित नहीं करता, वह विधि पर छोड़ दिया जाता है.
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2. विशिष्ट न्यास
विशिष्ट न्यास (Specific Trust) एक ऐसा न्यास होता है जिसमें न्यासकर्ता न्यास के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से देशित कर देता है. ऐसे न्यास में न्यासधारी न्यस्त सम्पत्ति का निष्क्रिय निक्षेपागार मात्र नहीं होता, उसे सक्रिय रूप से कर्त्ता के आशयानुसार न्यास के निष्पादन में अपने विवेक का प्रयोग करना पड़ता है. इस न्यास में न्यासधारी न्यास के उद्देश्य विशेष की पूर्ति के लिए निष्पादन करता है. व्यवस्थापक के आशय की पूर्ति के लिए उसे सक्रिय रूप से न्यास का निष्पादन करना होता है |
II. न्यास के उद्देश्य के आधार पर
इस शीर्षक में असार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत न्यास व सार्वजनिक या पूर्त (खैराती) न्यास आते हैं.
1. असार्वजनिक या व्यक्तिगत न्यास
न्यास जो किसी व्यक्ति विशेष अथवा निश्चित व्यक्तियों के वर्ग के लाभ के लिए होता है, सार्वजनिक न्यास (Private Trust) कहलाता है.
2. सार्वजनिक या पूर्त (खैराती) न्यास
ऐसे न्यास का यह उद्देश्य होता है कि न्यास द्वारा ऐसे कार्य निष्पादित किये जायें, जिनसे समाज को लाभ हो या किसी सामाजिक हित की पूर्ति हो, जैसे बिना जाति या धर्म के भेदभाव के शिक्षा की प्रगति. यह न्यास लोक सामान्य अथवा किसी विवरण के जनसाधारण के एक बड़े भाग के लाभ के लिए होता है, अर्थात यदि उद्देश्य लोकहित अभिवर्द्धन हो अथवा किसी विशेष धर्म या सम्प्रदाय की समुन्नति के लिए न्यास हो तो न्यास सार्वजनिक न्यास (Public Trust) कहलाता हैं |
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III. न्यास सृजन की रीति के अनुसार
सृजन (Creation) की रीति के अनुसार न्यास का वर्गीकरण निम्नानुसार है-
1. अभिव्यक्त अथवा घोषित
यह एक ऐसा न्यास है जो व्यासकर्त्ता द्वारा मौखिक अथवा लिखित रूप में सुस्पष्टतया अभिव्यक्त अथवा घोषित (Express or Declared Trust) कर दिया गया है. इस न्यास को न्यासकर्ता शब्दों, दस्तावेज या इच्छा-पत्र द्वारा सृजित करता है, जैसे ‘क’ अपनी सम्पत्ति ‘ख’ को इस निर्देश सहित देता है कि वह सम्पत्ति को ‘ब’ के लाभार्थ उसके जीवन काल में तथा उसके पश्चात ‘ग’ के लिए धारण करें.
अभिव्यक्त अथवा घोषित न्यास को दो और भागों में निष्पादित (Executed) और निष्पाद्य (Executory) में विभाजित किया जा सकता है.
निष्पादित न्यास
निष्पादित न्यास (Executed Trust) उस अवस्था में कहा जाता है. जब उसे संघटित करने के लिए कुछ करना शेष न रह गया हो और न्यास प्रलेख द्वारा उसकी पूरी घोषणा कर दी गई हो.
निष्पाद्य न्यास
जब न्यास को पूर्ण करने के लिए कुछ करना शेष रह जाय तो वह निष्पाद्य न्यास (Executory Trust) होता है. इसका उद्भव उस अवस्था में होता है, जब ऐसे न्यासों पर व्यवस्थापन करने का अनुबन्ध या निर्देश हो जो उस प्रलेख में जिसमें ऐसा अनुबन्ध अथवा निर्देश अन्तर्विष्ट हो देशित किये गये हों परन्तु अन्तिम रूप से घोषित न किये गये हों.
2. उपलक्षित या अनुमानित न्यास
उपलक्षित अथवा अनुमानित न्यास (Implied Trust) एक ऐसा न्यास है जो सुव्यक्त न्यास के समान सुस्पष्ट रूप में व्यक्त न किया गया हो, वरन् मेरी इच्छा है, मेरा अनुरोध है, मैं आशा करता हूँ, आदि शब्दों पर आधारित व्यवस्थापक के अनुमेय आशय से परोक्ष रीति से अनुमानित किया जाता हो. उसका उद्भव वहाँ होता है जहाँ किसी घोषित न्यास के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा सम्पत्ति धारण नहीं की जाती वरन् वह इसमें ऐसी परिस्थितियों के अन्तर्गत निहित होती है कि न्यायालय द्वारा यह पूर्वधारणा धारण की जाती है कि इस प्रकार निहित सम्पत्ति का स्वयं अपने लाभ के लिए अथवा किसी दूसरे के लाभ के लिए न्यास के रूप में धारण किया जाना आशयित है.
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3. अन्वयाश्रित न्यास
अन्वयाश्रित न्यास (Constructive Trust) एक ऐसा न्यास है जो न्यास करने के आशय को ध्वनित करने वाले शब्दों अथवा परिस्थितियों के द्वारा नहीं किया जाता वरन् दूसरे की सम्पत्ति के असाम्यिक अर्जन को रोकने के लिए साम्या न्यायालय द्वारा आरोपित किया जाता है. किसी विश्वासपात्र अथवा किसी व्यक्ति द्वारा कोई अमर्यादित लाभ प्राप्त कर लेने की अवस्था में उसका उद्भव होता है.
4. परिणामी न्यास
एक परिणामी न्यास को अन्तर्निहित वर्ग के न्यास (Species Of Implied Trust) के रूप में जाना जा सकता है जो उस व्यक्ति के पक्ष में उत्पन्न होता है या जिसका परिणाम होता है तो वह व्यक्ति जो इसका निर्माण करता है या उन व्यक्तियों के लिए जो उसके प्रतिनिधि हैं. एक परिणामी न्यास (Resulting Trust) या प्रलक्षित न्यास निम्नलिखित 4 प्रकार की परिस्थितियों में से किसी में उत्पन्न नहीं हो सकते हैं-
- अपूर्ण घोषणा (Imperfect declaration)
- प्रतिफल का अभाव (Want of Consideration)
- अप्रयुक्त अवशेष (Unused residue)
- असमाप्त अवशेष (Unexhausted residue)
5. प्रार्थनात्मक न्यास
प्रार्थनात्मक न्यास (Precatory Trust) को उस न्यास के रूप में माना जाता है जिसकी रचना प्रत्यक्ष शब्दों द्वारा नहीं होती वरन् प्रार्थनात्मक (Precatory) शब्दों द्वारा होती है अर्थात प्रार्थना, आशा, इच्छा आदि प्रकट करने वाले शब्द।
प्रार्थनात्मक न्यास के सम्बन्ध में प्रमुख बाद मसूरी बैंक बनाम रेनर [(1882) LR7 AC. 331] का है. इसमें यह अभिमत व्यक्त किया गया कि प्रार्थनात्मक न्यासों से सम्बद्ध नियम सुस्पष्ट हैं कि न्यासकर्ता द्वारा न्यास में प्रयुक्त शब्द ऐसे होने चाहिए कि न्यायालय उन्हें सम्पत्ति के प्रथम ग्रहीता पर आवश्यक समझे. दान की विषय-वस्तु का सुपरिभाषित तथा सुनिश्चित होना आवश्यक है.
6. गुप्त न्यास
गुप्त न्यास (Secret Trust) प्रत्यक्ष न्यास के वर्ग का होता है. इसकी वहाँ सृष्टि होती है जहाँ सम्पत्ति एक व्यक्ति को पूर्ण रूप से अथवा एक अनिश्चित न्यास पर दी जाती है और उसके तथा प्रदाता के बीच एक समझौता हुआ रहता है कि ऐसी सम्पत्ति को अन्य व्यक्ति के लाभ के लिए या उद्देश्य के लिए प्रयुक्त किया जायगा।
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7. न्यास के सृजन के प्रतिफल के अनुसार
यह दो प्रकार का होता है-
प्रतिकर के बदले में न्यास
प्रतिकर के बदले में न्यास वे न्यास होते हैं जिनमें हितग्राही द्वारा प्रतिकर दिया जाता है अथवा वह कोई हानि उठाता है. इस प्रकार के न्यास में कर्त्ता और न्यासलाभी के बीच का सम्बन्ध संविदात्मक होता है.
स्वैच्छिक न्यास
स्वैच्छिक न्यास वे न्यास होते हैं जो हितग्राही द्वारा प्रतिकर के भुगतान के बिना ही किये जाते हैं. वे प्रतिकर के बदले में न्यास के ठीक प्रतिकूल होते हैं.
ऊपर दिये गये वर्गीकरण से आवृत्त न होने वाले न्यास भी हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. आभासी या अपूर्ण न्यास
आभासी न्यास (Illusory Trust) इस प्रकार का न्यास होता है कि साम्या उसके पालन के लिए विवश नहीं करेगा, बल्कि न्यासधारी को, यदि वह उसे कार्यान्वित न करना चाहे तो पूर्णतया स्वतन्त्र छोड़ देगा. यदि वह उद्देश्य को कार्यान्वित न करना चाहे, तो कोई निर्णय विधि उसके पालन के लिए आग्रह नहीं करती.
2. साभिप्राय न्यास
साभिप्राय न्यास (Purposeful Trust) और अपूर्ण दायित्व के न्यास लगभग एक ही हैं. साभिप्राय न्यासों में महाजनों के पक्ष में न्यास भी सम्मिलित हैं. साभिप्राय न्यासों और खैरात न्यासों की प्रकृति बहुत मिलती-जुलती है.
3. विवेकाश्रित न्यास
स्नेल (Snell) विवेकाश्रित न्यास की परिभाषा ऐसे न्यास के रूप में करता है जिसके अन्तर्गत हितग्राही को न्यस्त सम्पत्ति की आय के किसी सम्बन्ध में कोई अधिकार नहीं होता परन्तु जो न्यासधारी को यह विवेकाश्रित शक्ति प्रदान करता है कि आय के जिस भाग को वे उचित समझें उसे भुगतान कर दें या उसके लाभ के लिये उपयोग में लायें.
4. संरक्षी न्यास
स्नेल का कथन है कि शब्द संरक्षी न्यास (Protective Trust) सामान्यतया ऐसे न्यासों को देशित करता है जिनमें अवधार्य हितों तथा विवेकाश्रित न्यासों दोनों के ही लाभ पाये जाते हैं. ऐसे न्यास के अन्तर्गत यदि मुख्य हितग्राही दिवालिया हो जाय अथवा न्यास के अन्तर्गत अपने हित के अन्यसंक्रामण की चेष्टा करे तो उसका हित अवधार्य हो जाता है और उसके लिए कुछ अन्य व्यक्तियों के पक्ष में एक विवेकाश्रित न्यास का उद्भव हो जाता है |