Table of Contents
- 1 किसी पक्षकार की मृत्यु का बाद पर प्रभाव
- 2 वाद का उपशमन
- 3 1. आगे कार्यवाही को चालू रखने की न्यायालय की शक्ति
- 4 2. कार्यवाही चालू रखने की प्रक्रिया
- 5 3. वाद का उपशमन (अंत) कब होगा?
- 6 4. किसी मृतक पक्षकार का वैध प्रतिनिधि न होने पर प्रक्रिया
- 7 5. सुनवाई के बाद किन्तु निर्णय के पहले मृत्यु के कारण कोई उपशमन नहीं होगा
किसी पक्षकार की मृत्यु का बाद पर प्रभाव
किसी वादी को मृत्यु से बाद का उपशमन या अन्त नहीं होता है जब तक कि वाद लाने का अधिकार बचा रहता है.
श्रीमती फूल रानी बनाम नौबतराय, AIR 1973 SC 688 के मामले में इस पदावली की व्याख्या करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि बाद लाने के अधिकार का अर्थ बाद लाने का ऐसा अधिकार है जिसके द्वारा उसी अनुतोष का दृढ कथन किया जाता है जिसका दृढ कथन वादी अपनी मृत्यु के समय करता रहा है. उदाहरण के लिए कोई तस्वीर बनाने की प्रतिज्ञा जिसमें विशेष कौशल की जरूरत होती है, प्रतिज्ञाकर्त्ता के प्रतिनिधियों पर बन्धनकारी नहीं होती है, और मृत्यु पर उसके विरुद्ध लाने का अधिकार जीवित नहीं रहता है.
वाद का उपशमन
CPC आदेश 22 क्या है? वाद के किसी आवश्यक पक्षकार के मर जाने पर स्वाभाविक रूप से उस वाद का उपशमन हो जाता है, किन्तु उस स्थिति को बचाने के लिये सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 22 में निम्न उपबन्ध किये गये हैं-
1. आगे कार्यवाही को चालू रखने की न्यायालय की शक्ति
जहां वाद में एक से अधिक वादी या प्रतिवादी होते हैं और उसमें से कोई मर जाता है किन्तु किसी एकल उत्तरजीवी वादी या बादियों के पक्ष में या किसी एकल प्रतिवादी या प्रतिवादियों के विरुद्ध वाद लाने का अधिकार बचा रहता है, वहां न्यायालय इस प्रभाव को प्रविष्टि अभिलेख में दर्ज करवा कर ऐसे उत्तरजीवी वादी या वादियों की पहल पर या ऐसे उत्तरजीवी प्रतिवादी या प्रतिवादियों के विरुद्ध वाद को चालू रखेगा.
2. कार्यवाही चालू रखने की प्रक्रिया
संहिता के प्रावधानों के अन्तर्गत कार्यवाही चालू रखने की प्रक्रिया इस प्रकार है-
1. एकल वादी या कई वादियों में से किसी एक की मृत्यु होने पर
जब एकल वादी या एकल उत्तरजीवी वादी (Sole surviving) मर जाता है किन्तु बाद लाने का अधिकार जीवित रहता है (Survies) अथवा जब कई वादियों में से किसी एक के मर जाने पर उत्तरजीवी वादी या कादियों के पक्ष में वाद लाने का अधिकार जीवित नहीं रह जाता है. (क्योंकि मृतक के साथ हो ऐसा अधिकार भी मर चुका होता है) तब न्यायालय इस हेतु आवेदन किये जाने पर मृत वादी के वैध प्रतिनिधि को पक्षकार बनाता है और वाद चालू रखता है.
2. एकल प्रतिवादी या कई प्रतिवादियों में से किसी एक की मृत्यु होने पर
जब एकल प्रतिवादी या एकल उत्तरजीवी प्रतिवादी के मर जाने पर भी बाद लाने का अधिकार जीवित रहता है या कई प्रतिनिधियों में से किसी एक के मर जाने पर उत्तरजीवी मृत्यु होने प्रतिवादी या प्रतिवादियों के विरुद्ध वाद लाने का अधिकार जीवित नहीं रहता है (क्योंकि मृतक के साथ ही ऐसा अधिकार भी मर चुका होता है) तब न्यायालय इस हेतु आवेदन किये जाने पर मृत प्रतिवादी के वैध प्रतिनिधि को पक्षकार बनाकर वह चालू रखता है.
3. वैध प्रतिनिधि के बारे में प्रश्न का अवधारण
कोई व्यक्ति मृत वादी या मृत प्रतिवादी का वैध प्रतिनिधि है या नहीं, ऐसे प्रश्न का अवधारण न्यायालय ही करता है.
3. वाद का उपशमन (अंत) कब होगा?
बाद का उपशमन निम्नलिखित दशाओं में हो सकता है-
1. वादी की मृत्यु की दशा में
यदि उसके वैध प्रतिनिधि को पक्षकार बनाये जाते के लिये विधि द्वारा मर्यादित समय के अन्दर आवेदन नहीं किया जाता है तो बाद का उपशमन उस सीमा तक हो जायेगा जहां तक मृतक वादी से वाद का सम्बन्ध था और तब प्रतिवादी के आवेदन पर न्यायालय वाद की प्रतिरक्षा में उसके द्वारा किये गये खर्ची को उसके पक्ष में मंजूर कर सकेगा, जो मृत वादी की सम्पदा से वसूल किये जायेंगे.
वाद के लम्बित रहने के दौरान वादी की मृत्यु हो जाने पर यदि उसके विधिक प्रतिनिधि अभिलेख पर नहीं लाये जाते हैं तो ऐसे वाद में पारित डिक्री अकृत (Null) होगी.
प्रभुदान वाई गोविन्द सिंह गांधवी बनाम अहमदशा बच्चूशा फकीर, (AIR 2016 N.O.C. 742) गुजरात
2. प्रतिवादी की मृत्यु की दशा में
मृतक प्रतिवादी के वैध प्रतिनिधि को पक्षकार बनाये जाने के लिये विहित समय के अन्दर आवेदन न किये जाने पर मृतक प्रतिवादी के विरुद्ध वाद का उपशमन हो जायेगा.
4. किसी मृतक पक्षकार का वैध प्रतिनिधि न होने पर प्रक्रिया
जब किसी मृतक पक्षकार का कोई वैध प्रतिनिधि न हो तब न्यायालय वाद के किसी भी पक्षकार के आवेदन पर या तो ऐसे वैध प्रतिनिधि के अभाव में ही कार्यवाही कर सकेगा या एडमिनिस्ट्रेटर जनरल या न्यायालय के किसी पदाधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति को, जिसे न्यायालय ठीक समझे, मृतक की सम्पदा का प्रतिनिधित्व करने के लिये वाद के प्रयोजन के लिये नियुक्त कर सकेगा और तब वाद में दिया गया निर्णय मृतक की सम्पदा पर उसी प्रकार बाध्यकारी होगा मानो उसका कोई व्यक्तिगत प्रतिनिधि वाद में पक्षकार रहा था.
5. सुनवाई के बाद किन्तु निर्णय के पहले मृत्यु के कारण कोई उपशमन नहीं होगा
किसी वाद में उसकी सुनवाई समाप्त करने और उसमें निर्णय दिये जाने के बीच यदि किसी पक्षकार की मृत्यु हो जाती है तो चाहे वाद हेतु जीवित हो या नहीं, निर्णय सुनाया जा सकेगा, जिसका वही बल और प्रभाव होगा मानो ऐसी मृत्यु होने से पहले निर्णय सुनाया जा चुका हो.
ठाकुर दीन सिंह बनाम सुरेश सिंह, (AIR 2016 मध्य प्रदेश, 205) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि मृत व्यक्ति के विरुद्ध लाया गया वाद अकृत होगा |