CrPC के तहत अभिवाक् सौदेबाजी की परिभाषा एवं प्रक्रिया क्या है?

 अभिवाक सौदेबाजी से क्या अभिप्राय है?

अभिवाक् सौदेबाजी क्या है?

प्ली बार्गेनिंग को हिंदी में अभिवाक् सौदेबाजी या दलील सौदेबाजी भी कहा जाता है. जब अभियुक्त पर कोई अपराध करने का आरोप हो और वह न्यायालय में आवेदन करता है कि वह मामले का समझौते द्वारा पारस्परिक स्वीकार्य हल चाहता है तो वह न्यायालय जिसके समक्ष अभियुक्त का मामला लम्बित (Pending) है लोक अभियोजक या मामले के परिवादी को समाधानप्रद निस्तारण के लिए समय प्रदान करता है. जिसमें अभियुक्त द्वारा पीड़ित को क्षतिपूर्ति (Compensation) देना शामिल होता है. यह कार्यवाही अभिवाक् सौदेबाजी (प्ली बार्गेनिंग) कहलाती है |

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अभिवाक् सौदेबाजी किन अभियुक्तों के विरुद्ध लागू होगी?

अभिवाक् सौदेबाजी (प्ली बार्गेनिंग) के उपबन्ध उस अभियुक्त के सम्बन्ध में लागू होगी जिसके विरुद्ध-

  • (1) रिपोर्ट सीआरपीसी की धारा 173 के अधीन थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा उसमें यह अभिकथित करते हुए अग्रसारित (Forwarded) की गयी है कि उसके द्वारा उस अपराध के लिए, जिसके लिए तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन मृत्यु या आजीवन कारावास या 7 वर्ष से अधिक कारावास का दण्ड उपबन्धित किया गया है, के अतिरिक्त अन्य अपराध कारित किया गया प्रतीत होता है.

दूसरे शब्दों में सी.आर.पी.सी की धारा 265क उस अभियुक्त के सम्बन्ध में लागू होगी जिसके विरुद्ध 7 वर्ष से अनधिक (कम) अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध किया गया प्रतीत होता है.

  • (2) मजिस्ट्रेट ने परिवाद पर उस अपराध के जिसके लिए प्रवृत्त विधि के अधीन मृत्यु या आजीवन कारावास या 7 वर्ष से अधिक अवधि के कारावास का दण्ड उपबन्धित किया गया है, अतिरिक्त अन्य अपराध का संज्ञान किया है और सीआरपीसी की धारा 200 के अधीन परिवादी और साक्षियों की परीक्षा के बाद धारा 204 के अधीन आदेशिका जारी किया है.

दूसरे शब्दों में मजिस्ट्रेट ने परिवाद पर 7 वर्ष से अनधिक (काम) अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध का संज्ञान लेकर आदेशिका जारी कर दिया है वहां धारा 265क लागू होगी.

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किन्तु धारा 265क वहां लागू नहीं होगा, जहां ऐसा अपराध देश की आर्थिक-सामाजिक स्थिति को प्रभावित करता है या स्त्री अथवा 14 वर्ष से कम आयु के शिशु के विरुद्ध कारित किया गया है.

सामाजिक-आर्थिक अपराध के बारे में केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा अवधारण करेगी |

अभिवाक् सौदेबाजी की प्रक्रिया क्या है?

सीआरपीसी की अध्याय 21 के धारा 265 के अन्तर्गत किया गया है. यह CrPC (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा अन्तः स्थापित किया गया है.

1. अभिवाक् सौदेबाजी के लिए आवेदन

अभिवाक् सौदेबाजी के लिए आवेदन सीआरपीसी की धारा 265ख में दिया गया है. अपराध का अभियुक्त व्यक्ति अभिवाक् सौदेबाजी के लिए आवेदन उस न्यायालय में दाखिल कर सकेगा है जिसमें का विचारण लम्बित (Pending) है.

2. आवेदन में विवरण

आवेदन में उस मामले का संक्षिप्त विवरण होगा जिसके सम्बन्ध में आवेदन दाखिल किया गया है. आवेदन में अपराध का भी उल्लेख होगा जिससे मामला सम्बन्धित है. आवेदन के साथ शपथपत्र भी होगा कि अभिवाक् सौदेबाजी के लिए आवेदन स्वच्छया दाखिल किया है और न्यायालय द्वारा उस मामले में दोषसिद्ध नहीं किया गया है.

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नोट (Note)- न्यायालय आवेदन प्राप्त करने पर इसकी सूचना लोक अभियोजक या मामले के परिवादी को देगा और अभियुक्त को मामले के लिए तय गई तारीख पर उपस्थित होने के लिए नोटिस जारी करेगा.

3. न्यायालय द्वारा बन्द कमरे में परीक्षा

जब अभियोजक या मामले का परिवादी यथास्थिति और अभियुक्त तय गई तारीख पर उपसंजात होते हैं तब न्यायालय बन्द में अभियुक्त की परीक्षा करेगा. सीआरपीसी की उपधारा 4क के अनुसार जहां न्यायालय को समाधान हो जाता है कि आवेदन स्वच्छया दाखिल किया गया है तो न्यायालय लोक अभियोजक या मामले के परिवादी; यथास्थिति और अभियुक्त को मामले के पारस्परिक रूप से समाधानप्रद निस्तारण के लिए समय प्रदान करेगा जिसमें अभियुक्त द्वारा पीड़ित को क्षतिपूर्ति (Compensation) और मामले के दौरान अन्य व्यय को देना शामिल हो सकेगा और इसके पश्चात मामले की पुनः सुनवाई के लिए तारीख नियत करेगा.

उपधारा 4 के अनुसार यदि आवेदन स्वेच्छया दाखिल नहीं किया गया है तो या उसे पहले न्यायालय द्वारा उस मामले में दीपसिद्ध किया गया है, जिसमें उसे उसी अपराध से आरोपित किया गया था, वहाँ वह इस संहिता के प्रावधानों के अनुसार पुनः ऐसे प्रक्रम से कार्यवाही करेगा, जिस पर ऐसा आवेदन उपधारा (1) के अधीन दाखिल किया गया है.

4. पारस्परिक रूप से समाधान निपटारे के लिए मार्ग निर्देश

सीआरपीसी की धारा 265ग के अनुसार धारा 265ख की उपधारा (4) के खण्ड (क) के अधीन पारस्परिक रूप से निपटारा करने में न्यायालय निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करेगा, अर्थात-

  • (क) पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित किये गये मामले में न्यायालय लोक अभियोजक, पुलिस अधिकारी जिसने मामले का अन्वेषण किया है, अभियुक्त और मामले के पीड़ित को मामले का समाधानप्रद निपटारा करने के लिए बैठक में भाग लेने के लिए नोटिस जारी करेगा.

परन्तु मामले का समाधानप्रद निपटारा करने की ऐसी सम्पूर्ण प्रक्रिया में, न्यायालय का यह सुनिश्चित करना कर्त्तव्य होगा कि सम्पूर्ण प्रक्रिया बैठक में भाग लेने वाले पक्षकारों द्वारा स्वेच्छया से पूरी की जाती है.

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अभियुक्त भी अपने अधिवक्ता के साथ बैठक में भागीदारी कर सकता है.

  • (ख) परिवाद पर संस्थित मामले में, न्यायालय अभियुक्त और मामले के पीड़ित को मामले का समाधानप्रद निपटारा करने के लिए बैठक में भाग लेने के लिए नोटिस जारी करेगा. परन्तु न्यायालय का मामले का समाधान निपटारा करने की ऐसी सम्पूर्ण प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना कर्त्तव्य होगा कि यह बैठक में भाग लेने वाले पक्षकारों द्वारा स्वेच्छा से पूर्ण की गयी है.

परन्तु यदि मामले का पीड़ित या अभियुक्त, यथास्थिति वांछा करता है, तो वह मामले में लगाये गये अपने अधिवक्ता के साथ ऐसी बैठक में भागीदारी कर सकेगा.

5. पारस्परिक रूप से समाधानप्रद निपटारा की रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जायेगी

सीआरपीसी की धारा 265घ के अनुसार जहां धारा 265ग के अधीन बैठक में मामले का समाधानप्रद निपटारा किया गया है. वहां न्यायालय ऐसे निपटारे की रिपोर्ट तैयार करेगा, जिस न्यायालय के पीठासीन अधिकारी और सभी अन्य व्यक्तियों द्वारा जो बैठक में भाग लिए हैं, हस्ताक्षर किया जायेगा और कोई ऐसा निपटारा नहीं किया गया है, तो न्यायालय ऐसा संप्रेक्षण अभिलिखित करेगा और पुनः इस संहिता के प्रावधानों के अनुसार उस प्रक्रम से कार्यवाही करेगा, जिस पर धारा 265ख की उपधारा (1) के अधीन आवेदन ऐसे मामले में दाखिल किया गया है.

6. मामले का निस्तारण

सीआरपीसी की धारा 265ङ के अनुसार जहां मामले का समाधानप्रद निपटास धारा 265 घ के अधीन किया गया है. वहां न्यायालय मामले का निस्तारण निम्नलिखित ढंग से करेगा-

न्यायालय पीड़ित को क्षतिपूर्ति प्रदान करेगा और दण्ड की मात्रा पर सुनेगा. न्यायालय इस बात पर भी सुनवाई करेगा कि सीआरपीसी की धारा 360 के अधीन परिवीक्षा पर या भर्त्सना के बाद अभियुक्त को छोड़ा जा सकता है या नहीं. यदि अभियुक्त परिवीक्षा के अधीन प्रावधानों के अन्तर्गत आता है तो अभियुक्त को छोड़ देगा और ऐसी विधि का लाभ दे सकेगा.

पक्षकारों को सुनने के बाद न्यायालय की राय है कि अभियुक्त द्वारा कारित अपराध के लिए विधि न्यूनतम दण्ड उपबन्धित करता है तो वह अभियुक्त को ऐसे न्यूनतम दण्ड का आधा प्रदान कर सकेगा यदि अभियुक्त को परिवीक्षा अधिनियम के अन्तर्गत या धारा 360 के अन्तर्गत नहीं छोड़ जा सकता या अन्य विधि के अन्तर्गत अभियुक्त द्वारा कारित अपराध न्यूनतम दण्ड से दण्डनीय नहीं है तो वह ऐसे अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से एक चौथाई प्रदान कर सकेगा.

न्यायालय का निर्णय अन्तिम होगा और अपील नहीं होगी। न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध भारतीय संविधान में अनुच्छेद 136 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका और अनुच्छेद 226 तथा 227 के अधीन रिट याचिका दाखिल की जा सकती है.

सीआरपीसी की धारा 265झ के अनुसार यह व्यवस्था की गयी है कि अभियुक्त द्वारा भोगी गयी निरोध की अवधि का कारावास के दण्डादेश के विरुद्ध मुजरा किया जायेगा.

सीआरपीसी की धारा 265ठ के अनुसार इस अध्याय की कोई बात किशोर न्याय अधिनियम के अधीन परिभाषित किसी किशोर या बालक पर लागू नहीं होगी |

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