पेटेंटबिलिटी क्या है? | पेटेंटबिलिटी की शर्तें क्या हैं?

पेटेंटबिलिटी क्या है? | पेटेंटबिलिटी की शर्तें क्या हैं?

पेटेंटबिलिटी क्या है?

पेटेंटबिलिटी (पेटेंटनीयता) का मतलब होता है कि एक आविष्कार पेटेंट के योग्य है या नहीं. इसके लिए कुछ मुख्य शर्तें होती हैं जो किसी भी आविष्कार को पेटेंट के लिए पात्र बनाती हैं |

पेटेंटबिलिटी की शर्तें क्या हैं?

पेटेंटबिलिटी के अन्तर्गत किसी भी आविष्कार को पेटेंट के अनुदान योग्य होने के लिए निम्नलिखित शर्तों पर खरा उतरना चाहिए-

  1. नवीनता
  2. आविष्कारक चरण
  3. औद्योगिक अनुप्रयोज्यता
  4. विषयवस्तु से सम्बद्धता

1. नवीनता

कोई आविष्कार नया माना जायेगा यदि वह उस क्षेत्र के वर्तमान ज्ञान का हिस्सा नहीं है. भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970 में कहा गया है कि किसी आविष्कार को नवीन तब माना जायेगा यदि पूर्ण विशेष विवरण सहित पेटेंट हेतु आवेदन पत्र दिये जाने की तिथि से पूर्व किसी प्रपत्र में प्रकाशन के द्वारा इसका अनुमान नहीं लगाया गया है. या इसे इस देश या दुनिया में कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया गया है. अतः इसका अर्थ यह हुआ कि पेटेंट की विषयवस्तु अर्थात् प्रश्नगत आविष्कार ऐसा होना चाहिये जो सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध न हो या जो उस क्षेत्र में वर्तमान ज्ञान का अंश न माना जाय जिस क्षेत्र से संबंधित आविष्कार को पेटेंट कराया जाना है.

लल्लूभाई चाकू भाई जरीवाला बनाम चिम्मन लाल चुन्नीलाल एण्ड कंपनी, AIR 1936 बम्बई 39 के बाद में बंबई उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि आविष्कार की नवीनता ही (पेटेंट के अनुदान का) वास्तविक परीक्षण है. न्यायालय ने यह प्रेक्षण दिया है कि पूर्व प्रकाशन या पूर्व सार्वजनिक उपयोग का अभाव होना चाहिए और यदि उपयोग गोपनीय है या प्रयोग के तौर पर किया गया है तो आविष्कारकर्ता द्वारा अपने आविष्कार से प्राप्त किया गया लाभ अत्यधिक नहीं होना चाहिए. न्यायालय ने राय जाहिर की कि कभी-कभी “कला” (ART) शब्द का अर्थ निर्माण के समतुल्य है और यह भी कि यदि कोई नया निर्माण या कोई नई कला नहीं है तो इसका अर्थ यह होगा कि आविष्कार नहीं किया गया है.

2. आविष्कारक चरण

कोई आविष्कार आविष्कारक चरण से समन्वित माना जायेगा यदि यह उस विद्या में निपुण किसी व्यक्ति के लिए बिल्कुल जाहिर नहीं है. आविष्कारक चरण की कुछ ऐसी परिभाषा भारतीय पेटेंट अधिनियम भी देता है.

आविष्कार की परिभाषा से स्पष्ट होता है कि कोई प्रक्रिया जिसमें आविष्कारशील चरण सम्मिलित है, अधिनियम के अर्थ में आविष्कार है. यह आवश्यक नहीं है कि विकसित उत्पाद पूर्णतः नया उत्पाद हो. यदि किसी आविष्कारशील चरण से कोई उत्पाद वास्तव में उन्नत या संशोधित हो जाता है तो इसे आविष्कार कहा जाता है. आविष्कारक चरण की परिभाषा यह प्रावधान करती है कि जब विद्यमान ज्ञान के संदर्भ में तकनीकी प्रगति से किसी विद्यमान उत्पाद या पहले से विद्यमान युक्ति के विकास से उसके आर्थिक महत्व में सुधार हो जाता है और आविष्कार कला में दक्ष व्यक्तियों के लिए अप्रकट है तो यह आविष्कारक चरण की श्रेणी में आयेगा.

धनपत सेठ बनाम मेसर्स नील कमल प्लास्टिक क्रेट्स लिमिटेड, AIR 2008 H. P. 23 के वाद में न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि बांस की जगह प्लास्टिक से बने किल्ता में नवीनता लिए हुए कोई आविष्कारक चरण सम्मिलित नहीं है. पारंपरिक किल्ला जो प्राकृतिक सामग्री से बना है और सिन्थेटिक से बने किल्ला को विनिर्माण प्रक्रिया में कोई नवीनता नहीं है। यहां तक कि पारंपरिक किल्ता में प्रयुक्त रस्सी की भी नकल की गई है. मात्र बकसुआ का प्रयोग आविष्कार या आविष्कारक चरण कहे जाने के लिए नवीन युक्ति की श्रेणी में नहीं आता है.

3. औद्योगिक अनुप्रयोज्यता

यह पेटेन्ट विधि का मौखिक सिद्धान्त है कि पेटेन्ट केवल आविष्कार को ही प्रदान किया जाता है जिसे नवीन और उपयोगी होना चाहिए. इसमें नवीनता और उपयोगिता का तत्व विद्यमान होना चाहिए. न्यायालय ने सदैव यह दृष्टिकोण अपनाया है कि पेटेन्ट योग्य आविष्कार नवीन विनिर्माण होने के अलावा उपयोगी भी होना चाहिए. अतः किसी आविष्कार के पेटेंटकरणीय होने के लिए उसका उपयोगी होना आवश्यक है.

मार्गन बनाम सीवर्ड, (1 W. P. C. 167) के वाद में न्यायालय के द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि यदि कोई आविष्कार आम जनता के लिए किसी तरह से उपयोगी है तो यह उसकी पेटेंटकरणीयता का पर्याप्त आधार होगा.

डास बनाम एलेन, (1602) N. O. C. 182 के मामले में यह दलील दी गयी. और उसके बाद एक लम्बे समय तक इसे न्यायालय के निर्णय के रूप में माना गया कि आविष्कार व्यापार को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए और साम्राज्य की भलाई के लिए होना चाहिए और यह कि अभिकर्ता द्वारा राष्ट्र मण्डल में आविष्कार को लाकर की गई भलाई के बदले में न हो अन्यथा, एक एकल अधिकार प्रदान किया जाता था. इस प्रकार एक वैध अनुदान का आवश्यक तत्व यह होना चाहिए कि यह एक ऐसी चीज के लिए है जिससे साम्राज्य का भला होता है अर्थात इसे उपयोगी होना चाहिए.

मार्गन बनाम सीवर्ड, 1 W. P. C. 167 के बाद में न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि यदि कोई आविष्कार आम जनता के लिए किसी तरह से उपयोगी है तो यह उसकी पेटेंटकरणीयता का पर्याप्त आधार होगा |

4. विषयवस्तु से संबद्धता

किसी आविष्कार के पेटेंटकरणीय होने की पहली एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवश्यकता उसका उस क्षेत्र या उन क्षेत्रों से संबंधित होना है जिस क्षेत्र में विधि द्वारा पेटेन्ट प्रदान किये जाते हैं. यदि कोई आविष्कार उपयुक्त आधारों पर सफल हो जाता है तो उसे पेटेन्ट की विषयवस्तु मान लिया जाता है. सिर्फ ऐसे आविष्कार को ही पेटेन्ट की विषय वस्तु निर्मित करने वाले आविष्कारों में गिना जा सकता है. पेटेन्ट की विषय वस्तु की सीमाओं का ठीक-ठीक निर्धारण आसान काम नहीं है |

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