व्यपहरण एवं अपहरण क्या है? दोनों में क्या अंतर है? | व्यपहरण के प्रकार

व्यपहरण एवं अपहरण क्या है? दोनों में क्या अंतर है? | व्यपहरण के प्रकार

व्यपहरण

व्यपहरण का अर्थ? व्यपहरण शब्द अंग्रेजी के ‘Kidnapping’ का हिन्दी अनुवाद है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बच्चों की चोरी से है’. व्यपहरण दो प्रकार का होता है; प्रथम जो भारत से बाहर व्यपहरण तथा दूसरा विधिपूर्ण संरक्षक की संरक्षकता में से व्यपहरण. लेकिन इस प्रकार का विभाजन न तो पूर्ण है और न ही वास्तविक क्योंकि एक हो मामले में दो प्रकार का व्यपहरण हो सकता है. उदाहरणार्थ, किसी बच्चे का भारत से बाहर किये गये व्यपहरण में विधिपूर्ण संरक्षकता से किया गया व्यपहरण सम्मिलित है |

व्यपहरण के प्रकार

व्यपहरण दो प्रकार का होता है-

  1. भारत में से व्यपहरण
  2. विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण

1. भारत में से व्यपहरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 360 के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना या उनकी ओर से सहमति देने वाले की सम्पत्ति प्राप्त किये बिना भारत की सीमा के बाहर ले जाया जाता है तो यह कहा जायेगा कि उसका भारत से व्यपहरण हो गया. इस परिभाषा के अनुसार, भारत से व्यपहरण के अपराध में निम्नलिखित बातें सिद्ध करनी आवश्यक हैं-

  1. भारत की सीमा के बाहर व्यक्ति को ले जाना,
  2. उस व्यक्ति की सहमति के बिना ले जाना,
  3. व्यपहरण किये जाने वाले व्यक्ति की ओर से सहमति देने के लिए प्राधिकृत व्यक्ति की सहमति प्राप्त किये बिना ले जाना.

2. विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 361 के अनुसार, “जो कोई किसी अवयस्क को यदि वह नर हो तो 16 वर्ष से कम आयु वाले को और यदि नारी हो तो 18 वर्ष से कम आयु वाली को या किसी विकृतचित्त व्यक्ति को ऐसे अवयस्क या विकृतचित्त व्यक्ति के विधिपूर्ण संरक्षण में से ऐसे संरक्षक की सहमति के बिना ले जाता है या बहका ले जाता है, वह विधिपूर्ण संरक्षकता से व्यपहरण का अपराध करता है”.

सम्बंधित मामला; वरदराजन बनाम मद्रास राज्य (AIR 1965 SC 942) के बाद में एक अवयस्क लड़की अपने कार्य की प्रकृति या परिणाम का पूरा ज्ञान रखते हुये अपने पिता का संरक्षण छोड़कर स्वेच्छया अभियुक्त के पास चली गयी. उच्चतम न्यायालय ने अभिमत दिया कि ‘ले जाने’ तथा किसी के साथ चली जाने में अन्तर है. यह धारण किया गया कि अभियुक्त व्यपहरण का दोषी नहीं था. यह नहीं कहा जा सकता कि लड़की को विधिपूर्ण संरक्षकता से बाहर लाया गया था.

हालाँकि, इस धारा में ‘विधिपूर्ण संरक्षण’ शब्दों में ऐसा व्यक्ति आता है जिस पर ऐसे अवयस्क या अन्य व्यक्ति की देख-रेख या अभिरक्षा का भार विधिपूर्वक डाला गया है.

अपवाद; परन्तु इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति पर नहीं है, जो सद्भावना-पूर्वक अपने आपको उस बच्चे का अधर्मज पिता समझता है या जिसे सद्भावनापूर्वक उस बच्चे की अभिरक्षा करने का हकदार होने का विश्वास है जब तक कि ऐसा कार्य दुराचारिक या विधि विरुद्ध प्रयोजन के लिए न किया जाये.

इस प्रकार यह धारा अवयस्क और विकृतचित व्यक्तियों को उनके संरक्षक की सहमति के बिना अनुचित कार्यों के लिए संरक्षकता से बाहर ले जाने को अपराध घोषित करती है. यदि किसी वयस्क व स्वस्थचित्त व्यक्ति का व्यपहरण किया जाता है तो धारा लागू नहीं होती.

विधिपूर्ण संरक्षकता से व्यपहरण के आवश्यक तत्व

विधिपूर्ण संरक्षकता से व्यपहरण के निम्नलिखित आवश्यक तत्व कहे जा सकते हैं-

  1. किसी अवयस्क बच्चे या विकृतचित्त व्यक्ति को ले जाना अथवा बहका ले जाना,
  2. अवयस्क यदि नर है तो 16 वर्ष से कम और यदि नारी है तो 18 वर्ष से कम उम्र की हो,
  3. विधिपूर्ण संरक्षक की संरक्षकता में से ले जाना,
  4. संरक्षक की सहमति के बिना ले जाना.

ले जाना या बहका ले जाना; ले जाने या बहका ले जाने का अर्थ है जाने के लिए उत्प्रेरित करना. इसमें किसी प्रकार के बल की आवश्यकता नहीं है. बहकाने का तात्पर्य है; किसी अवयस्क को साथ जाने के लिए प्रेरित करना.

बहकाने शब्द में प्रलोभन द्वारा व्यक्ति में आशा उत्पन्न करना होता है. यह भिन्न-भिन्न तरीके से किया जा सकता है.

चूण्डा मुर्मू बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल (AIR 2012 SC 2160) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि भागी हुई पत्नी को वापस वैवाहिक घर में लाना व्यपहरण नहीं है |

अपहरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 362 के अनुसार, ‘जो कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से जाने के लिये बल द्वारा विवश करता है या किन्हीं कपटपूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करता है वह उस व्यक्ति का अपहरण करता है.

यह धारा अपहरण की परिभाषा प्रस्तुत करती है, जिसका तात्पर्य किसी व्यक्ति को बल प्रयोग द्वारा किसी स्थान से हटाये जाने से है. इसमें कपट द्वारा किसी व्यक्ति को किसी स्थान से हट जाने को उत्प्रेरित करना भी सम्मिलित है |

अपहरण के आवश्यक तत्व

  1. किसी व्यक्ति को बल द्वारा विवश करना या कपटपूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करना;
  2. इस प्रकार विवश करने या उत्प्रेरित करने का उद्देश्य उस व्यक्ति को किसी स्थान से -ले जाने का होना चाहिए.

सम्बंधित मामला; फूला बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान (क्रि० एल० आर० 1979 राजस्थान 234) तथा हरीराम बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान (क्रि० एल० आर० 1979 राजस्थान 234 ) में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि इस धारा में प्रयुक्त अभिव्यक्ति कपटपूर्ण उपायों में किसी लड़की को उसके श्वसुर के घर से झूठा बहाना बनाकर फुसलाना भी सम्मिलित है. अपहरण का अपराध एक निरन्तर चलने वाला अपराध है. यह किसी व्यक्ति को पहली बार स्थान से हटाने से ही पूर्ण नहीं हो जाता, वरन् तब तक जारी रहता है जब तक कि उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है |

अपहरण और व्यपहरण के बीच अंतर

  1. अपहरण (Abduction) किसी भी आयु वाले व्यक्ति का हो सकता है. अपहरण में कोई आयु सीमा नहीं है, जबकि संरक्षकता से व्यपहरण (Kidnapping) निर्धारित आयु वाले (अल्पवयस्क) तथा विकृतचित्त वाले व्यक्ति का ही हो सकता है.
  2. अपहरण किये गये व्यक्ति का अपहरण अभिभावक की देख-रेख से हो ऐसा आवश्यक नहीं है क्योंकि व्यक्ति वयस्क भी हो सकता है, जबकि व्यपहरित व्यक्ति अभिभावक की देख-रेख से परे ले जाया जाता है, ऐसा होना नितान्त आवश्यक है.
  3. अपहरण के मामले में छल, कपट या बल प्रयोग किया जाना आवश्यक है, जबकि व्यपहरण में बल प्रयोग आवश्यक नहीं, व्यक्ति विशेष को प्रलोभन देकर या प्रेरित करके जाने हेतु तैयार किया जा सकता है.
  4. अपहरण में सहमति एक अच्छा बचाव होती है, जबकि व्यपहरण में सहमति अवयस्क द्वारा प्रदत्त होने के कारण अप्रभावी होती है.
  5. अपहरण में उद्देश्य का विशेष महत्व होता है, जबकि व्यपहरण में उद्देश्य निरर्थक होता है.
  6. अपहरण का अपराध निरन्तरगामी है, जबकि व्यपहरण का अपराध एक बार में पूर्ण हो जाने वाला अपराध है.
  7. अपहरण का अपराध एक सहायक कृत्य होने के नाते स्वतः दण्डनीय नहीं है. इसे तभी दण्डनीय माना जाता है जबकि इसका उद्देश्य धारा 364 एवं अन्य धाराओं में वर्णित किसी अपराध को करने हेतु किया जाता है, जबकि व्यपहरण एक मूल अपराध है तथा स्वयं दण्डनीय है |

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