हस्तक्षेप क्या है? | हस्तक्षेप की परिभाषा एवं आधार

हस्तक्षेप क्या है? यह कितने प्रकार का होता है? | क्या आत्मरक्षा के आधार पर एक राज्य दूसरे राज्य में हस्तक्षेप कर सकता है?

हस्तक्षेप क्या है? | हस्तक्षेप की परिभाषा एवं आधार

हस्तक्षेप की परिभाषा

ओपेनहाइम के अनुसार, हस्तक्षेप एक राज्य के मामलों में आज्ञात्मक रूप से हस्तक्षेप करना है जिससे कि वह उपस्थित परिस्थितियों को बनाये रखे अथवा उसमें परिवर्तन लाये

स्टार्क का कथन है कि साधारणतया अन्तर्राष्ट्रीय कानून किसी दूसरे राज्य के भीतरी मामलों में हस्तक्षेप करने को मना करता है. यहां हस्तक्षेप का तात्पर्य साधारण दखल देने, मध्यस्थता या राजनैतिक सुझाव से कहीं अधिक बलवान है. जहां तक निषेध का सम्बन्ध है, इसमें अधिनायकत्व से भरा हस्तक्षेप होता है. इसका प्रभावित होने वाले राज्य की इच्छाओं के विरुद्ध प्रभाव पड़ता है और प्रायः सदैव ही ऐसा होता है. जैसा कि हाईड ने संकेत किया है, इसे हम उस राज्य की राजनैतिक स्वतन्त्रता का अपहरण कहेंगे.

प्रोफेसर केल्सन के अनुसार, अन्तर्राष्ट्रीय विधि सभी परिस्थितियों में हस्तक्षेप का निषेध नहीं करती. उनके अनुसार यदि कोई राज्य दूसरे राज्य के मामलों में शक्ति के प्रयोग द्वारा हस्तक्षेप करता है तो अन्तर्राष्ट्रीय विधि के इस उल्लंघन की प्रतिक्रिया के रूप में हस्तक्षेप किया जा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2 (4) में राज्यों द्वारा हस्तक्षेप न करने के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया गया है. इसके अनुसार, अपने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में सभी सदस्य किसी राज्य की क्षेत्रीय अखण्डता अथवा राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध अथवा संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों के असंगत बल के प्रयोग या उसकी धमकी से विरत रहेंगे.

हस्तक्षेप करने का सिद्धान्त वास्तव में राज्यों की समानता, सार्वभौमिकता तथा स्वतन्त्रता के आदर्श की खोज का एक भाग है. इसके अनुसार, एक राज्य को दूसरे राज्य के अन्तरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिये. राज्यों की सरकारें इस सिद्धान्त को स्वीकार करती हैं. परन्तु जहां तक वास्तविक व्यवहार का प्रश्न है, उसका उचित पालन नहीं होता.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा सदस्य राज्यों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धान्त का केवल एक अपवाद यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को बनाये रखने या पुनः स्थापित करने के लिये जब सुरक्षा परिषद चार्टर के अध्याय के अन्तर्गत सामूहिक कार्यवाही करती है। तो हस्तक्षेप न करने का सिद्धान्त लागू नहीं होता है.

2003 में अमेरिका द्वारा ईराक पर आक्रमण अवैध था. अमेरिका द्वारा ईराक पर आक्रमण के पश्चात् ईराक में विधि व कानूनी व्यवस्था चरमरा गई. आक्रमण के पश्चात् अमेरिकी सैनिकों ने ईराकी युद्धबन्दियों एवं अन्य ईराकी नागरिकों पर अत्याचार किया और मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन किया |

हस्तक्षेप के आधार

1. आत्मरक्षा

हस्तक्षेप का यह आधार बहुत समय से वैध माना जाता है. संक्षेप में किसी भी राज्य को अपनी आत्मरक्षा हेतु दूसरे राज्यों के आन्तरिक या बाहरी मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है. प्रोफेसर ओपेनहाइम के अनुसार, आत्मरक्षा के सम्बन्ध में शक्ति का प्रयोग तभी उचित ठहराया जा सकता है जबकि ऐसा करना आत्मरक्षा के लिये आवश्यक हो. इस शक्ति का प्रयोग तभी उचित होगा जबकि आत्मरक्षा की आवश्यकता शीघ्र, प्रबल तथा ऐसी हो जिसमें सम्बन्धित राज्य के पास कोई और उपाय न हो तथा उसमें निर्णय लेने का भी कोई क्षण उपलब्ध न हो. 1946 में न्यूरेम्बर्ग न्यायालय ने उपर्युक्त सिद्धान्त को उचित तथा वैध माना. कार्फ चैनेल वाद में न्याय के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने भी इस नियम का अनुमोदन कर दिया.

आधुनिक समय में आत्मरक्षा का सिद्धान्त संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 में प्रतिपादित किया गया है. इसके अनुसार, राज्य को उस समय व्यक्तिगत या सामूहिक रक्षा का अधिकार है, यदि उस पर पहले हमला हुआ हो. इसके अतिरिक्त यह अधिकार तभी तक रहता है जब तक कि सुरक्षा परिषद अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को बनाये रखने के लिये कोई कदम नहीं उठाती. अनुच्छेद 51 में यह भी निर्देश है कि किसी राज्य द्वारा ऐसी कार्यवाही सुरक्षा परिषद की विश्व शान्ति तथा सुरक्षा को बनाये रखने के अधिकार तथा जिम्मेदारी को प्रभावित नहीं कर सकती.

2. मानवता के आधार पर हस्तक्षेप

मानवता के आधार पर हस्तक्षेप काफी समय से उचित माना जाता रहा है. इस आधार के अन्तर्गत जब किसी देश में मानवीय अधिकारों का खुला उल्लंघन होता है या व्यक्तियों के साथ अमानुषिक अत्याचार हो तो दूसरे देशों को उन देशों के मामलों में दखल देने तथा इस प्रकार के अत्याचारों को रोकने का अधिकार प्राप्त हो जाता है. यदि मानवीय अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर हस्तक्षेप किया जा सकता है तो ऐसा हस्तक्षेप अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा के आधार पर चार्टर के अध्याय 7 के अन्तर्गत सुरक्षा परिषद स्वयं सामूहिक कार्यवाही द्वारा कर सकती है.

3. संधि अधिकारों को लागू करने के लिये

अन्तर्राष्ट्रीय विधि में संधि सम्बन्धी अधिकारों को लागू करने के लिये भी हस्तक्षेप को न्यायोचित ठहराया गया है. 1962 में अमेरिका ने क्यूबा में अपने हस्तक्षेप को उचित बताया था परन्तु संयुक्त राष्ट्र चार्टर के लागू हो जाने के बाद इस प्रकार का हस्तक्षेप न्यायोचित नहीं है. संयुक्त राष्ट्र चार्टर में हस्तक्षेप न करने के सिद्धान्त को अपनाया गया है तथा राष्ट्रों से यह कहा गया है कि वे एक दूसरे के आंतरिक तथा बाहरी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे. इस प्रकार अमेरिका का क्यूबा में हस्तक्षेप न्यायोचित नहीं था.

4. अवैध हस्तक्षेप को रोकने के लिये हस्तक्षेप

इस आधार को भी अन्तर्राष्ट्रीय विधि में हस्तक्षेप का उचित आधार माना गया है और इस प्रकार के कई उदाहरण मिलते हैं. इसी आधार पर इंग्लैण्ड ने 1828 में पुर्तगाल को सहायता पहुँचाई थी. परन्तु वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अन्तर्गत इस प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है.

5. शक्ति का संतुलन

यह आधार पहले अन्तर्राष्ट्रीय विधि में उचित आधार माना जाता था, परन्तु अब न्यायोचित नहीं रह गया है.

6. व्यक्तियों तथा सम्पत्ति का संरक्षण

अन्तर्राष्ट्रीय विधि पहले इस प्रकार के हस्तक्षेप को भी मान्यता प्रदान करती थी तथा इस आधार पर भी अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अनेक हस्तक्षेप हुए हैं. इस प्रकार का हस्तक्षेप भी अब वैध नहीं माना जाता; क्योंकि इस विषय में जो कुछ भी कार्यवाही की जा सकती है वह कार्यवाही संयुक्त राष्ट्र के अधीन होनी चाहिये. और संयुक्त राष्ट्र इस आधार पर हस्तक्षेप को उचित नहीं बताता.

7. सामूहिक हस्तक्षेप

वर्तमान समय में सामूहिक हस्तक्षेप एक वैध तथा न्यायोचित हस्तक्षेप घोषित कर दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने विश्व में शान्ति तथा सुरक्षा बनाये रखने की जिम्मेदारी परिषद को सौंपी है. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय 7 में सुरक्षा परिषद को सामूहिक कार्यवाही करने का अधिकार प्राप्त हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इन्हीं अधिकारों के अन्तर्गत 1950 में कोरिया तथा 1961 में कांगो में सामूहिक कार्यवाही की.

8. अन्तर्राष्ट्रीय विधि को बनाने के लिये हस्तक्षेप

संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद को विश्व शान्ति तथा सुरक्षा बनाये रखने के लिये हस्तक्षेप करने का अधिकार है जो इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अन्तर्गत आता है. परन्तु केवल इस आधार पर कि किसी मामले में अन्तर्राष्ट्रीय विधि का उल्लंघन हुआ है, सुरक्षा परिषद हस्तक्षेप नहीं कर सकती.

9. गृह युद्ध में हस्तक्षेप

आधुनिक युग में अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विकास होने के कारण विश्व के राष्ट्रों का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध हो गया है अतः एक राज्य की घटनाओं का दूसरे राज्य पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है; अतः यदि किसी राज्य में विद्रोह या गृह युद्ध हो जाता है तो उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे राज्य पर भी प्रभाव पड़ता है. इस आधार पर भूतकाल में कुछ राज्यों ने दूसरे राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप किया है.

उदाहरण के लिये, 1934-38 मेंजर्मनी तथा इटली की सरकारों ने स्पेन के गृह-युद्ध में हस्तक्षेप किया. 1968 में रूस ने चेकोस्लोवाकिया के गृह युद्ध में हस्तक्षेप किया तथा उसे न्यायोचित बताया |

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