अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के उद्देश्य, लक्ष्य एवं विशेषताएं

अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के उद्देश्य, लक्ष्य एवं विशेषताएं

अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के उद्देश्य

मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता है. ब्लकि वह एक अबोध बालक के रूप में जन्म लेता है लेकिन कालान्तर की परिस्थितियां उसे अपराधी बना देती हैं. ऐसे अपराधियों को अपने किये हुए कृत्यों पर प्रायश्चित भी होता है और वे सुधरना भी चाहते हैं. अतः ऐसे व्यक्तियों को सुधरने का समुचित अवसर प्रदान करना ही इस अधिनियम का मुख्य ध्येय/उद्देश्य है.

यह अधिनियम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इस आदर्श वाक्य को मूर्त रूप प्रदान करता है. कि “घृणा अपराधी से नहीं अपराध से की जानी चाहिये.” वास्तव में यह अधिनियम अपराधियों को परिवीक्षा पर सम्यक भर्त्सना के पश्चात् छोड़ देने के उपबन्धों का सृजन करता है.

रामनरेश पाण्डे बनाम स्टेट ऑफ मध्य प्रदेश (1974 क्रि० लॉ ज० 153) के मामले में इस अधिनियम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि “नवयुवक अपराधियों को कारागृह में नहीं भेजकर उन्हें कुख्यात अपराधियों की संगति से बचाना तथा भविष्य में कठोर अथवा कुख्यात अपराधी बनने से निवारित करना ही इस अधिनियम का मुख्य लक्ष्य है.”

लेकिन साथ ही यह अधिनियम गम्भीर एवं संगीन प्रकृति के अपराधों को अपनी परिधि से बाहर रखता है. वह अधिनियम सभी प्रकार के अपराधों में एवं सभी प्रकार के अपराधियों को परिवीक्षा का लाभ नहीं देता है. परिवीक्षा के लाभ के लिए अभियुक्त व्यक्ति की आयु चरित्र, आचरण, अपराध की प्रकृति आदि को ध्यान में रखा जाता है.

अब्दुल रजाक बनाम फूड इन्सपेक्टर, कोचीन, (1977 क्रि० लॉ ज० 669) के मामले में यह स्पष्ट किया गया है कि गंभीर प्रकृति के अपराधों में इस अधिनियम को लागू नहीं करने का मुख्य उद्देश्य ऐसे अपराधों एवं अपराधियों को समाज को संरक्षण प्रदान करना है |

अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के लक्ष्य

इस अधिनियम का लक्ष्य है-

  1. प्रथम बार अपराध कारित करने वाले व्यक्तियों को सुधरने का अवसर प्रदान करना,
  2. सामान्य प्रकृति के अपराधों में अपराधियों को भर्त्सना (Admonition) पर छोड़ना,
  3. अपराधियों के आचरण में सुधार लाने के लिए उन्हें पर्यवेक्षण में रखना,
  4. किशोर अपराधियों की कारागृह के कुख्यात अपराधियों की संगति से बचना तथा
  5. अपकृत व्यक्तियों की क्षतिपूर्ति करना.

अधिनियम व्यक्तिगत सुधार और उन्नयन को प्रोत्साहित करती है.

वहीं, बलदेव राज बनाम राज्य [(1969) 71 (PLR 158] के मामले में भी यही अभिनिर्धारित किया गया है कि युवा अपराधियों को आदतन अपराधियों से दूर रखकर उनमें सुधार की प्रवृत्ति विकसित करना ही इस अधिनियम का मुख्य लक्ष्य है |

अपराधी परिवीक्षा अधिनियम की प्रमुख विशेषतायें

1. अपराधी को सुधारने का उद्देश्य

मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता है बल्कि वह परिस्थितियोंवश अपराध करता है तब ऐसी स्थिति में अपराधी खुद को सुधारना चाहते हैं अत: ऐसे व्यक्तियों को सुधरने का समुचित अवसर प्रदान करना ही इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य है. इस अधिनियम के द्वारा अपराधियों के आचरण को सुधारने का अवसर दिया गया है या अपकृत्य व्यक्तियों के लिए क्षतिपूर्ति की भी व्यवस्था की गई है.

2. अपराधियों को भर्त्सना पर छोड़ना

छोटे अपराधों को करने वाले अपराधियों को भविष्य में अपराधों की पुनरावृत्ति नहीं करने की चेतावनी देकर छोड़े जाने सम्बन्धी प्रावधानों को अधिनियम में उल्लिखित किया गया है जिससे कि व्यक्ति को सुधरने का मौका मिले.

3. अपराधियों को सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ना

कुछ विशेष अपराधों के लिए अधिनियम में उल्लिखित आयु वाले अपराधियों को उनके आचरण पर भी इस अधिनियम के तहत परिवीक्षा पर छोड़ा जा सकता है. यह अवसर प्रथम अपराधी को दिया जाता है.

4. अपराधियों से प्रतिकर तथा खर्चा

यदि न्यायालय उचित समझता है कि अपराध किये जाने से किसी को हानि हुई है तो अपराधी से प्रतिकर तथा खर्चा दिलाया जा सकता है. राशि का निर्धारण न्यायालय द्वारा किया जाता है.

5. इक्कीस वर्ष से कम आयु वाले अपराधियों के कारावास पर निर्बंन्धन

अधिनियम 27 वर्ष से कम आयु वाले अपराधियों के कारावास पर निबंन्धन लगाता है तथा यह अपेक्षित करता है कि ऐसे आयु वाले अपराधियों को भर्त्सना पर सदाचार की परिवीक्षा पर छोड़ा जाये.

6. प्रोबेशन अधिकारी

अधिनियम में परिवीक्षा अधिकारी के सम्बन्ध में प्रावधानों को उल्लिखित किया है. इसके कार्यों तथा दायित्वों का भी निर्धारण किया है. परिवीक्षा अधिकारी अपराधी को सुधारने में प्रमुख भूमिका निभाता है. व्यक्ति सुधार तथा उन्नयन अधिनियम का प्रयोजन व्यक्तिगत सुधार एवं उन्नयन करना है, जिससे मनुष्य के आत्मबल का विकास हो सके |

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